मायके की दहलीज पर कदम रखते हीं बचपन अठखेलियां करने लगता है.. आस पड़ोस की बुआ चाची स्कूल कॉलेज की सखियां शिक्षक शिक्षिकाओं के चेहरे आंखों के सामने घूमने लगते हैं..
सब की खैरियत पूछने के क्रम में मैने लाली चाची का जिक्र किया.. मां उदास होकर बोली लाली नही रही… ओह..
मुहल्ले के बेहद प्रभावशाली व्यक्ति राजनीति में सक्रिय मणि भूषण प्रसाद किसी न किसी कारणवश हमेशा चर्चा में रहते थे ..
उनकी पत्नी तीसरी बार मां बनने वाली थी.. घर में दाई नौकर के रहने के बावजूद बच्चों के साथ रहने के लिए अपनी साली लाली को अपने घर ले आए.. ससुराल में भगवान ने खुबसूरती तो लड़कियों में बड़ी उदारता से दी थी पर धन देने में कृपणता कर दिए थे.. शायद इसी दुर्भाग्य वश चालीस साल के मणि भूषण प्रसाद अठारह साल की शीला के पति बने थे..
सात साल पहले यही लाली जयमाल स्टेज पर अपनी बहन के बगल खड़ी छोटी बच्ची हीं तो थी.. नौ साल की लाली की खुशी का ठिकाना नहीं था बहन इतने धन धान्य से भरे पूरे घर में जा रही थी.. लड़की वालों के तरफ की सारी व्यवस्था मणि भूषण प्रसाद ने हीं की थी.. भले हीं उम्र का फासला ज्यादा था पर बेटी अभाव से निकलकर सुख से रहेगी ये सोचकर लड़की वाले निहाल थे..
लाली को भी गोटे वाला गुलाबी लहंगा चोली पहनने का सौभाग्य मिला था जो अक्सर वो सपने में हीं देखा करती थी..
पूरा परिवार दामाद के अहसानों तले दबा हुआ था..
नौ साल की लाली अब सोलह साल की हो चुकी थी…
सुच्चिकन गालों पर गुलाबी रंगत उसे और खूबसूरत बना रही थी.. मृगनयनी सी आंखें सुतवा नाक काले घने घुंगराले रेशमी बाल अंग अंग सांचे में ढला हुआ … … जो देखता नजरें नही हटा पाता…
बहन और उसके बच्चों की देखरेख करने के लिए आई लाली अक्सर अपने जीजा के साथ उनके जिप में आते जाते दिख जाती..
मुहल्ले में तरह तरह की चर्चा होने लगी.. मुहल्ले के मर्द मणि भूषण प्रसाद के भाग्य से मन हीं मन ईर्ष्या करते थे..
नियत समय पर मणि भूषण प्रसाद पिता बने.. शानदार पार्टी हुई.. बाई जी का नाच हुआ..पर सबकी नजरें लाली पर टिकी थी.. काली सितारों वाली साड़ी में लाली बादलों से निकले हुए चांद की तरह लग रही थी..
लाली के चेहरे की आभा द्विगुणित हो गई थी…
इधर कुछ दिनों से लाली दिखाई नही दे रही थी..
गौरैया की तरह चारो तरफ फुदकने वाली लाली अब बिल्कुल भी दिखाई नही दे रही थी..
पूरे मुहल्ले की औरतें तो औरतें पुरुष भी बेचैन थे लाली के भूमिगत होने की वजह जानने के लिए.. लाली के कपड़े सूखते दिख जाते छत पर.. पर लाली ..
मणि भूषण प्रसाद के घर उनकी सध: प्रसुता पत्नी को तेल लगाने वाली बहुत पुरानी बूढ़ी ठकुराइन से बड़ी मुश्किल से मुहल्ले की एक औरत ने पता लगाया कि लाली पेट से है..
सगी बहनें अब सौतन बन चुकी थी.. कहते हैं मिट्टी की बनी सौत भी औरत बर्दास्त नही कर सकती ये तो फिर… लाली और मणिभूषण प्रसाद का रिश्ता अब समाज के नजरों में #कलंक #था जो लाली के उपर लग चुका था…. कलंकिनी औरत हीं होती है चाहे कितनी भी निर्दोष क्यों न हो…
बड़ी मालकिन ने लाली पर बहुत पाबंदी लगा रखी है.. कच्चे केले के दूध में चुना डालकर मैने हीं लाली को खिलाया था बड़ी मालकिन के कहने पर.. पर कुछ नही हुआ.. बच्चा ज्यादा दिन का हो गया है..
अपनी सगी बहन और मणि भूषण प्रसाद के बीच पिसती लाली ने बेटे को जनम दिया.. पर इस बार बड़ी मालकिन के आदेश से कोई उत्सव तो दूर मुहल्ले में बताशा भी नही बंटा..
बड़ी मालकिन ने घर में बर्तन झाड़ू पोंछा तथा कपड़े धोने वाली को हटा कर लाली को ये जिम्मेदारी दे दी थी.. घर में कैदी की जिंदगी जी रही थी लाली.. जिसे ना बोलने की आजादी थी ना जीने की.. घूंघट से चेहरा ढंक कर रखने का आदेश था बड़ी मालकिन का ..
नारकीय जिंदगी जी रही लाली तीन बच्चों की मां बन चुकी थी.. मणि भूषण प्रसाद अपनी हवस की आग जब भी मौका मिलता लाली के पास जाकर बुझा लेते.. पता चलने पर उसकी यातना और बढ़ जाती..
मासूम लाली अपने किस गुनाह की ऐसी भयावह सजा काट रही थी उसे भी नही पता था.. #कलंक #का टीका उसके माथे पर लग चुका था भले हीं लाली निर्दोष थी..
जहां बड़ी बहन के बच्चे राजकुमार और राजकुमारियों से पल रहे थे वहीं लाली के बच्चे अपने जनक के सामने नाजायज औलादों की तरह पल रहे थे..
पति और पत्नी के उम्र का ज्यादा फासला वक्त आने पर नए अंदाज में सामने आता है.. उम्र ढलने के साथ पति अपनी कम उम्र की पत्नी के हुक्म का गुलाम हो जाता है.. मणि भूषण प्रसाद भी इससे अछूते नहीं थे..
और धीरे धीरे लाली पर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगे.. कुछ महीने रांची के पागलखाने में भर्ती रही .
अपने साथ हुए अमानवीय यातना को सहती लाली असमय दुनिया को अलविदा कह दिया..
अपने अंदर अनकहे दर्द गम को छुपाए बिना किसी से फरियाद किए लाली किसी और के अपराध की सजा भुगतती हुई इस दुनिया से चली गई.. अपने ऊपर लगे #कलंक #से भी मुक्त हो चुकी थी..
पूरे घर में बड़की मालकिन का राज है मणि भूषण प्रसाद भी उसी के इशारों पर चलते हैं..
एक साल से लकवा ग्रस्त हो कर बिछावन पर पड़े पड़े मृत्यु को बुलाते रहते हैं..
मुहल्ले पास पड़ोस के शादी ब्याह पूजा पाठ में अक्सर बड़की मालकिन हीं शामिल होती थी . पर अब वो भी कहीं नहीं निकलती..
पूरा चेहरा सफेद दाग से भर गया है.. कितना इलाज करवाया पर दाग बढ़ता हीं जा रहा है..
मणि भूषण प्रसाद के बड़े बेटे ने आत्महत्या कर ली थी डिप्रेशन में आकर..
मणिभूषण प्रसाद का धन दौलत सब कुछ वैसा का वैसा है पर बिछावन पर पड़े पड़े अपने घिनौने कृत्य के परिणाम को फलता फूलता देख रहे हैं..
गांव की भोली भाली सोलह साल की मासूम किशोरी के साथ जो किया उसको भगवान इसी जनम में लौटा रहे हैं.. कलयुग है इस जनम का किया इसी जनम में भुगत कर दुनिया से जाना होता है…
🙏❤️✍️
Veena singh..
nice story
Absolutely