धोखा- श्वेता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

“कमला, तुम जरा इन सब डोंगों को बाहर डाइनिंग टेबल पर रखो। मैं सबको बुलाकर लाती हूॅं। कमरे में घुसकर गप्पे लड़ा रहे होंगे।” यह कहकर राधा किचन से निकलकर जल्दी-जल्दी कमरे की ओर बढ़ने लगी। एक -एक करके उसने घर के सारे कमरे देख लिए लेकिन, उनका कोई अता-पता नहीं था। कहीं छत पर तो नहीं। यह सोचकर वह धीरे-धीरे छत की सीढ़ियाॅंं चढ़ने लगी। घुटनों के दर्द के कारण अब वह तेजी से सीढ़ियाॅं नहीं चढ़ पाती थी। आज एक अरसे के बाद वह छत पर जा रही थी। लेकिन छत के पास पहुॅंचते ही मानो उसके पाॅंव जम से गए। वहाॅं से आती आवाजों को सुनकर वह सन्न रह गई।

अंदर उसकी छोटी बहन जिया बोल रही थी “दीदी कभी भी यह मकान बचने के लिए तैयार नहीं होगी।बहुत जिद्दी है।”

“अरे! ऐसे कैसे नहीं तैयार होगी? घर तो उन्हें बेचना ही होगा।” मीरा के पति विजय ने गुस्साते हुए कहा।

“क्या जीजाजी, आप तो बस बात-बात में गर्माने लगते हैं और आप दोनों भी आप ही आप यह सब सोचे जा रही हो। एकबार दीदी से बात तो कर देखिए, क्या पता वह यह घर बेचने को तैयार ही हो जाए। पैसा किसे काटता है!” जिया के पति राहुल ने अपनी राय दी।

“बिल्कुल नहीं। ऐसी गलती भूल कर भी मत करना। तुम लोग नहीं जानते, इस घर को लेकर वह कितनी इमोशनल है। मम्मी पापा की आखिरी धरोहर मानती है वह इसे। यदि उन्हें भनक भी पड़ गई कि हम इस घर को बेचना चाहते हैं तो सारा प्लान शुरू होने से पहले ही फ्लॉप हो जाएगा। समझे।इसीलिए तो छत पर मीटिंग रखी है ताकि उन्हें कुछ पता ना चले।” मीरा बोली।

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“तो क्या करें? उन्हें इस घर पर कुंडली मारकर बैठे रहने दे और हम हाथ पर हाथ धरे रहे।” विजय चिढ़कर बोला।

“नहीं जीजू, मेरे पास एक ऐसी जुगत है ‘जिससे साॅंप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।’ मतलब हमारा काम भी हो जाए और दीदी को पता भी ना चले।” जिया मुस्कुराते हुए बोली।

“क्या मतलब!” तीनों एक साथ बोले।

“मतलब, हमें दीदी के इमोशंस के साथ खेलना होगा। हमें पता है कि दीदी बहुत इमोशनल है और हम सबसे बहुत ज्यादा प्यार करती है। तो हमें उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाना है। हम दीदी से कहेंगे कि हमारा मन उनके बिना  नहीं लगता है। उनकी चिंता रहती है। इसलिए वह हमारे आसपास ही रहे, इतनी दूर नहीं। यह कहकर हम अपने घर के नजदीक के लिए एक छोटा सा फ्लैट ले लेंगे और जब दीदी उसे फ्लैट में शिफ्ट हो जाएगी तो हम उन्हें धीरे-धीरे कन्वींस करेंगे की मम्मी-पापा की आखिरी धरोहर खाली पड़ी है तो क्यों ना हम उसे जरूरतमंदों के लिए दान कर दें।”

“समझ गई तेरा प्लान। तभी मीरा बीच में बोल पड़ी “दीदी भले ही मकान बेचने के लिए तैयार नहीं होगी लेकिन दान के नाम पर जरूर मान जाएगी।जैसे ही वह तैयार होगी हम इस मकान को पटनी साहब को बेच देंगे। फिर वे यहाॅं कसीनों और पब बनायेंगे और हम उन पैसों से हम अपना शोरूम खोलेंगे।” यह सुनकर सभी हॅंस पड़े।

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छत से आती इन आवाजों को सुनकर राधा को लगा मानो किसी ने उसके कानों में गर्म सीसा उड़ेल दिया हो। इतना बड़ा धोखा, इतनी बड़ी प्लानिंग। माॅं-बाऊजी के सपनों के घर में कसीनों और पब! उसे ऐसा लगा मानो उसका सिर फट जाएगा। उसने किसी तरह खुद को संभाला और चुपचाप रसोई की ओर लौट गई।

“अरे दीदी! आपका चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों लग रहा है?”

“कुछ नहीं कमला। अचानक से सिर में बहुत तेज दर्द होने लगा है। तुम उन लोगों को बुलाकर खाना खिला देना और बोल देना कि मैं उनसे सुबह मिलूंगी। अभी मैं दवाई लेकर सोने जा रही हूॅं।”

“जी दीदी। लेकिन आपका खाना?”

“मुझे भूख नहीं है।”

कमरे में जाते ही राधा फूट-फूट कर रो पड़ी। आंखों के सामने मोहन की तस्वीर तैरने लगी। कितने खुश थे, दोनों उस दिन। राधा की लेक्चरर की जॉब लग गई थी। “राधा तेरा सपना पूरा हो गया। अब तो अपने मम्मी-पापा से हमारे बारे में बता दे अब और इंतजार नहीं होता।”

“हाॅं मोहन। आज मम्मी-पापा का आशीर्वाद ले ही लेते हैं। देखना मम्मी-पापा कितने खुश होंगे।”

ये सपने बुनते दोनों जैसे ही राधा के घर पहुॅंचे। वहाॅं का नजारा देखकर दोनों के होश उड़ गए। सामने आंगन में राधा के पापा की छत-विछत लाश पड़ी थी जिसे हाई स्पीड कार ने कुचल दिया था। बस उसी घड़ी से राधा मानो अपने बहनों का बड़ा भाई और माॅं का बड़ा बेटा बन गई।अपने सारे सपने भूल घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली।

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कितना समझाया था मोहन ने “राधा तेरी जिम्मेदारी अब मेरी जिम्मेदारी है। बस तू हाॅं कर दे।”

लेकिन उसने अपने फर्ज के आगे एक न सुनी थी।कितना रोया था मोहन उस दिन “राधा, मुझे एक मौका तो दे पगली। तेरी बहनें अब मेरी बहनें हैं।”

“मोहन यह सब बोलने की बातें हैं और वैसे भी मैं अपनी जिम्मेदारी तेरे माथे क्यों डालूॅं?” यह बोलकर वह निष्ठुरता से उसका प्यार ठुकरा कर अपनी बहनों के पास चली आई थी और आज वही बहनें उसे धोखा देने की प्लानिंग कर रही है।

माॅं ने भी उसे कई बार समझाया था “बेटा,अपना जीवन बसा ले। अब तो मीरा और जिया भी अपने पैरों पर खड़ी है। अपनी भी सुधि ले।”

मीरा की शादी के बाद तो माॅं उसके पीछे ही पड़ गई थी “बेटा, शादी के बाद यह दोनों अपनी- अपनी दुनिया में मस्त हो जाएगी और तुम बिल्कुल अकेली पड़ जाएगी। मान ले मेरी बात। अपना घर बसा ले।”

“अकेली क्यों पड़ जाऊॅंगी? तू है ना मेरे साथ।” वह माॅं के गले पड़ हॅंस पड़ती थी।

“मैं क्या अमृत पीकर आई हूॅं।एक दिन मुझे भी जाना होगा। ये जीवन का सच है। तू समझती क्यों नहीं।”

“नहीं समझना है मुझे कुछ। मैं तुझे अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाऊॅंगी।” कहते हुए वह माॅं के आंचल में छुप जाती थी।

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“लेकिन माॅं,आज ना तेरा आंचल है ना मोहन का प्यार। बस साथ है तो छल-प्रपंच और धोखा। लेकिन मैं तुम्हारे और पापा के आशियाने को धोखे की भेंट नहीं चढ़ने दूंगी।” यह सोचते हुए उसने फोन मिलाया “हेलो अंकल……”

“हाॅं, समझ गया। ठीक है कल सुबह आता हूॅं।”

दूसरे दिन, सुबह राधा गार्डन में बैठी चाय पी रही थी तभी मीरा और जिया अपने-अपने पतियों के साथ उसके पास आती है “दीदी, अब कैसी है तबीयत?”

“ठीक है। आओ बैठो। चाय पियो।”

“ओ कमला! सबके लिए चाय लेकर आ।”

“दीदी हमें आपकी बहुत फिक्र होती है। कल रात आपकी तबीयत अचानक खराब हो गई। हमें तो रात भर चिंता से नींद ही नहीं आई। अब हम आपको यहाॅं अकेले नहीं रहने देंगे। आप हमारे पास रहेंगे। क्यों जिया?”

“हाॅं, मीरा दीदी आप बिल्कुल ठीक कह रही हो। अब हम दीदी की एक ना सुनेंगे। दीदी हमने आपके लिए अपने घर के पास ही एक फ्लैट ले लिया है तो अब आप हमारे पास वही रहेंगे यहाॅं अकेली नहीं।”

तभी उनके कानों में एक आवाज पड़ी “बच्चों,अब तुम्हें अपनी दीदी की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।अब तुम्हारी दीदी यहाॅं अकेली नहीं रहेगी।” जब उन्होंने आवाज की दिशा में चौंककर देखा तो सामने उनके फैमिली लॉयर मेहता अंकल खड़े थे।

उनके आंखों में छाए सवालों को देखकर उन्होंने कहा “राधा बिटिया ने यह घर “A little Hope” ट्रस्ट को दान में दे दिया है।अब यहाॅं अनाथ बच्चों के लिए अस्पताल और स्कूल बनेगा और तुम्हारी दीदी उनकी इंचार्ज बनाकर यहीं रहेगी।अकेली नहीं उन सब के साथ।”

“क्यों ठीक है ना! अब तो तुम लोगों को मेरी चिंता नहीं रहेगी? यह सुनते ही चारों मुॅंह लटका कर वहाॅं से चलते बने।

धन्यवाद

लेखिका-श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता# ये जीवन का सच है।

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