अरे रोशनी तू तो इस नाटक में अभिनय करने को लेकर सीरियस हो रही है।
ये, सीरियस क्यों नही होगी , हीरो सुरेश जो है।
बबिता ने रोशनी की तरफ देखते हुए कहा।
नहीं , नहीं ऐसी कोई बात नहीं। बस इसमें रोल अहम है सोचा काम कर ही लूं।
कुछ भी हो, सुरेश इसका ख्याल भी तो रखता है।
हां भी इसके फेमिनिज्म की कद्र भी तो करता है।
बबिता और रोमा रोशनी से चुटकी ले रहे थे कि नाटक वाले सर आ गये, और सब लोग नाटक में व्यस्त हो गए। ये कालेज का एनवल फंक्शन की तैयारी चल रही थी। सोहनी महिवाल नाम का नाटक था जिसमें सोहनी रोशनी व महिवाल सुरेश बना था। नाटक में तो सुरेश रोशनी की मदद करता ही साथ ही वह असल जिंदगी में भी वह रोशनी का बहुत ख्याल रखता। रोशनी को काम करते देख वह झट से बोल उठता क्या, काम ज्यादा है और उसका हाथ बंटाता। रोशनी को भी उसका यह कहने का अंदाज बहुत अच्छा लगता।
वह सुरेश से अक्सर पूछती, क्या वह शादी के बाद भी इसी वादे पर कायम रहेगा। तो सुरेश कहता बिल्कुल फेमिनिज्म की कद्र करूंगा। क्यों कि सुरेश समझता था कि रोशनी कभी भी इसकी आड़ में रोशनी उसका गलत फायदा नहीं उठाएगी। दोनों ने एम बी ए भी एक ही कालेज से किया । पर दोनों की नौकरी अलग अलग पर अच्छे आफिसों में लग गयी। अब दोनों तय किया व घर वालों की रजामंदी से शादी भी कर ली।
शुरू के दो साल तो यूं ही हंसते खेलते निकल गये। पर रोशनी कुछ समय से महसूस कर रही थी कि सुरेश में बहुत बदलाव आ गया है । अगर रोशनी कुछ काम कर रही होती तो सुरेश वहां से हटकर चला जाता । रोशनी अकेले ही सुबह नाश्ता, खाना बनाती , घर करीने से सगयाती पर सुरेश इन सब चीजों से अलग अपने में ही व्यस्त रहता। अब वो काम अधिक है कहकर मदद करने वाला सुरेश एक हुक्म चलाने
वाला पति नजर आता। इसी बीच रोशनी को एक दिन लगा कि वह मां बनने जा रही है । वह खुशी के अतिरेक से सुरेश को फोन लगाने लगी पर सुरेश ने यह कहकर फोन काट दिया कि वह बिजी है।
खैर बच्चा आने पर सुरेश भी प्रसन्न था पर।
बच्चा आने पर जहां रोशनी के काम बढ़ गये
थे वहीं सुरेश किसी किस्म की जिम्मेदारी नहीं समझ रहा था। रोहन अब थोड़ा बड़ा होने लगा था , अब वह बिस्तर से पलटी मारने लगा था। रोशनी के लाख कहनें पर भी सुरेश काम में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाता बल्कि ये कह देता कि ये मेरा काम नहीं है।
रोशनी परेशान होती व थक हार कर सारे काम भी करती तथा रोहन को समय देती तथा आफिस भी निभाती।
आज रोहन की तबीयत ठीक नहीं थी। वह जैसे तैसे करके आफिस के लिए लंच बनाने के बाद रोहन के कमरे में आई देखा , वह बुखार से तप रहा है। वह ठंडे पानी की पट्टी यां रखने के लिए रसोई में थोड़ी कि पैर फिसलने के कारण गिर गई। एक जोर की चीख से सुरेश अपने कमरे से निकल आया व रोशनी को उठा कर बैंड पर बिठाया। रोशनी रोते हुए बोली पहले डॉक्टर को बुलाकर रोहन को दिखाओ।
डाक्टर के आने पर दोनों को दिखाया। जाकर दवाई लेकर आया। आने पर रोशनी ने कहा कि क्या सुरेश सारे काम की मेरी जिम्मेदारी है तब सुरेश बोला मैं समझ गया रोशनी , कुछ लोगों ने फैमिनिजम को लेकर मुझे ग़लत सलाह दी कि तेरी पत्नी तेरा गलत फायदा उठा लेगी इसी लिए तुम्हारे द्वारा किए गए कार्य के प्रति मैं उदासीन हो गया। मैं भूल गया कि तुम उन लड़कियों में से नहीं हो , जो बराबरी के नाम पर कुछ ग़लत करो। पर अब मुझे सब समझ आ गया है। अब तुम बताओ काम, ज्यादा है क्या।
सुरेश के इस डायलाग से रोशनी की आंखों में आसूं आ गये, वह रोते रोते बोली, कि मैं इसी सुरेश को तो कब से ढूंढ रही थी जो कहे कि काम ज्यादा है क्या।
*पूनम भटनागर।