मिशिका जल्दी जल्दी अपना काम निपटा रही थी, उसने जो पर्सनेलिटी विकास की क्लास ज्वाइन की थी, उसका समय हो रहा था, उसकी भतीजी बार बार बुलाने आ रही थी, बुआ , क्लास के लिए जाना नहीं है क्या, बस सोमा हाथ का एक काम खत्म कर लूं, पर बुआ तुम्हारी बस , भी तो छूट जाएगी,
और क्लास मिस हो जाएगी, तुम रहने दो , मैं कर देती हूं तुम्हारा ये काम, नहीं भाभी गुस्सा करेंगी नहीं बुआ, मैं सम्भाल लूंगी , कहते हुए उसने मिषिका के हाथ से वह प्लेट ले ली। मिषिका उसे पुचकारते हुए तैयार होने चले दी। जल्दी में बस निकल चुकीं थीं, वह दूसरी बस आने का इंतजार करने लगी, दूसरी बस आने पर वह टिकट लेकर सीट पर बैठ गई। और अपने हड़बड़ातबडी को संभालने लगी। मां पिता की मौत के बाद वह रिश्ते के मामा के बेटे के पास आ गई थी। क्योंकि और किसी रिश्तेदार ने रखने को मना कर दिया ।
अपना भाई , बहन तो मिषिका का था नहीं। चाचा चाची ने साफ न कर दी। रूपेश भाई मामा के बेटे , जो दूर के रिश्तेदार लगते थे, उसके शहर में रहते थे, उसकी जिम्मेदारी लेने आगे आए। कोयल भाभी को उनका निर्णय पसंद नहीं आया,पर वह ज्यादा कुछ नहीं कह पायी और भुनभुनाते हुए उसे उसके सामान के साथ अपने साथ ले आई। पर घर आकर उसकी मुश्किलों का अंत न होकर शुरूआत हो गई। भाभी ने अपनी नौकरानी को काम से निकाल दिया और ये कहते हुए कि अब तो तू खाली है, काम में हाथ बंटाने का काम तू शुरू कर दें।
हाथ बंटाना तो कहना भर था, बाकी सारा काम तो सब उसके जिम्मे आ गया। बरतन घिसते उसके हाथ दर्द करने लगते।उसे याद आ जाता मां का वह कथन, मैं अपनी बेटी से बर्तन नहीं मंजवाऊगी, हाथ खराब हो जाएंगे। पर वह आंसू पोंछती हुई सब काम करती जाती, इतने पर भी काम का अंत न होता, सबसे निबट कर वह सबके लिए खाना भी बनाती और आएदिन भाभी की काम न करने को डांट भी खाती। पर सर छुपाने को कोई ठिकाना नहीं था,
सो सब सहन करती और सब काम करती रहती। ऐसा नहीं था कि भाई समझता नहीं था, पर वह घर की शांति भंग न हो, इसलिए मजबूर था, और मिषिका सब करने को मजबूर थी। बस इस तपती धूप जैसी जिंदगी में सोमा ठंडे पानी की बूंद जैसे साबित हो कर उसका साथ देती और वह काम में तो मदद कराती ही, भाभी की डांट से भी बचाती, वह उससे बहुत प्यार करती थी।वह भी सोमा के प्यार का मान प्यार से देती। हमेशा छोटी बहन मान कर , कभी उसकी पढ़ाई में मदद कर देती, कभी अपनी जमापूंजी से उसके लिए कोई गिफ्ट ही ला देती।
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वह बीए पास थी, और मां पिता के रहते उसकी इच्छा पर्सनैलिटी डेवलपमेंट कोर्स करने की थी, उसने डरते डरते यह इच्छा भाई भाभी के आगे रखी। भाभी को तो काम की चिंता हो वह मना करने लगी जब उसने कहा कि वह सारा काम कर तब कोर्स सीखने जाएगी, तो वह मानी,पर भाई ने उसे परमिशन दे दी। और कहा कि यह सारा खर्चा स्वंय उठाएगा,
पर मिषिका के पास उसके जमाराशि थी वह उनसे ही पढ़ना चाहती थी, फिर भी भाई ने उसे मदद का आश्वासन दे दिया और उसे कोर्स के एडमिशन में मदद की। कोर्स चार साल का है और मिषिका को आते-जाते दो साल बीत गए इसी साल उसे बस में आते-जाते जतिन मिल गया। उसका आफिस इसी रूट पर पड़ता था वह डायरेक्टर के पद पर था,
वैसे तो उसके पास गाड़ी घर सब था, पर मिषिका के साथ के लिए वह बस में आता था, क्योंकि उसकी गाड़ी में जाना मिषिका को पसंद नहीं था। साल भर बाद जब वे लोग एक दूसरे को समझने लगे तब,मिषिका ने अपने घर का दर्द उसे कह सुनाया सुनकर उसने मिषिका के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया, पर मिषिका ने यह कहकर टाल दिया कि वह ये कोर्स पूरा कर कुछ बनना चाहती है और कोर्स पूरा करने में जी जान से लग
गई,उसका सपना था कि वह नौकरी कर कुछ बन जाए ताकि ऐसे हालात में अपनी मदद कर पाए, और किसी से सहारे की उम्मीद न करनी पड़े। पर एक दिन घर आकर जब भाभी ने कहा कि कुछ लोग उसे देखने आ रहे हैं, और उसे इस रिश्ते को भाई के आगे हां करनी पड़ेगी,
तो वह चुप नहीं बैठ सकी और उस दिन को कैसे निबटा कर अगले दिन जतिन से मिली। जतिन ने उसे मदद करने का वादा किया। जतिन ने अपने घर में बात की, घर वाले शादी के लिए भी मान गए।अब उसने मिषिका को कहा कि वह उससे शादी करने को तैयार हैं तो मिषिका के कुछ ही महीने थे कोर्स पूरा होने में। वह चाहती थी कि कोर्स पूरा कर नौकरी में आ जाए तब शादी करे। इधर बात चलते हुए जब वह एक्जाम दे कर आई, तो भाई ने भी उसी लड़के का जिक्र किया, क्यों कि भाभी ने भाई को मना लिया था,
तो उसने जतिन के बारे में सब बताया।भाई बोला मैं ज्यादा तो तेरे लिए कुछ कर नहीं सकता, पर तेरी शादी मंदिर में तेरी मर्जी से कराऊंगा पर भाभी को खबर न होने पाएं। जतिन के साथ शादी हुए उसे छ महीने हो गए थे, जतिन एक अच्छा पति था,उसका बेहद ख्याल रखता। और आज तो उसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरफ से नौकरी का आफर भी आ गया था, उसके जतिन को बताने पर वह बोला, चलों पार्टी कर सेलिब्रेट करते हैं
और वे सपरिवार सेलिब्रेट करने की तैयारी करने लगे, सेलिब्रेट करने की एक वजह यह भी थी कि मिषिका की खैरात के पंख टूट कर गिर गये थे और उनकी जगह नये उगे पंखों ने ली थी जिसके सहारे वह जिंदगी की उड़ान भरना चाहती थी और अपनी जिंदगी अपनी योग्यता पर भरोसा कर जीना चाहती थी। * पूनम भटनागर