जीवन का सवेरा (भाग -17 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“ये क्या है अंकल” .. आरुणि आश्चर्य से पूछती है। 

रोहित के पापा, आरुणि को संजीदगी से देखते हुए कहते हैं, “तुम खुद ही पढ़ो बेटा। अगर तुम्हारी हाँ होगी तभी बात आगे बढ़ेगी।” आरुणि के हाथों में पेपर्स होते हैं, जिनमें “जीवन का सवेरा” संस्था को सहारा देने और विस्तार करने की योजना विस्तार से लिखी होती है।

पेपर्स पढ़ते-पढ़ते आरुणि की आँखों में आँसू आ गए। उनके सामने स्पष्ट हो गया कि रोहित के परिवार ने कितनी गंभीरता और प्रतिबद्धता से इस परियोजना को अपनाया है। आँखों में चमक और हल्की सिहरन के साथ, आरुणि अपने खुशी के अतिरेक को दबा नहीं पाती है और भावुक स्वर में कहती है, “क्या आप लोग सच में ‘जीवन का सवेरा’ को विस्तार देना चाहते हैं, सहारा देना चाहते हैं?”

रोहित के पापा मुस्कुराते हुए कहते हैं, “बिल्कुल, बेटा। हम चाहते हैं कि इस संस्था के माध्यम से और भी ज्यादा जरूरतमंदों की मदद हो सके। तुम्हारी मेहनत और समर्पण देखकर हमें यकीन है कि यह पहल बहुत सफल होगी।”

आरुणि की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं, पर ये आँसू खुशी और कृतज्ञता के होते हैं। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी छोटी सी शुरुआत को इतनी बड़ी स्वीकृति और समर्थन मिलेगा। रोहित जो इस खुशी के पल का हिस्सा था, प्यार से आरुणि के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है, “तुम्हारा सपना अब हमारा सपना है।”

रोहित के पापा ने एक क्षण के लिए रुककर आरुणि की आँखों में झाँकते हुए आगे कहते हैं, “बेटा, हम इसे विस्तार तो देना चाहते हैं, लेकिन तुम्हारी हाँ के बाद। तुम अपने वकील अंकल को घर बुलाकर या उनके यहाँ जाकर जैसे भी तुम्हें ठीक लगे, डिस्कस कर लो बेटा.. फिर निर्णय लेना।”

आरुणि ने आँसू पोंछते हुए सिर हिलाया। उसकी भावनाएं काबू में नहीं आ रही थीं, लेकिन वह समझ रही थी कि यह निर्णय बेहद महत्वपूर्ण था और इसे सोच-समझकर लेना होगा।

आरुणि ने अपने आप को संयत किया और एक गहरी साँस ली। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह इस अवसर का भरपूर उपयोग करेगी। अपने वकील अंकल से मिलने का विचार करते हुए, उसके मन में कई सवाल उठने लगे, लेकिन वह आश्वस्त थी कि सही मार्गदर्शन से सब स्पष्ट हो जाएगा।

आरुणि ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा, “अभी मैंने वकील अंकल को बताया नहीं है कि हमलोग मुंबई में हैं.. कॉल करने का समय ही नहीं मिला।”

रोहित के पापा ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “कोई बात नहीं बेटा.. अभी कॉल कर लो। अगर फ्री हों तो अभी मिल लो जाकर। रोहित ले जाएगा तुम्हें। अगर फ्री ना हो तो जब भी फ्री हो घर पर बुला सकती हो।”

आरुणि ने थोड़ा संकोच करते हुए फोन निकाला और वकील अंकल का नंबर डायल किया। फोन की घंटी बजते ही उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं, लेकिन उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की। कुछ ही क्षणों में दूसरी ओर से वकील अंकल की आवाज़ आई, “हेलो, आरुणि बेटा, कैसे हो?”

“नमस्ते अंकल,” आरुणि ने जवाब दिया। “हम लोग अभी मुंबई में हैं और आपसे कुछ महत्वपूर्ण विषय पर बात करनी है। क्या आप अभी फ्री हैं?”

“मुंबई में?” उधर से सवाल उभरा।

“रोहित का जन्मदिन है अंकल तो उसके दावत में शामिल होने के लिए मुंबई आना हुआ है।”

“कौन रोहित”.. अंकल पूछते हैं। 

ये लंबी बात है अंकल.. बाद में बताऊँगी.. क्या अभी आप यहाँ रोहित के ऑफिस आ सकते हैं अंकल.. कुछ बताना और पूछना भी था आपसे.. आरुणि कहती है। 

“ठीक है बेटा, तुम पता बताओ। मैं कोर्ट के लिए निकल रहा हूँ, होता जाऊँगा।” अंकल कहते हैं। 

आरुणि इशारे से रोहित से पता पूछती है।

“उनको बोलो सिंघानिया हाउस आना है”.. रोहित बोलता है। 

“अंकल वो सिंघानिया हाउस आना है। रोहित का ऑफिस यही है”.. आरुणि कहती है। 

तुम विजय सिंघानिया के ऑफिस में हो। अच्छा रोहित वही काम करता है.. ठीक है मैं आता हूँ।” अंकल कहते हैं। 

**

वकील अंकल के मन में पुरानी यादें उमड़ रही थीं। सिंघानिया उनके पास आरुणि का होटल खरीदने का प्रपोजल लेकर आए थे, लेकिन जब तक वे आरुणि से इस बारे में बात कर पाते, सिंघानिया साहब की पत्नी का देहांत हो गया और सारी बातें वहीं अटक गईं। अब वकील अंकल इन सभी विचारों में खोए हुए सिंघानिया हाउस पहुँच गए।

सिंघानिया हाउस का रिसेप्शन भव्य और स्वागतपूर्ण था। वकील अंकल ने रिसेप्शन पर पहुँचकर रोहित के बारे में पूछा। रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत एक मुस्कान के साथ जवाब दिया, “आप वकील साहब हैं ना? रोहित सर ने आपके आने की सूचना पहले ही दे दी थी। कृपया मेरे साथ आएं।”

कैबिन के दरवाजे पर पहुँचते ही रिसेप्शनिस्ट ने हल्की दस्तक दी और दरवाजा खोलकर कहा, “सर, वकील साहब आ गए हैं।”

रोहित ने तुरंत खड़े होकर वकील अंकल का स्वागत किया, “आइए अंकल, अंदर आइए।”

वकील अंकल को देखते ही आरुणि की आँखों में खुशी की चमक आ गई। वह तुरंत उनके पास जाकर उन्हें गले लगा लेती है। “अंकल, आप आ गए!” उसने भावुक स्वर में कहा।

वकील अंकल ने मुस्कुराते हुए आरुणि को सांत्वना दी, “हाँ, बेटा, मैं यहाँ हूँ।”

जैसे ही आरुणि ने अंकल को छोड़ा, उनकी नजर कुर्सी पर बैठे विजय सिंघानिया पर पड़ी। वकील अंकल का चेहरा एक पल के लिए आश्चर्य से भर गया। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे यहाँ विजय सिंघानिया को देख रहे हैं।

विजय सिंघानिया ने भी वकील अंकल को देखकर हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। “नमस्ते, वकील साहब,” उन्होंने कहा।

वकील अंकल ने संभलते हुए जवाब दिया, “नमस्ते, सिंघानिया साहब। यहाँ आपको देखना वाकई अप्रत्याशित है।”

तभी रोहित ने आगे बढ़कर कहा, “अंकल, आपको शायद पता नहीं है, विजय सिंघानिया मेरे पिता हैं।”

वकील अंकल की आँखों में हैरानी और भी बढ़ गई। उन्होंने रोहित और विजय सिंघानिया की ओर देखा, फिर धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए कहा, “यह वाकई एक सुखद संयोग है। मुझे खुशी है कि हम सभी किसी महत्वपूर्ण चर्चा के लिए एक साथ हैं।”

रोहित ने वकील अंकल को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और खुद भी बैठते हुए कहा, “अंकल, हमें आपकी सलाह और मार्गदर्शन की आवश्यकता है। हम चाहते हैं कि यह पहल सबसे बेहतरीन तरीके से आगे बढ़े।”

वकील अंकल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “बिल्कुल, मैं यहाँ हर कदम पर आपके साथ हूँ। अब मैं जानना चाहूँगा कि क्या बात है।” उनके चेहरे पर गंभीरता और उत्सुकता का मिला-जुला भाव था।

आरुणि ने वकील अंकल के बैठने के बाद गहरी साँस ली और संक्षेप में सारी बातें बताना शुरू किया। उसने ‘जीवन का सवेरा’ की शुरुआत से लेकर अब तक की सारी घटनाओं और उनकी योजनाओं के बारे में बताया। वकील अंकल ध्यानपूर्वक सुनते रहे, बीच-बीच में सिर हिलाकर अपनी समझ और सहमति जाहिर करते रहे।

“अंकल, हमारी योजना यह है कि हम इस परियोजना को और अधिक लोगों तक पहुँचाएं और जरूरतमंदों की मदद करें,” आरुणि ने समझाया। “हम चाहते हैं कि ‘जीवन का सवेरा’ सिर्फ एक संस्था न रहे, बल्कि एक आंदोलन बने जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सके।”

वकील अंकल ने उसकी बातों को गौर से सुना और फिर कहा, “बहुत अच्छा बेटा, तुम्हारी योजना बहुत ही प्रेरणादायक है।”

फिर वकील अंकल ने अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा, “सिंघानिया साहब, हमारे पास तुम्हारा होटल खरीदने का प्रपोजल लेकर आए थे। लेकिन फिर सारी बातें अधूरी रह गईं।”

विजय सिंघानिया ने गंभीरता से सिर हिलाते हुए कहा, “हाँ, वकील साहब, वह समय हमारे लिए बहुत कठिन था। लेकिन अब हम इस प्रोजेक्ट को पूरी ताकत से समर्थन देना चाहते हैं।”

आरुणि ने फिर से कहा, “अंकल, हम इस प्रपोजल को अब नए सिरे से देखना चाहते हैं और आपकी कानूनी राय की आवश्यकता है ताकि हम इसे सही तरीके से आगे बढ़ा सकें।”

वकील अंकल ने अपने नोट्स निकाले और विस्तार से प्रपोजल की समीक्षा करने लगे। उन्होंने आरुणि, रोहित और विजय सिंघानिया को बताया कि इस प्रोजेक्ट को कैसे कानूनी रूप से संरक्षित और विस्तार दिया जा सकता है।

“पहला कदम यह होगा कि हम इस प्रपोजल को आधिकारिक रूप से दर्ज करें और आवश्यक कानूनी दस्तावेज तैयार करें,” वकील अंकल ने कहा। “इसके बाद हमें फंडिंग और संसाधनों के प्रबंधन पर ध्यान देना होगा।”

आरुणि, रोहित और विजय सिंघानिया ने एक-दूसरे की ओर देखा और सहमति में सिर हिलाया। यह स्पष्ट था कि वे सभी इस परियोजना के लिए पूरी तरह समर्पित थे और वकील अंकल के मार्गदर्शन में इसे सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने के लिए तैयार थे।

बैठक के अंत में वकील अंकल ने कहा, “अब हमें एक विस्तृत योजना बनानी होगी और इसे कार्यान्वित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने होंगे। मैं हर कदम पर आपकी सहायता करूंगा।”

***

विजय सिंघानिया सबके लिए कॉफी मंगवाते हैं और तीन दिन बाद होने वाले रोहित के जन्मदिन के फंक्शन के लिए उन्हें आमंत्रित करते हैं। 

आरुणि को सारे पेपर्स अंकल से डिस्कस कर लेने कहते हैं। “मेरी एक मीटिंग है”.. कहकर रोहित को उन्हें और आरुणि को गेस्ट रूम में ले जाने कहते हैं। 

“रोहित थोड़ी देर के लिए तुम मेरी कैबिन में आना”.. विजय सिंघानिया कहते हैं। 

रोहित दोनों को गेस्ट रूम में पहुँचा कर पापा के पास चला आता है। 

“जी पापा कहिये, आपने बताया नहीं था कि आज कोई मीटिंग भी है”.. रोहित कहता है। 

“कोई मीटिंग नहीं है बेटा। दोनों को डिस्कस करने के लिए समय देना था। हमारे सामने खुल कर बात नहीं कर पाते, इसीलिए मैंने ऐसा कहा।” रोहित के पापा ने कहा।

***

वकील अंकल ने सारे पेपर्स ध्यानपूर्वक पढ़े और फिर एक संतोषजनक मुस्कान के साथ बोले, “विजय सिंघानिया जैसे लोगों का साथ मिलना बहुत बड़ी बात है, बेटा। और पेपर्स भी सभी सही से तैयार किए गए हैं। यहाँ तक कि ‘जीवन का सवेरा’ नाम से जहाँ भी संस्था खोली जाएगी, उस पर तुम्हारा अधिकार रहेगा, ये भी मेंशन है।”

आरुणि ने ध्यान से सुना और सिर हिलाया, जबकि वकील अंकल आगे बोले, “भले ही वो संस्था विजय सिंघानिया द्वारा ही क्यों न खोली जाए, वह या उनका बेटा एक हेल्पर या कर्मचारी की तरह ही रहेंगे। सारे निर्णय तुम्हारे होंगे। यह बात स्पष्ट रूप से दस्तावेज़ों में उल्लिखित है।”

“तो आप क्या सलाह देते हैं अंकल। इसमें छुपा हुआ कोई तथ्य समाहित तो नहीं है ना”.. आरुणि जिज्ञासा करती है।

“नहीं.. ऐसा कुछ नहीं है। सबसे अच्छी बात ये होगी कि ऐसे लोगों के साथ काम करने पर बड़े पैमाने पर तुम अपने कार्य को अंजाम दे सकती हो। अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुँचा सकती हो”.. वकील अंकल आरुणि को समझाते हैं। 

“तो क्या ये दूसरों से काम निकालना नहीं हुआ अंकल, ये मेरा स्वार्थ तो नहीं कहलाएगा”.. आरुणि सोचते हुए पूछती है। 

“बिल्कुल अपने पिता पर गई हो। वो भी किसी कार्य से पहले ऐसे ही अजीबोगरीब सवाल करता था।” वकील अंकल अपने दोस्त को याद करते हुए कहते हैं। 

एक बात बताओ तुम बेटा, ये काम क्या तुम अपने लिए कर रही हो? नहीं ना! उनके लिए कर रही हो, जिनका कोई ठिकाना नहीं है। ऐसे बहुत से लोग हैं, उनके लिए सोचो तो तुम्हें निर्णय लेने में कठिनाई नहीं होगी। मेरी तो सलाह है कि आगे बढ़ो और इस पेपर पर अपने हस्ताक्षर कर दो”.. वकील अंकल कहते हैं। 

“ठीक है अंकल, जैसा आप कहिये”.. आरुणि कहती है। 

तो चलो चलते हैं उनके कैबिन में। तुम्हें उनलोगों से कुछ पूछना, जानना हो तो उसे स्पष्ट करके उनके सामने ही हस्ताक्षर करना”.. वकील अंकल अपना मत रखते हैं। 

“पहले रोहित को कॉल कर लेती हूँ। उनलोगों की मीटिंग चल रही होगी”.. आरुणि बैग से मोबाइल निकालते हुए बोलती है। 

“उनकी कोई मीटिंग नहीं थी बेटा। हम दोनों आपस में बिना किसी व्यवधान के बात कर सके। इसीलिए उन्होंने ऐसा कहा”.. अंकल बताते हैं। 

“आपको कैसे पता”.. सवाल करती हुई आरुणि की आँखें चौड़ी हो गई थी। 

“बेटा मैं दिन रात यही काम करता हूँ, फिर भी तुम रोहित को कॉल कर लो”.. अंकल कहते हैं। 

रोहित से बात कर दोनों विजय के कैबिन की ओर जाने के लिए उस ओर बढ़ते हैं तो देखते हैं रोहित भी उन्हें लेने के लिए आ रहा होता है। 

विजय के कैबिन में चारों की एक और बैठक होती है। जिसमें आरुणि दो चार बातों को स्पष्ट कर साथ काम करने को तैयार हो जाती है। चुँकि ये प्रोजेक्ट रोहित के देखरेख में शुरू होना था तो आरुणि और रोहित दोनों पेपर पर साइन करते हैं। 

आरुणि और रोहित के पेपर पर चमकते हस्ताक्षर को देख विजय सिंघानिया और वकील अंकल दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखते है और फिर तालियाँ बजानी शुरू कर देते हैं। तालियों की गूँज से कमरा गूँज उठा, जिससे एक उत्साहपूर्ण माहौल बन गया।

रोहित और आरुणि ने खुशी के साथ उनकी ओर देखा। विजय सिंघानिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम दोनों का यह निर्णय बहुत ही सराहनीय है। ‘जीवन का सवेरा’ अब और अधिक लोगों की मदद कर सकेगा और समाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकेगा।”

वकील अंकल ने भी उत्साहित स्वर में कहा, “बिलकुल, मैं तुम्हारे इस निर्णय की पूरी तरह से सराहना करता हूँ। यह प्रोजेक्ट अब एक नई ऊँचाई पर पहुँचेगा। हमें गर्व है कि हम इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। अब हमें मिलकर इस सपने को साकार करना है।

आरुणि के चेहरे पर खुशी की चमक साफ झलक रही थी। उसने गर्व और संतोष के साथ कहा, “अब हमें और भी अधिक लोगों तक मदद पहुँचाने का मौका मिलेगा। ‘जीवन का सवेरा’ केवल एक संस्था नहीं रहेगा, बल्कि एक आंदोलन बनेगा।”

रोहित ने भी अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “यह सब मिलकर काम करने से ही संभव हो पाया है। हमारे पास सही मार्गदर्शन और समर्थन है, और अब हमें अपनी पूरी ताकत से आगे बढ़ना है।”

“आशीर्वाद दीजिए मुझे कि कभी अपने पथ से ना भटकूँ”.. आरुणि विजय और अपने अंकल के चरण स्पर्श करती हुई कहती है। 

***

विजय सिंघानिया ने माहौल को और भी खुशनुमा बनाने के लिए रोहित से कहा, “रोहित, सबके लिए लंच की व्यवस्था करो। आज का दिन खास है, इसे अच्छे से मनाना चाहिए।”

आरुणि ने विनम्रता से हस्तक्षेप करते हुए कहा, “नहीं, विजय अंकल, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं घर जाकर सबको ये खुशखबरी सुनाने के बाद ही सबके साथ लंच करूँगी। दादी भी इंतजार कर रही होंगी।”

वकील अंकल ने भी विनम्रता से कहा, “जी, विजय साहब, मुझे भी आज्ञा दीजिए। मुझे कोर्ट पहुँच कर कुछ काम निपटाने हैं।”

विजय सिंघानिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल्कुल, वकील साहब। आप भी अपने काम निपटाइए। हमें खुशी है कि आपने हमारे साथ इतना समय बिताया।”

क्रमशः 

आरती झा आद्या 

दिल्ली

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