खानदान की इज्जत – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

वक्त कितना बदल गया है…और इस बदलते वक्त ने #खानदान की इज्जत #की परिभाषा को भी कितना बदल दिया है..नव्या आज इतने अच्छे रिश्ते को ना करने में जरा भी संकोच नहीं किया शुभम आईटी सेक्टर में इंजीनियर देखने में हैंडसम अच्छा छोटा परिवार शादी डॉट कॉम से बात चली थी… नव्या भी एमबीए कर मार्केटिंग में थी.. शुभम और उसकी फैमली को नव्या के मार्केटिंग में जॉब होने से एतराज था.. उसे वो जॉब छोड़ने और दूसरे जगह जहां ऑफिस में काम हो टाईम से आना जाना हो वैसे जगह काम करने के लिए जोर दे रहे थे… और नव्या ने बड़ी नम्रता पर दृढ़ता से मना कर दिया.. माफ कीजिएगा लड़के मुझे शादी के लिए और भी मिल जायेंगे पर ये मनपसंद जॉब मुझे बहुत संघर्ष के बाद मिला है…

सरिता को अपना दिन याद आ गया जब उसके रिश्ते के लिए बाबूजी अपने जान पहचान वालों से बोल रखे थे. रिश्ता देखने जाने भी लगे थे.. एमएससी फाइनल ईयर में थी.. बड़ी इच्छा थी ब्याख्याता बनने की.. अपने सब्जेक्ट की टॉपर थी..        

अनुराग  बैंक में क्लर्क था, अच्छा खाता पीता मध्यम वर्गीय परिवार दो छोटे भाई और एक छोटी बहन.. अनुराग के पिता सिंचाई विभाग में कार्यरत थे..

सरिता को देखने रविवार को पूरा परिवार आ रहा था.. सरिता के पिता बिजली विभाग में अकाउंटेंट थे.. सरिता से छोटी एक बहन और दो भाई थे दादा दादी भी साथ रहते थे,मध्यम वर्गीय परिवार था ..रविवार को सुबह से हीं पूरा परिवार तैयारी में लगा था.. घर में बहुत पहले खरीदा गया बॉन चाइना का कप प्लेट का सेट जो कभी कभी निकलता था और अति विशिष्ट अतिथि के जाते हीं धो पोंछ कर रख दिया जाता, निकला था..

पर समस्या थी आठ लोग आ रहे थे, पड़ोसी से मांग कर एक और सेट आया.. मां की साड़ियां पुराने फैशन की थी सरिता सलवार सूट हीं पहनती थी इसलिए अपनी सहेली की भाभी से साड़ी और मेकअप का सामान मांग कर लाना पड़ा था.. पड़ोस से चार कुर्सियां टेबल फैन और न जाने क्या क्या जुटाया था घर वालों ने.. मां बाबूजी और छोटे भाई बहन हाथ बांधे लड़के वालों की खिदमत में लगे थे.. पांच तरह की मिठाइयां नमकीन  फल नाश्ते में कोल्ड ड्रिंक आने के साथ और नाश्ते के बाद चाय सब प्लांड था ..

आस पड़ोस की नजरें हमारे घर पर गड़ी थी.. मां बाबूजी याचक की तरह लड़के वालों के सामने पेश आ रहे थे.. कहीं कुछ गलती ना हो जाए.. भाई बहन की भी वही दशा थी.. भगवान भगवान कर रहे थे रिश्ता तय हो जाए वरना इतना खर्च और आस पड़ोस में चर्चा की लड़के वालों ने लड़की को रिजेक्ट कर दिया ..

कहीं दूसरे जगह जाने पर ये खबर पहुंच जाती की लड़की को देख कर छोड़ दिया है एक लड़का पार्टी .. क्या कमी थी लड़की में अनगिनत सवाल… मां ने सरिता को तोते की तरह रटा दिया था जो बोले लड़के वाले सब में सहमति देना. ज्यादा मत बोलना नजर नीची किए रहना, साड़ी का पल्लू सर से नही गिरे ख्याल रखनाऔर भी बहुत कुछ…

बातचीत के क्रम में सरिता की पढ़ाई की बात पूछा गया… सरिता ने पीएचडी कर व्याख्याता बनने की बात दबे स्वर में की… अनुराग के पिता कड़ी आवाज में बोल उठे हमारे यहां बहु बेटियां नही कमाती.. मर्द के कमाई से पेट नही भरेगा जो बहु बेटियां कमा के लाएंगी.. घर की इज्जत घर में हीं अच्छी लगती है..# खानदान की इज्जत #हमारे लिए सबसे बढ़कर है..ये आप लोग समझ लीजिए.अनुराग भी अपने पिता के बातों से सहमत था ..बाबूजी हाथ जोड़कर बोल उठे आप जैसा चाहेंगे वही करेगी …

और फिर साड़ी अंगूठी और थोड़े फल मिठाई देकर रिश्ते की मुहर लगा गए.. ना बाबूजी से कुछ कह पाई ना हीं मां से.. मेरे बाद भाई बहन की जिम्मेदारी भी थी.. और दहेज का बोलबाला भी उस समय चरम सीमा पर था.. नौकरी करने वाले लड़कों के रेट तय थे…

कर्तव्य संस्कार और  परिस्थितियों की बलि बेदी पर अपने भविष्य  सपने और अरमानों की भेंट चढ़ा सरिता ससुराल आ गई… पंद्रह साल ससुराल में रहने के बाद उन्होंने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करवाया क्योंकि उसका एडमिशन अच्छे स्कूल में करवाना था… पंद्रह साल में सरिता ये भूल चुकी थी की उसकी भी कोई पसंद नापसंद है…अपना अस्तित्व ससुराल में विलीन कर चुकी थी…. शुरू में कभी सिनेमा हॉल में अच्छी मूवी लगती उसका प्रचार करता तो सरिता अनुराग से कहती.. ससुर जी के कान में ये बात पहुंची तो उन्होंने दहाड़ते हुए कहा हमारे खानदान की औरतें सिनेमा थियेटर नही जाती…. दुबारा फिर ये बात मेरी कानों में नहीं जानी चाहिए….

और आज बेटी का ये फैसला उसके जख्मों पर मलहम जैसा लग रहा था.. सोच रही थी सरिता काश उस वक्त भी बेटी के फैसले में मां बाप साथ रहते.. बेटी के साथ मजबूती से खड़े रहते , पंख समेटने के बजाय सपनो की उड़ान को कामयाबी हासिल करने में मदद करते तो# खानदान की इज्जत# के नाम पर मेरे सपनों को बलि नही चढ़ती… पर मेरी बेटी के हर फैसले के साथ मैं मजबूती से उसके साथ खड़ी हूं…

नव्या के दादा जी जब ये बात पता चली की नव्या ने इस रिश्ते से इंकार कर दिया है और सरिता उसके फैसले में साथ दे रही है तो अनुराग को फोन करके बोले आज के बाद तेरे चौखट पर मैं कभी कदम नहीं रखूंगा… नव्या के शादी में मैं नही आऊंगा…., मेरे मरने के बाद तुम्हारी पत्नी और बेटी यहां नही आयेगी.…तुम्हारी इच्छा होगी तो अकेले आना…

 

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Veena singh..

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