पेड़ों से आच्छादित वादी ने मनोरम दृश्यों का आद्यतन किया था, जहाँ हर एक पेड़ और उनके पत्ते, हरियाली से भरी घास और प्राकृतिक रंगों का मेल बना रहे थे। सभी लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए ऐसा महसूस कर रहे थे कि वे किसी शांतिपूर्ण स्थल में खो गए हैं, जहाँ केवल खुशियों की मिठास के साथ सुकून का पुल बना हुआ है। इस प्राकृतिक वातावरण में उन्हें आत्मीयता की अनूठी अनुभूति हो रही थी, जो उनके मन को शांति और संतुष्टि दे रही थी। इस प्राकृतिक आश्रय में उन्हें प्रसन्नता की अनुभूति हो रही थी, जो उन्हें अपनी चिंताओं से दूर ले जाती प्रतीत हो रही थी।
बच्चे कुछ थकान का अनुभव कर रहे थे और वातावरण की ठंडी-ठंडी हवा उन्हें सुस्ती और आराम दे रही थी। इस सुकून भरे माहौल का लुफ्त उठाते हुए उनके चेहरों पर खुशी और संतोष की मुस्कान थी। आरुणि ने उन्हें फल खाने के लिए समझाया और फिर खुद चाय बनाने लगी। चाय के साथ-साथ योगिता, राधा और तृप्ति ने स्नैक्स लिए और घूमने के लिए बाहर निकल गईं, जबकि अन्य लड़कियाँ बच्चों के साथ आराम करने लगीं। इस वातावरण में सुखद भोजन और दोस्तों के साथ बिताया वक्त एक साथ स्मरणीय अनुभव के समान था। चहल-पहल और खुशियों से भरा यह समय बच्चों के संग बड़ो के दिलों में भी अमूल्य स्मृति के रूप में बसने वाला था।
आरुणि रोहित के साथ वही बैठी रही, उसकी आँखों में उत्साह और आस्था की झलक थी। वह जिन्दगी के सफर में जिन्दगी से परिचय कराने के लिए रोहित को साथ लेकर यहाँ आई थी।उसका चेहरा एक सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ था, जो उसके चेहरे को प्रकाशवान बना रहा था। वह अपने अंतर्मन के संगीत को सुनती हुई, रोहित के साथ इस सफर का आनंद लेने के लिए उत्सुक थी।
रोहित ने ये पूछ कर कि “ये बच्चे और लड़कियाँ कौन हैं”…जिंदगी को लेकर खुद ही सवाल कर दिया क्यूँकि आरुणि इन्हीं से रूबरू कराने के लिए रोहित के साथ बैठी थी।
“ये बच्चे और इन लड़कियों का भगवान के अलावा दुनिया में कोई नहीं है रोहित। ये सब मुझे रास्तों पर भटकते.. रोते.. बिलखते मिले थे, जिन्हें मैं अपने घर ले आई।” आरुणि एक दूसरे के साथ चुहल करते बच्चों को देखती हुई कहती है।
“ये बच्चे और इन लड़कियों का भगवान के अलावा दुनिया में कोई नहीं है, रोहित।” आरुणि एक दूसरे के साथ चुहल करते बच्चों की ओर देखती हुई कहती है, “ये सब मुझे रास्तों पर भटकते, रोते, बिलखते मिले थे, जिन्हें मैं अपने घर ले आई।” आरुणि की आवाज में एक गहरी भावना थी, जो उसके शब्दों में उजागर हो रही थी।
“और तुम्हारे घर के लोग.. उन्हें कोई ऐतराज नहीं हुआ। तुम्हारे मम्मी पापा.. भाई बहन।” रोहित उत्सुक हो क़र पूछता है।
रोहित की बात को टालती हुई आरुणि कहती है… “योगिता को देखा है ना तुमने। उसके भाई और पिता उसे घर में कैद करके रखते थे। उन्हें शराब की लत थी, इस कारण से उनकी नौकरी चली गई। माँ नहीं रही। जब सारे पैसे खत्म हो गए तो उन्हें एक मात्र सुविधाजनक मार्ग लगा, योगिता को बेच कर पैसे उगाहना। किसी तरह अपने भाई और पिता के चंगुल से निकल कर भाग आई थी और मुझे कैफे जाते समय बदहवास सी मिली थी। पिता और भाई जैसा रिश्ता साथ होते हुए भी महफ़ूज़ नहीं थी.. दर दर की ठोकरें खाने घर से निकल गई थी।” आरुणि की आवाज में एक गहरी दर्दभरी उत्तेजना थी, जो उनकी बातों से उजागर हो रही थी, वह रोहित के साथ बैठी हुई थी, लेकिन उसकी ओर ना देखती हुई पैर के नाख़ून से बिछी हुई दरी को कुरेद रही थी, जो उसके आंतरिक तनाव को प्रकट कर रहा था, जो उसके हृदय में जमे हुए दुःख और क्रोध की झलक थी।
“ओह… कैसे कैसे लोग हैं संसार में”.. रोहित दुखी होक़र जिस ओर योगिता गई थी, उस ओर देखता हुआ कहता है। उसका चेहरा उदासी और निराशा का इजहार करता हुआ अस्तचलगामी सूर्य की तरह स्याह हो गया था।
“मेरे साथ यहाँ जो भी हैं ना रोहित.. सबकी अलग अलग दारुण कहानी है।” आरुणि रोहित के चेहरे पर फैली स्याह रेखाओं को महसूस करती हुई कहती है।
“राधा की शादी उसके चाचा चाची ने दादा के उम्र के एक आदमी से तय कर दी थी, जिसका एक पैर कब्र में ही लटका हुआ था और उस आदमी की यह चौथी शादी थी। इसके लिए उसने राधा के चाचा को पैसे दिए थे। औरतों की फुसफुसाहटों के बीच राधा के कान तक यह बात पहुँची और राधा वहाँ से दुल्हन के कपड़ों में ही निकल गई। उस दिन मैं शाम में कैफे से घर आ रही थी और संयोग से पैदल ही आ रही थी। तभी मैंने राधा को दुल्हन के लिबास में गहने डाले जंगल की तरफ जाते देखा। कुछ देर के लिए तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूँ, या कहूँ कि मैं डर गई थी। फिर भी हिम्मत करके उसके पीछे गई। देखा तो एक झुरमुट में छुप कर बैठ गई थी राधा। कुछ देर इंतजार के बाद भी वह बाहर नहीं आई, तो मैं ही उस तक गई। मुझे देखते ही राधा बिना कुछ सोचे मेरे गले लग जोर जोर से रोने लगी। मैंने उसे चुप कराया और थोड़ा अँधेरा घिरने पर उसे घर ले आई और आज भी मुझे उसकी आँखों में उस दिन की भावनाओं का जब तब आभास होता रहता है। इन लोगों को सब अच्छे से संभालते देख़ कोई नहीं कह सकेगा कि ये सब किन किन हालातों से गुजरी हैं।” आरुणि कुछ आक्रोश और कुछ दुःख से कहती है।
रोहित धीरे-धीरे आरुणि की बातों में समाता जा रहा था, आरुणि की बातों में खोता जा रहा था उसकी आँखों में संसार के प्रति फैल गई अजनीबियत बता रही थी क़ि वह अपने आप को और अपने चारों ओर की दुनिया को नए नजरिए से देख रहा है। धीरे-धीरे, जीवन की गहराइयों में उसका परिचय हो रहा था, उसे महसूस हो रहा था कि वह जीवन के अनन्त सागर की ओर बढ़ रहा है। उसकी हर साँस, हर धड़कन और हर आवाज उसे जीवन की सत्यता के करीब ले जा रही थी। यह उसके जीवन का नया प्रारंभ हो रहा था, जहाँ उसे खुद को और अपने आस-पास के लोगों को समझने का नया दृष्टिकोण मिल रहा था। यह उसके जीवन का एक नया अध्याय था, जो उसे स्वयं के और जीवन के साथ नए संबंधों का अनुभव कराने की ओर बढ़ा रहा था, जो उसे उसके आसपास की जीवन की सच्चाई से जोड़ रहा था।
“आज तक तो मैं यही समझ रहा था कि मुझसे ज्यादा दुःखी दुनिया में कोई नहीं है। लेकिन मेरे पास तो दादी हैं…जो मुझसे प्यार भी बहुत करती हैं। उन्हें ही दुःखी कर आ गया मैं.. मेरे बिना किस तरह होंगी वो पता नहीं।” रोहित हड़बड़ा क़र अचानक बोल उठा।
रोहित की आवाज में एक गहरी उदासी थी, उसके शब्दों में एक अनजाने से भय की भावना थी, जैसे कि वह समझने की कोशिश कर रहा था कि उसके अस्तित्व का मूल्य क्या है और उसके अभाव में दादी का जीवन कैसे होगा। इस समय रोहित की आवाज का अज्ञात डर, उसके अंतर की गहराइयों से उभर रहा था, जैसे कि वह अपने अस्तित्व की महत्वाकांक्षा और उसके अभाव के भयानक एहसास के साथ लड़ रहा हो।
“पापा भी रोहित… तुम्हारे प्रति उनका प्यार ही है.. जो तुम्हें कुछ भी कह देते हैं। वो तो खुद अपने दुःख से बाहर नहीं आ पाए हैं रोहित.. उनकी बात का क्या बुरा मानना।” आरुणि रोहित की आँखों में डर की छाया देखती हुई कहती है। आरुणि की आँखों में भी दिख रहा था डर का बोध और वो थी उसकी चिंता कि रोहित पिता के विचारों को नकारेगा और उससे अलग हो जाएगा। इसलिए उसके वचन रोहित को एक नयी दिशा की ओर ले जाने के लिए प्रेरित कर रहे थे, जो उसे अपने परिवार और अपने अस्तित्व के महत्व को समझने में मदद कर सकता था।
“हूं.. तुम ठीक कह रही हो आरुणि… आज ही मैं दादी को कॉल कर बताऊँगा कि मैं यहाँ हूँ और ठीक हूँ। उन्हें कुछ दिन के लिए यही आने कहूँगा और तुम सब से मिलवाना भी है उन्हें।” रोहित गिरते झरने की ओर देखता हुआ कहता है, मानो उसका मन भी बिना जुबान के आरुणि की बातों का समर्थन करता हुआ नतमस्तक हो रहा हो।
“ये तो बहुत अच्छी बात होगी रोहित।” आरुणि रोहित के चेहरे को निहारती हुई कहती है।
“तुमने अपने बारे में नहीं बताया आरुणि”…रोहित अब आरुणि के आँखों में झाँकता हुआ पूछता है।
रोहित के प्रश्न का उत्तर देने के लिए आरुणि के शब्दों ने जैसे ही खुद को वाक्य में ढाला, वैसे ही आरुणि को उसकी सहेलियों का समूह दिखाई दिया, जो उसका ध्यान उनकी ओर बटोर ले गईं।
“क्या भई तुम लोग भी, इतनी प्यारी जगह आकर भी बैठे हो। जाकर देखो… कच्ची सड़कों पर चलने का अपना अलग ही मज़ा है।” तृप्ति हाथ में किसी पेड़ की छोटी सी टहनी लिए घुमाती हुई उनके करीब आकर कहती है।
“ठीक है.. चलो रोहित.. हम भी हो आते हैं।” आरुणि तृप्ति की प्रसन्नता देखकर रोहित से कहती हुई खड़ी होती है और लड़कियों की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डालती है। जो अभी तक नहीं जा सकी थी, वो आरुणि की प्रश्नवाचक दृष्टि का उत्तर साथ चलने की इच्छा जाहिर क़र देती हैं।
बच्चे भी अब तरोताजा हो गए थे।वे अब उत्साह से भर गए थे, उन्हें नई चीजों का आनंद लेने का मौका मिला था। तो वो भी क्यूँ टिकते! सब साथ अंदर जंगल की सैर पर गाते.. गुनगुनाते निकल गए। बच्चे जंगल की खुशबू, परिसर की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य में खो गए थे। उनकी मुस्कानें और खुशी का माहौल जंगल में एक नया जीवन भर रहा था।
जब सूर्य धीरे-धीरे पश्चिम की ओर गतिमान हो रहा था, तो झरने के पानी की चमक में उसकी लालिमा ढल रही थी। इस चमक से झरने का पानी श्वेत और धवल सौंदर्य को उत्पन्न कर रहा था औऱ इसकी रोशनी अब भी अपूर्व लग रही थी।
एक छोटे बच्चे ने चमकते हुए पानी को देखते हुए उत्साहित होकर चिल्लाया, “चाँदी का पानी, चाँदी का पानी!” इसके बाद, और भी कई बच्चे उनके साथ हाथ मिलाते हुए एक दूसरे को दिखाते हुए उत्साह भरी आवाज़ में चिल्लाने लगे। उनकी खुशी और उत्साह का नज़ारा सभी को प्रसन्न करने वाला था और उन्हें ऐसा करते देख सबको हँसी आ गई।
बच्चे पेड़ों में लगे फल तोड़ कर चखना भी चाहते थे, जिस पर रोहित ने उन्हें समझाया कि हमें इनके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है कि ये खाने लायक हैं या नहीं.. जहरीले तो नहीं हैं.. इसलिए हमें कभी भी नई जगह पर ऐसी चीजों को खाने से बचना चाहिए।
“वाह बरखुरदार.. संगति का असर दिख रहा है.. क्यूँ लड़कियों.. रोहित भैया.. हमारी संगति में समझदार हो गए हैं।” आरुणि रोहित को घुटनों के बल बैठकर समझाते हुए देखकर कहती है।
इसी हँसी मज़ाक के बीच सब लौटने पर विचार करने लगते हैं और चलने की तैयारी प्रारम्भ क़र देते हैं।
बच्चे तो इस जगह से जाना ही नहीं चाहते थे। बच्चे क्या बड़े भी इस वादी से.. इस ख्वाबगाह से निकलना नहीं चाहते थे। लेकिन आरुणि का कहना था कि अँधेरा होने से पहले हमें निकल जाना चाहिए क्यूँकि फिर जानवरों का भी भय लगा रहेगा। जिस पर सबकी सहमति हुई।
रोहित को आज का डिनर हवेली में सबके साथ करने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसे रोहित सहर्ष स्वीकार कर लेता है।
बाहर ड्राइवर अंकल भी सबका इंतजार कर रहे थे। वहाँ से प्रसन्न मुखमंडल के साथ सब हवेली की तरफ चल पड़े।
गाड़ी के हवेली पहुँचते ही रोहित आश्चर्यचकित रह जाता है।
“इतना बड़ा मकान, ये तो फिल्मों वाली हवेली लग रही है।” गाड़ी से उतरते ही सामने खड़े मकान को देख़ रोहित प्रतिक्रिया देता है।
“फिल्मों वाली हवेली क्या, ये हवेली ही है।” आरुणि मुँह बनाकर कहती है।
“अच्छा तुम्हारी हवेली है.. कभी बताया नहीं तुमने।” रोहित आरुणि को मुँह बनाता देख़ छेड़ते हुए कहता है।
उसका मुंबई में खुद का घर भी बहुत बड़ा था। पर ऐसी पुरानी शैली में बनी हवेली उसने सिर्फ फ़िल्मों में देख़ रखी थी, इसलिए उसकी आँखें अचंभित होकर फैली हुई मुआयना करने में लगी हुई थी औऱ उसका दिमाग़ उस हवेली को एक शानदार होटल के रूप में देख़ रहा था। यहाँ आने से पहले रोहित होटल के प्रोजेक्ट पर ही काम कर रहा था। इसलिए उसके दिमाग़ का एक कोना सक्रिय हो गया।
“तुम्हारा लाॅन तो काफी बड़ा है आरुणि। माली रखा होगा तुमने देखभाल के लिए”….रोहित का अगला सवाल था।
“नहीं हम सब मिल कर देखभाल करते हैं”.. आरुणि कहती है।
“बच्चे फूलों को तोड़ते नहीं हैं”.. रोहित आश्चर्य से पूछता है।
“नहीं… बच्चों को पता है कि इनमें भी जान होती है और तोड़ने पर फूलों को भी दर्द होगा”… तृप्ति दोनों की बातें सुनकर करीब आती हुई बोलती है।
“हम तो पूजा के लिए भी फूल नहीं तोड़ते हैं, जो खुद से नीचे गिर जाते हैं, उसका ही पूजा में उपयोग करते हैं”… तृप्ति आगे जोड़ती हुई कहती है।
“ये तो बहुत अच्छी बात कही तुमने। तुम लोगों से कितनी बातें सीखने मिल जाती हैं।” रोहित तृप्ति की प्रशंसा में कहता है।
“तुम लोग अभी तक यही हो.. अंदर चले..फ्रेश होकर चाय शाय लिया जाए। फिर डिनर की भी तैयारी करनी है।” योगिता दूसरी गाड़ी से उतर कर आती हुई बोलती है।
औऱ बच्चे गाड़ी से उतरते ही फिर से खेलने में जुट गए थे, आखिर उनकी ऊर्जा का कोई जोर तो होता नहीं है। इसलिए योगिता थोड़ा कड़े लहजे में बच्चों से शीघ्र आने और फ्रेश होने के लिए बोल हवेली के अंदर चली गई।
अगला भाग
जीवन का सवेरा (भाग -9 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली