मेरे मोबाइल पर एस एम एस था प्लीज़ इस एड्रेस पर जल्दी
आ जाओ| देखा ये वो ही अननोन नंबर है जहाँ से मुझे हर रोज़ सुबह एस एम एस आता था| लगातार तीन महीने तक ये सिलसिला जारी था|अपने ऑफिस के काम में इतना व्यस्त कि,मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया|सोचा कोई फारवर्ड मैसेज भेजता होगा| पर उसके मैसेज दिल को छू लेते|
अचानक एस एम एस का सिलसिला टूट गया| सोचा था एक बार कॉल करके पूछ लूँगा पर,सिर्फ सोचकर ही रह गया|अचानक उसी नंबर से ए एम एस मिला जिसमें उसका एड्रेस था,मुझे झटका लगा| मैं उस एड्रेस पर पहुँचा|
शैया पर एक औरत लेटी थी और उसके पास बैठी थी एक लड़की| उस अौरत की आवाज़ बंद हो चुकी थी|उसको जो चाहिये वो लिखकर देती| घर में बड़ा सन्नाटा|
उस लड़की ने मुझे डायरी दी|डायरी के पहले पेज पर लिखा था बेटा ये तेरे लिए|बड़ी अजीब सी कशमकश में था मैं|उत्सुक मन से मैं पढ़ने लगा वो डायरी|
करीबन तीन महीने पहले मैं रेल के जिस डिब्बे में सफर कर रही थी,उसमें मेरे और तेरे सिवा और कोई नहीं था|किसी स्टेशन पर तुम शायद चाय पीने को उतरे थे| तुम्हारी डायरी
बाहर पड़ी थी| वहाँ से मैनें तुम्हारा नाम और मोबाइल नंबर अपने पास लिख लिया|
तुम्हें देखकर मैं सकते में आ गई| मेरे बेटे से तुम्हारा मिलता जुलता चेहरा,बात करने का तरीका हूबहू मेरे बेटे जैसा|
एक साल पहले कार एक्सीडेंट में मैं अपना बेटा खो चुकी थी| तुम्हें देखकर मेरी ममता जाग उठी|तुम्हें छूना चाहती थी
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गले लगाकर माथा चूमना चाहती थी|पर,मैनें एेसा नहीं किया| क्यों कि,मेरी भीतर छिपी भावनाओं से तुम अंजान थे|तुम बेखबर बड़े चैन से सो रहे थे| मैं खामोशी से निहारती रही| जी भरकर तुम्हें देखना चाहती थी इसलिए कि,तुम वापिस बिछड़ जाओगे मुझसे|मैं अतीत में खो गई थी|
होश तब आया जब तुम अपना सामान लेकर उतर रहे थे और कहा: ” बाय आंटी,टेक केयर|”
तुम्हारी आवाज़ से मैं वर्तमान में लौट आई,पर खामोश थी|
मुझे मालूम था मुझे गले का कैंसर है|कब मेरी आवाज़ मेरा साथ ना दे या कब दिल धड़कना बंद कर दे|इसलिये तुम्हें एस एम एस करती थी| इससे मुझे तसली मिलती|ऐसा लगता जैसे मैं अपने बेटे के करीब हूँ| हाँ,तुम्हारे एस एम एस का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती|
शुक्रिया अदा करती मालिक का कि,मैं अपनी भावनाओं का इज़हार बोलकर ना सही लिखकर तो कर सकती हूँ|
हर दिन प्रार्थना रब से कि,धड़कन बंद होने से पहले सिर्फ एक बार जिसके रूप में मैं अपने बेटे को देखती हूँ,मुझे माँ कहे और मैं उसे गले लगाऊँ|मैं नहीं जानती मेरी ये आखिरी
इच्छा पूरी होगी भी या नहीं|
मैनें डायरी बंद की और माँ पुकारकर गले मिला उस माँ से जिसे मेरा इंतज़ार था|
कुछ पलों के बाद उसकी आँखें तो खुली थीं,होठों पर मुस्कान पर धड़कन बंद हो गई|उसका बेजान हाथ मेरे सिर पर था|
इस घटना ने मुझे झकझोर दिया| अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में मैनें निस्वार्थ ममता को खो दिया|काश!! मैनें उसके एस एम एस का जवाब दिया होता,उसे फोन किया होता|
वक्त अपनी रफतार से चल रहा है| आज भी उस ममता की याद,उसका स्नेह भरा स्पर्ष दिल को छू लेता है|
स्वरचित और मौलिक|
विमला भंभाणी लखवाणी