Moral stories in hindi :
अरे मोरी मैया ..एक तो बिटिया ऊपर से निच्चट करिया (एक तो लड़की ऊपर से एकदम काली ) केकरे घरे जइहें ( किसके घर जाएगी)
नवजात शिशु को देखते ही दमयंती के मुंह से एकाएक ऐसे वाक्य निकल गए…! बच्चे के बगल में लेटी माँ समीक्षा ने लंबी सांस लेकर आंखें बंद कर ली और हाथ नवजात बच्चे के सीने में प्यार से फेरने लगी…।
उसे लग रहा था , वो कह दे… किसी के घर नहीं जाएगी मम्मी , स्वयं के घर रहेगी वो भी बड़े फक्र से ….पर समीक्षा ने इस समय चुप रहना ही उचित समझा…।
समीक्षा जानती थी …अभी मामला गर्म है , साल भर पहले ही तो समर से प्रेम विवाह किया था …समर के घर वाले इसके सख्त खिलाफ थे पर समर ने शादी के वादे को प्रमुखता दी थी ….शादी करके वो ससुराल तो आ गई थी पर बिल्कुल मेहमान की तरह ….दमयंती कभी भी समीक्षा को बहू का दर्जा देने को तैयार नहीं थी…. हालांकि ऐसा नहीं था कि वो प्रेम विवाह के एकदम ही खिलाफ थी….! खिलाफ थी तो वो समीक्षा से शादी के लिए…. इसका मूल कारण समीक्षा के रंग को लेकर था…।
गाढ़े सांवले रंग की समीक्षा , को देखकर एक बार तो दमयंती ने समीर से यहां तक कह दिया था कि …कहीं तू उस पर तरस खा कर तो शादी नहीं कर रहा है ना ….जवाब में समीर ने तीखी नजरों से माँ को ऐसे घुरा था मानो कह रहा हो नहीं माँ… जब हम किसी को अपनाते हैं तो उसकी कमियां खूबियां सब के साथ अपनाते हैं माँ …और फिर रंग , उसमें उसका क्या दोष.. ?
पढ़ी-लिखी समझदार समीक्षा शादी के बाद अपनी हर खुशी , अपनी हर ख्वाहिश पर ताला लगाकर सिर्फ परिवार में अपनी उपस्थिति को खुशनुमा बनाने में लगी रहती थी…।
बहरहाल , अस्पताल से डिस्चार्ज होकर समीक्षा घर लौटी… छठी का कार्यक्रम चल रहा था.. बुआ समीरा को काजल लगाने का रिवाज पूर्ण करना था ….पूरी तैयारी हो चुकी थी , समीक्षा ने सब कुछ भूल कर ननंद को नेग में देने के लिए अंगूठी भी बनवा ली थी… बुआ ने गोद में लेकर भतीजी को काजल लगाई , दमयंती जी ने बेटी से कहा …कैसे लगाई हो काजल …पता भी नहीं चल रहा है… काजल लगाने से नजर नहीं लगती है.. इस पर समीरा ने कहा ….लगाई तो हूं अब दिख नहीं रहा तो इसमें मेरी क्या गलती ….? समीरा के ऐसा कहते ही दमयंती और समीरा दोनो हंस पड़ी… उनकी हंसी मानो उसके (बच्चे) साँवले रंग की हंसी उड़ा रही थी…।
भाभी , नामकरण भी तो आज के दिन ही होता है ना …तो आज से इसका नाम ” काजल ” रख देते हैं सबकी सहमति से काजल नाम फाइनल हो गया ….और समीक्षा को एक नया नाम मिला ” काजल की मम्मी “….।
रंग को लेकर नित उपेक्षित होती माँ बेटी और उनकी मनोदशा को देखकर कभी-कभी समीर कहते भी …इन सब का निराकरण अलग रहना ही है… पर समीक्षा सोचती , यदि वो भावनाओं को नहीं समझ रहे हैं तो हमें थक कर किनारा थोड़ी ही ना कर लेना चाहिए…. फिर किसी भी परिवर्तन में कुछ लोगों को कुछ आहुति तो देनी ही पड़ती है …तब जाकर सकारात्मक परिवर्तन संभव होता है… हमें उनकी सोच बदलने का प्रयास करते रहना चाहिए..।
हालांकि हालात कितनी भी विपरीत क्यों ना हो वो अपनी बिटिया पर किए टिप्पणी से किसी भी तरह की समझौता करने को तैयार नहीं होती थी..।
धीरे-धीरे काजल बढ़ने लगी… समय पंख लगा कर कब उड़ जाता है पता ही नहीं चलता…. नर्सरी , प्राइमरी , मिडिल फिर हाई स्कूल पास काजल..!
तीखी नाक नक्श वाली काजल यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही गजब की आकर्षक लगने लगी थी….. बचपन से रंग को लेकर
उपेक्षित रही काजल , जिंदगी के हकीकतों से वाकिफ थी …..वो साबित करना चाहती थी कि…. कितनी भी आलोचना , उलाहना क्यों ना हो …मंजिल तक पहुंचने में उसकी उड़ान को कोई नहीं रोक सकता बस दिल में जज्बा होना चाहिए…।
परिवार के सभी लोग चाहते थे काजल पढ़ लिखकर डॉक्टर बने …कम से कम ओहदा अच्छा रहेगा तो रंग उतना मायने नहीं रखेगा…!
पर काजल को तो कुछ और ही करना था… वो बचपन से ही सजना संवरना , टीवी में देखकर कलाकारों की नकल करना , मॉडलिंग … की ओर आकर्षित थी… बचपन में जब भी उससे कोई पूछता बड़ी होकर क्या बनना है तो जवाब देती ….मुझे टीवी में आना है…..
और सब व्यंगात्मक हंसी हंस देते ….मानो कह रहे हो अपना रंग तो देखो चली है टीवी में आने….! एक समीक्षा ही तो थी जो उसकी भावनाओं को समझती थी और उसके अरमान उसकी उड़ान में हमेशा उसके साथ रहती थी…।
समय और पढ़ाई के साथ-साथ काजल ने अन्य गतिविधियों में भी ध्यान देना शुरू किया …। हालांकि इन सभी प्रक्रिया में काफी कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा…! पर काजल ने तो जैसे कसम ही खा ली थी , सफल होकर ही दम लेगी…!
काजल सोचती… मेरी सफलता से न सिर्फ मेरी , बल्कि तमाम उन लड़कियों को… जिनका रंग या सुंदरता कम है ,वो सफलता में कभी आड़े नहीं आती… ऐसा संदेश उनके मध्य जाएगा… क्या सपने देखना या ऐसे क्षेत्र में जाना सिर्फ उन्हीं का हक है जो जन्मजात सुंदर पैदा होते हैं… जिसमें उनका कोई योगदान होता ही नहीं…!
मुझे साबित करना होगा की सुंदरता सिर्फ चेहरे , रंग को लेकर ही नहीं होता …सुंदरता के मायने और हर रंग की अपनी अलग विशेषता होती है…! माना , रंग ..सुंदरता में बहुत कुछ होता है …पर सब कुछ नहीं…. सुंदरता सिर्फ रंग पर ही निर्भर होता है ऐसा नहीं है…!
इधर समीक्षा भी बेचैन थी… आज मिस इंडिया का फाइनल जो होने वाला था टॉप सिक्स में काजल ने अपना स्थान बना लिया था…। टीवी पर सभी ध्यान लगाकर देख रहे थे सबसे ज्यादा समीक्षा और समीर खुश थे…।
दादी माँ सबसे ज्यादा उछल रही थी …वो बार-बार कह रही थीं …” हमरे आंखन पर पड़ी पट्टी उतार दी हमरी बिटिया “…. (आंखों में पड़ा भ्रम मिटा दी मेरी बेटी )… और खुशी जाहिर कर रही थी…।
” और विनर बनती है मिस काजल ” ….समीक्षा के आंखों में खुशी के आंसू थे ….जब अंत में समीक्षा से दो शब्द कहने को कहा गया तो उसने बड़े गर्व से कहा…..
” आज एक ऐसे रंग को एक गरिमामय पहचान मिली है ! मैं बात कर रही हूँ साँवले रंग की…..जिसे… जिस समाज में ….समाज ने ही हमेशा उपेक्षित किया है “…. ! रंग को सर्वोपरि समझ अपने उड़ान… अपनी मंजिल में ताला ना लगाएं…
” मेहनत रूपी चाभी से किस्मत रूपी ताले को खोले तो सही …मंजिल आपके कदम चूमेगी “…..तालिया की गड़गड़ाहट… एक बार फिर सांवले रंग की गरिमा बढ़ा रही थी…।
काजल अपनी पहचान तो बना ही चुकी थी …साथ-साथ हेय दृष्टि से देखे जाने वाले सांवले रंग की भी गरिमामय पहचान बन चुकी थी…।
( स्वरचित , मौलिक , अप्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी
साप्ताहिक विषय —
# पहचान