काश मेरी भी एक बेटी होती – रत्ना पांडे : Moral Stories in Hindi

अपनी व्यस्ततम ज़िंदगी से कुछ वक़्त निकालकर यशोदा बगीचे में शाम को टहलने अवश्य ही

जाती थी। बगीचे में नियमित रूप से आने वाले अधिकतर लोग यशोदा को जानने लगे थे। आस पास

में रहने वाले बच्चे भी शाम को वहां आते थे। नंदिनी भी अक्सर शाम को वहां आया करती थी। सबसे

अलग, शांत और गुमसुम रहने वाली इस लड़की को देख कर यशोदा को हमेशा जिज्ञासा होती

कि आख़िर क्या कारण है जो यह लड़की इतनी गुमसुम रहती है; उदासी मानो उसके चेहरे पर स्थायी

रूप से बस गई है।   

 आख़िर कार एक दिन यशोदा ने नंदिनी से बात कर ही ली, "क्या नाम है बेटा तुम्हारा ?

 जी नंदिनी

 बहुत ही प्यारा नाम है

 क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूँ, प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।   

 “जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है,” मुस्कुराती हुई नंदिनी ने खिसक कर बैंच परउनके बैठने के लिए जगह बना दी।  

 “कैसी हो, क्या चल रहा है आज कल, यशोदा ने बात शुरू करते हुए पूछा । 

 “बस आंटी वही रूटीन, कॉलेज- पढ़ाई….” नंदिनी ने जवाब दियाआप सुनाइये।” 

  “बस बेटा, सब बढ़िया है। मैं हमेशा अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करती हूँ, जो

सीखना चाहती थी और नहीं सीख पाई वही अब कर रही हूँ।”   

 “अरे वाह, क्या सीख रही है इन दिनों।” 

 बेटा मैं अपने जीवन को हमेशा सकारात्मक होकर जीना चाहती हूँ, जीवन में कुछ ऐसा करते

रहना चाहती हूँ, जिससे मन को खुशी मिले, जीने का आनंद मिल सके।”  

 बताओ ना आंटी आप क्या-क्या करती हो, इतनी सकारात्मक कैसे रहती हो? नंदिनी ने

जिज्ञासा वश पूछा।  

 ;नंदिनी मैंने एम.ए.तक पढ़ाई की है, हाँ अंग्रेजी में जरा कमज़ोर रही हूँ । चाहती रही हमेशा

कि मैं भी अच्छी अंग्रेजी बोल सकूं, किंतु कभी समय ने साथ नहीं दिया और कभी चाह कर भी सीख

नहीं पाई। इसलिए आज कल जोर-शोर से अंग्रेजी सीखने की कोशिश कर रही हूँ। एक घंटा जिम चली

जाती हूँ, ताकि स्वस्थ रह सकूं। एक घंटा गरीब बस्ती की अनपढ़ महिलाओं को पढ़ा दिया

करती हूँ, बस यही है मेरी दिनचर्या।”  

 नंदिनी ने मुस्कुरा कर यशोदा  की तरफ देखा और कहने लगी, वाह आंटी आप तो कितना

अच्छा काम कर रही हैं। अपनी इच्छा पूरी करने के साथ ही साथ समाज के लिए भी समय निकाल

रही हैं और अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखती हैं। यह तो बहुत अच्छी बात है।”  

 इतना कहते हुए अब तक नंदिनी उठकर खड़ी हो गई थी, अब उसे डर था कि आंटी कहीं

उसके बारे में कुछ पूछ ना लें। इस तरह बात को ख़त्म करते हुए नंदिनी ने यशोदा से जाने की

अनुमति मांग ली।   

 आंटी देर हो रही है, मुझे जाना होगा।” 

 कोई बात नहीं बेटा, तुम जाओ।”  

 नंदिनी वहां से चली गई लेकिन यशोदा के पास कुछ वक़्त बैठकर उसे काफी सकारात्मक

ऊर्जा का एहसास हुआ। वह सोच रही थी कि यशोदा आंटी कितनी कुशलता से, जोश से अपना जीवन

ऊर्जा युक्त बनाती हैं।   

 नंदिनी  बुझे हुए मन से अपने घर की ओर जाने लगी। घर पहुंच कर उसने अपने लिए

खिचड़ी बनाई और उपन्यास पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते बिना खाना खाए ही उसकी नींद लग गई।   

 सुबह छह बजे नंदिनी का अलार्म बजा और वह उठ कर अपने नित्य के काम निपटाने लगी।

अब उसके कॉलेज का आख़िरी एक महीना ही तो बाकी था। तैयार हो कर नंदिनी  अपने कॉलेज चली गई

किंतु आज दिन भर में कई बार उसे यशोदा आंटी की सकारात्मक बातें याद आती रहीं। कॉलेज ख़त्म

होने के बाद नंदिनी के पांव स्वतः ही उसी बगीचे की ओर मुड़ गए जहां उसे अक्सर यशोदा आंटी मिल

जाया करती थीं।  

 बगीचे में पहुंच कर नंदिनी की आंखें यशोदा को ढूंढ रही थीं। तभी उसने देखा यशोदा बगीचे

में तेजी से घूम रही है और कहीं भी उन्हें यदि कागज या प्लास्टिक की थैली दिख जाती तो वह उसे

उठाकर चलते-चलते कचरे के डब्बे में डाल देती थीं। नंदिनी भी तेजी से चलते हुए यशोदा के पास

पहुंच गई।  

 आंटी” कहकर नंदिनी ने आवाज़ लगाई। 

  आंटी सुनिए।”  

 यशोदा ने देखा तो पीछे नंदिनी कुछ ही दूरी पर आ रही थी।  

 यशोदा रुक गई और उसने पूछा, कैसी हो तुम नंदिनी ?

  मैं ठीक हूँ आंटी”, कहकर नंदिनी भी यशोदा के साथ चलने लगी और उन्हीं की तरह यदि

उसे भी बगीचे में कुछ कचरा दिख जाता तो वह भी उसे उठाकर कचरे के डब्बे में डाल देती। 

  कुछ देर चलने के बाद दोनों बैंच पर आकर बैठ गईं। नंदिनी ने पूछा, "आंटी आपके घर में

और कौन-कौन रहता है ?

 मैं अकेली ही रहती हूँ बेटा, मेरे पति का स्वर्गवास हो चुका है।”  

 नंदिनी ने सॉरी आंटी कहकर बात को बदल दिया।  

 तुम किस के साथ रहती हो नंदिनी, मुझे हमेशा यहां अकेली ही दिखाई देती हो”  

 ;हां आंटी मैं अकेली ही रहती हूँ, मेरे माता-पिता गांव में रहते हैं। मैं यहां अपनी पढ़ाई पूरी

करने आई हूँ।”  

 क्या पढ़ाई कर रही हो तुम? यशोदा ने प्रश्न किया।  

 आंटी मैं इंजीनियरिंग पढ़ रही हूँ, कंप्यूटर इंजीनियर बनने की इच्छा है। यह मेरा आखिरी

वर्ष है, अब तो सिर्फ एक महीना ही शेष रह गया है। उसके बाद नौकरी, कॉलेज के कैंपस में मेरा चयन

भी हो चुका है।”  

 अरे वाह बधाई हो नंदिनी, यह तो बहुत ही अच्छी ख़बर है।”  

 आज यशोदा को नंदिनी बीते कल की तुलना में कुछ ठीक लग रही थी। किंतु समझदार और

अनुभवी यशोदा ने आज नंदिनी से कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा। नंदिनी और यशोदा  बहुत देर

तक साथ-साथ बैठे रहे। यशोदा कुछ ना कुछ बातें करके नंदिनी को ख़ुश करने की कोशिश कर रही

थी। नंदिनी को यशोदा का साथ बहुत अच्छा लगने लगा। वह अब धीरे-धीरे यशोदा के बहुत निकट

आ गई थी। दोनों फोन पर भी अक्सर बातें करती रहती थीं।  

 एक दिन जब नंदिनी बगीचे में पहुँची तो यशोदा वहां उसे नहीं दिखाई दी। व्यस्त होंगी

आंटी, यह सोचकर नंदिनी ने खुद भी अपने घर जाने का निर्णय लिया। दूसरे दिन भी जब उसे

यशोदा नहीं मिली तब नंदिनी, यशोदा के घर पहुंच गई। घर में जाकर उसने देखा कि यशोदा को तेज़

बुखार आया है। 

  अरे आंटी क्या हुआ, दो दिनों से आप बगीचे में भी नहीं आईं।” 

 ;बेटा थोड़ा बुखार आ गया है शायद फ्लू है।”  

 आंटी डॉक्टर को दिखाया आपने।”  

 नहीं बेटा सोच रही थी, दो-चार दिन में अपने आप ही ठीक हो जाएगा।”  

 नहीं-नहीं ऐसा नहीं चलेगा, चलिए मैं आपको डॉक्टर के पास ले चलती हूँ।” 

 यशोदा के मना करने पर भी नंदिनी नहीं मानी और उन्हें ले जाकर उनका इलाज करवाया।

जब तक यशोदा पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो गई, नंदिनी रोज़ शाम को उनके पास आ जाती। अपने घर

से कुछ खाना ले आती, उन्हें दवाई देती, कुछ देर उनके साथ रुक कर फ़िर अपने घर जाती।  

 लेकिन आज यशोदा ने नंदिनी से कहा, बेटा आज मुझे बहुत अकेलापन लग रहा है, आज रात

तुम मेरे पास रह जाओ, वैसे भी वहां तुम अकेली ही तो रहती हो।” 

 नंदिनी इंकार न कर पाई और यशोदा के घर पर ही रुक गई। नंदिनी यशोदा के पलंग पर ही

उनके साथ लेट गई। दोनों बातें कर रहे थे, तभी अचानक नंदिनी को यशोदा के बाजू में लेटे-लेटे अपनी

मां की याद आ गई और वह गुमसुम सी हो गई। यशोदा समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ है।  

 तब यशोदा ने नंदिनी से पूछ लिया,;बेटा क्या हुआ, इतनी उदास क्यों हो गई ? नंदिनी यदि

तुम मुझे अपनी तकलीफ़ बताओगी, तो हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं। अपने दिल की

बात बताने से दिल भी हल्का हो जाता है और हो सकता है कोई रास्ता भी निकल आये।”  

 हां आंटी आज मैं आपको सब कुछ बताऊंगी। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ ।

जब मेरा जन्म हुआ तब से ही मम्मी पापा को एक बेटे की इच्छा थी, लेकिन हो गई मैं। मेरे पापा

मम्मी मुझे बहुत प्यार करते हैं लेकिन उन्हें हर वक़्त यह लगता है कि यदि एक बेटा भी होता तो

उनके बुढ़ापे का सहारा होता, किंतु मेरे बाद उन्हें कोई संतान हुई ही नहीं। मैं अपने पापा मम्मी की

इच्छा जानती थी और हमेशा उनसे कहती थी कि मैं हूँ ना, मैं बेटे की ही तरह हमेशा आपका ख़्याल

रखूंगी। मैं शादी भी नहीं करूंगी किंतु वह हमेशा कहते हैं कि शादी तो करना ही पड़ता है बेटा। जवान

बेटी को घर पर नहीं बिठा सकते।”  

 फ़िर, फ़िर क्या हुआ नंदिनी” 

 “मैं इसीलिए अच्छे से अपना भविष्य बनाने के लिए यहां आ गई ताकि अच्छे कॉलेज से पढ़ाई

करके निकलूंगी तो नौकरी भी अच्छी मिल जाएगी और मैं अपने पापा मम्मी का ख़्याल भी रख

सकूंगी।” 

 "आंटी यहां कॉलेज में रोहन नाम का एक लड़का मेरी ज़िंदगी में आया और ना चाहते हुए भी मैं

उसकी ओर आकर्षित होने लगी। मैंने अपने आप को संभालने की बहुत कोशिश की किंतु ऐसा हुआ

नहीं और मैं उससे प्यार करने लगी। हम दोनों का मिलना जुलना बहुत बढ़ गया। मुझे हमेशा यह

लगता रहा कि रोहन को अपने पापा मम्मी के विषय में कभी भी बता दूंगी कि विवाह के बाद भी मुझे

अपने पापा मम्मी का पूरा ध्यान रखना होगा क्योंकि मेरे सिवा उनका और कोई नहीं है।” 

  मैं चाह कर भी रोहन से यह बात नहीं कर पा रही थी। मुझे लगता था यदि उसने मना कर

दिया तो और यह बात मैं उसके मुंह से सुनना नहीं चाहती थी।”  

 ;आंटी कैंपस में चयनित होने के बाद मैं यह ख़ुश ख़बर लेकर गांव गई,  अपने पापा मम्मी को

बताने । मैं उनकी खुशी को प्रत्यक्ष देखना चाहती थी, महसूस करना चाहती थी, इसीलिए फोन पर नहीं

बताया घर पहुंच कर मैंने उन्हें सरप्राइस दिया।”  

 “दोनों बहुत ख़ुश हो गए, मम्मी ने रात को मेरी पसंद का खाना बनाया। जब हम तीनों खाना

खा रहे थे तब मैंने अपने पापा मम्मी को अपनी नौकरी के विषय में बताया।”  

 “मम्मी पापा की खुशी का ठिकाना ना रहा, दोनों ने मुझे सीने से लगा लिया। उनकी वह ख़ुशी

मेरी आंखों में बस गई। हम लोग बहुत रात तक बातें करते रहे।” 

 “मैंने कहा, पापा मम्मी अब आप लोग भी मेरे साथ वही चलना, हम सब साथ रहेंगे।”  

 “उस समय तो मम्मी ने कुछ नहीं कहा लेकिन जब वे दोनों अपने कमरे में गए तब उन

दोनों के बीच की बात मुझे सुनाई दे गई। मैं रसोई में पानी पीने जा रही थी, तभी मम्मी कह रही

थीं, नंदिनी की नौकरी लग गई उसका भविष्य बन जाएगा, अपने लिए इससे ज्यादा ख़ुशी की बात

और क्या हो सकती है। लेकिन अपने बुढ़ापे का क्या? वह तो शादी के बाद ससुराल चली जाएगी, हम

दोनों अकेले रह जाएंगे। काश भगवान हमें एक बेटा भी दे देता तो हमारा बुढ़ापा भी संवर जाता पर

अपनी किस्मत में पता नहीं क्या लिखा है?”  

 आंटी इतना सुनते ही मैं टूट गई। मेरा जोश, मेरी ख़ुशी सब धराशायी हो गए। मेरा सपना

एक ही है आंटी अपने पापा मम्मी को अंतिम समय तक कोई भी तकलीफ़ ना होने दूं। उसके लिए मैं

हर मुमकिन कोशिश कर रही हूँ लेकिन उन्हें मुझ पर क्यों विश्वास नहीं होता, क्यों हमेशा बेटे की

बात सोचकर दुःखी रहते हैं ? दो-तीन दिन मम्मी पापा के साथ रह कर मैं वापस आ गई। तब मैंने

मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि अब चाहे रोहन का जवाब कुछ भी हो मुझे उससे बात करनी

ही पड़ेगी। आंटी हम दोनों…,” इतना कहकर नंदिनी थोड़ा सकपका गई।  

 यशोदा समझ गई और कहने लगी, बताओ नंदिनी, जो भी हो बताओ।”   

 आंटी हम दोनों बहुत नज़दीक आ चुके थे। रोहन अक्सर मेरे घर आया करता था और दो-चार

दिन मेरे साथ ही रहता था, फ़िर वापस होस्टल चला जाता था। कॉलेज में भी सभी को हमारे प्यार के

विषय में पता था।” 

 फ़िर, फ़िर क्या हुआ नंदिनी”  

 “फ़िर मैंने एक दिन रोहन से अपने पापा मम्मी के विषय में बात की। मैंने रोहन को अपने घर

की परिस्थिति से अवगत कराया। उसे मैंने कहा तुम्हें पता है ना, मैं अपने माता-पिता की इकलौती

संतान हूँ। हमारी शादी के पश्चात भी बेटे की ही तरह मुझे मेरे माता-पिता का ध्यान रखना

होगा। रोहन तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं है ना? मेरा साथ दोगे ना रोहन? मैंने उससे सवाल किया।”   

 “हां तो क्या था उसका जवाब नंदिनी” 

 “आंटी मेरी बात सुनते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसके बदले हुए भावों को पढ़ना

मेरे लिए आसान था। तभी मैंने उससे पूछ लिया क्या हुआ रोहन, तुम्हें अच्छा नहीं लगा ना यह बात

सुनकर । तब उसने मुझे ऊपरी मन से दिलासा देते हुए कहा, नहीं, नहीं नंदिनी ऐसी बात नहीं है; किंतु

मेरे भी पापा मम्मी हैं, वह हमारे साथ रहेंगे। फ़िर हम तुम्हारे पापा मम्मी को अपने साथ कैसे रख

सकते हैं?”  

 “तब मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की आंटी कि रोहन तुम्हारे पापा मम्मी तो हमारे

साथ ही रहेंगे, यह बात तो तय ही है किंतु अपने आसपास ही हम मेरे पापा मम्मी के लिए भी एक

घर ले लेंगे। हमें सिर्फ उनका ख़्याल ही तो रखना है, उन्हें अपने साथ रखने की बात तो मैंने की ही

नहीं है।” 

 “फ़िर क्या कहा रोहन ने नंदिनी”   

 “फ़िर आंटी उसने कहा ठीक है लेकिन उसके ठीक है शब्द में विश्वास कम और बात को टाल

देने वाली सच्चाई मुझे साफ-साफ नज़र आ रही थी। कुछ देर मेरे पास रुकने के बाद वह हॉस्टल जाने

लगा। तब मैंने उसे रोकने की कोशिश की किंतु वह नहीं रुका और उस दिन के बाद से वह फ़िर मुझसे

मिलने मेरे घर कभी नहीं आया। कॉलेज में भी मुझे देख कर अनदेखा कर देता था। आंटी मेरा दिल

टूट गया लेकिन मैंने उसे मनाना ठीक नहीं समझा। अब तक मैं समझ चुकी थी कि यदि मेरे सिर्फ

बोलने से ही वह इतना परेशान हो गया है तो वास्तव में जब यह स्थिति आएगी तब वह कदापि इसे

स्वीकार नहीं करेगा और बस आंटी तभी से हम दोनों अलग हो गए। ”

 कॉलेज में भी सभी को हमारे मनमुटाव और अलग होने की बात पता चल गई। मेरी

सहेलियां हमेशा मुझे समझाती हैं कि अच्छा हुआ ना नंदिनी पहले ही तुझे पता चल गया वरना तेरे

वैवाहिक जीवन में परेशानियां शुरू से ही आ जातीं। तभी से मेरी सब सहेलियां मुझे दुःखी देखकर

कहती रहती है कब तक ऐसे दुःखी होकर अकेली रहेगी नंदिनी? अपने पापा मम्मी को अपने पास बुला

ले, तेरा मन लग जाएगा और रोहन को भूलना भी आसान होगा। ऐसे तो हमेशा तू उसके ख़्याल को

अपने से अलग नहीं कर पाएगी।“  

“बस आंटी यही है मेरी ज़िंदगी का सच, मैं अपने पापा मम्मी के लिए बेटा बनना

चाहती हूँ जो वह स्वीकार नहीं कर पाते और एक लड़का जिसे मैं प्यार करती हूँ वह मेरी

ज़िम्मेदारियों में मेरा भागीदार नहीं बन सकता। मैं अपने आप से, भगवान से हमेशा मेरे इस प्रश्न का

जवाब चाहती हूँ कि मां बाप बेटी को बेटे के रूप में कब स्वीकार करेंगे?  

 इसीलिए आंटी मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं अब मेरे पापा मम्मी को यह सच करके

दिखाऊंगी कि मैं बेटी होकर भी बेटे का कर्तव्य अदा कर सकती हूँ। 

 नंदिनी की बातें सुनकर यशोदा की आंखें नम हो गईं उन्होंने नंदिनी का हाथ अपने हाथों में

लेते हुए कहा, नंदिनी बेटा जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। अच्छा है ना जो तुम्हें पहले

ही रोहन के विचार पता चल गए, तुम मन छोटा मत करो और शादी नहीं करोगी ऐसा विचार भी अपने

दिमाग से निकाल दो। तुम्हें जरूर कोई अच्छा लड़का मिलेगा, जो तुम्हारी भावनाओं को समझेगा और

तुम्हारा साथ भी अवश्य देगा। अपने माता-पिता का ख़्याल जरूर रखना नंदिनी लेकिन अपने भविष्य

का भी ख़्याल तुम्हें रखना होगा वरना तुम एकदम अकेली हो जाओगी। अकेले जीवन काटना कितना

मुश्किल होता है, यह मैं जानती हूँ। मैं तुम्हारे माता-पिता से मिलना चाहती हूँ, क्या तुम मुझे उनसे

मिलवा सकती हो ?

 जरूर आंटी अगले महीने ही मैं उनके पास जा रही हूँ, तब आप भी चलिए मेरे साथ। आपको

भी रूटीन लाइफ से चेंज मिल जाएगा और मेरे मम्मी पापा भी आपसे मिलकर बहुत ख़ुश होंगे।

देखते-देखते महीना गुजर गया नंदिनी और यशोदा गांव पहुंच गए। दरवाजे पर पहुंच कर जैसे

ही नंदिनी ने बेल बजाई उसकी मम्मी दरवाजा खोलने आईं। वह जानती थीं कि नंदिनी पढ़ाई पूरी

करके आ रही है किंतु साथ में कोई और भी है इस बात से वह अनभिज्ञ थीं।  

 नंदिनी को देखते ही उन्होंने उसे गले से लगा लिया। उससे मिलकर जब वह हटीं, तब

नंदिनी की तरफ देखकर पूछने ही वाली थीं कि उससे पहले ही नंदिनी ने यशोदा का परिचय करवाया।

तब तक नंदिनी के पापा भी वहां आ गए।  

 यशोदा का सब लोग बहुत ख़्याल रख रहे थे, यशोदा को भी वहां आकर बहुत अच्छा लग रहा

था।  

 खाने के टेबल पर एक दिन नंदिनी  की मम्मी ने यशोदा से उसके परिवार के विषय में पूछ

लिया, यशोदा जी और कौन-कौन रहता है आपके साथ ?

;जी मैं अकेली ही रहती हूँ मेरे पति का स्वर्गवास हो चुका है।

 और आपके बच्चे

 जी मेरे दो बेटे हैं, एक है चिंतन जो कि अमेरिका में रहता है। अत्यधिक व्यस्त होने के

कारण दो-तीन वर्ष में एक बार ही आ पाता है। दूसरा बेटा मुंबई में रहता है किंतु उसकी पत्नी को

मेरा वहां रहना पसंद नहीं आता। शायद उनकी ज़िंदगी डिस्टर्ब हो जाती है। बेटा भी अपनी पत्नी जैसा

ही हो गया है। दो बेटों के होते हुए भी मैं एकदम अकेली हूं। कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि काश मेरी

भी आपकी बेटी नंदिनी की ही तरह एक बेटी होती।

 यशोदा की यह बात सुनकर नंदिनी आश्चर्यचकित हो गई और अब वह आंटी के इस तरह से

आने का उद्देश्य समझ चुकी थी।   

 नंदिनी के माता पिता यशोदा की सीधी बात सुनकर हतप्रभ से होकर एक दूसरे की तरफ़ देख

रहे थे और मानो आंखों ही आंखों में एक दूसरे को बोल रहे थे कि हमें हमारी बेटी नंदिनी पर पूरा

विश्वास करना चाहिए था।  

 नंदिनी ने वापस जाते समय अपने माता पिता से एक ही सवाल किया।  

 पापा मम्मी आप दोनों मेरे साथ रहने चलेंगे ना

 उनका जवाब सुनकर नंदिनी ने ख़ुशी से दोनों को गले से लगा लिया और यशोदा आंटी के

हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमते हुए कहा,;थैंक यू आंटी और उनसे लिपट गई।  

  

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

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