” सीमा..किसी का फ़ोन आ रहा है..मैं तुमसे फिर बात करती हूँ..।” कहते हुए अंजू ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
सीमा की पड़ोसन थी अंजू।दोनों ऊपर-नीचे के फ़्लैट में रहतीं थीं।अंजू अक्सर ही सीमा के घर चली आती और सास-ननद, पति-बच्चे की बातें करती।कभी बहुत प्रशंसा तो कभी बहुत शिकायत।सीमा उसकी बातें सुनती..हाँ- हूँ कर देती
तो कभी-कभार अपने विचार भी व्यक्त कर देती कि ऐसे करना चाहिए या ऐसा नहीं करना चाहिए।लेकिन जब वो अपने मन की बात कहने लगती तो अंजू तुरंत घड़ी देखते हुए कहती,” सीमा..मेरे मिस्टर आने वाले होंगे..मैं फिर आती हूँ तब तुम्हारी बात सुनूँगी।” कहकर वो निकल जाती।ऐसा कई बार होता परन्तु उसका फिर ‘ कभी नहीं आता।
फ़ोन करने पर भी वो अपनी गाथा सुना देती और जब सीमा अपनी बात उससे शेयर करने लगती तो अंजू ‘कोई आया है’ कहकर फ़ोन डिस्कनेक्ट कर देती।आज भी ऐसा ही हुआ तो सीमा को बहुत गुस्सा आया।उसने निश्चय कर लिया कि अब वो उससे बात नहीं करेगी लेकिन गुस्सा ठंडा हुआ तो दो दिन बाद उसके घर चली गई।
अंजू के घर का दरवाज़ा खुला देखकर वो अंदर जाकर बैठ गई।उसने देखा कि अंजू फ़ोन पर किसी से हँस-हँस कर बातें कर रही थी।
” हाँ भाभीजी..मैं भी गई थी।”
” अच्छा..तब तो मैं भी खरीदूँगी…।”
” अच्छा, लाल वाला..वो तो मेरे भाई ने कनाडा से भेजा था।मेरी भाभी ना..।” अपनी रफ़्तार में अंजू दस मिनट तक बोलती रही।इस बीच में सीमा ने दो बार उठकर जाने की कोशिश की तो उसने हाथ के इशारे-से उसे बैठा दिया।
दस मिनट बाद अंजू चुप हो गई तो उधर से आवाज़ आती, तब तक उसने सीमा से काॅलबेल बजाने के लिये इशारा कर दिया।सीमा ने बजा दिया, तब अंजू बोली,” सिन्हा भाभी..लगता है कोई आया है..मैं आपसे फिर बात करती हूँ..।” और फ़ोन डिस्कनेक्ट करके बोली,” साॅरी सीमा..पर क्या करूँ..मिसेज़ सिन्हा बहुत चिपकु हैं..
एक बार बोलना शुरु करती हैं तो चुप ही नहीं होती।उन्हें चुप कराने के लिये तुमसे घंटी बजवाया।” सीमा को समझ नहीं आया तो उसने पूछ लिया कि आपने मुझसे घंटी क्यों बजवाई..दरवाज़ा तो खुला ही था।तब अंजू धीरे-से बोली,” ऐसे किसी का फ़ोन कट करना etiquette( शिष्टाचार) नहीं है ना..।तुमने घंटी बजाई तो उन्हें यकीन हो गया कि सच में कोई आया है।”
सुनकर सीमा को पिछले दिनों की सारी बातें याद आने लगी, मिस्टर आने वाले होंगे..बेटा जल्दी आयेगा..गेस्ट आने वाले हैं…।ये सब झूठ था।उसका मन तो किया कि अभी उन्हें लताड़ दे लेकिन पड़ोसी-धर्म का पालन करते हुए वो चुप रह गई और कुछ देर बैठकर वापस आकर सोचने लगी कि कैसे-कैसे लोग होते हैं।
दो दिन बाद फिर से जब अंजू का फ़ोन आया, हैलो-हाय के बाद उन्होंने जैसे ही अपना पुराण शुरु किया तब सीमा ने खुद ही अपनी काॅलबेल बजाई और घबराते हुए बोली,” साॅरी अंजू..लगता है कोई आया है..मैं फिर बात करती हूँ..।”
” अरे सुनिये तो…।” अंजू की आवाज़ दब कर रह गई क्योंकि सीमा अपना फ़ोन डिस्कनेक्ट कर चुकी थी।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु