खिलाफ – मनीषा सिंह : Moral stories in hindi

“मां ” खाने को कुछ दो ना, बहुत जोरों की भूख लगी है।

‘ सुबह से शाम ‘ हो गई अब तक तुमने—- खाने को कुछ भी नहीं दिया। 

  चार साल की शालू यह कहते हुए फफक -फफक के रोने लगी ।

” हां बेटा! बस थोड़ी देर और इंतजार कर ले, फिर हम सब को कभी भी खाने की दिक्कत नहीं होगी । हमें  खूब सारा खाना, हर दिन मिलेगा।  और इन  झंझटों से हमें मुक्ति भी मिल जाएगी।

 कहते हुए सन्नो बेटी का सर अपने गोद में रख शाम होने का इंतजार करने लगी।

 “भाई साहब “भूख भी इतनी कमीनी चीज है जो इंसान से कुछ भी कराने की कुब्बत रखती है ।

सन्नो की शादी 15 साल की उम्र में ही अपने से बारह साल बड़े बिरजू के साथ हो गई । यह शादी नहीं बल्कि एक तरह का समझौता ही था ।

पहले सन्नो की बड़ी बहन पारो की शादी सन्नो के देवर के संग ,परिवार वालों की राजा मंदी से हुई  तब  सन्नो चौदह साल की थी । शादी के छः महीने बाद पारो को उसके ससुराल वालों ने मायका छोड़ दिया  । 

भाई क्यों ।तो ,जब तक अपनी छोटी बेटी का विवाह मेरे बड़े बेटे के साथ नहीं करोगे तो हम तुम्हारी बेटी को अपने यहां बसने नहीं देंगे।

 सन्नो के माता-पिता के सामने तो जैसे आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा  था। लड़का भी अपाहिज।

 “तब सन्नो ने इस शादी से बिल्कुल ही  मना कर दिया था।”

 लेकिन शन्नो की मां अपनी पहली बेटी की जिंदगी को बर्बाद होता देख इस शादी के लिए राजी हो गई।

 धीरे-धीरे अपने पति को भी राजी कर जबरदस्ती सन्नो की शादी इस अपाहिज’ बिरजू’ के साथ करा दी गई।  शादी के 6 महीने बाद ही ,सन्नो गर्भवती हो गई ।

 बिरजू  पैर से अपाहिज तो था ही, साथ में व्यक्तित्व का भी बहुत बुरा था।

 बिरजू बिजली का सामान ठीक करता था और अपना ‘खुद का दुकान ‘भी चलाता था । दिन भर  दुकान में रहता चार पैसे कमाता, तो दारू पीकर घर आता और सन्नो के साथ खूब मारपीट करता।

 अपनी बेबसी पे हर दिन सन्नो रोया करती । घर में सगी बहन होने के बावजूद भी ,उसके दुख दूर नहीं हो सकते थे ।

बहन उसकी चाह के भी कुछ नहीं कर पाती, क्योंकि इन दोनों बहनों को सास अलग -अलग रखा करती ।

” घर का एक पत्ता “भी सन्नो की सास की मर्जी के बिना नहीं हिलता घर के साथ-साथ बेटों को भी अपने बस में कर रखा था ।

 देखते-देखते शादी के 10 साल गुजर गए लेकिन हालात बत से बत्तर होती चली गई ।

 इस बीच सन्नो ने एक बेटा एक बेटी को जन्म दिया।

 एक दिन तो हद ही हो गई रात में दुकान से आने के बाद बिरजू ने सन्नो की खूब पिटाई की।

 फिर सन्नो और उसके बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया ।

बच्चे रात भर भूखे, घर के बाहर ठंड में ठिठुरते रहे ।

“सुबह जब बिरजू को होश आया ,तब सब घर के अंदर आए अब इन सब परिस्थितियों को झेलते झेलते वह परेशान हो उठी थी ।

और एक दिन अचानक बिरजू  हमेशा की तरह दारू के नशे में धूत 

  सन्नो की पिटाई करने ही वाला था कि उसने ( सन्नो ) बिरजू का हाथ पकड़ दरवाजे के बाहर किया और अंदर से कुंडी लगा ली। 

“फिर पूरी रात  वह ,घर के बाहर ही 

बर -बर करते सो गया।

” दूसरे ही दिन पूरे गांव और बिरादरी के सामने  उसकी सास और बिरजू ने सन्नो को अपने घर -परिवार से अलग कर ,  दहेज में ( सन्नो का सामान ) मिला सामान सन्नो के साथ दे, उसे गांव से भी निकाल दिया । 

 बिरजू के खिलाफ ,कदम उठाने की कोशिश, की वजह से सन्नो घर क्या, पूरे गांव से ही निष्कासित कर दी गई।

”  मायका गई, तो एक बार फिर से उसके माता-पिता यह कहा  कि  पति-पत्नी में ऐसा तो होते ही रहता है।

तु  ससुराल जा और अपने पति और सास से माफी मांग ले ।”

 अब बेचारी सन्नो बेसहारा थी अपने बच्चों के साथ भूखी प्यासी इधर-उधर भटकने लगी। कई जगह काम मांगने की कोशिश करती पर लोग  उसके बच्चों को देख काम देने से मना कर देते।

 एक दिन सन्नो को किसी ने तरस खाकर 100₹ दिए ,कहा तुम सब कुछ खा लो बहन ! बच्चे तुम्हारे भूख से तड़प रहे हैं ।

तभी तो आज उसने बेटी को भरपूर खाना खिलाने का वादा कर, रात होने का इंतजार करने लगी थी।

अब जैसे ही शाम हुई  बेटी को अपनी गोद से हटा ,एक तरफ रखते हुए ,अपने बेटे जो 9 साल का था ,को बोली बेटा! तू—– शालू का ध्यान रखना मैं अभी कुछ खाने के लिए लाती हूं ।

आधे घंटे के अंदर ही सन्नो अपने साथ कुछ लाती है फिर दोनों बच्चें जो , मां के इंतजार में थे ,उनको खिला खुद खाकर जिंदगी भर का भूख शांत करते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

 “दोस्तों  हम अगर किसी के खिलाफ जाते हैं तो  कभी-कभी हमें अपनी अजीज चीज की कुर्बानी करने के साथ- साथ परिवार का  भी साथ  खोना पड़ता है ।

  “यहां तो अपने पति के खिलाफ उठाए कदम के कारण सन्नो और उसके बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ गई।” 

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धन्यवाद।

 

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मनीषा सिंह

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