कमाल के हैं सैयां हमारे – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“अम्मा जी आपने देवर जी को सब कुछ सिखाया पर बड़े बेटे को क्यों कुछ भी नहीं सिखाया।”ये बातें हर दिन सुनने को मिलती।

जी मैं राशि ये बातें अकसर मेरे पति के लिए ही कही जाती,जो शादी के पच्चीस साल से सुनती आ रही हूँ ।

मेरे पति के बड़े भाई साहब घर के किसी भी काम में भाभी की मदद नहीं करते, देवर जी यानि कि मेरे पति अकसर भाभी की मदद कर दिया करते चाहे वो कोई सफ़ाई करनी हो, किचन में मदद करनी हो। यू समझ ले 24*7 उपस्थित रहते।

मेरी जेठानी जब भी माँ जी से बोलती तो वो हमेशा यही कहती “मैंने कुछ नहीं सिखाया ,बड़का घर में ज़्यादा रहता नहीं था और ये छोटा था तो हमेशा मेरे आसपास घुमता रहता ये बस देख देख कर सीख गया ।तबियत ख़राब हो जाती तो किचन में खाना भी बना देता। बडी बहु परिस्थितियाँ अकसर इंसान को ज़िम्मेदार बना देती।छोटका भी बस परिस्थितिवश सब देख देख कर सीख गया है।”

शादी के कुछ वक़्त तो मैं ससुराल में रही फिर राहुल की पोस्टिंग दूसरे शहर में थी तो हम उधर आ गये।ससुराल में तो मुझे ज़्यादा कुछ करना नहीं पड़ता था नयी थी जेठानी जी के साथ मिलकर किचन संभल गया।परअब क्या होगा सोच कर मैं परेशान हो रही थी ।

घर में सबसे लाडली रही तो किसी ने किचन में खाना बनाने ही नहीं दिया। मुसीबत तो अब आई जब राहुल बोले राशि घर व्यवस्थित करके थक गया हूँ ।जल्दी से चावल दाल और आलू का भूजिया बना दो मैं थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ।

घबराते हुए मै किचन में गई ।शादी के बाद पहली बार अपना घर बसा रहे थे तो सामान भी ज़्यादा नहीं था। ज़रूरत के हिसाब से ख़रीदारी कर के राहुल किचन कुछ हद तक व्यवस्थित कर के रखें हुए थे।देखा तो एक बड़ा सा कुकर है उसमें तीन अलग-अलग छोटे कटोरे है।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मैं हूं ना – प्रेम बजाज

अब इसमें कैसे बनाऊँ सोच ही रही थी कि राहुल किचन के दरवाज़े पर आकर खड़े हो गए।

“क्या हुआ राशि मुझे कुछ आवाज़ सुनाई नहीं दी तो देखने आया।तुमने अभी तक कुछ किया भी नहीं?

“राहुल मैंने कभी ऐसे कुकर में खाना नहीं बनाया मैं रुआँसे स्वर में बोली”।

“अरे कोई बात नहीं देखो ये सबसे नीचे के बर्तन में चावल डाल दो और उसके उपर वाले मे दाल…. राहुल बोल रहे और मैं उनको देखे जा रही थी।आज लगा जेठानी जी सही बोलती राहुल को तो सच में सब पता और एक मैं हूँ। मन ही नहीं किया ये सब भी सीखूँ।

खैर उस दिन के बाद ये तो समझ आ गया। खाना बनाने में राहुल उस्ताद तो है।मुझे खाना बनाना मेरे पति ने ही सिखाया।

शादी के बाद बच्चों की परवरिश हो और उनकी देखभाल मुझे राहुल का साथ मिलता रहा। रात में मुझे सुलाकर ख़ुद जाग कर बच्चों को संभालना ।ये सब पति के बस की बात नहीं।

मेरे मायके के लोग जब मेरे घर आते थे तो राहुल बेझिझक सबको चाय भी बना कर पिला देते।कभी कभी तो किचन में मेरी मदद करते देख मेरी भाभियाँ बोल देती जीजा जी इन लोगों को भी कुछ सिखा दिजीए। हमें तो ये लोग एक कप चाय बना कर भी नहीं देते।

राहुल हँस कर रह जाते।पच्चीस साल के साथ में बहुत कुछ बदल जाता पर राहुल का आज भी अपने घर वालों के कुछ नहीं बदला ।उनके लिए कोई भी काम करना छोटा नहीं लगता पर अपने घर में अब नहीं करते। जेठानी जी के इस बार बार की शिकायत पर एक बात अच्छी हो गई कि जेठ जी उनको भी कभी कभी चाय बना कर देने लगे।

अभी जब बीमार हो जाऊँ राहुल खाना बना देते।वहीं जब जेठानी जी बीमार हो बेचारी को ख़ुद जैसे तैसे काम करना पड़ता।मेरे भाई भी अपनी पत्नियों की मदद नहीं करते। इस कोरोना काल में जब सब अपना काम ख़ुद कर रहे थे। मेरे पास दो हाथ और थे जो मेरी मदद को तैयार रहते थे।

दिल से बस यही निकलता सैंया जी तुस्सी ग्रेट हो☺️।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“स्थापना” – ऋतु अग्रवाल

आज की भागदौड़ की ज़िन्दगी में जब पति पत्नी दोनों काम करते हैं तो घर के काम में भी दोनों को एक दूसरे का साथ देना चाहिए। जब घर सबका हैं तो काम भी सबको करना चाहिए। मेरा मानना है कि हमें अपने बच्चों को भी थोड़ा बहुत घर का काम सिखाया जाना चाहिए। क्या पता कब कैसी परिस्थिति आ जाये । सब उसके लिए तैयार रहें ।

लेखिका : रश्मि प्रकाश

error: Content is Copyright protected !!