कलंक – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

वह बहुत तेजी से भागी जा रही थी ।और मै उसके पीछे-पीछे थी।आखिर मैंने उसे पकड़ लिया ” कान्ता तुम?” उसने मुझे पहचान लिया था।और मुझे कसकर पकड़ लिया ।” हाँ दीदी ” ।मै नदी किनारे टहल रही थी ।नदी किनारे टहलना मेरे लिए खास है ।मुझे बहुत अच्छा लगता है नदी, पहाड़ और झरना ।लेकिन नदी मेरी कमजोरी रही है ।

मै रोज शाम को नदी के किनारे ही टहलने जाती थी।कलकल बहती धारा को मै अपलक देखते रहती और मुझे असीम शांति मिलती ।मुझे कान्ता का यूँ भागना ठीक नहीं लगा था।शायद उसका इरादा कुछ और था।जिसमें मेरे चलते उसे सफलता नहीं मिली ।खैर, बहुत दिनों बाद मुझे वह मिली थी ।वह मेरी बचपन की बहुत अच्छी और प्रिय सहेली थी।

मै उसे अपने घर ले आई।” कहाँ थी तुम इतने दिनों कान्ता?” मैंने पूछा तो वह रोने लगी ।कभी हम एक साथ ही खेलते कूदते बड़ी होने लगे थे।एक साथ स्कूल भी जाते।वह पड़ोस में ही रहती थी,और हमारे और उसके परिवार में बहुत अपनापन था ।अतः हम पक्की सहेलियां बन गई ।फिर अचानक ही एक दिन गायब हो गई ।

माँ ने बताया कि उनकी बदली दूसरे शहर में हो गई है और इसलिए कल रात को ही सब चले गये ।कहाँ गये,मुझे नहीं मालूम ।और मैंने अधिक जानने की जिज्ञासा भी नहीं रखी।समय के साथ मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और फिर जैसा कि होता है ।मेरी शादी भी हो गई ।मै अपने पति के साथ रहने लगी थी ।मेरे पति पूना में नौकरी करते थे

तो मेरा रहना भी वहीं हो गया ।फिर कभी कान्ता के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली ।और फिर मै दो बेटे की माँ भी बन गई थी ।तो मेरा जीवन अपने परिवार में सिमट गया था ।मेरे पिता जीभी रिटायर हो गये नौकरी से, और अपने घर पटना आ गए ।माँ की तबियत कुछ खराब होने के कारण मै उनकी देखभाल के लिए आई हुई थी

एक महीने से ।मै अपने माता पिता की इकलौती संतान थी अतः देखना मेरी जिम्मेदारी बनती थी ।और इसी दौरान आज अचानक कान्ता से भेंट हो गई ।कान्ता ने रोना शुरू कर दिया था।मैंने उसे चुप कराया और पानी लाकर दिया ” कान्ता तुम रो कयों रही हो”? और अचानक अकेली यहाँ कैसे?

” उसने जो बताया वह चौंकने वाली बात थी ।उसने कहना शुरू किया–” दीदी, आप तो जानती ही हो कि हमलोग कभी धनबाद में एक साथ रहे हैं ।उसी शहर ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी।एक दिन गांव से मेरे दूर के चाचा कुछ काम से आये थे।दिन भर खूब गपशप हुआ ।गांव के किस्से हुए।खाना पीना हुआ

और फिर वह भयानक रात आई।मेरे माता पिता सोने चले गये ।मै भी अपने कमरे में सो गयी ।रात के एक बज रहे थे तभी मुझे लगा मेरे साथ कोई और है बिस्तर पर ।मै चिल्लाने वाली थी कि उसने मेरा मुँह अपने हाथ से बन्द कर दिया और फिर वह सब हुआ जो नहीं होना चाहिये था ।

मेरा चाचा दरिन्दों जैसा व्यवहार कर रहा था।उसने मुझे धमकी दी ” किसी से नहीं कहना ” वर्ना जान ले लूँगा सबकी” फिर वह मेरे माथे कलंक का टीका लगा कर दूसरे दिन चला गया ।मैं कभी अपने माता पिता को यह बात नहीं बता सकी।संकोच और डर से ।एक महीने के बाद मेरी तबियत खराब होने लगी ।

मुझे उल्टियाँ होने लगी तो डाक्टर को दिखाया गया ।डाक्टर साहब ने कुछ इशारा किया पिता जी को।माँ पिता जी दोनों उसदिन से गम्भीर रहने लगे।मुझसे कम बात करते ।मेरी पढ़ाई छुड़ा दी गई और फिर अचानक ही दूसरे शहर चले गये ।मुझे कुछ कुछ आभास हुआ की सबकुछ ठीक नहीं है ।

गलत में फंस गयी हूँ मैं ।फिर जल्दी ही मेरी शादी रचा दी गई थी ।ससुराल गई तो सबकुछ ठीक चल रहा था ।पति सेना में थे।पन्द्रह दिन के बाद नौकरी पर चले गये ।मै भी अपनी दिनचर्या में लग गई ।इसी तरह दिन अच्छा ही बीत रहा था ।ससुराल में सास ससुर और जेठ जी थे।

जेठानी जी एक साल पहले ही गुजर गयी थी ।सासूमा उनके लिए भी लड़की देख रही थी पर अभी कहीँ बात नहीं बनी थी।मेरी जिंदगी में फिर एक अंधेरी रात आ गई ।उसदिन गर्मी बहुत ज्यादा थी।रात के सबके खाने के बाद मै छत पर बने कमरे में सोने चली गई ।

अचानक आधी रात को मेरे जेठ जी मेरे बिस्तर पर थे।मैंने चिल्लाना चाहा तो उनहोंने मेरा मुँह अपने हाथ से बन्द कर दिया और फिर धमकी शुरू हुआ ” किसी से नहीं कहना वर्ना तुम को ही सब गलत कहेंगे ” मै इस घर के लिए सबसे अच्छा हूँ ।मै फिर भी सासूमा से कहने की कोशिश करती तो सामने जेठ जी आ जाते।

और इशारे से मना करते ।किससे अपनी बात कहती ,कोई नहीं था सुनने वाला ।मेरी शादी के छःमहीने के बाद ही एक एक्सीडेंट में माता पिता चले गये ।कलंक का दूसरा टीका लगा ।फिर गांव से ममेरा देवर आया पढ़ाई करने ।बहुत अच्छा, बहुत मिलनसार ।हरदम मुझे अपनी अच्छी अच्छी कहानी सुनाता।

वह मेरी हर आज्ञा का पालन करता ।मै भी खुश थी चलो एक अच्छा दोस्त मिला।लेकिन कुछ दिनों से मैं देख रही थी कि उसकी नजरों में कुछ और है मेरे लिए ।वह चाहता कि मै उसके साथ घूमने फिरने जाउँ, उसके साथ खाना खाऊँ,,उसी के साथ हरदम बनी रहूँ ।वह कहता भाई तो हमेशा बाहर रहते हैं

फिर आप के लिए मै हूँ ना? मुझे ही अपना समझ लीजिए उनके जगह पर ।मैंने उस दिन कसके एक थप्पड़ मारा था उसे ” आगे से ऐसी गलती नहीं करना ” खबर दार जो मेरे पति के लिए कुछ कहा तो” उनका स्थान कोई नहीं ले सकता ।उसके बाद मेरा देवर सासू माँ से मेरी शिकायत करने लगा ।

” भाभी मेरे साथ गलत चाहती है ” सासूमा खूब गाली देने लगी मुझे ।बात मेरे पति तक पहुँच गयी ।उनहोंने भी मुझे ही गलत समझा।माँ बेटा मिलकर मुझे पीटते रहे ।पति खूब शराब पीने लगे और नशे में हैवान बन जाते ।उसके बाद खूब मारते ” तुमने मेरे भाई को बर्बाद कर दिया है, तुम बहुत गिरी हुई हो”

तुम इतनी नीच औरत हो कि अपने जेठ तक को नहीं छोड़ा ” जेठ जी ने भी अपने को बचा लिया और मुझे ही दोषी ठहरा दिया कि एक रात मेरे कमरे में आ गई थी यह” अब बताओ दीदी, कोई भी पति कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी बीवी उसके बड़े भैया के साथ जाये? मै इस दलदल से निकालना चाहती थी।

यहां मेरा कोई अपना नहीं था ।सभी मुझ पर शक करते ।अब मेरे पास एक ही रास्ता था अपनी जान देने का ।फिर भी सोचा एक मौका और देती हूँ अपनी जिंदगी को।मै घर से भाग कर अपनी मौसी के घर पहुँची ।मौसी ने हाल चाल पूछा।और बहुत प्यार से रखा ।लेकिन उनको भी शक हुआ कि मै अकेले क्यों आई,

दामाद जी  को साथ होना चाहिये था ।उनहोंने मेरे ससुराल में खबर कर दिया ।फिर मेरे पति और सासूमा आ गए मुझे लेने ।लेकिन सासूमा ने मेरी चुगली कर दी की मै बहुत गिरी हुई औरत हूँ जिसने अपने जेठ और देवर को भी नहीं छोड़ा ।फिर मौसी ने भी कलंक का टीका लगा दिया और घर से चले जाने को कहा ।

मुझे लेकर मेरे पति, सासूमा उसी दिन चल दिये ।रात की ट्रेन थी।दोनों गहरी नींद में सो गये थे ।मेरी आंखों में नींद नहीं थी ।मैंने फैसला कर लिया अब इनके साथ नहीं रहना है ।एक  स्टेशन पर गाड़ी रुकी ।अंधेरे में बिना सोचे समझे मै उतर गई ।दिन भर इधर-उधर भटकती रही ” कहाँ जाएँ? कौन मुझ पर विश्वास करेगा?

इन माँ बेटे को पता चला तो मुझे अब जिन्दा नहीं छोड़ेगे ।यही सोचते सोचते मै यहाँ तक आ गयी ।मुझे मर जाने दो दीदी, मै इस नरक से छुटकारा पाने के मर जाना चाहती हूँ ” ” तुम अब कहीँ नहीं जाओगी कान्ता ” यहाँ रहोगी मेरे पास, हमेशा के लिए ” मै कान्ता को अपने घर ले आई।मै अपने मायके में थी ।

अब कुछ दिन के बाद लौटना है ।फिर कान्ता  का क्या होगा? यही सवाल मथता ।अम्मा को बताया तो उनहोंने हल सुझाया ।अब यह मेरी बेटी है ।मेरे पास रहेगी ।मुझे भी सहारा चाहिए और इसे भी ।दोनों एक दूसरे के लिए जियेंगे।मैं आश्वस्त हो गई ।”अम्मा बेटी बना लिया इसे तो इसका पूरा इन्तजाम कर देना

” फिर मैं चूंकि माँ की इकलौती संतान थी तो अपने हिस्से का सब कुछ कान्ता के नाम लिख दिया ताकि उसे आने वाले समय में दिक्कत न हो ।मै सोचने लगी, बाहर वाले से तो बचा जा सकता है लेकिन अपने ही घर में छिपे भेड़िये से कैसे बचें? गलती कोई और करे ,कलंक का ठीकरा सिर्फ औरत के माथे पर क्यों?

उस दिन कान्ता नदी में कूद कर अपनी जान देने जा रही थी  तभी ईश्वर ने मुझे मिला दिया उससे ।एक महीना और सरक गया ।मै अपनी गृहस्थी में लौट आई हूँ ।कान्ता मेरे माता-पिता के साथ सुरक्षित है और एक बेटी की तरह देखभाल कर रही है ।एक औरत के लिए अच्छी शिक्षा बहुत जरूरी है ताकि जरूरत पड़े तो

अपने पैरों पर खड़ा हो सके ।कान्ता के चाचा गलत थे।इसमें उसका क्या दोष था? वे अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाने के बाद शादी करते ।अशिक्षित होने के कारण उसे इतना दुख भोगना पड़ा ।प्रिय पाठकों कहानी में कुछ गलत लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ ।कान्ता अब इस दुनिया में नहीं है ।यह मेरी सहेली की सच्ची कहानी है ।जो चाचा के व्यवहार से टूट गई थी ।बस।

स्वरचित ।मौलिक ।

उमा वर्मा ।

दिल्ली ।

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