ये भी अजीब है जब उम्र बढ़ने लगती है तो मन मस्तिष्क में अजीब सा परिवर्तन आने लगता है।जीवन की सांसें कम होने के अहसास मात्र से चाहते भी बढ़ जाती है।
मुन्ना अपने ऑफिस के लिये प्रातः7 बजे घर से निकल जाता है, वापसी का कोई समय नही।उसके पास शनिवार और रविवार का समय होता है।उसकी पत्नी और बच्चों को भी तो उसका समय चाहिये, सच मानिये हम तो उससे बतियाने को उसको भरपूर देखने को उसका थोड़ा सा समय चुराते हैं।
ऐसे में अपनी कोई इच्छा हो भी तो मुन्ना से कैसे कहे,उसके पास तो समय ही नही है।आज के आधुनिक युग मे पैसा तो खूब है पर समय का अभाव है।मुन्ना ने अभी कुछ दिन पहले ही एक आराम कुर्सी मेरे लिये खरीद कर बालकनी में रखवा दी है।इससे अब मैं बाल्कनी में ही अधिकतर बैठा रहता हूँ।इस कुर्सी के आने से लाभ ये हुआ है कि बाल्कनी मेरे बैठे रहने से आबाद हो गयी है।मेरे बैठे रहने के कारण अब मेरे पोता पोती भी बाल्कनी में आ कर खेलने लगे हैं, बहु भी बच्चो के कारण वहां आने लगी और अवकाश के दिन मुन्ना भी काफी समय बाल्कनी में बैठने लगा। उस कुर्सी ने अब काफी हद तक मेरा अकेलापन दूर कर दिया था।एक निर्जीव वस्तु भी एक जीवित प्राणी को कैसे प्राणवायु दे सकती है,मैं प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा था।
इस परिवर्तन से मन मे अब उत्साह का संचार होने लगा था।काफी दिन से मन मे एक इच्छा पनप रही थी कि जीवन मे एक बार रामेश्वरम दर्शन कर आऊं।अकेला न जा सकता था और न मुन्ना अनुमति देता।ऐसे में जब मैं यह भी देखता कि मुन्ना के पास समय ही नही है तो उससे अपनी इस चाहत को बताने का भी क्या लाभ होता,सो मन मसोसकर चुप ही रहता।वैसे भी बुढ़ापे में सुखपूर्वक रहने की कुंजी चुप रहना ही होती है।कभी मुन्ना से अपनी इस इच्छा के बारे कहा था,पर अब उसकी दिनचर्या देख मैंने दोबारा उससे इस बारे में कुछ नही कहा।
इस वर्ष ठंड कुछ अधिक ही पड़ रही है और मुझे ठंड अधिक लगती है।जनवरी माह में मकर सक्रांति बीत जाने के बाद भी सर्दी कम होने का नाम ही नही ले रही थी।सोच रहा था कि इस वर्ष की सर्दी उसकी जान लेकर ही छोड़ेगी।
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आज मुन्ना अपने ऑफिस से कुछ जल्द ही आ गया था, आते ही वो सीधा बाल्कनी में मेरे पास ही आया,बोला पापा मैंने पूरे 10 दिन की छुट्टियां ले ली हैं।आप और मैं इसी शनिवार को रामेश्वरम चल रहे हैं।आपकी इच्छा थी ना वहां जाने की,क्या करता छुट्टियां ही नही मिल रही थी,अबकि बार छुट्टियां मिल गयी है,सर्दी भी अधिक है उधर ठंड नही पड़ती है सो पापा चेन्नई,त्रिपति जी,मदुरै,रामेश्वरम,कन्याकुमारी और त्रिवन्तपुरम सब जगह आपको लेकर जाऊंगा।सब जगह के लिये होटल बुक कर दिये है।चेन्नई से टैक्सी बुक कर ली है।बस पापा आप तैयारी करो,इसी शनिवार की सुबह 9 बजे की फ्लाइट है, जल्दी निकलना पड़ेगा।
मुन्ना इतना सब कुछ एक सांस में बता गया,वो खूब उत्साहित था,अपने पापा की चाहत पूरी करने को। मैं तो बस मुन्ना का मुंह ही देखता रह गया,मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था,कि मेरी इच्छा ऐसे पूरी हो जायेगी।आज समझ आया समय के अभाव ने कृत्रिम दीवार खड़ी कर दी है।
पता नही क्यूँ मुझे आज त्रेता युग के उस श्रवण कुमार की याद आ रही थी जो अपने अंधे माता पिता को कंधे पर पालकी बना उस पर बिठा तीर्थ यात्रा कराने निकल पड़ा था।…सच जीना नही इतना भी बुरा—–!
बालेश्वर गुप्ता.
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवं अप्रकाशित.