“पूरे दिन मैं घर और ऑफिस के काम में लगी रहती हूँ,मुझे एक मिनट की भी फुर्सत नहीं मिलती और तुम कह रहे हो,कि मम्मी जी को अपने पास बुला लेते हैं।”शुभ्रा गुस्से से पति राजीव से बोली।
“तुम्हारे ये बहाने मैं कब से सुनता आ रहा हूँ।दस साल हो गए पापा को गए हुए।माँ बेचारी अब तक इसलिए अकेली रही,कि हम दोनों नौकरी करते हैं।वो हमेशा हमारी मदद ही करती रहीं।बेटे के जन्म के समय वो हमारे पास आकर रहीं,तुम्हारी व बच्चे की कितने अच्छे से देखभाल की।वो तो और रुकना चाहती थीं
पर मतलब निकल जाने के बाद तुम्हें वो बोझ लगने लगीं और तुमने उन्हें अपने घर जाने का इशारा दे दिया।आज वो हमारे साथ रह रहीं होतीं तो उल्टा तुम्हें मदद ही मिलती।पर नहीं..तुम्हें तो अपनी प्राइवेसी,अपनी स्पेस चाहिए थी।”राजीव ने भी मन की भड़ास निकाल दी।
“इतनी ही माँ की चिंता थी,तो कर लेते ना किसी घरेलु टाइप्स की लड़की से शादी,जो सारी उम्र घर बैठकर तुम्हारी माँ की सेवा करती।”
“तुम्हारा मतलब जो नौकरी करती हैं,वो सास ससुर को अपने पास नहीं रखतीं?उनकी सेवा नहीं करतीं?कल को हमारा बेटा भी बड़े होकर नौकरी करने वाली लड़की से शादी करे और ईश्वर न करे मैं ना रहूँ,तो क्या तुम अकेले रहोगी?”
“मेरा बेटा ऐसा नहीं करेगा।वो मुझसे बहुत प्यार करता है मैंने उसे नाजों से पाला है।” शुभ्रा इतराते हुए बोली।
“सभी माता पिता अपने बच्चों को नाजों से ही पालते हैं,वो तो बच्चे ही होते हैं जो बड़े होकर अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं।”काफी देर तक शुभ्रा और राजीव की बहस चलती रही पर नतीजा शून्य ही रहा।
शुभ्रा गुस्सैल होने के साथ-साथ गैर जिम्मेदार भी थी।उसे बस पति और बच्चे के सिवा तीसरा घर में कोई पसंद नहीं था।कभी कभार कोई ससुराल पक्ष से आ जाता तो उसके सामने भी अपनी नौकरी का रोना रोने लगती।मेहमान बेचारा दूसरे दिन ही अपना बोरिया बिस्तर समेटकर चल देता था।
शुभ्रा के मम्मी पापा कुछ दिनों के लिए उसके घर रहने आए,तो उसने ऑफिस से छुट्टी ले ली।उन्हें बड़े प्यार से रोज तरह तरह की डिशेज बनाकर खिलाती और फिर शाम को गाड़ी में घुमाने भी ले जाती।दिनभर उनकी सेवा में लगी रहती तो भी उसके चेहरे पर शिकन तक दिखाई नहीं देती।राजीव भी अपने दामाद होने का पूरा फर्ज निभा रहा था।उनकी सेवा में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
शुभ्रा के माता पिता खुश थे,और होते भी क्यों नहीं?बेटी दामाद उनकी इतने अच्छे से खातिरदारी जो कर रहे थे।
एक दिन राजीव ऑफिस से जल्दी घर आ गया।ससुर जी ने दरवाजा खोला और उससे जल्दी आने का कारण पूछा,तो वो बोला..सर में दर्द हो रहा है..।
राजीव सीधा किचन में चला गया।शुभ्रा अपनी माँ के साथ बातों में इतनी मशगूल थी,कि उसे राजीव के आने का भान ही नहीं हुआ।शुभ्रा की माँ उससे कह रही थी-” बेटा हमारे जाने का टिकिट करा दे,बहुत दिन हो गए हमे आए हुए।तुझे छुट्टी लेनी पड़ रही है और हमारी वजह से कितनी तकलीफ भी उठानी पड़ रही है।तेरा इतना काम बड़ गया है।”
“अरे माँ मेरी छुट्टियों की चिंता मत करो बहुत छुट्टियाँं हैं मेरे पास।और जहाँ तक बात है मेरी तकलीफ की,तो अपने माता पिता की सेवा करने में कैसी तकलीफ?ये तो मेरा फर्ज है।”शुभ्रा माँ के गले में बाँहे डालते हुए बोली।
शुभ्रा की बात सुनकर राजीव के सब्र का बाँध टूट गया,वो ताली बजाते हुए किचन में आया और तंज कसते हुए बोला-“सही कहा तुमने शुभ्रा..अपने माता पिता की सेवा करने में तकलीफ कैसी?सारी तकलीफ तो सास ससुर की सेवा करने में होती है।क्यों,ठीक कह रहा हूँ ना मैं?”
राजीव की बात सुनकर शुभ्रा को जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट लग गया और उसकी माँ तो बस राजीव को एक टक देखती रह गई।
“ये क्या कह रहे हो राजीव?मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझी।” शुभ्रा अंजान बनते हुए बोली।
“मतलब समझी नहीं या फिर समझना नही चाहतीं?”राजीव को यूँ गुस्से में तमतमाते हुए देख शुभ्रा की माँ घबरा गई और बेटी को इशारा कर चुप रहने को कहा।
“दामाद जी आप ऑफिस से थके हुए आएं हैं पहले चाय पीकर थोड़ा आराम कर लें फिर बात करते हैं।”
शुभ्रा को लगा आज तो उसकी पोल खुलकर ही रहेगी।वो राजीव से मीठी-मीठी बातें करने लगी-“राजीव लो गरम-गरम अदरख वाली चाय पी लो सर दर्द ठीक हो जाएगा।लाओ थोड़ी बाम भी लगा दूँ।”
“रहने दो मुझे तुम्हारी सेवा की कोई जरूरत नहीं है मैं अपने आप बाम लगा लूँगा।”
“राजीव बेटा आखिर तुम आज इतने गुस्से में क्यों हो?क्या हमसे कोई गलती हो गई?या फिर ऑफिस में किसी से झगड़ा हुआ?” शुभ्रा के पापा दुखी होते हुए बोले
“पापा आपसे कोई गलती नहीं हुई।गलती तो मुझसे हुई जो मैंने अपने लिए ऐसा जीवनसाथी चुना जिसे ना मुझसे और ना ही मेरी माँ के सुख दुख से कोई लेना देना है।उसके लिए बस अपनी नौकरी और अपने परिवार वाले ही मायने रखते हैं।”
शुभ्रा के माता-पिता आश्चर्य से शुभ्रा की ओर देखने लगे।उन्हें तो शुभ्रा की बातों से हमेशा यही लगता था,कि वो नौकरी के साथ-साथ अपने घर परिवार की जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभा रही है।
शुभ्रा की नजरें शर्म से झुक गईं।बेटी को यूँ खामोश देख शुभ्रा के माता पिता बोले-“शुभ्रा बेटा,दामाद जी जो कह रहें हैं वो सच है क्या?”
“मम्मी पापा ये क्या बोलेगी?इसके पास बोलने के लिए कुछ है नहीं।मैं बताता हूँ इसकी सच्चाई।मेरे पापा को गए दस साल हो गए,माँ अकेली रह रही है।इसने शादी के बाद एक बार भी नहीं कहा,कि माँ अकेली क्यों रहती हैं?उन्हें हमारे साथ रहना चाहिए।मैं ही उन्हें अपनी मर्जी से यहाँ ले आता था और कुछ दिनों बाद उन्हें घर छोड़ आता था।
वो जब भी आती थीं हमारे दस काम सँवार कर जाती थीं।ऐसे करते-करते जैसे तैसे समय निकल रहा था।मैं यही सोचता था,कि बस शुभ्रा खुश रहे और इस पर कोई किसी तरह का अतिरिक्त बोझ ना आए।अब माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता,उसके घुटनों में तकलीफ रहती है।वो बेचारी बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा कर पाती है।
बेटे के होते हुए भी माँ ऐसी हालत में रहे तो क्या फायदा ऐसी संतान का?बस मैंने आपकी बेटी से माँ को अपने साथ रखने की बात कही तो इसने अपनी नौकरी और घर के काम का वास्ता देकर इतना क्लेश किया।आप ही बताओ बुजुर्ग माता पिता किसकी जिम्मेदारी हैं?क्या हम अपने काम काज के चलते उन्हें तन्हा छोड़ दें जिन्होंने हम पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया?”कहते-कहते राजीव की आँखें भर आईं।
शुभ्रा के मम्मी पापा ने प्यार से राजीव के सर पर हाथ रखकर उसे दिलासा दिया और शुभ्रा को भी समझाया,कि सास की सेवा करना उसकी जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि कर्तव्य भी है।नौकरी के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है।”
शुभ्रा को अपनी गलती का एहसास हो गया।मम्मी पापा के जाने के बाद उसने सास को अपने साथ रखने का मन बना लिया।
बेटा हो या बेटी आज दोनों ही अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर बड़ी बड़ी कंपनियों में नौकरी कर रहें हैं।अपनी शिक्षा का सदुपयोग करना अच्छी बात है,पर माता पिता की देखभाल करना भी जरूरी है।जब तक उनके हाथ पैर चलते रहते हैं वो अपने को संभाल लेते हैं,पर जीवन की ढलती सांझ में उन्हें भी सहारे की जरूरत पड़ती है।और ये सहारा उनके बच्चे नहीं देंगे तो और कौन देगा?चाहे हँसकर निभाएं या रोकर…माता पिता की जिम्मेदारी तो निभानी पड़ेगी..नौकरी या घर के काम का वास्ता देकर बच्चे जिम्मेदारियों से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते।
कमलेश आहूजा