कटपुतली – कमल राठौर

 

सरिता किचन में अपने पति के लिए लंच तैयार कर रही थी।  बच्चे अभी अभी स्कूल गए थे।  बच्चों के लंच से  फ्री होकर पति का लंच बड़े प्यार से बनाने में बिजी थी।  इतने में संतोष की आवाज आई ” सरिता मेरी घड़ी कहां है ”  ?  किचन में से ही सरिता बोली !  ” देखो ड्रेसिंग की दराज में होगी”  संतोष ने ड्रेसिंग की तीन दराज में से सिर्फ एक दराज खोलकर देखी , वह घड़ी वहां नहीं मिली।  संतोष के पिता सोफे पर बेटे बेटे अखबार पढ़ते हुए यह दृश्य देख रहे थे।  अब संतोष ने गुस्से में सरिता को आवाज लगाई ,  ” यहां आकर देखो ”  मुझे लेट हो रहा है।  सारे दिन ध्यान कहां रहता है ?  

तुमने ,  घड़ी कहां रखी है।  बेचारी सरिता किचन में से भागी भागी आई और उसने ड्रेसिंग की दराजों में से घड़ी निकाल कर दी।  सरिता ! ”  यही तो रखी है”  संतोष जैसे आग बबूला हो गया  और उसको खरी-खोटी सुनाने लगा  । संतोष के पिता यह दृश्य देख रहे थे।  जैसे तैसे सरिता उदास होते हुए भी जल्दी से लंच तैयार कर अपने पति को देकर विदा करती है।  मगर उसके चेहरे की उदासी देख पिता से रहा नहीं गया ,  वह सरिता से बोले ”  बहू कठपुतली मत बनो ” कुछ बातों को नजरअंदाज करना भी सीखो। किसी ने हमारा दिल दुखाया और हम दुखी हो गए ,  तुम कठपुतली नहीं हो।  

संतोष के पिता ने और समझाया बेटा जीवन में एक छोटी मोटी नोकझोंक पति पत्नी के बीच में चलती रहती है। इनको कभी अपने दिल पर मत लगाओ।  दोपहर में सरिता की फ्रेंड का फोन आया ।  वह कह रही थी ” यार मुझे शक है मेरे पति का किसी से अफेयर चल रहा है ,  यह ढंग से मुझसे बात भी नहीं करते और मैं कुछ कहती हूं तो चिड़चिड़ा हो जाते हैं ”  फोन रखने के बाद सरिता के दिमाग में उसके मित्र के शब्द दिमाग में घूमने लगे और वह फिर से उदास हो गई।  फिर उसको उसके ससुर के सुबह के शब्द याद आए ,  कठपुतली मत बनो स्वयं के विवेक का इस्तेमाल करो। किसी के कहने पर उदास मत हो। तब जाकर सरिता को कुछ राहत महसूस हुई।

कमल राठौर साहिल

 शिवपुर , मध्य प्रदेश

 

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