आरुणि रोहित को भावनाओं में गुम हुआ देख़ टेबल थपथपाते हुए “नोक नोक” बोल रोहित को ख्यालों की दुनिया से बाहर लाती है, “रोहित कहाँ खो गए थे, मैंने कुछ पूछा है तुमसे”… आरुणि ने चिंता और परेशानी के भाव से उससे पूछा। वह रोहित की परेशानी जानने के लिए उत्सुक थी, जबकि रोहित की आँखों में अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति थी।
“आं.. क्या पूछा तुमने”… रोहित आँखें मलता हुआ कहता है, रोहित की आँखें अभी भी सुस्त और अनजानी स्थिति में थीं, जैसे उन्हें अचानक नींद से जगा दिया गया हो।
“यही कि रोहित साहब को आज हमारी याद कैसे आ गई”…
रोहित उदास और विचलित मन से सच्चाई बयां करता हुआ कहता है, “आज मन बहुत खराब हो रहा था। दादी माँ की बहुत याद आ रही थी। बहुत मिस कर रहा हूँ उन्हें, तो सोचा तुम्हारे पास बैठूं… बातें करुँ।” उसकी आँखों में व्याकुलता और दुख की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी, जो उसकी दादी माँ के यादों के प्रति उसकी अत्यधिक उत्कंठा और इच्छाशक्ति को दर्शा रही थी।
“तो पोता जी, क्या हुआ? मन क्यूँ खराब हो रहा है आपका?” आरुणि मुस्कुराते हुए पूछती है।
“अब इस तरह बोलने की क्या तुक है आरुणि।” रोहित खीझ भरी आवाज़ में कहता है।
“ओह हो खीझू महाराज, तुम्हीं ने तो कहा मैं तुम्हारी दादी माँ जैसी लगती हूँ तो मैंने कल्पना किया कि तुम मेरे पोते हो।” आरुणि रोहित को चिढ़ाती हुई कहती है।
“ओ गॉड .. कब कहा ऐसा” ..रोहित झल्ला उठा था, ऐसा लग रहा था मानो वह झगड़ने के लिए आतुर हो।
“अब दादी माँ की याद आते ही सबसे पहले तुम्हें मेरा ख्याल आया ना। तृप्ति, राधा, योगिता का ख्याल नहीं आया ना। रास्ते में कोई बुजुर्ग महिला दादी माँ की तरह नहीं लगी ना.. तो इस नाते”… आरुणि शब्दों को चबा चबा क़र इस तरह कह रही थी जैसे कि वह रोहित की झल्लाहट का मज़ा ले रही हो।
“कितना खींचती हो बात को” …रोहित नाराज होता हुआ कहता है।
“और तुम कितना चिढ़ते हो ना। इस बीमारी का एक ही समाधान है कि दर्पण के सामने बैठकर मुस्कुराते हुए ध्यान किया करो, चिढ़ने की आदत छूमंतर हो जाएगी। मुफ्त की सलाह है, लेनी हो तो लो। नहीं तो इसी टेबल पर रख जाना। किसी और जरुरतमंद के काम आ जाएगी।” आरुणि रोहित की नाराजगी का मज़ा लेती हुई मुस्कुरा क़र कहती है।
“जी…देवी जी..जरूर..जैसा आप कहे”… रोहित भी अब हँस पड़ा था।
आरुणि रोहित की हँसी के साथ अपनी हँसी मिलाती हुई कहती है, “प्रभु, अब मन खराब होने का कारण बताया जाए। हम उचित समाधान देने का यथेष्ट प्रयास करेंगे श्रीमान।”
रोहित आँखें तरेरता हुआ कहता है, “फ़िर नौटंकी शुरु”..
“तुम्हारी इगो वाली बीमारी वापस तो नहीं आ गई।” आरुणि रोहित की आँखें देख़ डरने का अभिनय करती हुई कहती है।
“नहीं.. तुमने इसे भगाने का ऐसा ट्रिक दिया है कि अब यह पूरे जीवन वापस इधर फटकने वाला नहीं है।” रोहित आरुणि के सामने सिर झुकाते हुए कहता है।
“आरुणि का शिष्य बने रहने के कई फायदे हैं बालक, उत्तरोत्तर समझते जाओगे। अब बताया जाए कॉफी और सैंडविच के साथ… आरुणि खिलखिला क़र कहती है।
रोहित आरुणि क़ी बात पर गंभीर होकर सिर झुकाए दोनों हाथों को मसलता हुआ कहता है, “सच कहूँ तो मुझसे ना कोई काम नहीं होता है। मेरे कारण हमारे बिजनेस में भी लॉस होने लगा। जब तक मम्मी थीं, डैड खुश रहते थे। अब डैड बात बेबात खफा रहते हैं। उनको लगता है मेरी लापरवाही के कारण मम्मी अब हमारे बीच नहीं हैं। दादी हरसंभव कोशिश करती हैं कि हम दोनों ना टकराए, लेकिन एक ही घर में रहते हुए यह सम्भव तो नहीं है। इसी कारण मैंने घर छोड़ दिया है।” इस समय रोहित के व्यक्तित्व में विचारशीलता और आत्मविश्वास की कमी दिख रही थी, जो उसे अपनी असफलताओं और परिस्थितियों के लिए खुद को दोषी मानने के लिए मजबूर कर रही थी।
“मम्मी नहीं हैं… ओह.. क्या हुआ था” आरुणि ने स्निग्धता भरे स्वर में रोहित की आँखों में झाँकते हुए पूछा। आरुणि के आवाज़ में संवेदना और सहानुभूति की गहराई थी। उसकी आँखों में दिख रहे आँसू रोहित के दुख को समझने और उसका साथ देने की इच्छा को दर्शा रहे थे।
रोहित शीशे से बाहर देखता हुआ भर्रा गए आवाज़ को साफ करता हुआ कहता है, “मैंने अपना बिजनेस जॉइन किया था। इसी खुशी में मम्मी मेरे साथ आउटिंग पर जाना चाहती थीं। मैं और मम्मी आउटिंग के लिए निकले थे। बहुत खुश थे हम दोनों ही, दोपहर के समय निकले थे हमलोग। मम्मी हमेशा मेरी ड्राइविंग को इंजॉय करती थी। हमेशा कहती थी.. मैं अपने डैड से अच्छी ड्राइविंग करता हूँ और मैं गर्व से भर उठता था। मम्मी ने दादी से कहा भी था, “आज वो अपने बेटे के साथ समय व्यतित करेंगी, वैसे ही दादी को भी अपने बेटे के साथ समय बिताना चाहिए।” साथ ही डैड को घर आ कर दादी माँ के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया। “माँ के साथ रहिए आज, आज माता पुत्र दिवस सेलिब्रेट किया जाए। मेरी मम्मी बहुत सुलझी हुई थी। हर रिश्ते का महत्त्व जानती थी। सभी रिश्ते की अपनी अपनी एक जगह होती है, बखूबी समझती थी। किसी पर कोई बंधन नहीं डालती थी। दादी माँ तो कहती थी, “माँ के घर आने के बाद उन्हें बहू से ज्यादा बेटी की फिलिंग आती है।” घर भर की जान थी मेरी मम्मी। उस दिन हमारे निकलने से पहले डैड भी घर आ गए थे। माँ थोड़ी देर पहले तक दादी माँ के अकेले रहने से चिंतित थी। डैड को आया देखकर खुश हो गई थी। डैड ने मजे लेते हुए कहा, “दुनिया की पहली अजूबी बहू होगी तुम, जो अपने पति को सास के हवाले करके घूमने जा रही हो। मम्मी ने उनकी बात को नकारते हुए कहा, “ना.. ना.. एक बेटे को उसकी माँ के हवाले करके अपने बेटे के साथ जा रही हूँ।”
“तुमसे कौन जीत सकता है”, बोल कर पापा हँसने लगे थे। अब तो हँसना क्या.. मुस्कुराते भी नहीं.. सख्त सा चेहरा हो गया है उनका। रास्ते में मैंने और मम्मी ने मम्मी के पसंदीदा रेस्तरां में लंच लिया.. फिर जिधर जिधर इच्छा हुई घूमते रहे। चाय का थर्मस और कुछ स्नेक्स गोपी चाचा से बनवा कर मम्मी ने रखवा लिया था। गोपी चाचा हमारे घर के रसोइया हैं। दूर दूर तक फैले हरीतिमा को चाय और स्नेक्स के साथ देखना, उन्हें महसूस करना मुझे और मम्मी दोनों को पसंद था। मम्मी का प्रकृति से लगाव जगजाहिर था। शायद ही कोई होगा, जो उनको जानता हो और उनके प्रकृति प्रेम से अनभिज्ञ हो। दूर तक घूमने के बाद सूरज भगवान जब क्षितिज से मिलने धरा की ओर चल पड़ें, तब हमने भी गाड़ी वापस घर की ओर मोड़ दिया था और उसी एक पल में पता नहीं कैसे कार का बैलेंस बिगड़ गया। एक पल में सब कुछ खत्म हो गया। मम्मी ने वही दम तोड़ दिया, लेकिन बदकिस्मती से मैं बच गया। हमारे घर की स्तम्भ थी मम्मी, उस दिन के बाद सब कुछ बिखर गया।” बोलते-बोलते रोहित बिलख पड़ा था।
आरुणि अपनी कुर्सी से उठकर रोहित के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर शून्य में ताकते हुए कहती है, “अपने आप को संभालो रोहित। यही जीवन है, प्रकृति हमें जब जिस ओर बहाती है, हमें बहना ही होता है।” आरुणि रोहित को सांत्वना देती हुई अपने जीवन के सभी मोड़ों पर संघर्ष करने के लिए प्रेरित करने क़ी कोशिश करती दिख रही थी।
रोहित अपने आँसू पोंछते हुए और निराशापूर्ण भावना के साथ बोलता है, जो उसकी आवाज़ में गहराई से महसूस होती है, “माफ़ करना आरुणि, खुद से ही भागना चाह रहा हूँ मैं। भावना में बह गया था। रोहित ने खुद को स्थिर करता हुआ कहता है। उसकी आँखों में अपने विरोधात्मक भावनाओं के आदान-प्रदान के संघर्ष का अस्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखता है।
कोई बात नहीं रोहित, जीवन की कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिसे देख इंसान खुद को असहाय ही महसूस करता है। वैसे भी हमारे वश में कुछ है ही नहीं, जो भी करना है वक्त को करना है। इन्सानों के लिए बनाए शब्दकोश में ईश्वर ने कुछेक शब्द ही दिये हैं… कोशिश… ध्येय…ध्यान.. यही सब… आरुणि रोहित के कंधे को थपथपा क़र बोलती हुई अपनी जगह पर आ बैठती है।
“मैं समझा नहीं.. तुम क्या कहना चाहती हो”…रोहित के चेहरे पर अबूझ पहेली को सुलझाने वाले भाव आ गए थे।
आरुणि रोहित पर नजर डाल अपने आसपास के लोगों पर निगाहें डालती हुई कहती है, “हर पग पर एक नई चुनौती का सामना करना होता है। या तो उससे लड़ कर खुद को सिद्ध करो या मौन रहकर स्वयं का हनन होते देखते रहो। जब कुछ भी हमारे कंट्रोल में नहीं है तो हमें मन में ध्येय बना लेना चाहिए कि ईश्वर के बंदों के लिए अधिक से अधिक कार्य कर सकें, उनकी हर सम्भव सहायता करने की कोशिश करनी चाहिए। पता है शांति और सुकून मिलता है इससे हमें।” आरुणि के गंभीर चेहरे पर यह कहते हुए मुस्कुराहट आ गई थी और आँखों में चमक खिलखिलाने लगी थी।
रोहित समर्थन करता हुआ कहता है, “हूं, कह तो तुम सही रही हो। लेकिन कैसे.. कहाँ से शुरू करें।”
“इस पर बाद में बात करेंगे। हमारी बातों में बेचारे कॉफी और सैंडविच तो अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचे बिना ही शहीद हो गए। चूहे भी कुलबुला रहे हैं पेट के अंदर… तो क्यूँ ना पहले उदर की शांति पर ध्यान दिया जाए। कुछ और मँगवाया जाए।” आरुणि कॉफी और सैंडविच पर दया भरी दृष्टि डाल क़र कहती है।
रोहित को हँसी आ गई.. “भूख तो लगी है”…
“क्या खाना पसंद करोगे, मिक्स वेज पराठा, चाय के साथ लेना चाहोगे। यहाँ का मिक्स वेज पराठा बहुत ही स्वादिष्ट होता है…मुझे तो बहुत ही पसंद है।” आरुणि आँखें मटका क़र चटखारे लेती हुई कहती है।
“मैं ऑर्डर करूँगा”… रोहित झट से कहता है।
“अच्छा एक मिनट अभी आई”, कहकर आरुणि कैफे के किचन की ओर चली गई और वापस आकर मुस्कुरा कर बैठ गई।
आरुणि के बैठते ही रोहित उत्सुकता से पूछता है, “तुम तो कैफे के किचन में चहलकदमी करते ऐसे गई.. जैसे तुम्हारा ही कैफे हो।”
“क्यूँ भई.. इस नाचीज का कैफे नहीं हो सकता है क्या!” आरुणि मुस्कुरा क़र आँखों में उत्तर भर क़र कहती है।
रोहित सिर हिलाता हुआ कहता है, “जरूर हो सकता है.. लेकिन तुम तो टीचर जी हो ना।” बोलते हुए रोहित अचानक उठकर कैफे के दरवाजे की ओर बढ़ गया।
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जीवन का सवेरा (भाग -6) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली