कमरे की सीमा रेखा – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

क्या मम्मी आपसे कितनी बार कहा है कि कमरे में रहा करों बाहर मत आया करो वही पर आपको सब चीजें खाने पीने कि मिल जाया करेगी फिर भी आप  पता नहीं क्यों सुनती नहीं हो ।बार बार आ जाती है बाहर ।ओ बेटा जरा चाय पीने कि इच्छा हो रही थी,,,।

मिल तो जाती है न चाय,आज आने में हम लोगों को जरा देर हो गई तो इंतजार नहीं कर सकती क्या रेखा जी का बेटा श्रेयस बोला।बेटा अब तक कमरे में बैठी रहूं मन ऊब जाता है अच्छा अब कमरे में भी मन ऊब जाता है टीवी लगा है न देखो।अब कितना टीवी देखे रेखाजी मन में सोचने लगी।

               दरअसल रेखा जी अपने पति सुभाष जी के साथ हंसीं खुशी जिंदगी गुजार रही थी ।दो बेटे थे दोनों की शादी हो चुकी थी और दोनों बेटे शहर से बाहर रहते हैं एक बेटा पूना में है और दूसरा कानपुर में दोनों बहुएं भी नौकरी करती है ।

रेखा जी अक्सर बीमार रहती थी शुगर थी और तमाम तरह की अन्य परेशानियां भी थी जिसका कारण था लग्जरी लाइफस्टाइल।खूब बाहर का खाना पीना , कोई मेहनत ंन  करना चौबीस घंटे आराम करना , नौकरों चाकरों से ही घिरे रहना । सुभाष जी अपने बिजनेस में ही व्यस्त रहते थे

68 की उम्र पार कर चुके थे फिर भी पैसे कमाने की होड़ में लगे रहते थे ।घर में ध्यान नही रखते थे रेखा जी का, उनको लगता नौकर है तो ख्याल रखने को । रेखा जी बहुत आराम तलबी वाली जिंदगी जी रही थी जिससे उनके शरीर का काफी वजन बढ़ रहा था ।

फिर भी कोई ध्यान नहीं है अपने शरीर पर । हफ्ते दस दिन में एकाध बार तो डाक्टर आ ही जाता था घर पर रेखा जी को देखने। इसके बावजूद बाहर का खाना पीना और घर में भी मिठाई कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम सब हर समय मौजूद रहता था।इन सबकी बहुत आदि हो चुकी थी ।

                  सुभाष जी अपने काम में इतना व्यस्त रहते थे कि वे भी अपनी हेल्थ पर ध्यान नहीं देते थे। हालांकि बच्चे कहते थे कि पापा अब काम कम करों आराम करो कितना काम करोगे अब क्या जरूरत है। लेकिन वे सुनते ही नहीं थे ।

ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह हल्का सा सीने में दर्द उठा लेकिन थोड़ी देर में ठीक हो गया । सुभाष जी इसको नजरंदाज कर गए ये कुछ संकेत था जिसकी तरफ उन्होंने ध्यान नहीं दिया।दूसरी बार फिर हुआ कुछ दिनों बाद बच्चों को बताया तो उन्होंने डाक्टर के पास जाने की सलाह दी ।

डाक्टर के पास गए तो डाक्टर बोला आपको साइलेंट हार्ट अटैक का संकेत था आप अपनी पूरी जांच करवाइए और आराम करिए सुनकर घर आ गए  ठीक हो जाने के बाद फिर से डाक्टर के पास गए ही नहीं और एक दिन फिर अटैक आया और उनका देहांत हो गया ।

                        अब रेखा जी की मुसीबत घर पर अकेले कैसे रहें । आदतें इतनी खराब थी खाने पीने कि बहुएं बेटे सब  खाने में बहुत एहतियात बरतते थे ।अब कैसे गुजारा होगा रेखाजी का । फिर भी ले तो बच्चों को ही जाना पड़ेगा ।छै छै महीने के लिए दोनों जगह रहेगी ये तय हुआ।

दोनों बहुएं नौकरी पेशा तो सुबह सुबह ही खाना नास्ता सब बन जाता और रख दिया जाता फिर जब शाम को लौट कर आते तो फिर बनता।अब रेखा जी को तो चटर पटर खाने की आदत पड़ी थी खुद से तो कुछ काम होता नहीं था यहां घर पर तो दिनभर नौकरानी बना कर देती थी ।

अब यहां पांच दिन तो बहू बेटों को समय ही नहीं है ।तो रेखा जी दिनभर घर पर अकेली बैठी रहती थी क्या करें क्या खायें क्या पीएं कैसे करें जो बना रखा है बस वही खाओ ।दूसरी जगह पर वैसे भी कुछ समझ नहीं आता।

                   ऐसे ही एक दिन चाय बनाने गई तो गैस ही बंद करना भूल गई ।बेटा बहू जब आए तो रसोई में गए तो गैस महक रही थी देखा तो गैस खुली थी ।या किसी दिन कुछ गिरा देती । एक दिन पता नहीं क्या लेने गई तो हाथ लग गया और तेल गिर गया

अब साफ कैसे करें नीचे बैठ तो पाती नहीं ।बहू जब गई रसोई में तो फिसलते फिसलते बची । उसने फिर रेखा जी के बेटे श्रेयस से शिकायत करी देखो मम्मी जी रसोई में जाकर कुछ न कुछ गिरा पड़ा देती है कभी कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या होगा

उनसे कहों जाकर कमरे में रहा करो बाहर न निकला करें । रेखा जी की बहू खुद तो कुछ बोलती नहीं थी बेटे को भड़का देती थी ।और वो मम्मी पर बरस पड़ता था कि मम्मी आपको कितनी बार मना किया है कि आपसे कुछ होता नहीं है मत जाया करो किचन में लेकिन आप मानती नहीं हो 

               कमरे की तरफ इशारा करते हुए श्रेयस बोला ये आपका कमरा है , यहां पर ही आपका सब सामान है टीवी लगा है बैठकर देखो बाहर मत आओ । बेटे को इस तरह से चिल्लाते देखकर रेखा जी की आंखें भर आईं ।वो बच्चों का बचपन याद करने लगती है

कैसे लाड़ प्यार से हम बच्चों को पालते हैं और आज बच्चे इस तरह से चिल्ला रहे हैं कमरे की सीमा रेखा बता रहे हैं । अपने घर में हम कितना खुश रहते थे सुभाष जी को याद करके  रेखा जी रो पड़ी।

दोस्तों  ये सच है कि बच्चों को इस तरह से व्यवहार नहीं करना चाहिए लेकिन ऐसी स्थिति तो हर इंसान के साथ आनी है ।दो में से एक को तो अकेले रहना ही है और फिर जब आप अकेले रहने में सक्षम नहीं हो तो बच्चों के पास ही रहना पड़ेगा।

नहीं तो वृद्धाश्रम का रास्ता देखना पड़ेगा। इसलिए आप अपने को इतना लाचार न बना लें कि एक गिलास पानी भी न ले सके । यदि बच्चों पर बोझ बन जाएंगे तो यही होगा। अपने शरीर का थोड़ा ध्यान रखें दिनभर आराम करके शरीर को जंग न लगाएं

।ं नही तो अपना आशियाना छोड़कर जब बच्चों के पास जाएंगे तो यही हाल होगा ।वे आपकी एक सीमा रेखा तय कर देगे कि आपको क्या खाना है क्या पीना है।और यदिआप बिल्कुल ही लाचार हो गए हैं तो ऐसी स्थिति तो आएगी ही आज की ये सच्चाई है और हमको आपको ये सहना ही पड़ेगा  जब तक कि मौत नहीं आ जाती ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

29 जून

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