हमेशा की तरह शाम को ठीक 5 बजे चाय का प्याला लेकर कृष्णा जी अपनी बालकनी में बैठी ही थी कि उनकी नज़र साथ वाले मकान के सामने खड़ी ट्रक पर गई।दो लोगों को ट्रक से सामान उतारते देखकर वो बड़ी खुश हुईं।चाय पीते हुए वो सोचने लगी कि नये पड़ोसी से कैसे परिचय किया जाये तभी उनकी काॅलबेल बजी। दरवाज़ा खोला तो सामने एक युवती को देखकर चौंक पड़ी।युवती ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते कहा और अपना परिचय दिया,” मैं मीता हूँ..आपकी नई पड़ोसिन।”
” अच्छा! अंदर आओ..।” कृष्णा जी चहक उठीं।
” आज नहीं..फिर कभी..अभी तो एक बाॅटल पानी मिल जाता तो..।”
” अभी लाई..।” कहकर कृष्णा जी ने उसकी बाॅटल भर दी और मीता उन्हें थैंक्स बोलकर चली गई।
कुछ दिनों में मीता का घर व्यवस्थित हो गया तब वो कृष्णा जी के घर आई।चाय पीते-पीते उसने कृष्णा जी को बताया कि उसके पति एक प्राइवेट बैंक में काम करते हैं।सास-ससुर मेरठ में रहते हैं।मम्मी नहीं हैं..पापा हैं और एक छोटा भाई है जिसकी पिछले साल शादी हुई है।वह पत्नी के साथ दिल्ली में रहता है।आंटी…आप यहाँ कैसे?”
कृष्णा जी बोलीं,” तुम्हारे अंकल की यहाँ पोस्टिंग हुई थी। उन्हें यह शहर पसंद आ गया तो उन्होंने घर बनवा लिया।जब तक नौकरी थी, इधर-उधर घूमते रहें, रिटायरमेंट के बाद अपने घर आ गये।तीन साल पहले हमारा साथ छूट गया.. ।” कहते हुए वो दीवार पर टँगी अपने पति की तस्वीर को देखने लगी।फिर एक ठंडी साँस छोड़ते हुए बोलीं,” एक बेटी है…दामाद-नातिन हैं।उन्हीं का आना-जाना होता है और फिर तुम्हारे जैसे पड़ोसी हैं तो समय कट जाता है।” उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई।
उसी दिन से घर के कामों से फ़्री होकर मीता कृष्णा जी के पास आने लगी थी।उम्र का एक बड़ा फ़ासला होने के बाद भी दोनों के बीच बहुत बातें होती थी।कृष्णा जी अपने अनुभव शेयर करतीं और मीता अपना ज्ञान…।
एक दिन मीता कृष्णा जी के घर आकर बैठी ही थी कि उसके भाई मयंक का फ़ोन आ गया।वह ‘हैलो’ कहती तब तक में मयंक बोल पड़ा” दीदी..मैं कुछ दिन और राशि के साथ रहा तो पागल हो जाऊँगा..मुझे इससे मुक्ति दिलाइये..।कभी-कभी तो जी करता है कि…।”
” मयंक…तू परेशान न हो..मैं उससे बात….।”मीता की बात पूरी होने से पहले ही मयंक ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।तभी कृष्णा जी चाय लेकर आ गईं।मीता के चेहरे पर तनाव देखकर पूछ बैठीं,” सब ठीक तो है ना…कोई परेशानी…।”
” हाँ आँटी..आपको बताया था ना कि शादी के दो-तीन महीनों बाद ही मयंक और राशि के बीच अनबन होने लगी थी।मयंक अक्सर कहता कि राशि उसकी इंसल्ट करती है…उसका फ़ोन चेक करती है..बिना बताये घर से चली जाती है और फिर साॅरी कह देती है।मयंक कुछ पूछता है तो काट खाने को दौड़ती है, वगैरह-वगैरह..।”
” हाँ..तुमने बताया तो था।”
“एक दिन तो उसने कहा कि दीदी..राशि को आपका यहाँ आना बिल्कुल पसंद नहीं।आधे घंटे बाद ही राशि का फ़ोन आता है,” मीता दी..आप कब आ रहीं हैं..मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है..।” इसी तरह से दोनों का चलता था।कभी लगता था कि सब ठीक है और कभी..।आँटी, मैं उन दोनों के साथ दो दिन रहकर आई हूँ..राशि का व्यवहार बहुत अच्छा था।मयंक की कही बातें और राशि का मेरे साथ के व्यवहार में तो कोई समानता ही नहीं है।अब प्रशांत कह रहा है कि मुझे उससे मुक्ति दिला दीजिये..कुछ समझ नहीं आ रहा है..।”
” एक बार मयंक की बात पर विश्वास कर लो.. देर हो गई तो मेरी तरह #पछतावे के आँसू बहाती रह जाओगी।” कृष्णा जी जो बड़े ध्यान-से उसकी बात सुन रही थीं, अचानक बोल पड़ीं।
” मेरी तरह!..पछतावे..क्या बात है आँटी..मैंने कई बार देखा है कि आप अलमारी खोलकर कुछ देख रही होती हैं..मुझे देखकर तुरंत बंद कर देतीं हैं। तब आपकी आँखें लाल रहतीं हैं।बताईये ना आँटी..।कहते हुए मीता ने उनके हाथ पर अपना हाथ रखा तो स्नेह-स्पर्श पाकर कृष्णा जी रो पड़ीं।फिर अलमारी से एक तस्वीर निकालकर मीता को दिखाते हुए बोलीं,” ये मेरा बेटा प्रशांत है।”
” बेटा!” मीता ने आश्चर्य-से कहा।
कृष्णा जी अतीत में चलीं गईं, “चार सदस्यों का मेरा हँसता-खेलता परिवार था।प्रशांत अपनी बहन से तीन साल बड़ा था।स्वभाव से सरल और पढ़ाई में बहुत होशियार।उसने इंजीनियरिंग की, मुंबई से एमबीए किया और वहीं ज़ाॅब भी करने करने लगा।हमने बेटी की शादी कर दी,तब उसने मुझसे कहा,” मम्मी..रीमा नाम की एक लड़की है, मुंबई में ही काम करती है।आप और पापा आकर उससे मिल लीजिये..।” उसके पापा तो बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी समझते थे।हमें रीमा बहुत पसंद आई।हमने उसके माता-पिता से बात की और एक शुभ मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।दो-तीन दिन दोनों हमारे साथ रहे,बहुत अच्छा लगा था।
प्रशांत बहुत खुश था लेकिन तीन-चार महीनों बाद ही उसके चेहरे से हँसी गायब होने लगी।फ़ोन पर वो बहुत कम बोलता..पूछने पर कहता,” मम्मी..सब ठीक है..काम की थकान है।” मुझे कुछ ठीक नहीं लगा तो उससे मिलने चली गई।उसका मुरझाया चेहरा देखकर मैं घबरा गई” तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या?” उसने कहा,” ठीक है मम्मी..बस ज़रा-सा..।” तभी रोमा को आते देख वो चुप हो गया।रोमा आश्चर्य- से बोली,” मम्मी..आप! प्रशांत ने मुझे बताया नहीं कि आप..।”
” नहीं बेटा..उसे भी मालूम नहीं था..तुम्हारे पापा को टूर पर जाना था तो मैं यहाँ आ गई।” अपने मन के भावों को मैंने चेहरे पर आने नहीं दिया। वो बोली,” आप दो दिन बाद चली जायेंगी ना।” सुनकर मैं चकित रह गई।
रीमा ऑफ़िस चली गई तब प्रशांत ने बताया कि मम्मी..मैं रीमा को समझ नहीं पा रहा कि वो चाहती क्या है? कभी अलमारी के सारे कपड़े फेंक देती है तो कभी मेड बदल देती है।हर वक्त मुझे टोकती रहती है.. किसी से भी बात करूँ तो कहती है,” मेरी शिकायत कर रहे हो..उसके डर से मैं मैसेज़ करके डिलीट करने लगा हूँ।एक दिन तो उसने आयरन करते हुए मेरी शर्ट भी जला दी।ऐसी हज़ार बातें हैं मम्मी …आपको क्या-क्या बताऊँ..।” सुनकर मैं दंग रह गई।किसी तरह से मैंने उसे शांत किया। उस रात मैंने पलकें नहीं झपकी..हे भगवान!.मेरे बेटे के साथ ये क्या हो रहा है।
मेरे सामने रोमा का व्यवहार बहुत ही संतुलित था।एक रात मैं पानी पीने के लिये उठी तो उनके कमरे से मुझे रीमा की आवाज़ सुनाई दी,” एक तो तुम्हारी माँ बिना बताये आई, ऊपर से अभी तक टिकी हुई है।” बेटा बोला,” धीरे बोलो..मम्मी जाग..।”
” माई फ़ुट..अपनी माँ को..।” अपने कमरे में आकर मैं फूट-फूटकर रोने लगी।अगले दिन मेरी लाल आँखें देखकर बेटा पूछा तो मैंने झूठ बोला कि सिर दर्द के कारण देर से नींद आई।उसी रात मैं वापस आ गई।
पति से कुछ नहीं कहा लेकिन जो देखा-सुना..वो याद करके मेरा मन सिहर उठता था।फिर सोचा, समय के साथ उनके रिश्तों में सुधार आ जायेगा।ऐसा हुआ भी।एक दिन प्रशांत बोला,” मम्मी…रीमा ने मुझे साॅरी बोल दिया है..हम लोग एक सप्ताह के लिये कुलू-मनाली गये थे..।” मैंने तुरंत भगवान को प्रसाद चढ़ा दिया।हल्की-फुल्की तकरारों के साथ एक साल बीत गया।” कृष्णा जी चुप हो गई।
मीता ने पूछा,” फिर आँटी…।”
कृष्णा जी बोलीं,” एक दिन मैंने प्रशांत को फ़ोन किया तो उसकी आवाज़ भारी थी, बोला,” मम्मी..रीमा मुझसे तलाक चाहती है।” सुनकर मैं अवाक् रह गई।मैंने रीमा की माँ को फ़ोन किया, वो बोली,” बच्चों के मामलों में हम नहीं पड़ते।” मजबूरन मैंने अपने पति और बेटी को सारी बातें बताई।फिर हम दोनों उनके पास गये, कहा कि सब तो अच्छा चल रहा था , फिर तलाक की बात..।”
रीमा विफ़र पड़ी..अनाप-शनाप बकने लगी..मैं हैरान थी..।मेरे पति बोले,” हम लोग जा रहे हैं..तुम लोग शांति से विचार कर लो कि क्या करना है।” हम चले आये..बेटे से मैं तकरीबन रोज ही बात कर लेती थी।एक दिन रीमा ने फ़ोन किया, साॅरी कहते हुए बोली,” प्रशांत को साॅरी बोल दिया है मम्मी..प्लीज़.. आप भी मुझे माफ़ कर दीजिये..।” उसकी आवाज़ सुनकर मेरा दिल पिघल गया।सब कुछ पहले जैसा चलने लगा जो एक भ्रम था।दिन गुज़रते गये. शिकायत-मनुहारों के साथ एक और साल बीत गया।मेरे पति को हार्ट अटैक आया तो दोनों आये..बेटे-बहू को साथ देखकर उनकी आधी तकलीफ़ दूर हो गई थी।छह माह बीत गये, मेरे पति भी रिटायर हो चुके थे।एक शाम हम दोनों चाय पीते हुए बातें कर रहें थें कि देवी माँ की कृपा से अब दोनों बच्चे खुश हैं..लाइफ़ शांति से चल रही है कि तभी प्रशांत का फ़ोन आया,” मम्मी.. टिकट भेज रहा हूँ.. आप आकर फ़ैसला कर दीजिये।” उसकी आवाज़ में घबराहट थी, अब क्या हो गया.., यही सोचते हुए मैं फिर मुंबई पहुँची।पूरा घर अस्त-व्यस्त था।प्रशांत मुझे कमरे में ले गया और रोने लगा,” मम्मी..ये मुझे पागल कर देगी..परसों रात तो वो बिना बताये ही घर से चली गई थी।इस तरह से तो..।प्लीज़..आप कुछ..।” मैंने उसे शांत किया और कहा कि सब ठीक हो जायेगा.. थोड़ा पेशेंस रख..।तेरे पापा के साथ आती हूँ तो सब ठीक कर दूँगी..तू मेरा अच्छा बच्चा है..।” वह चुप रहा। मैंने रीमा को भी समझाया।मुझे विश्वास था कि कुछ दिनों में उनमें सुलह हो जायेगी। दोनों को आशीर्वाद देकर मैं आ गई और उसके दो दिन बाद ही रीमा का फ़ोन आया।रोते हुए बोली कि प्रशांत ने सुसाइड…।
कृष्णा जी फूट-फूटकर रोने लगी, मीता…अफ़सोस होता है कि मैं उसकी तकलीफ़ को क्यों नहीं समझ पाई..काश! उसकी बात मान लेती..मैं उसके पास रुक जाती..।”
” आपने पुलिस में कंप्लेन..।”
” किया था मीता।हमने कहा कि मेरे बेटे को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया है..लेकिन उन्होंने पहले ही पैसा खिला दिया था।फिर मानसिक प्रताड़ना का कोई सबूत तो होता नहीं…।मेरे पति बेटे का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाये और..।इसीलिए तुम्हें कह रही हूँ कि मयंक पर विश्वास कर..।जो दिखता है वो हमेशा सच नहीं होता..।” कृष्णा जी की बात सुनकर मीता सोचने लगी कि रोमा और राशि के व्यवहार में कितनी समानता है, कहीं…।
घर आकर मीता ने मयंक को मैसेज़ किया और फ़ोन करके कहा कि पढ़ कर डिलीट कर देना।उसने अपने पति को संक्षेप में मयंक और प्रशांत के बारे में बताया और कहा कि दिल्ली जाने की एक टिकट बुक कर दीजिये।
मीता को अचानक देखकर राशि चकित हो गई,” दी..आप यहाँ…मयंक ने तो मुझे बताया ही नहीं।”
” मेरा आना अचानक हुआ, इसलिये उसे नहीं मालूम।”
मीता ने हँसते हुए जवाब दिया।दो दिनों तक सब ठीक रहा..।फिर मयंक के कमरे से राशि के चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी।वो कभी मीता से प्यार-से बात करती तो कभी पहचानती नहीं।एक दिन तो उसने मीता की चाय में नमक मिला दिया।मीता चुपचाप सब देखती रही।अपने पति को कहकर उसने एक वकील हायर किया और मयंक की तरफ़ से डिवोर्स की अर्ज़ी दे दी।राशि ने बहुत हंगामा किया..उसकी माँ ने कहा कि इतना पैसा माँगेंगे कि तुम लोग सड़क पर आ जाओगी।
मीता जानती थी कि इस राह में कठिनाइयाँ बहुत आयेंगी लेकिन अपने भाई को उस भयानक यंत्रणा से मुक्ति दिलाने का उसने ठान लिया था।उसने अपने वकील को दो -तीन विडियो दिखाये जिसमें राशि मयंक का काॅलर पकड़ रही है, गालियाँ दे रही है।घर से जाने और आने के समय का सबूत भी दिया।सुनवाई की दो पेशी पर राशि नहीं आई, तीसरी तारीख पर आई तो मीता को देखते ही ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी.. अनाप-शनाप बकने लगी जिससे स्पष्ट हो रहा था कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।फिर भी मयंक का केस तीन साल चला।कभी राशि नहीं आती तो कभी उसका वकील बीमार पड़ जाता।अंततः जज ने एक निश्चित रकम तय करके मयंक और राशि के डिवोर्स पर मुहर लगा दी।
मयंक को ट्रोमा से निकलने में वक्त लगा।उसने दोबारा शादी नहीं की।नई कंपनी ज्वाइन करके अपनी ज़िंदगी नये सिरे से जीने लगा।अपने पैसे को वो अनाथालय और ब्लाइंड स्कूल में डोनेट करने लगा।
राशि के केस के कारण उसके परिवार की बहुत बदनामी हुई।उसकी छोटी बहन की सगाई टूट गई।वकील ने उसकी माँ को समझौता करने की सलाह दी थी लेकिन वो नहीं मानी।अब दिन-रात पछतावे के आँसू बहाती रहतीं है कि काश! उसकी बात मान लेती…केस नहीं लड़ती तो राशि की बदनामी नहीं होती.. छोटी बेटी का घर बस जाता लेकिन अफ़सोस…।
कृष्णा जी अपने बेटे को नहीं बचा सकी, इस बात का उन्हें बहुत अफ़सोस था लेकिन उन्हें खुशी थी कि मीता के भाई को उस भयानक यंत्रणा से मुक्ति दिलाने में वो कुछ मदद कर सकीं।
विभा गुप्ता
# पछतावे के आँसू स्वरचित, बैंगलुरु
अक्सर वैवाहिक रिश्तों में तनाव का कारण पुरुष होता है लेकिन कभी-कभी महिलाएँ भी अपने पति को प्रताड़ित करती हैं..उनपर झूठे इल्ज़ाम लगाती हैं।पुरुष अपनी व्यथा कह नहीं पाते और कहते हैं तो उनके अपने ही उनपर विश्वास नहीं करते।एक बार अपनों की बात सुने..उनकी तकलीफ़ को समझे ताकि कृष्णा जी की तरह उम्र भर पछताना न पड़े।मीता की तरह समय रहते चेत जायें और अपनों को नया जीवन देने में सहायक बने।