इस बीच रोहित की और रोहित की दादी की आरुणि और सबसे बातें होती रहती थी।
कार्य के कार्यान्वयन का समय आते ही सबसे पहले सब पचमढ़ी जाने और आरुणि से मिलने का विचार बनाते हैं… जिसकी सूचना आरुणि को दादी देती हैं और सबको मुंबई लेकर आने के बाद ही सरप्राइज देने की बात रोहित करता है। जिस पर दादी और रोहित के पिता अपनी सहमति की मुहर लगा देते हैं।
उसी समय रोहित भोपाल के लिए फ्लाइट की टिकट बना लेता है। फिर वहाँ से सड़क मार्ग से पचमढ़ी जाना तय होता है।
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पचमढ़ी की धरातल पर वनस्पति की बेहद भव्य रचना ने सबको मोह लिया। हरे-भरे पेड़-पौधों की चादर ने परिवार के हर सदस्य के हृदय में आनंद का स्रोत खोल दिया। पर्यावरण की शांति और ताजगी से भरी हवा ने सबको सुकून में डुबो दिया। प्रकृति के इस रंग-बिरंगे आचरण से हर एक दृश्य को संतृप्ति से भरा हुआ था। उनके चेहरों पर सुख और प्रसन्नता की मुस्कान आ गई थी, जो उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य के साथ जीने की अनुभूति दे रही थी।
रोहित की पहुँचने के साथ ही, गेट के पास की हवा में एक खुशनुमा माहौल छा गया, मानो हवा में उत्साह और प्रेम का झरोखा खुल गया हो। बच्चे उसकी ओर दौड़ते पड़े, उनकी आँखों में उत्साह और प्रेम की किरणें खिल उठी। रोहित भी उनके साथ मिलकर एक हो गए, उसके आँसुओं ने नाजुक बच्चों के चेहरों पर एक सांत्वना और प्रेम की बूंदें बरसाई। यह एक भावनात्मक और प्रेरणादायक पल था, जो सभी के दिलों को छू गया।
“सब को यही रखोगे की हवेली में भी ले चलोगे”..
योगिता बच्चों को संबोधित करती हुई बोलती है।
रोहित एक-एक कर अपने पापा से सबका परिचय करवाता है। सबसे पहले वह आरुणि से मिलवाता है, जो मुस्कुराते हुए उनका स्वागत करती है। फिर धीरे-धीरे सभी बच्चे और बड़े, जो वहाँ उपस्थित थे, रोहित के पापा से मिलते हैं।
रोहित के पापा हर एक से मिलकर बेहद खुश होते हैं। उनकी आँखों में संतोष और प्रसन्नता की चमक साफ नजर आती है। वे हर किसी से हाथ मिलाते हैं, कुछ बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हैं और उनकी बातें सुनते हैं। उनके चेहरे पर एक आत्मीय मुस्कान थी, जो यह दर्शाती थी कि वे इस नए परिवार के साथ जुड़कर बहुत ही आनंदित महसूस कर रहे हैं।
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बच्चे हंसते-खिलखिलाते रोहित को अपने कमरे में ले जाते हैं, उनकी मस्ती और उत्साह पूरे घर में गूंज उठता है। इधर, आँगन में सबकी बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है। रोहित के पापा को चारों ओर से अपनापन और स्नेह महसूस होता है। दादी और आरुणि उनके पास बैठते हैं, और धीरे-धीरे अन्य लोग भी आकर उनसे बातें करने लगते हैं।
आरुणि ने घर के बारे में बताना शुरू किया—कैसे यहाँ हर कोई अपने-अपने दुःखों को समेटकर, जीवन की सच्चाइयों को समझकर, उन्हें स्वीकार करके आगे बढ़ रहा है। हर व्यक्ति की कहानी में संघर्ष और दर्द था, लेकिन उनमें जीवन के प्रति एक नई ऊर्जा और उत्साह भी था।
रोहित के पापा ने अपने चारों ओर देखा, लोगों के चेहरों पर सच्ची मुस्कानें और आँखों में चमक थी। उन्हें माँ की बात याद आई—यहाँ सबने अपने दुःखों को समेटकर जीवन की सच्चाइयों को समझा है और आगे बढ़ने का हौसला पाया है। यह सोचकर उनके मन में एक अजीब सी शांति और संतोष का भाव उमड़ आया। वे समझ गए थे कि यहाँ हर कोई एक-दूसरे का सहारा बनकर, अपने अनुभवों से सीखकर और एक नई दिशा में बढ़ते हुए जीवन जी रहा है। वो सोच रहे थे “उन्होंने तो अपना सबसे प्रिया इंसान खोया, लेकिन इन लोगों ने तो अपनी पूरी जिंदगी ही खोया था। जहाँ के पौधे थे, वहाँ से उखड़ कर फिर कहीं और खुद को बोना…कितना मुश्किलों भरा सफर है ये।”
उनके मन में उन सभी के प्रति गहरा सम्मान और सहानुभूति जाग उठा था। वे सोचने लगे कि कैसे इन लोगों ने अपने टूटे हुए दिलों और बिखरे हुए सपनों को समेटकर, नए सिरे से जीवन की शुरुआत की। ये खिलखिलाते बच्चे, अपनी मिट्टी से जुदा होकर भी अपनी आभा बिखेरती ये लड़कियाँ सब उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई थी। उन्होंने महसूस किया कि वे भी इस नये परिवार का हिस्सा बन सकते हैं और एक अपने जीवन को संवार सकते हैं। उनके दिल में उम्मीद की एक नई किरण जाग उठी, जो उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही थी।
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योगिता और राधा रसोई में सबके लिए चाय-नाश्ते की तैयारी में जुट गईं। दोपहर का समय था और धूप की हल्की तपिश खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। दोनों मिलकर मसालेदार चाय का पानी चढ़ा रही थीं
रसोई में चाय की खुशबू और मसालों की महक चारों ओर फैल गई थी। योगिता ने धीरे से चायपत्ती और इलायची डालते हुए राधा से कहा, “सोच रही हूँ, चाय के साथ कुछ नमकीन भी दे देते हैं। सबको अच्छा लगेगा और लंच के लिए थोड़ा इंतजार भी कर लेंगे।”
राधा ने सहमति में सिर हिलाया और फटाफट कुछ मठरी और मसाला मूंगफली प्लेट में सजा दी। “हाँ, ये सही रहेगा। सब लोग बातें कर रहे हैं, ऐसे में हल्का-फुल्का नाश्ता सबको पसंद आएगा,” उसने कहा।
दोनों ने मिलकर एक ट्रे में चाय और नमकीन रखा और बाहर ले जाने की तैयारी करने लगीं। चाय की प्यालियाँ ट्रे में रखी चमचमाती हुईं और नमकीन की महक सबके मन को लुभाने वाली थी।
जब वे ट्रे लेकर आँगन में पहुँचीं, तो हर कोई चाय-नाश्ते के इस स्वागत के लिए मुस्कुराते हुए तैयार था। हर किसी ने अपनी-अपनी चाय की प्याली ली और नमकीन का आनंद लेने लगे। बातें और भी जीवंत हो गईं और चाय-नाश्ते के साथ इस दोपहर का समय और भी आनंदमय हो गया।
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बच्चों के कमरे से आने वाली गाने बजाने और हँसने की ध्वनियों से पूरी हवेली गूँज रही थी। उनकी खिलखिलाहटें मधुर संगीत की तान की तरह हवेली के हर कोने में रस घोल रही थीं। बच्चों की चुलबुली आवाज़ें कभी जोर से, कभी धीमी होकर एक जीवंतता और उमंग का एहसास करा रही थीं।
सभी एक-दूसरे को मुस्कुराते हुए देख रही थीं, जैसे इन मासूम आवाज़ों ने उनके दिलों को भी छू लिया हो। आँगन में बैठे लोग भी इस संगीत और हँसी-मजाक को सुनकर आनंद का अनुभव कर रहे थे।
रोहित के पापा ने एक नजर ऊपर की ओर उठाई, जहाँ से ये आवाजें आ रही थीं और एक हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर फैल गई। उन्हें महसूस हो रहा था कि इस हवेली में बच्चे केवल अपने खेल में ही मग्न नहीं हैं, बल्कि वे अपनी मासूमियत और हंसी से पूरे माहौल को भी रंगीन बना रहे हैं।
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, “इन बच्चों की हँसी और गाने से तो जैसे इस हवेली में नई जान आ गई है।”
आरुणि ने भी सहमति में सिर हिलाया, “हाँ, ये आवाज़ें किसी संगीत से कम नहीं हैं। इनकी खुशी में ही सच्चा सुख है।”
हर कोई बच्चों की इस खुशी में खुद को शामिल महसूस कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो इन मासूम ध्वनियों ने सभी के दिलों में एक नई ऊर्जा और ताजगी भर दी हो। हवेली का माहौल, जो पहले से ही सौहार्दपूर्ण था, अब और भी जीवंत और कर्णप्रिय हो गया था।
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रोहित के पापा ने एक नजर आरुणि और तृप्ति पर डालते हुए कहा, “बेटा, मैं चाह रहा था कि कल हमारे साथ तुम सब भी मुंबई चलो। पाँच दिन बाद रोहित का जन्मदिन है, और हमने उसके लिए एक छोटा सा फंक्शन रखा है। अगर तुम सब रहोगे तो रोहित को बहुत अच्छा लगेगा।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है अंकल।” आरुणि खुश होते हुए बोलती है, “पर हम सब कैसे! मतलब कि सब कुछ छोड़ कर जाना, यहाँ दिक्कत हो जाएगी।” आरुणि कहती है।
“ऐसा कर तू हो आ। हम सब तो हैं ना यहाँ।” तृप्ति आरुणि से कहती है।
“अरे मेरी परियों! मेरा बेटा तुम सब के लिय कह रहा है, किसी एक के लिए नहीं। बच्चे भी चलेंगे। सब बच्चियाँ भी चलेंगी।” दादी स्पष्ट करती हुई कहती हैं।
“पर कैसे दादी.. हम सब.. दिक्कत होगी ना।” आरुणि संकुचित हो उठी थी ।
किसे दिक्कत होगी। किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी। यहाँ से बस करेंगे और चल लेंगे। कल जाकर बच्चों के स्कूल में और अपने अपने कार्यस्थल पर सब छुट्टी के लिए आवेदन पत्र दे आना। बस हो गया फाइनल।” दादी बात समाप्त करती हुई कहती हैं।
“कहाँ जाने की बात हो रही है”.. योगिता चाय रखती हुई पूछती है।
“हम सब कल मुंबई चल रहे हैं”.. तृप्ति खुश होते हुए बोलती है और सारी बातचीत बताती है।
“तो पैकिंग आज ही करनी होगी ना। बच्चों की तो खासकर, बच्चे सुनते ही खुश हो जाएंगे। उन्हें कभी कहीं जाने का मौका नहीं मिलता है।” राधा कहती है।
“माँ मैं कॉल कर गोपी से कह देता हूँ कि सारे कमरे को व्यवस्थित कर सबके ठहरने का इन्तजाम कर ले”.. रोहित के पापा कहते हैं।
“और बेटा रोहित बता रहा था कि वहाँ तुम्हारे होटल भी हैं, जो तुम्हारे वकील अंकल देखते हैं”… रोहित के पापा आरुणि से पूछते हैं।
“जी अंकल.. रोहित ने ठीक ही कहा था आपसे”.. आरुणि उत्तर देती है।
“ठीक है बेटा.. तुम अपने अंकल को कॉल कर बता देना कि तुम लोग मुंबई आ रही हो। वहाँ पहुँच कर मैं उन्हें भी निमंत्रण दे दूँगा और फिर एक दिन चल कर होटल भी देख लेंगे। हमारा अगला प्रोजेक्ट भी होटल का ही था, उससे पहले ये सब हादसा हो गया। जिन्दगी ही रुक गई थी जैसे।” रोहित के पापा कहते हैं।
“रोहित ने बताया था अंकल”… आरुणि बताती है।
राधा कमरे में प्रवेश करती है जहाँ बच्चे खेल रहे होते हैं। उसके चेहरे पर एक संजीदगी होती है, जो बच्चों का ध्यान तुरंत आकर्षित करती है। वह धीरे से मुस्कुराती है और बच्चों को पास बुलाती है। “बच्चों, हमें मुंबई जाना है,” राधा कहती है, जिससे बच्चों के चेहरों पर उत्सुकता और थोड़ी चिंता उभर आती है। “रोहित भैया का जन्मदिन है और वो हमें दावत दे रहे हैं।” राधा उन सबों के चेहरे पर उत्सुकता देख बताती है।
राधा उन्हें बताती है कि जल्द ही यात्रा पर निकलना है और हर किसी को अपना सामान पैक करना होगा। “सब लोग अपना-अपना सामान एक जगह रख दो,” वह निर्देश देती है। बच्चे तुरंत अपने-अपने काम में लग जाते हैं, कुछ कपड़े समेटने लगते हैं तो कुछ अपने खिलौने और किताबें जमा करने लगते हैं।
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“दादी आप और अंकल फ्रेश हो लीजिए और लंच करके आराम कर लीजिए”.. योगिता कहती है।
“रोहित किसी होटल में एक रूम बुक कर लो, मैं और तुम वही चलेंगे और माँ अपनी बच्चियों के साथ रहेंगी।” रोहित के पापा कहते हैं।
“यहाँ सारी व्यवस्था कर लेंगे अंकल, आप दोनों कोई दिक्कत नहीं होगी”… आरुणि कहती है।
“दिक्कत की बात नहीं है बेटा। हम लोग थोड़ा घूम कर जगह का जायजा लेंगे कि यहाँ क्या क्या और किस तरह का इन्वेस्टमेंट किया जा सकता है, बस इसीलिए होटल सही रहेगा”.. रोहित के पापा ने कहा।
“अभी बढ़िया सा लंच करा दो। डिनर के लिए इंतजार मत करना..पहले मैं गोपी से बात कर लूँ”.. कहते हुए रोहित के पापा गोपी का नंबर डायल करने लगते हैं।
योगिता दादी को फ्रेश होने का कह कमरे में ले जाती है और खुद रसोई में जाकर सारी व्यवस्था का जायजा फिर से लेती है।
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बच्चे मुंबई में रोहित के घर पहुँचते ही खुशी से झूम उठे। उनकी आँखें घर की भव्यता और सुंदरता देखकर चमक उठती हैं। यह घर उनके लिए किसी दर्शनीय स्थल से कम नहीं था – बड़े-बड़े कमरे, खूबसूरत सजावट और चारों ओर हरियाली।
बच्चों की चहचहाहट से पूरा घर गुलजार हो गया था। वे कभी एक कमरे में दौड़ते, तो कभी दूसरे में जाकर नई चीज़ें देखते। उनके खिलखिलाने की आवाज़ें हर कोने में गूँज रही थीं। गोपी चाचा बच्चों की इस खुशी को देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे। उनका चेहरा बच्चों के साथ खिलखिलाता हुआ लग रहा था।
दादी भी बच्चों को मुग्ध भाव से निहार रही थीं। उनकी आँखों में स्नेह और प्यार की चमक थी। बच्चों की मासूमियत और उनकी खुशी ने दादी के दिल को छू लिया था। वे बच्चों को देखकर अपने पुराने दिनों की यादों में खो गईं, जब उनके अपने बच्चे ऐसे ही घर में चहकते थे।
रोहित और आरुणि भी बच्चों की इस खुशी को देखकर संतुष्ट महसूस कर रहे थे। उन्होंने बच्चों को घर की हर चीज़ को देखने और आनंद लेने की पूरी आज़ादी दे रखी थी। घर का हर कोने को बच्चों की हँसी और खेल-कूद से मानो जीवनदान मिला था।
उस दिन सबने सिर्फ आराम किया। काम की कोई बात नहीं हुई। दूसरे दिन रोहित अपने पापा के कहने पर आरुणि को ऑफिस ले कर गया, जहाँ औपचारिक बातों के बाद रोहित के पापा आरुणि के सामने सारे कागज रख देते हैं।
क्रमशः
आरती झा आद्या
दिल्ली