कंकड़ की सब्जी – सीमा रंगा इन्द्रा : Moral Stories in Hindi

अरे! रोशनी आज मीरा को तू अपने साथ ले जाना ।मैं आज देर से आऊंगी, शाम को आते वक्त अपने साथ लेकर आना परंतु मालकिन मेरे घर कैसे,  जाते हुए विद्या ने बोला अरे! बस आज की ही बात है और साहब भी बाहर गए हैं। फिर दिन में मीरा अकेली कैसे रहेगी

परंतु मालकिन विद्या ने बात काटते हुए कहा परंतु वरंतू कुछ नहीं तू ले जा और हां दिन में कुछ खिला देना गरम- गरम बनाकर। अगर इधर से बनाकर लेकर जाएगी तो ठंडा हो जाएगा ।जी मालकिन रोशनी ने सिर हिलाते हुए कहा, मन ही मन बहुत बेचैनी थी और बुड़बुड़ा  रही थी।

मैं अपने घर कैसे लेकर जाऊं मीरा को। यह पूरा दिन उस छोटे से कमरे में कैसी रहेगी? अनेक सवाल करते-करते काम कर रही थी। काम खत्म करके रोशनी अपने साथ मीरा को लेकर चल पड़ी । बाई जी मेरे तो पैर दर्द करने लगे और कितनी दूर है आपका घर, बस बेटा पास ही है ।

पास -पास  करते कितने दूर तो ले आए आप।  मम्मी की तरह एक गाड़ी क्यों नहीं लेती?  रे बेटा  हम कहां से लें और मुझे तो चलानी भी नहीं आती। रोशनी ने कहा आप मम्मी से सीख लो, हां सही बोल रहे हैं आप। लो बेटा हमारा घर आ गया है। यह  घर यह तो झोपड़ी है। हां बेटा हमारे पास इतने पैसे नहीं है

कि बड़ा घर बना ले ।घर में मीरा के 5 बच्चे खेल रहे थे ।रोशनी ने कहा आप इनके साथ खेलों, में काम करती हूं ।जी बाई जी मीरा ने कहा ।थोड़ी देर बाद रोशनी ने खाना बना दिया। सभी खाना खाने लगे ।मेरा बोली बाई जी मुझे भी खाना खाना है ।रोशनी अपने पति की तरफ देखते हुए बोली कुछ पैसे हैं तो मीरा के लिए बाहर से खाना ला दो ना ।

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अरे !रोशनी तुझे तो पता है पिछले 10 दिन से मुझे कुछ काम नहीं मिला। मेरे पास तो एक रूपया भी नहीं है। तु मैम साहब से क्यों नहीं मांग कर लाई।किस मुंह से मांगती, पहले ही एडवांस पगार लेकर खा चुके हैं।  चलो ऐसा करो यही खाना दे दो मीरा को । कैसी बात करते हो मीरा तो टेबल- कुर्सी पर बैठकर 10 तरह के पकवान खाती है।

यह कैसे खाएंगी ,कोई नहीं अब उसे भूख लगी है तो यही दे दो। ठीक है रोशनी ने कहा। मीरा लो बेटा खाना खा लो । मीरा खाना खाने लगी जैसे ही उसने सब्जी को मुंह में डाला मीरा बोली  यह कैसी सब्जी है दांत से कट ही नहीं रही ।रोशनी की बेटी ने कहा मीरा तू पानी में रोटी लगाकर खाओ और सब्जी चूस कर प्लेट में रख दो। यह सब्जी है

  मैंने तो आज तक नहीं खाई और बाई जी तो हमारे घर में कभी नहीं बनाती है ऐसी सब्जी। रोशनी की बेटी नंदिनी ने कहा, परंतु हम तो हर रोज यही सब्जी खाते हैं। हम रोड़ से कंकड़ उठा कर,तभी रोशनी ने डाटंते हुए कहा चुपचाप खाना  खाओ। नंदनी चुपचाप खाना खाने लगी। खाना खाकर बच्चे खेलने लगे 

और रोशनी  अपना घर का  काम करने लगी। जब तक शाम हो गई थी रोशनी  मीरा को लेकर मालकिन के घर चली गई । मीरा की मां ने आते ही रोशनी  से कहा जल्दी से खाना लगा दो बहुत भूख लगी है।  मां आज पता है आपको मैंने चूस कर फेंकने वाली सब्जी खाई और मैं पूरा दिन  बहुत खेली।

मेरे पांच दोस्त बन गए।  कौन सी सब्जी बनाई थी जरा मुझे भी तो बताना ।मैं  मैं क्या कर रही है बता ना।  मैं हर रोज कंकड़ रोड़ से उठाकर लाते हैं और उन्हें धोकर साफ करके उसकी सब्जी बना लेते हैं । यह क्या बोल रही है रोशनी तू, विद्या ने आश्चर्य से कहा ।हमारे पास पैसे नहीं है और उनका काम भी कभी-कभी लगता ।

घर में 5 बच्चे हैं।पर तूने बताया क्यों नहीं कभी ।पहले आप इतना कुछ दे देती हो मालकिन, खाने की तरफ देख कर आज विद्या का मन खाना खाने को नहीं किया । बिना खाए उठ गई। क्या हुआ मेम साहब , खाना अच्छा नहीं बना था क्या आज। अरे नहीं थक गई हूं ना इसलिए बोल कर अपने कमरे के अंदर  जाते हुए कुछ पैसे रोशनी के हाथ में थमा कर  बोली

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जाते समय राशन ले जाना ।मालकिन मैं तो पहले ही पगार ले चुकी ।चुप रह तू और हां ये सारा खाना घर ले जाना और बच्चों को खिला देना। जी मालकिन,  अब तुम जाओ रात ज्यादा हो गई है और हां कल से तेरे पति को भी साथ में लेकर आना काम पर ।

जी मालकिन रोशनी  अपनी मालकिन का शुक्रिया अदा करते-करते घर चली गई।

 

सीमा रंगा इन्द्रा

हरियाणा

स्वरचित रचना

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