जीवन का सवेरा (भाग -11 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

दादी उस वाकये ने मेरी सोच और जीवन का ध्येय बदल दिया। उस समय मेरे मन में एक ही विचार था कि इस बच्ची को तो उसके माता-पिता मिल गए हैं, लेकिन कई ऐसे बच्चे हैं, जिनका कोई नहीं है। उनके लिए क्यों ना जीवन जिया जाए! मेरे पास पैसे की या रहने की कोई दिक्कत नहीं थी, बस दिक्कत थी जब मेरी इच्छा शक्ति में कमी की, जिसे मजबूत करने और मेरे जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए ईश्वर ने शायद उस बच्ची को मेरे जीवन में भेजा था। धीरे-धीरे कई सितारे जुड़ते गए और मेरा परिवार बढ़ता गया। आरुणि की आँखों में अतीत के छोटे-छोटे टुकड़ों को देखते हुए, दादी उसके साथ एक नई यात्रा की शुरुआत कर रही थीं, दोनों के मध्य इस छोटे से पल में ही दिल का रिश्ता बन रहा था।

बहुत नेक काम कर रही है बेटी तू…. अपने गम से उबरना ही कहाँ आसान होता है, जो किसी के गम को समझ सके। तू अपने दुःख को दरकिनार कर दूसरों के दुःख को समझ निदान करने की कोशिश कर रही है.. ये कोई विशाल हृदय वाला ही कर सकता है। 

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तभी बच्चे रोहित भैया के नाम का शोर मचाते कमरे में दाखिल होते हैं, उनके हँसने का शोर कमरे में उतर गया था, लेकिन उसी समय कमरे का गमगीन माहौल भाँप कर बच्चे रोहित के करीब आते-आते ठिठक गए। जिसे देख रोहित हँसता हुआ कहता है – “अरे शैतानों कहाँ थे अभी तक। रोहित के चुहलबाजी करने पर बच्चे फिर से खिलखिलाने लगते हैं और उसे अपने कमरे में चलने बोलते हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, जितनी जल्दी असहज होते हैं, प्यार की भाषा सुनते ही तुरंत सहज़ भी हो जाते हैं। गरजते असहज बादलों को सहज़ करने के लिए जैसे इंद्रधनुष प्रकट हो जाता है, उसी रंग बिरंगे इंद्रधनुष की तरह अभी कमरे के सर्द होते तापमान को सामान्य करने के लिए ये बच्चे प्रकट हो गए थे। बच्चों के उत्साह और रोहित के मजेदार स्वभाव से, कमरे का माहौल एकदम फिर से जिंदा हो गया था। उनके संग को दादी और आरुणि भी आत्मसात करते हैं और अपने अतीत को पीछे छोड़कर वर्तमान का स्वागत करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

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अतीत के उबड़-खाबड़ धरातल को पीछे छोड़ते ही आरुणि को याद आता है कि किसी ने अभी तक लंच किया ही नहीं है। वो बच्चों से कहती है.. “अभी रोहित भैया लंच करेंगे.. फिर तुम लोग के कमरे में आएंगे। तब तक तुम लोग अपने कमरे में चलो। 

दादी आरुणि से असहमति जताते हुए बच्चों से कहती हैं, “यही बैठो बच्चों.. कुछ गपशप करते हैं।”

“दादी.. तंग कर देंगे आपको ये सब। बहुत नटखट हैं सब के सब।” आरुणि प्यार से बच्चों को देखती हुई कहती है।

“अरे कोई बात नहीं.. इनसे ही रौनक लगी रहती है।” दादी बच्चों को अगल-बगल बिठाती हुई कहती है।

 

बच्चों के शोर-शराबे को सुनकर सुनकर योगिता, राधा और तृप्ति भी वही आ गई।

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“रोहित अब क्या विचार है।” शाम के चाय के बाद दादी रोहित से पूछती हैं।

“अब चला जाए दादी।” रोहित जेब से गाड़ी की चाभी निकालता हुआ कहता है।

“मेजबान से तो कोई कुछ पूछ ही नहीं रहा है। सब अपने मन से ही प्लान तय किए जा रहे हैं। आज दादी यहीं रुकेंगी।” आरुणि दादी-पोते की बातों पर विराम लगाती हुई कहती है।

“कल फिर आ जाएंगे हमलोग।” दादी बगल में बैठी आरुणि के गाल थपथपाती हुई कहती है।

“नहीं दादी आज आपलोग यही रहें, कोई दिक्कत नहीं होगी। रोहित बच्चों के कमरे में रुक जाएगा।” योगिता दादी के मनोभाव को समझती हुई कहती है।

आरुणि, तृप्ति और राधा भी योगिता की बातों से सहमति जताती हैं। बच्चों ने भी रोहित के साथ ज्यादा समय नहीं बिताया था, इसीलिए वो भी चाहते थे कि रोहित आज की रात यही रहे और उनके साथ उनके कमरे में चल कर खेले और बातें करे। दादी सबका प्यार देख मना नहीं कर पाती हैं और रुकने की स्वीकृति दे देती हैं। 

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रात के खाने के बाद, रोहित बच्चों के कमरे में चला गया, जहाँ उसने बच्चों से उनके स्कूल, टीचर और दोस्तों के बारे में ढेर सारी कहानियाँ सुनी। उन छोटे-छोटे संवादों में उनके दिनचर्या की रोचक दास्तानें सिमटी हुई थीं। रोहित ने भी बच्चों को अपनी तरह-तरह की कहानियों से रूबरू कराया। रोहित ने उन्हें विभिन्न प्रकार की बेतुकी और मनोरंजक कहानियाँ सुनाई, जिसमें कभी डर समाया हुआ था और जो कभी गुदगुदी करती बच्चों को हँसा रही थीं, जिससे उनका मनोरंजन बढ़ गया था। लूडो और शतरंज की बाजी चलते-चलते बच्चे उंघने लगे और तब निंद्रा देवी उन्हें आलिंगन में समेटने में बिल्कुल नहीं कतराई। रोहित बच्चों को उनके बिछावन पर सुलाकर, नीचे आँगन में जाकर दादी के पास बैठ गया।

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और यहाँ दादी कमरे से आती अपने पोते की मस्ती और खिलखिलाहट को सुनकर अत्यंत खुश थीं। वह सोच रही थी कि इतने दिनों बाद रोहित को इतनी खुशी में देख रही हैं, नहीं तो अब उदासी का लबादा ही ओढ़े रहता था। अब उसी पोते के चेहरे पर संतुष्टि का भाव देखकर उन्हें खुशी का अद्भुत अनुभव हो रहा था। दादी के दिल में उसकी खुशी के साथ साथ कुछ दुख भी था, क्योंकि वे यह जानती थीं कि यह अनमोल समय कितना जरूरी है और बहुत जल्द ही यह बीत जाएगा। गपशप के बीच, रात का आधा हिस्सा कब बीत गया, किसी को मालूम ही नहीं चला। जब निद्रा के द्वार पर खड़ी सभी को सम्हालने के लिए तत्पर हो गईं, तब सभी होश में आए कि बहुत समय बीत चुका है और अब सोने का समय हो गया है।

रोहित बच्चों के कमरे में जाकर सो गया और सब अपनी अपनी जगह पर जाकर निद्रा देवी से दोस्ती गाँठ क़र सपनों की दुनिया में चले गए। अगर कोई अभी तक नहीं सोया था तो वो थी दादी.. उनके मन में तरह तरह के विचार चल रहे थे, जिसे सुबह के सूरज के साथ मूलभूत जामा पहनाने का विचार उन्होंने कर लिया था।

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सुबह बच्चों की धमा चौकड़ी .. भागमभाग की आवाज से दादी की नींद खुली , भगवान का नाम लेती हुई उठ कर दादी कमरे से बाहर आती हैं तो देखती हैं काफी दिन चढ़े तक सोती रही वो । जबकि देर तक सोने की चाहत रखने वाला रोहित उठ कर बच्चों को स्कूल पहुँचाने की तैयारी कर रहा है।

बच्चे एक सुर में दादी को गुड मॉर्निंग कह नाश्ता करने लगते हैं और रोहित दादी के पास आकर गले लग जाता है।

“तू तो यहाँ आकर बहुत जिम्मेदार और समझदार हो गया है”.. हँसते हुए दादी कहती हैं।

“अरे दादी, बच्चों की माँग है। आज अपनी गाड़ी से स्कूल जाएंगे…वो भी ड्राइवर मैं बनूँ।” रोहित हँस क़र कहता है।

“मैंने भी तो कितनी बार कहा होगा, सुबह जल्दी उठकर मुझे मंदिर तक ले जाया कर, कभी सुना तूने।” दादी उलाहना देती हैं।

“अब पक्का ले चलूँगा”.. रोहित दुलार जताते हुए कहता है।

तब तक राधा आँगन में खाट लगा देती है और योगिता दादी के लिए चाय बना लाती है। आरुणि और तृप्ति बच्चों को नाश्ता करवाने में लगी थी, नहीं तो फिर आराम आराम से खाने के चक्कर में स्कूल देर से पहुँचने का डर बना रहता है।

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बच्चों के विद्यालय निकलते ही, हवेली में पूरी नीरवता और शांति छ गई। थोड़ी देर के लिए ऐसा लग रहा था कि हवेली में कोई नहीं है। ध्वनि की शून्यता और अविरलता का अनुभव हो रहा था। लेकिन इस समय यह शांति भयावह नहीं, बल्कि सुबह कि भागदौड़ के बाद सुकून वाली थी, जैसे कि हवेली स्वयं भी अपने वासियों के साथ साँस ले रही हो। इस सुकून वाली शांति को तोड़ती हुई दादी आरुणि से कहती हैं, “दादी आप स्नान ध्यान कर लीजिए, फिर नाश्ता एक साथ करेंगे सब।”

“एक एक कप चाय और हो जाए, फिर कर लूँगी स्नान ध्यान। बच्चियाँ कहाँ हैं?” दादी लड़कियों के बारे में पूछती हैं। 

“सब तैयार हो रही हैं। थोड़ी देर बाद उनकी सिलाई सिखाने वाली टीचर आ जाएंगी।” तृप्ति बिखरी चीजों को समेटती हुई कहती है।

सारी लड़कियाँ भी अब तक तैयार हो चुकी होती हैं और दादी से मिलकर रसोई में जाकर राधा और योगिता की मदद करने लगती हैं। 

योगिता चाय और टोस्ट के साथ आँगन में आती है। दादी को चाय देकर टोस्ट भी आगे बढ़ाती है। 

“अभी तो बस चाय.. बाकी चीज़ स्नान ध्यान के बाद ही।” दादी चाय का प्याला थामती हुई कहती हैं।

राधा एक आँख दबाते हुए कहती है, “एक दिन की चोरी चल सकती है दादी.. रोज थोड़े ना ऐसा करेंगे।”

“ठाकुर जी से चोरी.. उन्हें तो चोरी से पहले पता चल जाए कि चोरी होने वाली है।” दादी राधा की बात पर हँसती हुई कहती है।

“ठीक है ना दादी तो हम चोरी नहीं करेंगे। आज के लिए ठाकुर जी माफ़ कर देंगे। कभी कभी तो बनता है ना हमारा मस्ती करना।” राधा दादी से लाड़ जताती हुई कहती है।

“दादी ले लीजिए.. नहीं तो ठाकुर जी भी इसकी बेसिरपैर की बातों से परेशान हो जाएंगे। ये तो ठाकुर जी से अक्सर ऐसी बातों के लिए माफ़ी माँगती रहती है।” आरुणि राधा के सिर पर एक चपत लगाती हुई कहती है।

“अरे.. अरे.. सब बच्ची के पीछे ही पड़ गई। दे बेटा एक टोस्ट चाय के साथ”..दादी राधा को अपने करीब खींचती हुई कहती हैं। 

राधा के चेहरे पर बच्चों वाली बड़ी सी विजयी मीठी मुस्कान आ जाती है। सब टोस्ट और चाय का लुत्फ उठा रहे होते हैं कि रोहित भी आ जाता है।

“सब अकेले अकेले चाय पी रहे हो.. वाह.. क्या बात है”.. रोहित मुँह बनाता हुआ बोलता है। 

“आ गए शिकायत का पिटारा ले कर, गोल गोल बटन वाले दो आँख होते भी सब अकेले दिख रही हैं महाशय को।” आरुणि अपनी उँगलियों के सहारे गिनती लगाते हुए कहती है। सब इसके बाद हंसने लगे और रोहित, जो थोड़ा खिसियाया हुआ था, दादी के पास बैठ गया।

 

रोहित दादी के हाथ में चाय के साथ टोस्ट देख कर अचम्भा में पड़ जाता है, “वाह दादी.. यहाँ आकर तो आप बिंदास हो गईं। ठाकुर जी को बिना भोग लगाए जीम रही हैं। मज़ा आ गया देखकर।”

“चुप कर.. बच्चियों ने इतने प्यार से कहा”… 

“इस नादान बच्चे ने भी जाने कितनी बार कहा होगा। दादी एक बाईट प्लीज और दादी  कितनी निर्दयता से मना कर दिया करती थी। है ना दादी”..रोहित दादी की बात काटकर मस्ती करता हुआ रोहित कहता है।

“अरे भाई.. हमारे ठाकुर जी तो खुद कहते हैं, भले ही खा पीकर पूजा करो, हृदय से पूजा करो। मन आत्मा को शुद्ध स्वच्छ रखो, तो क्या दिक्कत है इसमें।” राधा कहती है।

“ओह.. हो.. तो इस ज्ञान की सीढ़ी आप हैं। आपने सरकाया ये ज्ञान दादी तक, ज्ञानी देवी की जय हो। रोहित हाथ जोड़े खड़ा होकर राधा को चिढ़ाने के लिए कहता है। 

“चाय ठंडी हो जाएगी.. पी लो.. फिर मत कहना तुम्हें हमने ठंडी चाय पिलाई थी।” राधा रोहित की बात पर मुँह बना कर कहती है।

“बस.. बस.. कितना लड़ोगे तुम दोनों।” योगिता दोनों हाथ फैला क़र दोनों को चुप कराती हुई कहती है।

आरुणि योगिता और तृप्ति से कहती हैं, “तुम दोनों का क्या विचार है, आज स्कूल और पुस्तकालय जाना है या नहीं।” आरुणि बातों को बदलती हुई कहती है।

“मैं और राधा थोड़ी देर से भी जाएंगे तो चलेगा.. पर तुम दोनों की कल तक की ही छुट्टी थी ना।” आरुणि आगे कहती है।

“आज की छुट्टी के लिए बस एप्लिकेशन देने जाऊँगी। वैसे भी मेरी बहुत कम छुट्टियाँ होती है तो कोई दिक्कत नहीं होगी।” योगिता चाय समाप्त क़र आरुणि को उत्तर देती है।

“मैं भी लंच टाइम में आ जाऊँगी।” तृप्ति भी अपनी योजना बताती है।

“ठीक है तो मैं और राधा लंच टाइम के बाद ही जाएंगे और आज का लंच कैफे में ही लिया जाएगा। मैं कैफे में पहले ही कॉल कर दूँगी।” आरुणि पूरा कार्यक्रम बताती है।

“और दादी “आरुणि कैफे” का सैंडविच, कॉफी, पराठा सब लज़ीज़ होता है। योगिता और तृप्ति के उठ क़र जाने के बाद रोहित दादी की ओर सरकता हुआ कहता है।

“रोहित साहब हैरान परेशान हमें “आरुणि कैफे” में ही मिले थे दादी.. खुद से भागते हुए। मेरी तो समझ नहीं आता कि खुद से कैसे भागा जा सकता है.. हमारी आत्मा.. हमारा मन तो हमारे अंदर है.. उससे भागने की सोचना तो स्वयं को कष्ट देना ही हुआ ना”… आरुणि दादी से कहती है। 

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