कड़वाहट – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

आज न जाने क्यों मन विगत जिंदगी के पन्ने बार बार पलट रहा है… मैं संगीता पचासवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हूं… बेटी दामाद बेटा बहु सब अपनी जिंदगी में मस्त और व्यस्त हैं…

और मै गुलमोहर की तरह हूं शायद इसी लिए मुझे गुलमोहर और पलाश बहुत पसंद हैं…

मेरी ओर रजत की शादी बहुत कम उम्र में हीं हो गई.. सोलह की मैं और अठारह के रजत… खूब प्यारी जोड़ी थी हमारी..

संपन्न परिवार के रजत और मैं साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की.. पापा मिडिल स्कूल में टीचर… और रजत का लंबा चौड़ा व्यापार जो पिताजी देखते थे ..

एक शादी समारोह में रजत की अम्मा ने मुझे देखा और बिना तिलक दहेज के मुझे अपने घर की बहु बनाने के लिए तैयार हो गई…

रिश्ते नाते मुहल्ले और शहर में ये शादी चर्चा की विषय बन गई थी.. दहेज प्रथा उस समय चरम सीमा पर था.. सब मेरी किस्मत से रश्क कर रहे थे..

उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाली चिड़िया सोने के पिजड़े में कैद हो चुकी थी ..

मासूम कंधो पर भरे पूरे परिवार की जिम्मेदारी.. आदमी जन बहुत थे पर उनके साथ साथ लगे रहना पड़ता था… चूल्हा शायद हीं कभी बंद होता… आने जाने वालों का ताता लगा रहता.. नाश्ता खाना चाय बनाने की फरमाइश कभी भी हो जाती .

थकी हारी रात में जब बिस्तर पर जाती तो रजत प्यार जताते पर तन मन से थकी मैं बस रजत के साथ  बस मशीन जैसा ड्यूटी भर निभा देती… कभी कभी रजत झल्ला जाता पर मैं क्या करती..

यूं हीं शादी के बीस साल गुजर गए… और इस गुजरते वक्त के साथ हमारे रिश्तों में #कड़वाहट #बहुत ज्यादा घर कर गई थी….बच्चे भी बड़े हो गए थे.. देवर ननद की शादी हो चुकी थी.. सास ससुर बूढ़े हो चुके थे… व्यापार रजत संभालने लगा था..

रात में मैं कभी रजत के करीब जाने की कोशिश करती तो बेरुखी से मेरा हाथ झटक देता .. संगीता तेरे शरीर और कपड़ों से मशालों की दुर्गंध आती है…

मेरी मां सीधी साधी महिला थी… कभी उसे सजते संवरते नही देखा था.. गृहस्थी और पति के लिए हमेशा समर्पित देखा उसे… और ससुराल में भी चहारदीवारी से बाहर कभी निकल नही पाई.. कहीं जाना भी होता तो सास के साथ घूंघट में क्योंकि मैं बड़े घराने की बहु थी… इन सब का पूरा प्रभाव मेरे सोच और मेरी व्यक्तित्व पर पड़ा था..

पति को भी रिझाने के लिए सजना संवरना और बहुत कुछ करना पड़ता है ये मेरे लिए नई बात थी…

रजत अब मुझसे दूर दूर हीं रहता… अपने ड्रेसिंग और अपने उपर कुछ दिनों से खूब ध्यान दे रहा था…

पर मैं इसकी वजह क्या है न जानना चाहा ना हीं कभी पूछा…

पति में आए इस बदलाव को मैं महसूस करने लगी थी.. भगवान ने शायद पत्नियों में ये विशेष गुण प्रदान किया है कि पति अगर किसी और के प्यार में है तो पत्नी को उसके स्पर्श उसकी सांसों धड़कनों से आंखों से सबसे पहले पता चल हीं जाता है…

और रजत में आया ये परिवर्तन  यूं हीं नहीं था…

कई बार नकारने के बाद सबूत सामने रखने पर रजत को स्वीकारना हीं पड़ा की वह परिधि से प्यार करता है… मैं जड़ हो गई.. मैने रजत को झकझोर कर कहा क्या कमी की थी मैने… रजत चिल्ला पड़ा अम्मा पिताजी की बेसिर पैर की बातें रंजन राहुल रिया और रिमझिम के झगड़े उनकी समस्या बाकी बचे समय में आने वाले अतिथियों की बेतुकी बातें ,

साड़ी सेआती मसालों की बदबू और हल्दी के दाग पसीने की बदबू उफ्फ… कैसे मैने तुझे इतने साल तक झेला… अरे पति भी चाहता है की कुछ पल ऐसे हों जब सिर्फ पति और पत्नी हो तीसरा कोई भी नही बच्चे भी नही… सजी धजी पत्नी को देखकर पूरे दिन की थकान गायब हो जाए.. पर तुम…

एक दिन घर में हो हल्ला कर के तुम्हे सिनेमा ले गया पर पूरे सिनेमा में तुम कभी अभी के लिए तो कभी ऐमी के लिए चिंतित रही.. बच्चे ने दूध पिया होगा या नहीं कुछ खाया होगा या नहीं… जैसे तीन घंटे में कयामत आ जाती ..पूरा माहौल और मूड बिगाड़ के रख दिया… कब तक हमारा रिश्ता #कड़वाहट #से बच पाता….

और रजत खुलेआम परिधि के पास जाने लगे… पैसे भी खर्च करने लगे …कौन रोकेगा उन्हें…

बेटा बहु बेटी दामाद सब अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं..

सास ससुर नही रहें .. बच्चे दबी जुबान से मुझे हीं दोषी ठहराते है! क्या हीं कहूं मैं…

     Veena singh,

 सार्वजनिक समारोह में या घर से बाहर निकलने पर न जाने क्यों ऐसा लगता है लोगों की नजरें मुझे हीं देख रही है और उपहास उड़ा रही है देखो इसी के पति ने इसके रहते हुए भी दूसरी औरत रखा है..

सुख पैसे गहने कपड़े से कभी नही प्राप्त हो सकता है.. कामवाली रीता कितनी खुश और सुखी है.. तीज के दिन शरमाते हुए बताया कि सोहन के पापा कल काम पर आधा बेला हीं जायेंगे बाकी समय घर का काम करेंगे और मेरे लिए ताजे फूलों का गजरा बनाएंगे.. कल नई साड़ी भी दिलवाया है.. सुबह गरम गरम चाय और पकौड़े हर साल वही बना मुझे खिलाता है.. हाय री बदकिस्मत मैं…

                 #Veena singh #

कासे कहूं मैं अपनी दुखवा माता पिता भी नही रहे.. बच्चे भी अब पराए सा व्यवहार करते हैं… मन की व्यथा अब मन में हीं रखनी होगी… जाने अभी और कितनी सांसे बची है…

मैं क्या करूं! मृत्यु का इंतजार या फिर से जीने की वजह तलाश करूं क्योंकि रजत और मेरा रिश्ता नदी के दो किनारों सा हो गया है…

मैं अब अपने लिए जिऊंगी कुछ करूंगी… और सफल होके रहूंगी… संगीता अपने अंदर की हिम्मत आत्मविश्वास और जीने की चाह को  जगाओ मंजिले और भी है बाहें फैलाए… वक्त को अपने मजबूत इरादों से बदल डालो… क्योंकि तुम गुलमोहर हो…. और तुम्हे पलाश भी बहुत पसंद है…

                  🙏🙏🙏🙏🙏✍️❤️❤️

                   Veena singh…

                # स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

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