कलंक – अनिल कुमार : Moral Stories in Hindi

” बापु वह कौन हैं..?”

” वह तो माँ हैं बिटीया, देवी माँ।”

” किसकी माँ बापु.?”

“हम सबकी माँ मेरी बच्ची।”

“क्या वह खाना बनाती हैं..?”

अपनी छह साल की बेटी, चकोर की बातें सुनकर हरिया मुस्कुराया। 

“नहीं बेटा, यह माँ खाना तो नहीं बनाती पर खाना बनाने के लिए जो अनाज आवश्यक होता हैं,उसका निर्माण यही माँ करती हैं।

“तो इनसे कहीए ना, हमे भी थोडासा अनाज दिजीए। हमे भी पेट भरकर खाना खा ना हैं।”

अपने बेटी की अबोध बातें सुनके हरिया की आँखोंमे आँसु आ गए। हरिया एक गरीब किसान था पर इमानी था। में भला, मेरा काम भला इस तत्व पर चलने वाले हरिया के उपर कम उम्र में ही घर की जिम्मेदारियाँ आ गई थी। हरिया के पिताजी एक अपघात का शिकार हो गये और मानो उनके परिवार पे मुसीबतोंका पहाड टुट पडा।

14 वर्षीय हरिया पे घर का भार आ गया। पती के निधन के बाद सदमे में गुमसुम बैठी अम्मा, दो छोटी बहने, चार बिघा जमीन और एक लाख का साहूकार का कर्जा हरिया को विरासत में मिला। पर हरिया घबराया नहीं। बहनोंको अच्छी शिक्षा देकर हरिया ने उन्हें अपने पैरोंपे खडा किया। माँ का भी इलाज करवाया पर कुछ लाभ ना हुआ।

साहूकार का कर्जा भी बढ रहा था। बहनोंकी शादी भी अच्छे घर और सुयोग्य वर देखके हरियाने करवा दीं। पर इतना सब करते करते हरिया की जमीन बस एक बिघा रह गई। कुछ समय पश्चात माँ ने भी हरिया का साथ छोड दिया और अपनी इहलोक की यात्रा समाप्त कर ली। हरिया अकेला रह गया। हरिया के मामा को अपने भाँजे का अकेलापन देखा न गया और उन्होंने अपनी प्यारी बेटी विमला की शादी हरिया से करवा दी। कुछ समय बाद हरिया को बेटी हुई। नाम रखा चकोर।हरिया की गृहस्थी चलने लगी।

समय का चक्र चलता रहा। कभी अकाल, कभी सुखा तो कभी अत्याधिक बारीश के कारण हरिया को खेत का उत्पन्न कम ही होता था। वैसे एक बिघा खेत में फसल ही कितनी होती होगी..? उपर से साहूकार के कर्जे का ब्याज। बेचारा हरिया कभी कभी दुसरो के यहा मजदूरी भी करने जाता था। विमला भी अपने पती के साथ मजदूरी करती थी।

पर गरिबी हमेशा दोनो का हाथ थामेही रहती। जितना कमाते उतना पाई पाई जोडके रखते और माह के अंत में साहूकार को दे देते।खाने का सामान, अनाज लाने के लिए भी पैसा ना बचता। कभी कभी तो दोनो पानी पीके खाली पेट सो जाते। चकोर दूध माँगती पर बेचारी विमला कहा से देती.? जरासे आटे को पाणी में मिलाके अपनी बेटी को पिला देती। बेचारी चकोर, दुध समझके वह आटे का घोल पी जाती और विमला की सिसकियाँ दबके ही रह जाती।

“बापु, कहा खो गये.? चकोर हरिया से  बिलगकर बोली।

“बिटीया, माँ तो बडी दयालु हैं। हम जो भी माँ से माँगे, माँ वह हमे दे देती हैं। बस् हमारी श्रध्दा अटुट होनी चाहीए। माँ पे विश्वास होना चाहीए।” हरिया ने अपनी बेटी को बडे प्यार निहारते हुए कहा।

“क्या यह सच हैं बापु.? हम माँ से जो भी कुछ माँगे वह हमे दे देती हैं..?” चकोर की नजर में अब चमक दिख रही थी।

“क्यु न देगी..? माँ तो अपने बच्चे की हर इच्छा पुरी करती हैं। बस श्रद्धा सच्ची होनी चाहीए।”

चकोर मुस्कुराई।

हरिया ने अपनी बेटी को बडे प्यार से गोद में उठाया और दोनो बाप बेटी खुशी खुशी अपने घर चल दिए।

विमला दोनोंका इंतजार ही कर रही थी। हरिया आते ही विमला ने  एक रोटी का कोर और प्याज थाली में परोसकर हरिया के सामने रख दिया।

“विमला, तुम न खाओगी.?”

“चकुरिया के बापु, आज मुझे बहुत भूख लगी थी तो आप आने से पहले ही मैंने खाना खा लिया।”अपनी नजरे हरिया से छुपाते हुए विमला बोली।

हरिया चुप हो गया। उसे सब पता था। अन्न को नमस्कार करके वह थाली से उठ गया।

“आज सिर बहुत ही दर्द कर रहा हैं। भूख ना हैं।”

“कहो तो लेप लगा दु..? आराम मिलेगा.।”

“ना, जरासा सो लेता हूँ। ठीक हो जायेगा।”

हरिया चारपाई पे जाके सो गया।

“चकुरिया, चल थोडा सा खाले.” अपनी बेटी को दुलारते विमला ने रोटी का एक तुकडा तोडा।

“ना माँ, आज तो में बस दूध ही पियुँगी।”

विमला की आँखे भर आई। दुध लाये भी तो कहाँसे.? 

विमला उठी और जरासा आटा पाणी में मिलाके चकोर को पिलाने लगी।

“छि माँ, यह कितना कडवा हैं।”

इमली कह रही थी की दूध बहुत ही मिठा होता हैं पर अपने यहा का दुध तो हिमेशा ही कडवा लगता हैं। मुझे नहीं पिना।”

विमला को गुस्सा आ गया। फुल जैसी बच्ची के गाल पे विमला ने दो जोरदार चाटे जड दिए। बेचारी चकोर, जोर जोरसे रोने लगी।

“नहीं पिना तो मत पी, भुखी ही सो जा। जितनी ढील दि, महाराणी उतनी ही सर पर चढे बैठ गई। इक दिन ना खायेगी तो सारी अकल ठिकाणे आ जायेगी।” और एक तमाचा जडाते हुए विमला ने कहा।

सिसकियाँ लेती हुई चकोर को अपनी माँ पे बहुत गुस्सा आया। मन ही मन वह सोचने लगी, “अब से में माँ से बात ही ना करुंगी। माँ क्या इतनी कठोर होती हैं.? बापु तो कहते हैं की देवी माँ बहुत ही दयालु होती हैं और हम जो भी माँगे वह हमे दे देती हैं। ठीक हैं मैं कल ही माँ से मिठा दूध माँगुंगी। वह मेरी इच्छा अवश्य पुरी करेंगी।”

मन में कुछ ठानकर छोटी चकोर सो गई।

सुबह होते ही चकोर बिना किसीं को कुछ बताये देवी माँ के मंदिर चली गई। माँ को वंदन करके मन में दूध की लालसा लिए वह छोटी बच्ची बडी श्रद्धा से मन ही मन पुकारती रही। सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम। पर न माँ आई और न ही दूध। शायद माँ सच में पत्थर हो गई थी जो इतनी छोटी बच्ची को देखकर पसीज ना सकी।

अब चकोर का सब्र भी जबाब दे गया। वह बच्ची उठी और सिधा माँ के सामने खडी हुई।

“बापु तो कहते हैं की तुम सबकी माँ हो, सबको जो चाहे वह दे देती हो, बडी ममता हैं तुममे। अगर तुम मेरी माँ होती तो मेरे बुलाने पे जरूर आती और मुझे जो चाहीए दे जाती। तुम तो झुठी हो। में कल ही स्कूल से आते वक्त मंदिर आऊंगी और तुम्हारे माथे पे पेन्सिल से ‘झुठी’ लिख दुँगी। ताकी आगे से कोई भी अपना समय व्यर्थ ना करके, तुमपे विश्वास ना करे।”

आगबबुला हुई चकोर अपने घर आ गई।

“बिटीया कहाँ थी सुबह से.? तुम्हारी माँ कितनी परेशान थी, मालुम हैं.?” अपनी बिटीया पे चिढते हुए हरिया बोला।

“बापु में तो इमली के यहा खेल रही थी। चंदा मौसी ने मुझे वही खाना खानेको दिया।” चकोर ने झूठ कह दिया। 

सुबह हुई। चकोर स्कूल चली गई। दिनभर पढाई की और स्कूल छुटने के बाद मंदिर में आ गई। अपनी स्कूल बॅग से पेन्सिल निकालने लगी। पर बहुत ढुंढने पर भी चकोर को पेन्सिल ना मिली।

“धत् , लगता हैं में पेन्सिल घर ही भुल आई। अभी घर जाती हूँ और पेन्सिल लेके आती हूँ।”

चकोर घर की ओर भागी। आँगन  में आते ही बडी प्यारी गंध चकोर को महसुस हुई।

“वाह……गुजिया…”

चकोर ने गंध पहचान ली। अपनी पसंद की मिठाई की खुशबू उसे ललचा रही थी। वह भागकर रसोईघर की तरफ भागी। वहाँ विमला गुजिया तल रही थी। चकोर के देखके विमला मुस्कुराई।

“आ गई चकुरिया..जा हाथ मुंह धोले। देख तेरे पसंद की गुजिया तल रही हूँ।”

चकोर भागी। हाथ मुंह धोकर अपने अम्मा के सामने बैठ गई और गरम गरम गुजिया का आस्वाद लेने लगी। जीस काम के लिए आई थी वह काम तो भुल गई।

उसी क्षण हरिया भी मजदुरी करके लौटा। अपनी पत्नी को तरह तरह के व्यंजन बनाते देख वह अचंबित रह गया। जिस घर में रोज खाने के लाले पडते थे उस घर में आज मिठाई बनता देख उसे हैराणी हुई।

“विमला, यह सब क्या हैं.? इतने मेवा मिठाई..? में क्या कोई सपना देख रहा हुं..?”

“ना चकुरिया के बापु, यह तो सब माँ की कृपा हैं। पास वाले गांव के ठाकुर बहुत ही बिमार थे। जगह जगह के नामी डॉक्टरोंने इलाज करवाया पर कुछ असर ना हुआ।कहते है जब दवा काम न आए तो दुआ काम आती हैं। ठाकुराईन ने मन्नत माँगी की अगर ठाकुरजी ठीक हुए तो वह इकसौ इक कन्याओंको गोदान करेंगे।

भगवान की कृपा से ठाकुर ठीक हो गए और किए हुये संकल्प को याद रखकर ठकुराईन ने आज गोदान करवाया।लगभग इकसौ इक कन्या चाहीए थी। गाव में पर्याप्त बच्चीया न थी। इसलीये वह हमारे गाव आई और देखो तो उन्होंने दान में क्या क्या दिया..? तरह तरह की मिठाई, अनाज, कुछ नगद और एक दुधारू गाय।आज से हमारे चकुरिया को ताजा दूध पीनेको मिलेगा।” अपने आँसु पोछते हुए विमला ने अपने पती से कहा। 

“यह तो बडी अच्छी बात हुई विमला। देवी माँ ठाकुर और ठकुराईन को सदा सुखी रखे।” हरिया ने भगवान से प्रार्थना की।

“जानते हो, ठकुराईन कह रही थी की उनका एक बेटा भी हैं। उनका बेटा हमारे चकुरिया की कक्षा में ही पढता हैं।”

“मेरी कक्षा में..?? क्या नाम हैं उसका.?”

“कार्तिकेय”

“कार्तिकेय..?? इस नाम का कोई भी लडका हमारे कक्षा में नहीं।”

” तो क्या ठकुराईन झूठ बोल रही थी.? तुम्हे मटरगश्ती करनेसे फुरसत मिले तो कक्षा में ध्यान होगा ना.।” विमला चकोर को डाँटते हुए बोली।

सब साथ में खाना खाने बैठ गये। विमलाने सबको खाना परोसा। सब ने खाना शुरु ही किया था की विमला को कुछ याद आया।

“लो, में तो भुल ही गई। चकुरिया, ठकुराईन ने मुझसे कहा की अपनी बेटी से कहो की ‘माँ की ममता हमेशा सच्ची होती हैं। वह कभी झुठी नहीं होती। अगर सब आसानी से मिल जाता तो माँ के बच्चे माँ पे भरोसा रखते क्या.? माँ तो सच में दयालु होती हैं। वह झुठी नहीं होती। अब भी तुम्हें पेन्सिल की जरूरत पडेगी क्या.?” 

पेन्सिल का नाम सुनते ही चकोर को सब याद आ गया। वह अबोध बच्ची खाने का निवाला थाली में रखकर मंदिर की और दौड पडी। माँ बाप की आवाज को अनदेखा कर वह तेजीसे मंदिर की और भागने लगी। न जाने कितनी बार गिरी, कितने कंकड, काँटे पैर में चुभे। पर वह रुकी नहीं।

मंदिर पहुंच कर वह अबोध बच्ची बस माँ की मुर्ती को गले लगाते सिसकियाँ भरने लगी। माँ की मूर्ती तेज से चमक रही थी क्युंकी माँ का मिथ्या कलंक अब मिट गया था..।

अनिल कुमार

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