बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज के दूसरे साल में था। कॉलेज के बाहर एक टपरी पर चाय पी रहा था औऱ फर्स्ट ईयर के एक लड़के का इंट्रो ले रहा था। तभी देखा कि एक लड़का साइकिल पर तेजी से आता हुआ अनबेलेन्स होकर हमारे सामने गिर गया। ढलान की वजह से शायद स्पीड कंट्रोल नहीं कर पाया था।
जिसका मैं इंट्रो ले रहा था वो बोला, सर ये मेरा दोस्त है और मेरी ही क्लास में है। तब हम दोनों उठे और उस लड़के को उठाया। काफी चोट लगी थी और कान से खून बह रहा था। मासूम सा चेहरा, बिलकुल बच्चों जैसा, अभी मूछे भी नहीं फूटी थी, मुझे उसपर तरस आ गया। मेने एक ऑटो रोका और उसे बैठने को बोला, ओर कहा जाकर पट्टी करा ले। वो बोला सर्, पैसे नही है। ऑटो में मैं भी उनके साथ बैठ गया और हॉस्पिटल ले गया। जाते जाते मैंने दूसरे लड़के से कहा, सायकिल सामने वाली दुकान पर दे दे, रिपेयर के लिये।
हॉस्पिटल पहुंच कर देखा कि उसका कान कट गया था, 3 स्टिच लगे। ड्रेसिंग के बाद वो थोड़ा नार्मल हो गया था। मैंने पूछा, अकेले घर चले जाओगे। वो बोला, सर्, मेरी सायकिल, मॉ गुस्सा होगी। मेने ऑटो रुकवाया ओर दोनो बेठ गए। उसके घर पहुँच कर हम अन्दर गऐ तो उसकी मां और बहन दोनो शोकड थे। कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस तीनो एक दूसरे को देख रहे थे। कुछ देर तक मैं देखता रहा फिर लड़के को बिठाया, ओर बोला, एक गिलास पानी ले आना। मेने लड़के को पानी पिलाया ओर फिर बताया कि ये साईकिल से गिर गया था,
ओर कोई बात नही। इसके बाद मॉ बेटी को थोड़ा होश आया और मॉ की आवाज निकली, बेटा तुम कोन हो? मैंने सब बताया तब माहौल कुछ नार्मल हुआ। मॉ ने बेटी को चाय बनाने को बोला। मैं चाय पीकर उठा और बोला, 2-3 आराम कर लेना, कॉलेज में कोई प्रोब्लम हो या कोई हेल्प चाहिए तो बोल देना, ओर मैं बाहर आकर सिटी बस से घर आ गया। 3-4 दिन बाद वो लड़का कॉलेज में मिला, ओर बोला, सर्, ये पैसे ले लो, मेरी मॉ ने भेजे हैं, आप ने खर्च किये थे।मेरी इच्छा हुई कि पैसे ले लू, ये मेरी पूरे महीने की पॉकेट मनी थीं,
पर उसके घर के हालात देखकर इच्छा नही हुई। मैं बोला, तुम्हारी साईकल ठीक हो गई होगी, उसे पैसे देकर ले लो। जो पैसे बचेगे, मम्मी को वापस कर देना। 5-6 दिन बाद वो लड़का फिर मिला ओर बोला कि सर्, मशीन डिज़ाइन की बुक कहीं नहीं मिल रही है, किसी से दिलवादो, नेक्स्ट वीक टेस्ट हैं। मैंने कहा, कल मिलना, मेरे पास हैं। अगले दिन मैंने अपनी बुक उसे देदी ओर बोला, एग्जाम के बाद मुझे वापिस कर देना या किसी जरूरत मंद को दे देना, पर पैसे नहीं लेना। विद्या कभी बेचना मत, हमेशा फ्री में देना। उस लड़के ने पूरी क्लास में ये किस्से सुनाकर मुझे हीरो बना बिया था, ओर मैं जूनियर्स में काफी पॉपुलर हो गया। किसी को कोई समस्या होती तो मेरे पास आ जाता।
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कुछ दिनों बाद कॉलेज के इलेक्शन होने थे, मैंने जनरल सेक्रेटरी (जी. इस.) के लिए नॉमिनेशन फॉर्म भरा औऱ भारी मतों से जीत हासिल की। ये सब उस फस्ट ईयर के लड़के की वजह से ही हुआ था ओर लगभग सभी जूनियर्स का वोट मिला। कॉलेज पास करने के बाद मुझे दिल्ली में नोकरी मिल गई। 3 साल काम करने के बाद मुझे मुम्बई में दूसरी अच्छी नोकरी मिल गई, पैसे और पोस्ट दोनो मिल रही थीं, तो मैंने यहाँ रिजाइन दे दिया।
आज मेरा ऑफिस में लास्ट वर्किंग डे था, ओर फेयरवेल पर साथियों से जुदा होने पर थोड़ा भावुक हो रहा था। कल सुबह की फ्लाइट से मुम्बई जाना था अपनी नई नोकरी जॉइन करने।
मुम्बई पहुंच कर मैं होटल में गया ओर फ्रेश होकर आफिस के लिये निकल पड़ा। ऑफिस में अपने जनरल मैनेजर से मिला, उन्होंने मुझे कुछ जरूरी इंस्ट्रक्शन दे कर बाकी स्टाफ से मिलवाया। इसी दौरान एक लड़का दौड़ा हुआ मेरे पास आया और गुड मॉर्निंग सर बोलकर मेरे पाँव छू लिये, ओर बोला मुझे पहचाना सर्? मैंने गौर से देखा, ये तो वही कॉलेज वाला जूनियर स्टूडेंनट था जो सायकिल से गिर गया था और मैं हॉस्पिटल लेकर गया था। मैने पूछा कैसे हो। वो बोला सर्, मैं आपको फॉलो करता हू, आप की तरह अब मैं भी लोगो की मदत करता हूँ,
ओर सर्, मैं मुफ्त में बच्चों को भी पड़ता हूँ और बुक्स भी नही बेचता, जरूरत मंद लोगों को फ्री में दे देता हूँ। सर्, आप मेरे सीनियर हैं पर मैं यहॉ लगभग 3 साल से काम कर रहा हूँ, आपको कुछ भी किसी के भी बारे मे कोई भी जानकारी चाहिए तो मुझे बस हुक्म कर देना, बाकी सब मैं देख लूगा। मैंने पूछा, क्या रहने के लिए कोई अच्छा फ्लैट मिल जाएगा ? वो बोला सर्, परसो बताता हूं। अगले दिन वो ड्यूटी पर ही नही आया, उसके अगले दिन शाम को मुझे अपने साथ लेकर कई फ्लैट दिखाये ओर मैंने एक फ्लैट फाइनल कर दिया। वो बोला, 2 दिन मैं सब एग्रीमेंनट बन जायेगा, डिपाजिट वगैरह जमा करके तीसरे दिन शिफ्ट कर लेना। मैंने जिज्ञासा वश पूछा, कल डयूटी पर नहीं आये थे ? वो बोला, आपके लिए फ्लैट देख रहा था, तभी तो एक दिन में ही फाइनल हो गया।
मुझे अपने बाबूजी की बाते याद आ गई कि जो हम दूसरों के साथ करेंगे, वही हमारे पास वापस लौट कर आता हैं, इसी को कर्मा कहते हैं।
मनुष्य जीवन केवल एक बार ही मिलता है, इसे लड़ाई झगड़े में ब्यर्थ न गवाएं। आपके जाने के बाद आपको आपके कर्मो / अच्छे कार्यों से ही याद किया जायेगा।
लेखक
एम.पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
24 Jan. 25