लता घर का सारा काम ख़त्म करके अपने कमरे में खिड़की के पास उदास बैठी हुई थी । दो दिन पहले ही वह हैदराबाद से वापस आई थी । उसे अपने कमरे में इस तरह से खिड़की के पास बैठना बहुत ही अच्छा लगता है ।
उसी समय फ़ोन की घंटी बजी अभी कौन हो सकता है सोचते हुए उसने फ़ोन उठाकर हेलो कहा उस तरफ़ से आई हेलो की आवाज़ सुनकर लता की उदासी थोड़ी देर के लिए भाग गई थी । वह उसकी सहेली सीमा की आवाज़ थी । हाय सीमा अमेरिका से कब आई है कैसी है ?
सीमा — मैं दो दिन पहले ही आई हूँ । मैं अब ठीक हूँ लता तुम कैसा हो ?
लता— चल फिर घर आजा दोनों मिलकर बातें करते हुए यहीं खाना खाएँगे ।
सीमा— ठीक है मैं दस मिनट में आती हूँ ।
दोनों सहेलियों के घर पास ही थे ।
लता सोचती है एक बार रसोई में जाकर देखती हूँ कि और कुछ बना सकती हूँ क्या और देखा तो रोटी सब्ज़ी चावल थी । थोड़े से पापड़ तल लिया अचार तो है ही सोचा और चाय चढ़ा दी ।
चाय के बनते ही सीमा भी आ गई थी । दोनों सहेलियाँ एक दूसरे के गले लग गई थी क्योंकि उन्हें एक दूसरे को देखे हुए ऑलमोस्ट एक साल हो गया था ।
सीमा को बिठाकर लता चाय लेकर आई । दोनों चाय पीते हुए थोड़ी देर चुप ही रहीं फिर लता ने बात शुरू किया कि हाँ तो बता सीमा कैसी है तेरी बेटी नाती मजा आया होगा उनके साथ समय बिताकर ।
उसने देखा सीमा के पास से जवाब नहीं आया पर वह फूटफूट कर रो रही थी । लता को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि सीमा इतनी कमजोर कभी नहीं थी ।
लता ने उसे बहुत समझाया थोड़ी देर इधर-उधर की बातें कीं तब जाकर सीमा ने अपने आपको सँभाल लिया था ।
उसने बताना शुरू किया था कि लता तुझे मालूम है ना मेरी शादी एक बहुत बड़े परिवार में हुई थी फिर भी मैंने अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को बहुत ही अच्छे सँभाल लिया था ।
सास ससुर की देखभाल,ननद की शादी, देवर की शादी सब ख़त्म किया था कि नहीं मेरे बच्चों की परवरिश उनकी पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी शादियाँ कराई थीं । वे दोनों अपने परिवार के साथ खुश हैं ।
सोचा चलो सारी ज़िम्मेदारियों से निपट गए हैं तो अब हम दोनों कहीं घूम फिरकर आते हैं । हम दोनों तीर्थ यात्रा के लिए निकले थे और दो तीन जगहें ही देख पाए थे कि तीर्थयात्रियों की बस का एक्सिडेंट हो गया था और मेरी बदक़िस्मती थी कि उस हादसे में मेरे पति की मृत्यु हो गई थी।
इस हादसे के बाद किसी तरह से मैंने अपने आपको सँभाल लिया था ।
इस बीच ईश्वर की कृपा से बेटी नीरजा के पाँव भारी हुए उसकी देखभाल के लिए मैं अमेरिका पहुँच गई। वहाँ पाँच महीने मैंने अपने नाती की देखभाल की थी सोचा था कि अब इंडिया चली जाती हूँ ।
इसी बीच बेटे का फ़ोन आया था कि माँ आप दादी बनने वाली हैं । मेरे घर में ख़ुशियों ने दस्तक दी थी, मैं बेटे के पास केनडा पहुँच गई ।
वहाँ बहू की देखभाल करने लगी । उसके यहाँ भी बेटा हुआ मैं दादी बन गई थी । मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ।
वहाँ भी पाँच महीने पोते के साथ रहकर मैंने ज़िंदगी जी ली। अब मुझे बार बार मेरा वतन बुला रहा था ।
मैंने बच्चों से कहा अब मैं चलती हूँ फिर कभी आऊँगी। बेटी और बेटा कहते हैं कि क्या करोगी इंडिया जाकर यहीं हम दोनों के बच्चों की परवरिश करते हुए रह जाओ।
मैंने जिद किया कि थोड़े दिन बाद आऊँगी अभी तो मुझे जाने दो और फिर आने का वादा करके आ गई थी ।
लता मैं ना बहुत थक गई हूँ। आराम करना चाहती हूँ। अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जीना चाहती हूँ क्योंकि यह ज़िम्मेदारियाँ हैं ना कभी खत्म ही नहीं होती हैं । ऐसी कोई बात नहीं है मुझे वहाँ कोई तकलीफ़ नहीं हुई है बच्चे बहुत ही अच्छे हैं । बस इतने दिन यहाँ से दूर रही हूँ साथ ही बहुत थक गई थी इसलिए आँखें भर आईं थीं और कुछ नहीं । चल
अब तू बता इतने महीने से तूने क्या किया है ?
लता ने मुस्कुराते हुए कहा—- वही जो तूने किया था बस इतना ही फ़र्क़ है कि तुम भारत से बाहर गई थी । मैं यहीं इंडिया में रहकर बच्चों की मदद कर रही थी । कभी पूने तो कभी हैदराबाद यही चल रहा है । हम दोनों भी दो दिन पहले ही यहाँ पहुँचे हैं । तेरे और मुझमें फ़र्क़ इतना है कि मेरे पति भी मेरे साथ हैं ।
सीमा ने अचानक से कहा लता हम दोनों एक काम करते हैं ।
लता ने कहा—बोल ना क्या कर सकते हैं ।
सीमा बोली हम दोनों यहाँ से कहीं दूर भाग जाते हैं । यह ज़िम्मेदारियों के बैग को यहीं फेंक देते हैं वर्ना यह कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेंगी ।
लता कुछ कहती इसके पहले पीछे से तालियाँ बजती हैं।
दोनों सहेलियाँ चौंक कर पीछे मुड़कर देखती हैं तो लता के पति विजय थे ।सीमा उन्हें वहाँ देख झेंप जाती है ।
इन दोनों सहेलियों को बातों बातों में पता ही नहीं चला था कि विजय के आने का समय हो गया था। विजय अपने किसी दोस्त से मिलने गए थे ।
विजय ने कहा कि— सीमा जी आपने बहुत अच्छी बात कही है । आप दोनों को भागने की ज़रूरत नहीं है मैं आप लोगों के लिए टिकट बुक करा देता हूँ आराम से घूम फिरकर आ जाइए । लता भी बहुत थक गई है । मुझे लगता है कि आप लोगों को आराम की ज़रूरत है ।
लता ने कहा— आप भी चलिए तो अच्छा लगेगा नहीं तो आपको यहाँ छोड़कर गई तो मुझे वहाँ जाकर भी चैन नहीं आएगा ।
विजय ने कहा कि— लता मैं यहाँ अपने घर में आराम से रहूँगा। मेरी फ़िक्र मत करो । मैं अपना काम खुद कर लूँगा । तुम्हें भी तो पता चले कि तुम्हारा पति भी अकेले घर को सँभाल सकता है ।
हँसते हुए कहा कि कभी तो हमें भी अकेले रहने दो ना। उनके कहने के लहजे से दोनों सहेलियाँ हँसने लगी थी । वातावरण में ख़ुशियों शामिल हो गई थी ।
इस तरह से दोनों के बाहर जाने का प्रोग्राम वहीं बन गया था ।
विजय ने दोनों के लिए टिकट ऑनलाइन बुक करा दिया । दोनों सहेलियाँ खुश हो गई थी और अपने जाने के लिए सामान पैक करने लगी ।
दोस्तों माता-पिता को ग्रेंटेड मत लीजिए । वे आपकी मदद ज़रूर करेंगे लेकिन उनके आराम का भी फ़िक्र कीजिए उन्हें भी कुछ दिनों के लिए ब्रेक दीजिए वरना उन्हें आप लोगों से भागना पड़ेगा ।
स्वरचित
के कामेश्वरी