ख़्वाबों का स्वेटर: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

Post Views: 6 ————- काहे री बबुनी गरमी में सुटेर (स्वेटर) बुन रहल हीं? अभी केक़रा पहनैभीं (गर्मी में किसको पहनाओगी)? गरमी में दम घुट कर मर जैतौ। नाँय मम्मा (दादी), अभी खतीर नाँय हौ (अभी के लिए नहीं है), ठंढवा में पहनथी ने (ठंढा में पहनेंगे न)। ठिके हौ बबुनी, कम से कम तोंय … Continue reading ख़्वाबों का स्वेटर: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)