कन्यादान का पुण्य – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मुश्किल से दो निवाले हलक के नीचे उतारे थे कि चारु का मोबाइल फिर से बजने लगा और साथ ही मां का राग भी लो अभी आई नहीं दो घड़ी बैठी नहीं कि फिर बुलावा आ गया … अरे कोई जरूरत नहीं है फोन उठाने की बजने दे निगोड़े को।दो घड़ी बैठ कर दुनियादारी की बातें भी सुन ले समझ ले।सुन आज चाचीजी आईं थीं याद है तुझे उनकी बेटी विन्या…

अबकी बार चारु का दूसरा मोबाइल जोर से बजने लगा..!

ये मोबाइल भी कभी कभी फेक देने का मन होने लगता है। मां एक मिनट मुझे देखने दो कौन है…आखिर एक डॉक्टर हूं मैं चारु ने मां के असमय छिड़े राग को विराम देते हुए कहा।

डॉक्टर की कभी छुट्टी नहीं होती हर पल मरीजों के लिए समर्पित रहना होता है … खुद की कोई लाइफ ही नहीं होती … हमेशा पेशेंट पेशेंट … बस पेशेंट को देखते देखते खुद की जिंदगी भी पेशेंट ही होने लगती है…!ऐसे ही वाक्य सुना सुना कर मां बचपन से इस पेशे से दूर रखने की कोशिश करती रहती थी और आज भी यही सुनाती रहतीं है।

  हर रिश्ते को समय चाहिए ख्याल चाहिए फिक्र चाहिए अन्यथा सूख जाते हैं मुरझाकर बेजान हो जाते हैं।तब और भी दुख होता है इसलिए चारु ने डॉक्टर बनते ही फैसला कर लिया था शादी एक झंझट ही है सारे रिश्ते को संभालने की चक्की में मेरा पेशा मेरे मरीज पिस जाएंगे ।जब तक कोई मुझे दिल से समझने वाला मेरी और मेरे पेशे की इज्जत करने वाला लड़का नहीं मिलेगा मैं शादी नहीं करूंगी।

शादी ब्याह की इतनी जल्दबाजी क्यों !!क्या किसी की जिंदगी उसके कैरियर से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है शादी!!क्या लड़की की शादी ही जिंदगी का अंतिम लक्ष्य है!!

चारु के इस फैसले ने उसके अंदर  एक गहरा आत्मविश्वास और हिम्मत जागृत कर दी थी अब ये बात अलग है कि उसकी मां इसी वजह से हमेशा दुखी रहती थी।आखिर एक लड़की की मां की जिंदगी का अंतिम लक्ष्य बेटी की शादी करके उसका घर बसाना ही तो होता है।लड़की को अच्छे घर ब्याह देना ही कर्तव्यों की इतिश्री होती है।मां के जीवन में कन्यादान का सौभाग्य है या नहीं है ये अकथनीय वेदना थी उनके दिल में।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

आंखों में खटकना – राजेश इसरानी : Moral Stories in Hindi

चारु की मौसेरी चचेरी या मोहल्ले में भी यदि किसी लड़की की शादी होती या शादी का कार्ड भी आ जाता तो मां का कथावाचन जिसकी श्रोता भी अकेली वही होती थीं  आरंभ हो जाता… जाने मेरी इस अभागी की बुद्धि कब सही राह पर आएगी कब ये शादी करेगी मेरी किस्मत में कन्यादान का पुण्य ही नहीं बदा है … पिछले जन्म में मैने भले ही कोई पाप नहीं किया हो लेकिन इस जन्म में कन्या को घर बिठाकर रखने का पाप तो कर ही रही हूं…आंसू तो यूं भर आते मानो बारिश का पानी।

पिता जी चुप ही रहते ऐसे मौकों पर।उनका कुछ समझाना या बोलना तो मानो प्रज्ज्वलित अग्नि में घी का काम कर जाता।

अपने मां पिता जी की इकलौती बेटी चारु का जन्म बहुत मन्नतों के बाद हुआ था।शादी के बारह सालो तक कोई संतान ना होने से मां पिता जी का दुख गहरा हो गया था।जान पहचान वाले घर वाले सभी निपूती का ताना मारने से झूठी सहानुभूति दिखाने से बाज नहीं आते थे। बिचारे मां पिता जी दिन रात ईश्वर की प्रार्थना करते रोते मनौतियां मनाते ….!!

देर से ही सही ईश्वर ने अंततः उनकी सुन ली और बेटी के रूप में चारु का जन्म हुआ। पूरे मोहल्ले में शुद्ध घी के मोतीचूर के लड्डू पिता जी ने बाटे… सिद्ध काले धागे की परतो ने उसकी नन्हीं कलाइयों को ढंक दिया ..लाल मिर्च काली राई दाने और नमक की तीखी चट चट भरी नजर उतारने का अनवरत सिलसिला जो उस दिन से प्रारंभ हुआ वह आज तक अबाध  गति से जारी है ।

पिता जी की हसरत थी बेटी नामचीन डॉक्टर बने और मां की हसरत थी बेटी अपने भाग लेकर आई है अच्छा दूल्हा मिले अच्छे घर जाए अच्छे सास ससुर मिले।बचपन से मां उसे घर के कामकाज सिखाती आटा गूंथना,रोटी बेलना ,प्याज काटना,थाली लगाना… लेकिन चारु की रोटी हर बार टेढ़ी हो जाती प्याज काटते हुए उसकी आंखों से आंसू बह निकलते और बस पिताजी तुरंत बिटिया को गोद में उठाकर ले जाते कहते हुए कि चल मेरी लाडो बिटिया पढ़ाई करेगी।बड़ा सा ब्लैकबोर्ड दीवार पर लगाया था उन्होंने रंग बिरंगी ढेरो चॉक के टुकड़े उसके हाथों में पकड़ा देते और टेढ़ी रोटी बेलने वाली चारू की नन्हीं उंगलियां  पिताजी के साथ साथ बोर्ड पर वर्णमाला के सधे अक्षरों को आकार देती चली जाती।

मां की बड़बड़ तब भी शुरू रहती कि अरे लड़की है पराए घर तो जाएगी ही घर के कामकाज नहीं कर पाएगी तो सब मेरा ही नाम धरेंगे ।ताना सुनते सुनते जैसे मेरी आधी से ज्यादा जिंदगी बीती है वैसे ही मेरी बेटी की भी बीतेगी कि मां ने कुछ नहीं सिखाया ये पढ़ाई लिखाई डॉक्टर बनने का भूत इसके सिर क्यों चढ़ाते रहते हो आप..!!

लेकिन पिता जी पर भी बेटी को डॉक्टर ही बनाने का ऐसा भूत सवार हुआ था जो मां की झाड़ फूंक से बेअसर रह चार गुना वेग से फिर आ जाता।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पाप का फल – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

इसी सिर चढ़े भूत के कारण पिता जी ने मां के लाख विरोध कि लड़की की शादी के लिए रुपया बचा कर रखो के बावजूद अपने रिटायरमेंट पर मिली पूरी धनराशि चारु की मेडिकल की फीस और पढ़ाई पर खर्च कर दी ।पिता जी ने तो भारी मशक्कत से अपनी हसरत पूरी कर ली बेटी को डॉक्टर बना दिया लेकिन मां की अपनी बेटी की शादी करके कन्यादान का पुण्य बटोरने की हसरत अधूरी ही रह गई थी।

आज भी चारु के आते ही वह अपनी चाची द्वारा बताए एक सुयोग्य लड़के के बारे में बता रही थीं कि इतना अच्छा लड़का चाची ने तेरे लिए बताया था ।अरे बस नौकरी ही तो नहीं करता था बाकी दिखने सुनने में तो एकदम राजकुमार ही था संपन्न पिता का बेटा था शादी के बाद करने लग जाता ।लेकिन तेरी तो मति मारी गई थी तूने मना कर दिया। तो उन्होंने अपनी छोटी बेटी विन्या के साथ उसकी शादी कर दी थी ।कितनी सुखी है विन्या इतना अच्छा घर वर पाकर।चाची की किस्मत की बलिहारी है दो दो कन्याओं का ब्याह कर कन्यादान का पुण्य बटोर ली है… काश तूने उस समय मेरी बात सुनी होती ध्यान दिया होता तो आज विन्या की जगह तेरा घर बस गया होता और विन्या की तरह तेरी भी गोद भरने का समय आ गया होता।जानती है विन्या की गोद भराई होने वाली है अगले हफ्ते।चाची आज आई थीं तो बता रहीं थीं…

मां की कथा फोन बजने से बाधित हो गई।

चारु खाना बीच में ही छोड़ कर हाथ धोने लगी..हेलो.. कौन बोल रहा है क्या कह रहे हैं।मैं अभी वहां पहुंच रही हूं …

तब तक पिता जी भी आ गए थे।

तुमने कुछ सुना वो तुम्हारी चाची की बेटी है ना क्या नाम है उसका …!!हांफने लगे थे वह।

विन्या विन्या क्या हुआ उसे मां चौंक गई।

उसके ससुराल वालों ने उसे मारा पीटा…चारु के हॉस्पिटल लेकर आए हैं घर वाले …. हालत बहुत गंभीर है उसकी…!!

मारा पीटा …चीख उठी मां क्यों लड़का तो इतना अच्छा है घर भी।

शायद दहेज का कोई मामला है उन्हें अपने बेटे का बिजनेस बढ़ाने के लिए ज्यादा धन चाहिए जिसके लिए वे लोग विन्या पर दबाव बनाते रहते थे ….पिता जी कहते जा रहे थे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अपने – माता प्रसाद दुबे : Short Story In Hindi

मां का मुंह फटा रह गया था।

तब तक चारु तेजी से हॉस्पिटल रवाना हो गई थी।

विन्या की हालत बहुत गंभीर थी।चाची का रोते रोते बुरा हाल था।चारु को देखते ही कातर स्वर में बोल उठीं बिटिया बचा ले मेरी बेटी को ।जाने कैसे राक्षसों के घर अपनी विन्या को ब्याह कर मैं कन्यादान का पुण्य बटोर रही थी और मेरी बेटी अपने अंतिम दिन गिन रही है..!

मां जो पिता जी के साथ चारु के  पीछे पीछे ही पहुंच गई थीं चाची की बात सुनकर स्तंभित रह गईं।

चारु ने बेतहाशा रोती हुई चाची को दिलासा दिया और पूरे मनोयोग से विन्या की चिकित्सा के लिए सघन चिकित्सा कक्ष की तरफ बढ़ गई ।

रात का एक एक पल भारी था सबके लिए ।भोर की पहली किरण के साथ ही चारु ने बाहर आकर विन्या के सही सलामत होने की खबर सुनाई तो चाची खुशी के मारे फिर से रोने लग गईं।चारु ईश्वर तुझ जैसी बेटी सबको दे सावित्री तू बड़ी भाग्य वाली है जो ऐसी योग्य है तेरी बेटी कितना पुण्य कमा रही है लोगो की जान बचा रही है आज मेरे लिए यह  ईश्वर बन कर आई है ।ठीक किया बेटी तूने अपनी पढ़ाई की कैरियर बनाया और पूरी मेहनत से अपना धर्म निभा रही है।

काश मैने भी अपनी विन्या की पढ़ाई की तरफ ज्यादा ध्यान दिया होता तो आज इतने पाशविक व्यवहार की शिकार ना हुई होती ।

आज पहली बार मां को कन्यादान के पुण्य से भी कहीं ज्यादा पुण्य अपनी बेटी के कर्तव्यों में नजर आए थे।सही कहती है मेरी बेटी और सही करती है जब इसे समझने वाला इसके जैसा कोई मिलेगा तभी इसकी शादी करूंगी …. आज अपनी बेटी के लिए मां की आंखों में आंसू नहीं मोती चमक रहे थे।

लतिका श्रीवास्तव 

आंसू बन गए मोती#शब्द प्रतियोगिता

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!