ख्वाब – वंदना चौहान

बारात में जा रहा है, ज्यादा उछल-कूद मत करना और हाँ नशा करके डांस करने वालों से दूर ही रहना, अपने मामा के आसपास ही रहना ।

अगर कोई गड़बड़ की तो टाँग तोड़ दूँगी तेरी ।  

माँ की कड़कड़ाती आवाज सुनकर पिंकू थोड़ा सहम गया फिर उसने धीरे से कहा-  हमेशा डाँटती रहती हो माँ ,अब मैं बड़ा हो गया हूँ ।

हाँ, हाँ बहुत बड़ा हो गया है तू अब, सब जानती हूँ कितना बड़ा हो गया है। मैं तो तेरे भले के लिए कहती हूँ , माँ ने कहा ।

ठीक है माँ अब जाने भी दो।

 हाँ जा , बस में आगे की सीट पर बैठना, माँ द्वार तक चीखती हुई कहती आईं।

 द्वारचार के समय कई दोस्त, अरे! यार, पिंकू एक घूँट गटक ले मामा की शादी में मजे कर ।

नहीं मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा, मम्मी को पता चल जाएगा तो बहुत मार लगायेंगी ।

तू तो बस अपनी मम्मी की मर्जी से काम करता है आज्ञाकारी बेटा जो है।

 हाँ हूँ तो, इतना कहकर वह दूसरी तरफ जाकर खड़ा हो गया।

 द्वारचार के समय दुल्हन व उसकी सखियों ने दूल्हे के जौ फेंक कर मारे।

 पिंकू एकदम से बोला- “धीरे से किसी की आँख फोड़ोगे क्या?

उधर से किसी की खनखनाती आवाज हम तो ऐसे ही फेकेंगे , अगर आँख बचानी है तो नजरें नीची कर लो।” और सभी खिलखिलाती हुई अंदर चली गईं।

रिंकू अंदर ही अंदर तिलमिलाया नजरें नीची कराने वाली अभी ढूँढता हूँ कौन हो तुम? 

मामा जी तो छूट गए और पिंकू का सारा ध्यान उस खनखनाती आवाज को ढूँढने में लग गया ।


वरमाला के समय उसकी नजर  पिंक ड्रेस में तितलियों-सी अल्हड़, बालों की लटों में उँगली घुमाती, ऊँची सैंडल में खुद को संभालती, बला की खूबसूरत एक लड़की पर पड़ी । 

वह उसे देखता ही रह गया ।

माशाअल्लाह! कितनी सुंदर, सौम्य। 

उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, लगा जैसे मन-मंदिर में प्रेम की घण्टियाँ बजने लगीं ।

खनखनाती आवाज को भूल उसका मन पिंक ड्रेस वाली के गुलाबी सौंदर्य में कहीं गुम हो गया और भंवरा बनके वह गीत गुनगुनाने ,ख्वाब सजाने लगा।

 धत तेरी की , अपने अहसासों में इतना खो गया मैं , लो यह कार्यक्रम खत्म और मैं उसके बारे में कुछ जान भी न सका , कहाँ चली गई हो तुम?  अपने मन की दुनिया से बाहर आते ही वह बुदबुदाया। रात भर उसकी आँखें उसी को तलाशतीं रहीं।

सुबह कलेवा ( पलकाचार) के समय उसकी नजरें बेचैनी से पिंक ड्रेस वाली को ही ढूंढ़ रहीं थीं।

 वह अपने मामा को छोड़ कैमरा वाले को अपने साथ ले व्यग्र हो अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ा रहा था अचानक पीछे एक चेयर पर वह लड़की बैठी दिखाई दी । आसमानी सूट में सिंपल-सी, कहीं खोई-सी । उसने झट से कैमरे वाले को इशारा किया ,क्लिक ।

एक और तस्वीर थोड़ा पास जा कर ले आओ यार । पर उसके कदम खुद व खुद  लड़की की तरफ चल पड़े । उसने कैमरा वाले से कैमरा खुद ले लिया और उसके सामने तस्वीर लेने के लिए झुका । मेरी फोटो क्यों खींच रहे हो? उसकी तेज आवाज सुनकर दोनों सकपका गए , नहीं बस यों ही, सॉरी और वहाँ से चुपचाप खिसक लिए।

यह तो रात वाली खनखनाती आवाज ही थी पर तुम तो मेरी नजरों में समा गई हो अब तो इन्हें नीची क्या बंद ही रखूँगा जिससे तुम्हारी तस्वीर इनमें बसी रहे। बारात विदा हो गई पर पिंकू का दिल वहीं अटका रह गया।

मौका मिलते ही उसने दिल की बात अपने मामा को बता दी। शादी का एल्बम आते ही मामा ने अपनी पत्नी से सारी जानकारी हासिल कर ली।

 फोन कर- पिंकू बेटा तू जिसका नाम रात-दिन जपता है ना, उसका नाम ही स्तुति है बढिया ,रटो बेटा रटो ।

‘स्तुति’ बहुत-बहुत बढ़िया, बहुत सुंदर। मामा जल्दी से कुछ करो ना।


 पहले मैं समझ लूँ फिर कुछ करता हूँ  यार । लव यू मेरे प्यारे मामा ।

मामा अपनी पत्नी के साथ ससुराल आते हैं । स्तुति उनकी पत्नी के ताऊ की बेटी की बेटी थी।  वह अपनी पत्नी को अपने साढू यानी स्तुति के घर ले जाते हैं । बच्चों व पूरे परिवार से स्नेहवत व्यवहार कर सब से बहुत अच्छा रिश्ता बना लेते हैं।

कई महीनों बाद संडे के दिन गेट पर, ठक-ठक  स्तुति गेट खोलती है । अरे! मौसा जी, नमस्ते

 नमस्ते बेटा, उनके पीछे से एक सज्जन यानी कि पिंकू जी की एंट्री।

तुम्हारी मौसी को लिवाने आया था फिर मैंने सोचा आप सब से भी मिलता चलूँ ।

 दीदी कहाँ हैं ? 

मम्मी और पापा कहीं गए हैं काम से।

 बैठिए आप दोनों चाय-नाश्ते के दौरान स्तुति लगातार बोलती जा रही थी। मौसा जी और वे दोनों कुछ ना कुछ, लगातार बातें कर रहे थे । अचानक स्तुति बोली- ” पिंकू जी आप तो बिल्कुल बात नहीं कर रहे हैं कुछ तो बोलिए ”  उसने नजर उठाकर पिंकू की तरफ देखा । पिंकू उसकी ही तरफ देख रहा था एकटक ।

आप कुछ बोलते नहीं।

 नहीं, वह ज्यादा बात नहीं करता मौसा जी अचानक बीच में बोल पड़े।

 जाते समय दोनों की नजरें आपस में टकराईं समंदर- सा उफान था उन आँखों में ।

स्तुति को अजीब-सा महसूस हुआ। वह चला गया । 

थोड़े दिन बाद स्तुति के पापा अपने साढू के साथ पिंकू के घर रिश्ते की बात करने गए ।

लड़की देखने के लिए गंगा का तट चुना गया । अपने पापा मम्मी के साथ स्तुति हाथों में मेहंदी लगाए गंगा घाट की सीढ़ियाँ उतरती , अठखेलियाँ करती लहरों को देख मन में हजारों सपने बुनती हुई बहती गंगा जी के सामने बनी हुई घास के टेंट में बैठ गई।


 उसके पापा समझा रहे थे ज्यादा मत बोलना सोच समझ कर जवाब देना।

 सभी लोग आ गए पिंकू उसकी माँ ,दो  बहनें व पापा , बाकी के सारे रिश्तेदार। स्तुति ने बिना शर्माए आदतवश हर प्रश्न के उत्तर स्पष्टता से दे दिए ।

पिंकू तो बस स्तुति की ओर निहारता ही रहा । उसकी विह्वलता को समझ स्तुति ने मौका पाकर अपनी बाई आँख दवा दी।  पिंकू के होठों पर मुस्कान तैर गई । तभी अचानक उसकी बहन बोली- ” हम सब बेकार ही आए हैं  इन दोनों की अभी शादी कर दो भाभी तो पहले से ही मेहँदी लगाकर तैयार हैं।”  शगुन की मिठाई लेकर स्तुति व उसके घर वाले खुशी-खुशी अपने घर आ गए। पिंकू व उसका परिवार अपने घर चले गए। 

 रास्ते भर स्तुति ख्वाबों को बुनबुनकर एक माला की लड़ी में मोतियों की तरह पिरोने लगी।

 घर में शादी की तैयारियों  की बात होने लगी।

तीन दिन बाद लड़के वालों का फोन आया यह शादी नहीं हो सकती लड़के की माँ को लड़की पसंद नहीं है ।

स्तुति के पापा कोशिश की । लड़के की माँ ने कह दिया लड़की में बचपना है वह बहुत ही बोल्ड है हमारे घर नहीं निभेगी।

एक साल के अंदर ही पिंकू और स्तुति की शादी अलग-अलग फिक्स हो गई दो दिन के अंतराल में पहले स्तुति फिर पिंकू दोनों की शादी हो गई। 

एक राह पर चलने के ख्वाब संजोए दोनों चल पड़े अलग-अलग राहों पर अपने टूटते ख्वाबों को फिर से जोड़ने की कोशिश करने ।

 

स्वरचित /मौलिक 

वंदना चौहान 

आगरा उत्तर प्रदेश

 

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