शिखा घर की सबसे छोटी बहू थी। उसकी तीन जेठ जेठानियां और पांच विवाहित ननंदे थीं। शिखा के पति विशाल घर में सबसे छोटे थे। इन दोनों का एक 10 वर्षीय बेटा था-खुश।
शिखा के सबसे बड़ी ननद के पोते की सगाई का समारोह था। ऐसे समारोह में सबका जाना बनता ही है, लेकिन इस बार शिखा की छठी इंद्री ना जाने क्यों बार-बार उसे सचेत कर रही थी कि इस समारोह में मत जाओ। लेकिन वह अपने पति को मना नहीं कर पाई ,उसे लगा कि उसके पति शायद बुरा मान जाएंगे।
शिखा, विशाल और खुश तीनों टू व्हीलर पर बैठकर समय से समारोह में पहुंच गए। सब कुछ बहुत अच्छे से संपन्न हुआ। रात के 2:00 बजे समारोह समाप्त हो जाने पर तीनों अपने टू व्हीलर पर बैठकर पंजाबी बाग वाले रास्ते से घर की ओर चल पड़े।
थोड़ा सा चलने के बाद फ्लाईओवर पर अचानक स्कूटर लहराया और संतुलन बिगड़ा। स्कूटर सीधे हाथ की तरफ जोरदार आवाज करते हुए गिरा धड़ाम! आवाज इतनी जोरदार थी कि कोई भी सुनकर डर जाए।
अरे !यह क्या हुआ? सब कुछ इतना अचानक हुआ कि तीनों में से किसी को भी संभलने का मौका ना मिला। ईश्वर की यह कृपा रहेगी पीछे से कोई बड़ा वाहन ट्रक या बस नहीं आया।
इनको गिरता हुआ देखकर, एक अनजान व्यक्ति ने मदद का हाथ बढ़ाया और टूटा फूटा स्कूटर वहीं कोने में रख कर, उन तीनों को अपनी कार में बिठाकर एक अस्पताल के बाहर छोड़ दिया।
खुश को बहुत चोटें आई थीं। आधा चेहरा और सीधा हाथ बुरी तरह से छिल गए थे। ईश्वर की दया से आंख बाल-बाल बच गई थी। विशाल के हाथ छिल गए थे और घुटनों में अंदरूनी चोटें आई थी, जो कि उन्हें महसूस हो रही थी।
अस्पताल के बाहर पहुंचते ही विशाल ने अपने दोस्त को फोन कर दिया था जो वहीं पास में रहते थे। वे तुरंत आ गए। पहले खुश और विशाल को इंजेक्शन लगवाए गए और मरहम पट्टी की गई। उसके बाद शिखा को अस्पताल में एडमिट किया गया क्योंकि उसका सीधा हाथ टूट गया था। यह सब करते-करते सुबह होने को थी।
खुश को विशाल के दोस्त के साथ उनके घर ही भेज दिया गया ताकि वह कुछ आराम कर सके। डॉक्टर ने विशाल से कहा कि सिखा के हाथ का ऑपरेशन करना पड़ेगा और कोहनी से ऊपर रॉड डालनी पड़ेगी।
ऑपरेशन हुआ और 1 सप्ताह बाद शिखा बाजू पर कच्चा प्लास्टर लिए घर आ गई। इस बीच मायके से उसकी मम्मी उसकी सहायता के लिए आ गई थी। पहले 15 दिन कच्चा प्लास्टर और फिर 1 महीने का प्लास्टर इसके बाद फिजियोथैरेपी।
शिखा और उसकी मम्मी ने यही सोचा था कि इतना भरा पूरा परिवार है कोई मुश्किल नहीं आएगी। सब मिलकर थोड़े थोड़े दिन शिखा की सहायता कर लेंगे। मम्मी की भी उम्र हो चुकी थी वह ज्यादा दिन तक काम नहीं कर सकती थी। शिखा ने सोचा कि ससुराल वाले भी मदद कर देंगे। धीरे-धीरे समय बीतता रहा। शिखा की मम्मी तीनों की सेवा और देखभाल करती रही। इस बीच मेड ने भी धोखा दे दिया और 15 दिन की छुट्टी पर चली गई। अब मम्मी को खाना बनाने के साथ-साथ बर्तन और सफाई का काम भी करना पड़ रहा था। बहुत कोशिश करने पर भी दूसरी मेड का इंतजाम ना हो सका।
इतने बुरे वक्त में भी तीनों जेठानियों और ननदों में से कोई भी शिखा के घर झांकने तक नहीं आया। ऊपर से हालचाल पूछने वालों की वजह से मम्मी का काम और ज्यादा बढ़ गया था। सबने शिखा की मम्मी के ऊपर सब कुछ छोड़कर चैन की सांस ली। किसी ने एक वक्त का टिफिन देना भी जरूरी नहीं समझा। पूरे 3 महीने लग गए शिखा को ठीक होने में। इस समय में मम्मी ने उसे एक पल के लिए भी अकेला ना छोड़ा और ससुराल वालों ने एक पल के लिए भी साथ ना दिया।
घर आकर मिलना तो दूर किसी ने फोन तक नहीं किया, जबकि शिखा किसी के भी अस्पताल में होने पर हमेशा उनके लिए खाना तैयार करके तुरंत भेजती थी।
शिखा ने सबको अच्छी तरह पहचान लिया था या फिर यूं कहें कि वक्त ने सबकी पहचान करवा दी थी कि कौन अपना कौन पराया। शिखा मम्मी को धन्यवाद देती नहीं थक रही थी और उसकी मम्मी कह रही थी कि”पगली, मां को भी कोई धन्यवाद देता है क्या?”
#वक्त
स्वरचित
गीता वाधवानी दिल्ली