काश,,? मेरे जैसी सास सबको मिले – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

और मनीषा कैसी हो ,बस ठीक हूं आंटी । क्या बात है मनीषा अब बिल्कुल दिखाई नहीं देती है , हां आंटी जबसे मम्मी गई है किसी से मिलने जुलने का मन ही नहीं करता है। हां वो तो है बेटा तुम्हारी मम्मी का जाना तो हम लोगों को भी बहुत खलता है ।हम लोग तो मोहल्ले पड़ोस के लोग ठहरे तो हम लोगों को ही इतना बुरा लगता है लेकिन तुम्हारी तो मां जैसी थी सासु मां लेकिन मां से भी बढ़कर । हां आंटी मम्मी को तो हमने कभी सास माना ही नहीं और उन्होंने मुझे कभी बहू नहीं माना बेटी से बढ़कर प्यार दिया ।

मम्मी बहुत याद आती है आंटी और मनीषा की आंखों से आंसू के दो बूंद गिरी पड़े ।धीरे रखो बेटा जीवन मरण पर कहां किसी का जोर चलता है वो तो सब ईश्वर के हाथ में हैं हम इंसान कुछ नहीं कर सकते। अच्छे इंसानों को ईश्वर भी जल्दी बुला लेते हैं ।इस थोड़ी सी बातचीत के बाद मनीषा और आंटी दोनों अपने गन्तव्य को चले गए।

                             ममता बाजपेई , हां यही नाम था उनका । हमारे पड़ोस में रहती थी ।सौम्य और सरल, बोलती ऐसे कि जैसे बोली में शहद घुला हो । किसी को भी सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी । कोई भी उनके घर के बाहर से बचकर निकल नहीं सकता था बिना बात किए।सबको भरपूर आदर सम्मान देना प्यार देना,

सबके सुख-दुख में खड़े रहना ऐसे इंसान कम ही दिखाई देते हैं ।होते होंगे बहुत से ऐसे भी लेकिन मैंने तो अपने जीवन एक अकेला ऐसा इंसान देखा था मतलब अभी भाई साल पहले उनका देहान्त हो गया। ब्लड कैंसर हो गया था।इतने सच्चे,सरल, मृदुल इन्सान को ईश्वर भी कैसी अनचाही मौत दे देता है। जिसको हर इंसान चाहता है , जिसके लिए हर कोई तरसता है उसको ही ईश्वर इतनी जल्दी बुला लेते हैं अपने पास ।

                   दो बेटियां और एक बेटा था ममता भाभी के । बेटियों की शादी पहले ही हो चुकी थी बेटे की अभी दस साल पहले हुई है। इतना प्यार था दोनों सास बहू में कि बेटियां भी जलन खा लेती थी ।तो ममता जी बेटियों को समझाती थी देखो बेटा भाभी से जलन मत रखा करों। बेटियों को तो सब प्यार करते हैं

इस कहानी को भी पढ़ें: 

वो अभी भी तुम्हारी मां पहले है।। – अंजना ठाकुर : Moral Stories in Hindi

लेकिन असली प्यार तो बहुओं पर लुटाना चाहिए वो अपना घर परिवार , मां बाप सबको छोड़कर एक नए परिवार में आती है और यहां हम भी उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे तो बेचारी बहुएं फिर ससुराल के परिवार को कैसे अपनाएगी। दुनिया में सभी सास बहुओं का रिश्ता खराब नहीं होता कुछ अच्छे भी होते हैं ।

                 ममता जी का बेटा सिंचाई विभाग में नौकरी करता था।और बहू मनीषा ने बीएड कर रखा था तो उसकी सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी लग गई थी। बड़े आराम से मनीषा अपनी नौकरी करती थी  क्योंकि सास ममता जी का बड़ा सहयोग  था । शादी के छै महीने बाद मनीषा प्रेगनेंट हो गई तो इस तरह से उसके खाने पीने कि ध्यान रखती थी ममता जी की क्या मां करेगी ।

           मनीषा ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया। ममता जी के सानिध्य में बहू और पोता राघव खूब अच्छे से फल-फूल रहे थे।राघव सात महीने का था तभी मनीषा का ट्रांसफर एक गांव में हो गया,अब नौकरी भी नहीं छोड़नी थी और बच्चे के साथ अकेले गांव में रह भी नहीं सकती थी । फिर ममता जी ने मनीषा को अकेले जाने दिया

और पोते राघव को अपने पास रखा। पंद्रह दिन में एक बार आकर मनीषा बच्चे से मिल लेती थी । फिर मनीषा के ससुर रामशरण जी ने जी तोड़ कोशिश करके दो लाख रुपए खर्च करके मनीषा का ट्रांसफर पुराने स्कूल में करवा दिया। वैसे तो ममता जी और रामशरण जी नहीं चाहते थे कि मनीषा नौकरी करें लेकिन अपनी मर्जी थोपने से पहले उन लोगों ने मनीषा से पूछा बेटा बताओ तुम्हारी मर्जी क्या है । मनीषा ने कहा मम्मी पापा मेरा मन है कि मैं अपनी पढ़ाई का सदुपयोग करूं।तो ठीक है बेटा जो तेरी मर्जी है वहीं मेरी भी मर्जी है।

            मनीषा का ट्रान्सफर अपने गृहनगर में हो गया।इधर कुछ दिनों से मनीषा जब स्कूल से आती तो सिरदर्द कहकर लेट जाती ये क़रीब क़रीब रोज का ही होगया । कुछ समय तक लगातार ये परेशानी रही तो डाक्टर को दिखाया । टेस्ट होने पर पता लगा कि मनीषा के ब्रेन ट्यूमर है और अभी शुरूआती दौर में है। फिर क्या आनन फानन में दिल्ली ले जाया गया और मनीषा का आपरेशन हुआ ।और अस्पताल में मनीषा की मम्मी रहीं और पोते की देखभाल ममता जी करती रही । आपरेशन के बाद घर आने पर भी मनीषा का बहुत ख्याल रखा ममता जी ने मनीषा कहती सासू मां तो मम्मी से भी बढ़कर ख्याल रखती है हमारा ।

                   पोता  वो राघव अब आठ साल का हो चुका था ।इधर कुछ दिनों से ममता जी को बुखार आ रहा था दवा दे देने पर ठीक हो जाता लेकिन फिर आ जाता ।उन दिनों डेंगू का जोर चल रहा था तो फिर डेंगू का इलाज भी चला लेकिन बुखार पूरी तरह से ठीक नहीं हो रहा था । टेस्ट वगैरह कराए गए तो रिपोर्ट कुछ ठीक नहीं थी । दिल्ली ले जाया गया तो वहां पता लगा कि उन्हें ब्लड कैंसर है । बहुत इलाज हुआ लेकिन ठीक नहीं हो पाया । धीरे धीरे ममता जी ने बिस्तर पकड़ लिया डाक्टरों ने बामुश्किल सालभर का समय दिया था ।जिनपर दिन ममता जी की स्थिति खराब होती जा रही थी । मनीषा ने भी बिना तनख्वाह के स्कूल से छै महीने की छुट्टी ले ली। मम्मी ने तो इतना किया था अब मनीषा की बारी थी ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

भैया बदल गए…रश्मि झा मिश्रा   : Moral stories in hindi

        अब तो बिस्तर पर ही दैनिक क्रिया कलाप होने लगे ममता जी के । लेकिन मनीषा बिना मुंह बनाए और घबराए सबकुछ खुशी खुशी करती थी ममता जी का । ममता जी मनीषा को समझाती कि मेरे न रहने पर तुम सबको लेकर चलना बेटा जैसा हमने सिखाया है वैसा करना तो मनीषा बोलती मम्मी हम आपके बिना नहीं रह पाएंगे आपको हम लोगों के लिए ठीक होना पड़ेगा। लेकिन ऊपर वाले ने जितनी सांसे लिखी है उतनी ही तो मिलेंगी न बेटा। आखिर में नौ महीने तक अपनी बीमारी से जूझती ममता का देहांत हो गया ।

जितनी तो बेटियां नहीं रोई उतना तो बहू तो रही थी । कोई मिलने जाती तो मनीषा कहती कैसे रहेंगे आंटी मम्मी के बिना , उनके बिना तो एक काम नहीं कर सकते थे हम। सभी समझाते कि वक्त ही भरेगा  घाव बेटा ऊपर वाले ने दुख दिया है तो हिम्मत भी वही देगा ।

           आज बात बात पे मनीषा मम्मी को याद करके रो देती है मम्मी थी तो ऐसा था मम्मी थी तो वैसा था। सबकुछ मम्मी पर ही था मुझे तो कुछ नहीं मालूम । मम्मी बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर गई है मुझपर पापा की राघव की , बेटियों की क्या मैं सब मम्मी की तरह कर पाऊंगी ,कर पाओगी बेटा ।एक अच्छी मां ने तुम्हें संस्कार दिया है और एक अच्छी सासू मां का प्यार और सानिध्य मिला है सब कर पाओगी ।जब भी मिलती मनीषा ममता जी को याद करके आंसू जरूर बहा देती है ।और कहती हैं

ऐसी समझने वाली सासे भगवान सबको दे । हां बेटा अच्छे ही बने रहो सबका ख्याल रखो और खुद का भी ख्याल रखो और उनके आदर्शों का पालन करो ईश्वर तुम्हें शक्ति दे ।जी आंटी कहकर मनीषा चली गई। बहुत कम देखने को मिलता है इस तरह का सास बहू का प्रेम ।

सभी बहूएं बुरी नहीं होती और नहीं सभी सासे बुरी होती है। कुछ लोगों की वजह से पूरा रिश्ता बदनाम होता है । लेकिन आज के समय में सास बहू का आपस का तालमेल बहुत खराब हो गया है। सास बहू क्या पति पत्नी ,मां बेटा , पिता पुत्र सभी रिश्तों में दूरियां आ गई है । रिश्ते दिन पर दिन खराब हो रहे हैं। सुधारने का कोई तरीका समझ में नहीं आता है।आज इंसान रिश्तों से परेशान बहुत है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

24 दिसंबर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!