दिल पर पत्थर रख,बेटी को विदा कर वह पलटी ही थी कि ना जाने कहाँ से एक बच्ची आई और कागज़ का पुर्चा पकड़ाकर बिजली की जैसी फुर्ती से गायब भी हो गई।
उसने जल्दी से पुर्चा खोलकर देखा। उसमें चंद लाइन लिखी थीं..”आपने एक अनजान बच्ची को सहारा देकर उसका जीवन संवार दिया,,,मरते दम तक आपकी कर्ज़दार रहूंँगी– एक अभागी”
“ओह्ह!! वही लिखावट”,,,इसे कैसे भूल सकती है वह! उसे वह पल याद आ गया जब रात के सन्नाटे में घर के दरवाज़े पर नवजात के रोने की आवाज सुनकर वह बाहर आई तो ज़मीन पर पुराने कपड़ों में लिपटी एक बच्ची बुरी तरह से रो रही थी और साथ में एक चिट्ठी भी,,, “बहुत मजबूर हूँ। चौथी लड़की है,,,
डर है कि अगर ये रही, तो मेरे पति इसे मार देंगे या मुझे छोड़ देंगे,,फिर बाकियों का क्या होगा ?यदि ये मर गई तो जी नही पाऊंगी और इतनी सामर्थ्य भी नही है कि इसे पाल सकूँ। आप लोग तो सबको आशीर्वाद देते हो..विनती है कि इस अभागी को सहारा देकर अपना आशीर्वाद और थोड़ा सा प्यार भी दे देना।
” पढकर उसकी आँखे भीग गईं। उसने लपककर उसे गोद में उठा लिया। गोद में आते ही बच्ची मुस्काई , बस तभी उसके नाम की घोषणा भी हो गई,,”मुस्कान”,, हाँ यही नाम सही है।
वह बच्ची को अपने कलेजे से लगाकर रखती। पहली बार जब उसने उसे माँ कहा तो मानों दुनिया भर की नियामत मिल गई। उसे तो कभी ममता की छाँव भी नही नसीब हुई थी;पर मुस्कान को वह घर से लेकर बाहर और स्कूल तक ,समाज के तानों से लड़ती,बचाती, बड़ी ज़िम्मेदारी से माँ और बाप दोनों ही का फ़र्ज़ निभाती रही। फिर पढ़ाई पूरी होने के बाद अच्छा घर,वर देखकर धूमधाम से उसकी शादी कर दी।
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आज उसके कलेजे का टुकड़ा,उसकी लाडली विदा होकर अपने घर चली गई। दुनिया की रीति यही है,,,बेटियों को भी भला कोई अपने पास रख पाया है?” उसने अपने आंसू पोंछे।
” माना कि उसने सहारा दिया, पर कर्ज़दार तो वह खु़द है उस अनाम माँ की,,,,, जिसने उस जैसी किन्नर को मातृत्व का सुख लेने का अनमोल तोहफा दिया था।”
विषय– #सहारा
कल्पना मिश्रा