कहां मर गई…? – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

अरे बहू… कहां मर गई..? कब से चाय के लिए चिल्ला रही हूं… देती क्यों नहीं..? सुलोचना जी ने अपनी बहू राधिका से कहा… 

राधिका:   मम्मी जी..! इनका नाश्ता बना रही हूं… यह हो जाए फिर बनाती हूं आपकी चाय, वरना इनको देर हो जाएगी 

सुलोचना जी:   हां सुबह देर से जागेगी, तो देर तो होगी ही ना..? अब क्या करें कामचोरी और नींद तो तेरी सबसे प्यारी आदत है…

थोड़ी देर में राधिका चाय बना कर ले आती है और फिर वह कहती है… मम्मी जी आप सुबह में एक ही बार चाय पीती हैं, जो आपको मैं सबसे पहले उठकर बनाकर देती हूं और आज भी दिया, पर आज आपने दोबारा चाय मांग ली, वह भी तब जब मैं इनका नाश्ता बना रही थी, इसलिए समय तो लगना ही था, कभी मैं ज्यादा चाय बना देती हूं, तो आप पीती नहीं और मैं चाय पीती नहीं तो मुझे वह फेंकना पड़ जाता है… 

सुलोचना जी:  हां हां बस बस… पहले तो काम चोरी करो और फिर सफाई दो… यह काम तुम अच्छा कर लेती हो… हां मैं एक बार ही चाय पीती हूं, पर कभी दूसरी बार पीने का मन कर तो सकता है ना..? तो उसमें कौन सा महाभारत हो गया..? 

राधिका जानती थी उसकी सासू मां से बहस करना मतलब अपना सर दीवार पर पीटना है, इसलिए वह चुपचाप वहां से चली गई.. 

फिर तीज का त्यौहार आने वाला था… राधिका ने अपने हाथों पर मेहंदी लगाई, उसने सारा काम खत्म करके रात को सोने से पहले मेहंदी लगाई थी, ताकि सासू मां फिर काम चोरी का कोई ताना ना दे सके, पर सुलोचना जी तो सुलोचना जी ही थी… जब राधिका मेहंदी लगा रही थी, सुलोचना जी ने उसे आवाज लगाई और कहा बहू..! ज़रा मेरे कमरे में आना… 

अब क्या हो गया मम्मी जी को..? सारा काम तो कर दिया, राधिका चिढ़ती हुई उठकर सुलोचना जी के कमरे में जाने को हुई ही थी कि, फिर सुलोचना जी ने आवाज लगाई, अरे बहु… फिर से कहां मर गई..? 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खुशियों का असली चेहरा – पूनम बगाई : Moral Stories in Hindi

राधिका कमरे में घुसती हुई:  क्या हुआ मम्मी जी..? आने का समय भी तो दीजिए…

सुलोचना की:   तू क्या दिल्ली से चलकर मुंबई आ रही थी, जो तुझे इतना समय लग रहा था..? तू तो जानबूझकर मुझे परेशान करने के लिए देर करती है… मैं क्या नहीं समझती..? मेरी दवाई कहां रखी है..? मिल नहीं रही जरा ढूंढ दे…

राधिका:   सुबह तो आपने खुद ही ली थी ना… तो याद कीजिए कहां रखा था..? मैंने मेहंदी लगाई है मैं कैसे ढूंढ पाऊंगी और आप बार-बार कहां मर गई..? कहां मर गई..? ऐसा क्यों कहती है..? मुझे अच्छा नहीं लगता… 

सुलोचना जी:   अब हो गया सारा किस्सा खत्म.. मेहंदी लगाई है तो कुछ कह भी नहीं सकती… कुछ तो है जो तू ढंग से करती है, मेरे बेटे के लिए पूजा… जा इसलिए मैं खुद ढूंढ लूंगी… वरना ऐसे किसी जिम्मेदारी से हाथ नहीं झाड़ने देती मैं तुझे… और मेरा शुक्रिया कर जो बार-बार कहां मर गई कह कर तेरी उम्र बढ़ाती हूं… 

राधिका जानती थी कि उसकी सास अपने बेटे के लिए कुछ भी कर सकती है और जब उनके बेटे के लिए मेहंदी और तीज करने की बात आई तो उन्हें तो मीठा बोलना ही था… 

तीज के दिन भी सुलोचना जी का व्यवहार बड़ा अच्छा रहा… फिर कुछ दिनों बाद राधिका का जन्मदिन आता है, तो उसके पति अक्षत ने कहा, शाम को पूरा परिवार बाहर खाना चलेंगे, सो रात का खाना ना बनाना, सुबह-सुबह पूजा करके राधिका ने सुलोचना जी और अक्षत के पैर छुए और आशीर्वाद लिया, तभी अक्षत ने अपनी मां से रात के खाने के लिए बाहर चलने को कहा.. 

सुलोचना जी:   अरे क्या जरूरत है इतना खर्च करने की..? इसकी पसंद का खाना यह घर पर भी तो बना सकती है ना..? पर नहीं, हर जगह बस काम चोरी सुन बेटा.. ऐसे पैसे नहीं बचते, उसके लिए हमें अपने खर्चों पर अंकुश लगाना पड़ता है… 

राधिका:   आप आते वक्त पनीर ले आना, हम घर में ही खा लेंगे, यह कहकर राधिका ने इस बात को वही खत्म कर दिया, क्योंकि सासू मां की बात को काटकर जो वह बाहर खाने जाती तो, वह ताना उसे ना जाने कितने दिनो तक सुनना पड़ता… 

रात को राधिका खाने की तैयारी कर रही थी, तभी सुलोचना जी उसे आवाज लगती है… बहू..! ओ बहू..! 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अगर किसी से प्यार पाना है तो पहले उसे प्यार देना भी होगा – अनु अग्रवाल

राधिका ने कोई आवाज नहीं दिया, क्योंकि वह कानों में एयरफोन लगाकर अपनी मम्मी से बात कर रही थी, तो इस पर सुलोचना जी का गुस्सा और बढ़ गया और वह रसोई में आकर कहती है… वाह तो आज महारानी फोन पर मर रही है… तभी मेरी आवाज कानों तक नहीं जा रही, तब तक राधिका ने फोन रख दिया था, सासू मां की इन सारी बातों से वह चौंक कर कहती है, क्या हुआ मम्मी जी..? 

सुलोचना जी:  तभी मैं सोचूं खाना इतना बेस्वाद क्यों बनता है..? ध्यान तो फोन पर होता है… सुनो मटर पनीर मत बना देना… मटर मुझे नहीं पचती, कुछ और बनाना और रायता भी बनाना… अक्षत को कहती हूं दही लेकर आए…

राधिका बस हा में अपना सिर हिलाती है, इधर सुलोचना जी जाकर अक्षत जो की थोड़ी देर पहले ही दफ्तर से लौटा था, उससे कहती है… बेटा..! बेटा..! पर अक्षर टीवी में इतना मशगुल था कि उसने सुलोचना जी की आवाज सुनी ही नहीं, तभी पीछे से राधिका आकर चिल्ला कर कहती है…. कहां मर गए..? सुनते नहीं है क्या मम्मी जी कब से बुला रही है..? 

सुलोचना जी और अक्षत दोनों सन्न होकर राधिका को देख रहे थे… तभी सुलोचना जी कहती है… यह कैसे बोल दिया तूने..? कोई अपने पति को ऐसे अशुभ शब्द कहता है क्या…? तेरी हिम्मत कैसे हुई..?

राधिका यह अशुभ शब्द है क्या मम्मी जी..? पर आपने तो उस दिन कहा था कि ऐसे शब्द कहने से उम्र बढ़ती है..? तो मैंने सोचा मैं अकेली इतनी लंबी जीकर क्या करूंगी..? जो इनका साथ मिलेगा तभी तो मेरे सदा सौभाग्यवती रहो का जो आशीर्वाद आप हमेशा मुझे देती हो, वह भी तो सफल होगा… आप चिंता मत कीजिए मम्मी जी… तीज पर भी आपने यही आशीर्वाद दिया था, तो वह उनकी ढाल बनाकर उनकी रक्षा करेगी….

पर अब आप इसे अशुभ कह रही हैं… अब तो मुझे डर लग रहा है, इनका तो फिर भी ढाल है आपका आशीर्वाद, पर मेरे लिए तो ना कोई आशीर्वाद है ना कोई ढाल और आप तो मुझे सुबह शाम यही अशुभ शब्द कहती रहती है, फिर मेरा क्या होगा..? 

सुलोचना जी अब खामोश खड़ी थी, तभी राधिका फिर कहती है, सुबह से शाम तक बस चरखी की तरह घूम-घूम कर काम करती रहती हूं और यह आप भी देखती हैं, पर फिर भी एक ग्लास पानी भी आपको मेरे हाथ से ही चाहिए, जो देरी हुई तो कहां मर गई..? मैं चाहती तो आपसे इस बात पर झगड़ भी सकती थी, पर फिर सोचा कि आप बड़ी है, जो कुछ कह दिया तो क्यों दिल पर लेना..? पर जब बड़े ही बड़प्पन ना दिखाएं तो छोटों को ही फुहाड़पन दिखाना पड़ता है…

सुलोचना जी नज़रें झुकाए खड़ी थी और इधर राधिका अक्षत की और देखकर मंद मंद मुस्कुरा कर धन्यवाद कह रही थी… क्योंकि यह सारी तरकीब उसी की थी, वरना राधिका शायद ही कभी अपनी जुबान खोल पाती… 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#सौभाग्यवती

error: Content is Copyright protected !!