काश तुम समझ पाते…-   मीनू झा

Post View 940 काश तुम समझ पाते…ये खुद को सांत्वना थी, स्वयं को धिक्कार था या फिर वो अफसोस था जिससे “सुंदर” उबर ही नहीं पा रहा था ??इन अनुत्तरित प्रश्नों से लड़ते लड़ते महीना भर होने को आया पर वो इनका जवाब नहीं ढूंढ पाया था। क्या सोचते रहते हो दिनभर??—घर बाहर हर कोई … Continue reading काश तुम समझ पाते…-   मीनू झा