हॉस्पिटल के बाहर तक उसकी चीखों की आवाज़ गूंज रही थी,उसे मिले जख्मों के दर्द की टीस थी भी बहुत
ज्यादा,उसकी बूढ़ी,बीमार मां ही उसके सिरहाने बैठी उसे सहला रही थी,मां की आंखें गंगा जमना बन कर बह
रही थीं, पेट की जाई औलाद का दर्द सहन जो नहीं कर पा रही थी वो,और दुख इस बात का था कि ये वो ही
मां थी जो इस लड़की बेला को कभी विलेन लगने लगी थी।
कितना समझाया था बेला की मां शांति ने उसे जब वो दूसरी जाति के एक हिप्पी से लड़के को दिल दे बैठी
थी।
“बेला! तू बिन बाप की लड़की है पर मैंने तुझे जी जान से पाला पोसा,बड़ा किया,तेरे लिए एक लड़का भी देखा
है,साधारण रूप रंग का है पर अच्छा खाता कमाता घर है, तू सुखी रहेगी बेटी!”
पर जवानी के जोश में मगरुर बेला ने मां की एक न सुनी।
“ये जात पात,ऊंच नीच पुरानी बातें हैं,कुंडली मिलाएंगी …अरे!आपकी और पिताजी के तो सारे गुण मिले थे
फिर आप दोनो का साथ कितने दिन चला?ये सब बकवास है! मै इसे नहीं मानती…”मगरुर बेला ने कहा।
“अच्छा!एक बार लड़के से मिल तो ले,न पसंद आएगा तो कोई बात नहीं,दूसरा देख लेंगे पर इस लड़के के
लिए हां मत कर,इसके लक्षण मुझे ठीक नहीं लग रहे।”
बहुत विनती की शांति जी ने बेला से पर वो भाग गई घर से और अपने प्रेमी दानिश के साथ लिव इन में रहने
लगी।
दानिश,गोरा,लंबा,घुंघराले बाल,गठीले बदन वाला एक रूपवान लड़का था जिसकी मुस्कराहट पर बेला फिदा
हो गई थी।वो बेला को फ्री में मूवी दिखता,पॉपकॉर्न खिलाता और कभी कभी कुछ गिफ्ट्स ला देता और
बेला सब कुछ भूल कर उसे तन मन सौंप बैठी।
मां बेचारी,अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाती,वो जानती थी ये हवा हवाई प्यार ज्यादा दिन नहीं
टिकेगा,दानिश एक आवारा,गैर जिम्मेदार,अनपढ़ लड़का था जो कुछ काम धंधा भी नहीं करता था।जब बेला
से पूछा था उसकी मां ने,उसने घमंड से जबाव दिया था,”उसके मां बाप उसे बहुत प्यार करते हैं,वो मेरी तरह
अभागा नहीं है जिसे घर के नाम पर सिर्फ काम ही मिले या गालियां।”
“अगर इतना प्यार करते हैं वो उसे तो उसकी शादी क्यों नहीं करवा देते तुझसे?”
मां की इस बात का जबाव बेला पर भी नहीं था,वो चुप जाती और दानिश की मदहोश मोहब्बत में खो
जाती,”वो सब कुछ करेगा पर सही वक्त आने पर,मां की तरह बेचैन आत्मा नहीं वो…”वो सोचती और निश्चिंत
हो जाती।
समय पंख लगाकर उड़ रहा था।दानिश ने छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए थे ,अब उसके बेला के लिए
लाए जाने वाले उपहार बढ़ गए थे और मंहगे भी होने लगे थे।
“तुम क्या काम करते हो दानिश!कहीं नौकरी लग गई है तुम्हारी?मुझे भी बताओ मै सबको बताऊंगी जो मुझे
तुम्हारे निखट्टू होने का ताना मारते थे,उनका मुंह सिल दूंगी।”बेला पूछती थी उससे।
और वो हंस के टाल देता,”तुम आम खाओ,मजा लो,गुठलियां क्यों गिनती हो?”
एक दिन,थका हुआ दानिश घर लौटा,बेला खास श्रृंगार किए बैठी थी।
आते ही दानिश के गले में अपनी कोमल बांहों का हार पहनाती बोली,”खुशखबरी है जान!”
“बहुत थक रहा हूं,बाद में बात करना…” दानिश ने उसे परे हटाते कहा।
ये बेरुखी क्यों दानिश?तुम बाप बनने वाले हो..और मैं मां…अपनी रो में बहती बेला बोली।
“व्हाट नॉनसेंस!” वो चिल्लाया…”आज ही जाकर गिरवा दो इसे…”
“क्या कह रहे हो?”कांपती आवाज़ में बेला बोली…खुश होना तो दूर,ये तो सीधा अबॉर्शन की बात कर रहा है…
“हमने ये ही तो तय किया था कि उस स्थिति में हम दोनो शादी कर लेंगे,तुम कब मिलवायोगे अपने पेरेंट्स से
मुझे?”बेला हिम्मत बटोर के बोली।
“बेवकूफ लड़की!तुझे मैं इतना लल्लू दिखता हूं,जो बिना शादी मेरे साथ सो सकती है,मुझे क्या भरोसा मेरे से
पहले भी ये काम औरों के साथ न किया हो?”
दानिश!!!बेला हिस्टीरियाई अंदाज में चीखी…”माइंड योर लैंग्वेज…”
“अरे चल!पड़ी रह एक तरफ…यहां रहना है तो जैसा मैं कहता हूं कर…नहीं तो रास्ता नाप कहीं और का…”
बेला कसमसा के रह गई और फिर शुरू हुआ दानिश की क्रूरता का दौर ,उसने बेला के साथ अमानवीयता की
सारी हदें पार कर डाली।कभी सिगरेट से उसको जलाता तो कभी उसे बेरहमी से पीटता,भूखा रखता और
गंदी गंदी गालियां देता।
रोज रोज की प्रताड़ना से वो टूटने लगी,वो छटपटाने लगी थी उसके साथ और उसे याद आ रही थीं अपनी मां
की हिदायतें…ये कैसा प्यार था उसका जो उसे हर पल रूला रहा था,वो सोचती,मुझसे अभागन लड़की कौन
होगी इस दुनिया में,मैंने मेरी मां की बात न सुनी और इस दानव पर विश्वास किया।
और फिर एक दिन,जब दानिश का दिल उससे भर गया,वो उसे बेचने लगा था किसी दरिंदे को और बेला ने
विरोध किया तो उसे बुरी तरह पीटा,उसका एक एक अंग जख्मी था और ऐसे में फिर उसकी बूढ़ी मां उसे
बचा के ले गई थी उस दरिंदे से।आज वो ही मां उसकी हमदर्द थी जिसको कभी उस अभगान ने इस दुष्ट
आदमी के लिए छोड़ दिया था।
प्रिय पाठकों!आजकल के ज़माने में आधुनिकता के नाम पर लड़की लड़के लिव इन में रहते हैं,पाश्चात्य
संस्कृति का अंधानुकरण समाज को बर्बाद कर रहा है,आपकी क्या राय है,जरूर अवगत कराएं अपने कमेंट्स
में,मुझे।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली ,गाजियाबाद
#अभागन