छठी में पढ़ने वाले रोहित के स्कूल बस से उतरते ही उसके सवाल जवाब शुरू हो जाते था। स्कूल में किसने क्या किया! किसे आज सजा मिली। किसे टीचर ने प्यार किया। किससे लड़ाई हुआ, किससे आज से बात नहीं करनी है। आज उसकी नजर में कौन अच्छा बच्चा था, कौन उसे पसंद नहीं है।
आज कौन बेस्ट फ्रेंड बना, किससे कट्टी हो गई, सब कुछ सिलसिलेवार बताने वाला वही रोहित आज गुमसुम था। वर्णिका उसकी माँ उसकी उंगली पकड़ कर चलती हुई कुछ देर इन्तज़ार करती रही कि अब कुछ बोलेगा, अब कुछ बताएगा। लेकिन रोहित चुपचाप चलता हुआ घर आ गया और घर आते ही बैग इधर उधर रखने वाले रोहित ने आज बिना किसी उत्पात के बैग भी यथास्थान रखा। यूनीफॉर्म बदल कर तह कर यथास्थान रखने लगा और खाना देखकर भी कोई ना – नुकर नहीं हुआ। वर्णिका चुपचाप रोहित के क्रियाकलाप को देख रही थी। रोहित कदम दर कदम वर्णिका को आश्चर्यचकित किए जा रहा था।
जब रोहित बिना नाक भौं सिकोड़े खाना खाने लगा, तब वर्णिका से रहा नहीं गया और उसने कहना प्रारंभ किया “तो रोहित साहब आज तो आपने ग़ज़ब कर दिया, आप तो बिग बॉय हो गए। बिना किसी शिकायत के सारे काम कर लिए आपने। कुछ खास है आज क्या?” वर्णिका प्यार से रोहित का नाक पकड़ कर हिलाती हुई कहती है।
रोहित माँ को देखकर मुस्कुराता है और अपनी कुर्सी से उठकर वर्णिका की गोद में बैठते हुए ऑंखें मटका कर बताने लगता है, “आज हमारी कक्षा में मैम ने खरगोश और कछुआ की कहानी सुनाई।”
वर्णिका अंजान बनते हुए पूछती है, “ये कौन सी कहानी है। मैंने तो कभी नहीं सुनी। मेरा बेटा खाना खत्म करके मुझे कहानी सुनाएगा।” वर्णिका जानना चाहती थी कि आखिर कहानी सुनकर रोहित के मन में ऐसा क्या आया, जो उसका व्यवहार आज एकदम से बदला हुआ है।
खाना खत्म करके माँ बेटा कमरे में आकर लेट गए। रोहित अपनी माँ को पकड़ कर लेटा हुआ था और उसका चेहरा बता रहा था कि वो कुछ सोच रहा है। वर्णिका कुछ देर उसके चेहरे को देखती रहती है और फिर कहती है, “हाँ तो मेरे राजा साहब अब कहानी सुनाएं। रोहित माँ को ऐसे बोलते देख खिलखिला कर हँसने लगा।
“अरे सच्ची, कौन सी कहानी है ये, मुझे नहीं पता।” वर्णिका बेटे की हॅंसी का अर्थ समझ मासूम सा चेहरा बनाती हुई कहती है।
रोहित वर्णिका की उत्सुकता देख कर कहानी सुनाने के लिए उठ कर बैठ गया पूरी और पूरी संजीदगी से कहानी का एक एक शब्द सुनाता है। कैसे स्थिरता से अनवरत काम करने वाला कछुआ जीतता है और दूसरों की क्षमता को कम समझने वाला हड़बड़ी में काम करने वाला खरगोश हार जाता है।
कहानी सुनाते हुए रोहित के चेहरे पर कई प्रश्न तौर रहे थे, “माँ मैम ने बताया जो सलीके से और लगातार काम करते हैं, वही जीवन में अच्छा कर पाते हैं। माँ मैं तो हमेशा हड़बड़ी में ही काम करता हूँ। क्या मैं कभी कुछ नहीं कर सकूँगा?
“ओह हो.. तो ये बात है साहबजादे के सलीकेदार अवतार के पीछे।” वर्णिका सोच कर मुस्कुराती है।
“मेरी बात का जवाब देने के बदले आप मुस्कुरा रही हैं, बात नहीं करूँगा आपसे।” माँ को मुस्कुराते देखकर रोहित चिढ़ कर मुॅंह बना लेता है।
“नहीं नहीं बेटा.. ऐसा नहीं है, मैं तो आपके कहानी में खो गई थी। आपकी मैम ने बिल्कुल सही कहा कि किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए हमें स्थिरता और अनवरत काम करते हुए काम के प्रति निष्ठावान होना पड़ता है। एक सही दिशा में कदम बढ़ाना पड़ता है। लक्ष्य तो पता हो.. पर जाना किधर से है.. ये मालूम ही ना हो तो कितना भी काम कर लें, पहुँचना मुश्किल हो जाएगा।” वर्णिका रोहित को समझाने, बताने की कोशिश कर रही थी।
रोहित अपने सिर पर हाथ लगाते हुए कहता है, “माँ क्या बोल रही हो.. कुछ समझ नहीं आ रहा है।”
वर्णिका भी अब पूरी तरह से उठ कर बैठ जाती है, “लक्ष्य का मतलब बेटा जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं, जैसे आप सुबह स्कूल जाते हो और हमें दिशा.. मतलब की रास्ता मालूम ना हो तो कैसे पहुँचेंगे। वैसे ही जब आप कहते हैं”..
“ओके मम्मा समझ गया, जैसे मुझे बड़े होकर पायलट बनना है और मुझे पता ही ना हो कि इसके लिए क्या क्या करना होगा तो कैसे बन सकते हैं… है ना… तो मम्मा पायलट हो गया लक्ष्य और कैसे बनना है.. हो गई दिशा.. यही ना”…रोहित बाल सुलभ चंचलता से बोल पड़ा और वर्णिका की बात बीच में ही रह गई।
“बिल्कुल बेटा.. आपने बिल्कुल सही समझा।” वर्णिका खुश होकर रोहित से कहती है।
“लेकिन मम्मा इसमें सलीका क्यूँ होना चाहिए”…
क्यूँकि बेटा.. अगर हम चीजों की इज्जत करेंगे, उन्हें जगह पर रखेंगे तो जब भी चाहिए होगा, तुरंत मिल जाएगा। हमारा समय और हमारी ऊर्जा दोनों बचेगी, जिसे हम अपने महत्वपूर्ण काम में लगा सकते हैं। सलीका का अर्थ समझो तो मेहनत… सब कुछ हो और मेहनत ना हो तो लक्ष्य दिखते हुए भी दूर चला जाता है।
तो बेटा लगातार, सही दिशा में, सलीके से, समय के जो पाबंद होते हैं.. वो अपने लक्ष्य तक जरूर पहुँचते हैं।” वर्णिका रोहित के प्रश्नों का उत्तर देने का हरसंभव प्रयास कर रही थी।
“और कुछ मेरे नवाब साहब को जानना है”…
“नो मम्मा… मैं समझ गया”..
“तो अब थोड़ी देर नवाब साहब सोएंगे”…
“नहीं मम्मा, चार बज गए हैं। मुझे होम वर्क करना है। फिर स्विमिंग के लिए जाना है। आपने ही तो कहा
पंक्चुअल रहने वाले को ही लक्ष्य मिलता है।” रोहित बिस्तर पर से उतरता हुआ अपनी कलाई घड़ी देखते हुए कहता है।
वर्णिका अपने बेटे में फिलहाल आए सकारात्मक परिवर्तन को देख कर मुस्कुराती है और सोचती है… “बच्चों के जीवन में कहानियाँ कितनी असरदार होती हैं। अगर कहानियों को सही ढ़ंग से बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए तो कहानियों के माध्यम से ही बच्चों को बड़ी से बड़ी बातें सरल तरीके से समझाई जा सकती हैं और सोचती हुई वो भी बिस्तर से उतर कर रोहित के साथ ही होम वर्क कराने बैठ जाती है।
आरती झा आद्या
दिल्ली