कायापलट – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रमेश गुस्से में अपनी पत्नी पर चीखा…कैसी फूहड़ हो तुम,किस दिन अक्ल आएगी तुम्हें?आएगी भी या नहीं

कभी?

लेकिन मैंने किया क्या है?कांपती आवाज़ में सुमन बोली।

आज सब्जी में नमक डाला था या नमक के डिब्बे में सब्ज़ी?कितनी मजाक बनवाई मेरी मेरे ऑफिस में?सब

कहने लगे…भाभीजी के हाथों में नमक कुछ ज्यादा है?बड़ी नमकीन हैं,कभी मिलाओ न हमसे भी…

पर सब्जी तो घर में औरों ने भी खाई,किसी ने कुछ नहीं कहा…डरते हुए सुमन बोल पड़ी।

जुबान लड़ाती हो मुझसे.. मैं झूठ बोल रहा हूं क्या?रमेश के गुस्सा सातवें आसमान पर था…फूहड़ कहीं की!बड़ा

फूड एंड टेक्नोलॉजी का कोर्स किया है,जीरो बटे जीरो है…

आप मुझे व्यंग क्यों करते हैं,बात बात पर जलील करते हैं,अगर आप खुश नहीं हैं तो चली जाती हूं कहीं…दुखी

होते सुमन बोली।

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तो चली जाओ…बड़ा एहसान करोगी मुझपर…ऐसी बेवकूफ औरत से पीछा तो छूटेगा…रमेश जानता था कि ये

कहीं नहीं जाएगी क्योंकि इसके पेरेंट्स खुद उसके भाई भाभी पर आश्रित थे।

पर सुमन के दिल पर ज्यादा गहरी चोट लगी थी उस दिन..रोज रोज की प्रताड़ना से उसका दिल घबराने लगा

था…वो बहुत जतन करती रोज कि अच्छे से खाना बनाऊं,सबका ध्यान रखूं,रमेश को शिकायत का कोई मौका

न दूं कभी पर वो था कि रोज नई गलती ढूंढ निकालता उसमें और उसके तन मन को घायल करता। बेचारी

घंटों आंसू बहाती,खुद को सांत्वना देती और चुप जाती।

आज उसे लगा कि कल को उनके कोई संतान हुई तो उसके मन पर उन दोनों की बातों का कितना गलत

असर पड़ेगा,अभी तो सिर्फ वो ही सह रही है ,अगर बेटी हो गई तो उसकी जिंदगी भी नर्क बन जाएगी ऐसे

माहौल में और बेटा हुआ तो हो सकता है कि वो अपने पापा जैसा संवेदनहीन और बड़बोला बने।

सुमन परेशान तो काफी दिनों से थी अपने पति रमेश के रवैए से…सारे काम करने के बाद,दिन भर फूहड़,

बेवकूफ,जंगली के उपनामों से सजाई जाती और रात में पति की प्रताड़ना से अपना शरीर तुड़वाती और

आत्मा छिलवाती।ये भी कोई जीना है!ऐसे जीने से तो मौत भली…यूं आंसू बहाती रहूंगी ,किसी पर कोई प्रभाव

नहीं होगा।

दबे ढके तरीके से मां का दिल टटोलना चाहा था उसने जिन्होंने अपनी मजबूरी दिखाई और उसे

कहा..बेटी!लड़कियों को तो सहना ही पड़ता है,कम से कम पति का आश्रय तो मिला हुआ है तुझे…हम दोनो इस

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बुढ़ापे में तेरी क्या सहायता करेंगे भला?

लेकिन कोई बात नहीं,मायका नहीं तो कोई जगह तो होगी जहां मैं जा सकती हूं,खुद अपने दम पर अपनी

जिंदगी जियूंगी लेकिन अब और नहीं सहूंगी।

ये सोच कर दृढ़ निश्चय कर सुमन उस अंधेरी रात घर से निकल पड़ी।किसी की खबर नहीं थी कि वो घर में

नहीं थी।

 

सुमन चले जा रही थी अनजान दिशा में…आंखों में आंसू और दिल में विश्वास…इतनी बड़ी दुनिया में क्या कोई

भी मुझे सहारा न देगा?

चलते, चलते वो सुनसान सड़क पर आ गई,कुछ लड़के शराब पीते उधर से निकले और उसपर कमेंट करने

लगे।सुमन बुरी तरह डर गई थी,उसे लगा कि शायद उसने घर छोड़कर गलती कर दी।उसकी जिंदगी नर्क ही

है,घर रहे तो पति की दुत्कार और बाहर रहे तो लोग चील कौओं की तरह झपटेंगे उसपर।

निराशा में वो अचानक एक गहरी झील की तरफ दौड़ी,आज यहीं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूंगी,ऐसे

निरर्थक जीने से क्या फायदा? रात के अंधेरे में किसने किसको निगल लिया,कौन जानेगा?

अचानक एक स्त्री के मजबूत हाथों ने उसे रोक लिया।

छोड़ दो,मुझे मर जाने दो।वो गिड़गिड़ाई।

क्यों मारना चाहती है खुद को?वो औरत बोली,अभी तो बहुत कुछ कर सकती है तू अपने जीवन में?

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नहीं…मुझे कोई प्यार नहीं करता,मुझे मर जाने दो…सुमन उससे छुटने को मचली।

उस औरत ने सुमन को एक थप्पड़ लगाया…चुप!चल मेरे साथ…

कहां ले जा रही हैं आप मुझे?सुमन डरते हुए बोली।

वो औरत उसे,एक आश्रम में ले गई जहां उसकी तरह की दूसरी औरते थीं।

देख!इससे मिल…ये रीना है, इस के ससुराल वाले इसे जान से मारना चाहते थे क्योंकि ये बेटा नहीं पैदा कर

सकी उनके लिए…

ये शोभा है,इसका पति किसी और औरत को पसंद करता था,छोड़ दिया इसे…

ये ममता,ये बिंदिया और ये उमा…सबकी अलग कहानी,अलग किस्सा…

ये सब भी मरना चाहती थीं लेकिन क्या ऐसे हिम्मत हार जानी चाहिए…ये जिंदगी खूबसूरत है,बड़े मुश्किल से

मिलती है…फिर हम स्त्रियां ही क्यों मरे?

तो क्या पिटती रहें,अपमानित होती रहें रोज़,ऐसे तिल तिल मारने से बेहतर है कि एक रोज खुद को खत्म कर

लें। सुमन कह उठी।

नहीं…एक रास्ता और भी है,हम सब यहां सताई हुई औरते इकट्ठी रहती हैं,दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें

बहुत दुख दर्द हैं…कहीं बिन ब्याही माओ के दुधमुंहे बच्चे कूड़े के ढेर में मिलते हैं तो कहीं बच्चों द्वारा छोड़ी गई

वृद्धा माएं,तो कहीं समाज में पुरुषों से उत्पीड़ित महिलाएं…ये संगठन उन सभी के लिए एक घर है,आश्रय है

जहां उन्हें पुरुषों के अत्याचार से बचाने के लिए शरण मिलती है।

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तो क्या मैं नई जिंदगी शुरू कर सकती हूं यहां?सुमन ने अविश्वास से पूछा।

क्यों नहीं,तुम अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जियो,दूसरों का दुख दर्द बांटो,देखना…जो दूसरों के चेहरे पर

मुस्कराहट लाने का काम करता है,उसका खुद का जीवन संतुष्टि और अपनत्व से महकने लगता है।

लेकिन मेरा पति मुझे ढूंढते हुए यहां आ गया तो?सुमन के चेहरे पर अब भी उसका खौफ था।

 

नहीं आयेगा वो गीदड़!उसने कोई दूसरी ढूंढ ली होगी अब तक…और कभी भूलकर आने का दुस्साहस किया

भी तो हम सब मिलकर उसे ऐसा सबक सिखाएंगे कि वो इधर आने के नाम से तौबा कर लेगा।

सुमन को तब जाकर उनकी बातों पर विश्वास आया और वो पूरी कोशिश करके वहां सब कामों में जुट

गई।छोटे बच्चों को पालती,उन्हें पढ़ाती,हाथ से कई चीजें बनाना सीखा उसने वहां और अब उसके आंसू नहीं

आते थे,उसकी आंखों में एक चमक रहती मोतियों की चमक,कुछ नेक काम करने का एहसास

उसे प्रसन्न रखता।उसने कभी सोचा न था कि इस तरह भी उसकी दुखियारी जिंदगी एक नया मोड ले सकती

है जहां वो किसी की गुलाम नहीं थी,आजादी से,स्वाभाविमान से जीती थी।

दोस्तों!जिंदगी में दुख तकलीफ आने पर हिम्मत से उन परिस्थितियों का सामना करना चाहिए,अगर आप

सही हैं तो आपका एक सही निर्णय आपकी जिंदगी को संवार सकता है और जीने की राह दिखा कर उसे

फिर से गतिमान कर सकता है।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली

#आंसू बन गए मोती

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