कंगन-मधु जैन 

“अरे! सुधीर बड़े खुश नजर आ रहे हो। इतने सारे पैसे, क्या खरीदने वाले हो ?”

“पत्नी के लिए कंगन। भांजी की शादी में जाना है। मेरी दोनों भाभी के हाथों में सोने के कंगन और मेरी पत्नी के हाथों में सिर्फ कांच की चूड़ियां, मुझे बहुत बुरा लगता है।”

“यार, तुम्हारे दोनों भाई तो इंजीनियर हैं और तुम लिपिक, क्या पढ़ाई में मन नहीं लगा ?”

“ऐसी बात नहीं है, दो भाई और एक बहन के बाद मैं पैदा हुआ, मैं अनचाही संतान जैसा था। पिता की ओर से हमेशा उपेक्षित रहा। कपड़ें, जूते यहाँ तक पुस्तकें भी भाइयों के उपयोग की हुई ही मिली।”

“ओह !!”

“भाइयों की पढ़ाई और दीदी की शादी के बाद पिताजी की माली हालत बिगड़ गई थी। गांव में बारहवीं तक ही स्कूल था। बाहर भेजने की स्थिति न होने से प्राइवेट बी.ए. किया।”

घर पहुंचते ही खुशी से चिल्लाते हुए “नैना, नैना जल्दी से तैयार हो जाओ बाजार चलना है।”

“सारी खरीदारी तो हो गई अब क्या लेना है ?”

“तुम्हारे लिए कंगन। भाभी जैसे तुम्हारे हाथ भी चमकेगें।”

“मेरी कांच की चूड़ियाँ सलामत रहें मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”

नैना का चेहरा दोनों हाथों में लेकर, “लेकिन मैं चाहता हूँ।”


“आपके पास इतने पैसे आए कहाँ से ?”

“बहुत दिनों से थोड़ा- थोड़ा इकठ्ठा कर रहा था।”

“हम दीदी के यहाँ शहर तो जा ही रहे हैं, तो वहीं खरीद लेगें, शहर में नयी डिजाइन भी मिल जाएंगी।”

“हां ये ठीक है। तैयारी हो गई क्या ?”

“हां , बस आप खाना खा लीजिये फिर निकलते हैं। ताकि अंधेरा होने से पहले पहुंच जायें।”

दीदी के यहां दोनों भाई, भाभी और दीदी किसी गहन चिंता में डूबे देख

“दीदी, आप इतनी दुखी, क्या परेशानी है बताइये न ?” नैना ने पूछा

“तुझे बताकर क्या करूंगी।” दीदी फुसफुसाई

“बताइए न दीदी, शायद कुछ कर सकूं।” इस बार सुधीर बोला।

“बजट से ज्यादा खर्च हो गया कुछ पैसों की जरुरत है समझ में नहीं आ रहा किससे मांगू।”

सुधीर ने बड़े भाई की ओर देखा

“देखो,  इस बार बेटे का एडमिशन बौडिंग स्कूल में करवाया है। पूरे दस लाख भरकर आया हूँ, तो…”

अब मझले भाई की ओर देखा।

“मैंने मकान और गाड़ी के लिए लोन लिया है। किस्त चुकाने के बाद घर खर्च भी मुश्किल से चल पाता है।”

नैना ने पर्स से पैसे निकाल कर, “दीदी हमारे पास इतने ही है, शायद आप का काम चल जाए।”

सुधीर ने देखा बिना कंगन के भी नैना के हाथ चमक रहे थे।

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