जिजीविषा – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

रीता अपने तीन बच्चों के साथ घर -घर काम करके गुजारा करती थी।उसका पति कमाता तो बहुत था। कारीगर था सो अच्छा पैसा मिलता था किन्तु उसका सहयोग परिवार खर्च में नगण्य था, कारण वह सब पैसा शराब पीने में उड़ा देता और कभी कभी तो रीता से उसके पैसे भी झपट लेता।न देने पर गाली गलौज करता,मारता पीटता किन्तु पैसे लेकर मानता।वह बहुत दुखी रहती किन्तु बच्चों का पालन पोषण तो करना ही था सो जी तोड मेहनत करती।

एक दिन उसका बड़ा बेटा जो करीब दस साल का था बोला मां मेरा स्कूल जाना क्यों बंद करा दिया। मेरी भी ओर बच्चों की तरह स्कूल जाने की इच्छा होती है। मां मेरे को स्कूल जाने दे ना।

रीता ने दो छोटे बच्चों की देखरेख के लिए उसका स्कूल जाना बंद करा दिया था।

बेटे की बात सुन रीता असमंजस में थी कि वह कैसे उसे स्कूल भेजे, पीछे दो बच्चों की क्या व्यवस्था करें। साथ ले जाएं किन्तु  कई लोगों को बच्चों का लाना अच्छा नहीं लगता सो कहीं काम से ही नहीं निकाल दें। खैर वह काम पर गई किन्तु उसका मन मस्तिष्क अभी भी आकाश की पढ़ने की इच्छा में उलझा हुआ था क्या करे क्या  न करे।

एक घर जहां वह काम कर थी वे बडे ही सहृदयी लोग थे सो उसने अपनी समस्या उनके आगे रखी। दीदी आप बताएं मेरा बेटा आकाश पढ़ना चाहता है किन्तु मैं उसे कैसे स्कूल भेजूं पीछे दोनों छोटे बच्चों का ध्यान कौन रखेगा।

महिमा जी बोलीं अरे  इसमें इतनी बड़ी क्या बात है,तेरा छोटा  बेटा भी तो स्कूल जाने लायक है, दोनों को भर्ती करा दे साथ ही चले जाया करेंगे और बेटी को तू अपने साथ ले आया कर ।सुबह की ही तो बात है शाम को तो सब घर में ही रहेंगे।

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पर दीदी दो बच्चों का स्कूल खर्च कैसे उठा पाऊंगी।

सरकारी स्कूल में डाल दे उनकी फीस आदि देने में मैं तेरी मदद कर दूंगी। और उन्होंने उसे एडवांस में पांच सौ रुपए देने चाहे।

वह बोली दीदी अभी मेरे पास हैं इनसे करवा देती हूं भर्ती ये रुपए ले जाऊंगी तो मेरा  मर्द मुझसे छीन लेगा, मैं बाद में  लेती हूं।

जैसी तेरी मर्जी।

उसने दोनों बेटे, आकाश एवं असीम को स्कूल में भर्ती करा दिया और बेटी को साथ ले आती। उसके पति ने बहुत हंगामा किया क्या जरूरत है बच्चों को पढ़ाने की।इन पर इतना खर्च करेगी।मेरे को तो पैसे देती नहीं है अब कहां से आ गये।

वह बोली मेरी महिमा दीदी बहुत अच्छी हैं, उन्होंने ही फीस भरी है एवं स्कूल ड्रेस दिलवाई है। मैं उनके दो काम और कर दूंगी।

दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे। वे पढ़ने में होशियार थे सो मन लगाकर पढ़ते। किन्तु स्कूल में बच्चे एवं कुछ अध्यापक भी उनके साथ भेदभाव करते कारण वे एक घरेलू काम करने वाली महिला के बच्चे थे, झोंपड़ी में रहते थे।

आकाश बड़ा था सब समझता था सो उसे बहुत बुरा लगता किन्तु वह सब कुछ भुला कर पढ़ने में जुट जाता। कक्षा में प्रथम आने लगा यह देख बच्चे उसे और परेशान करने लगे। कुछ अध्यापक भी कहते तू क्या करेगा पढ़कर चल ब्लैक बोर्ड साफ कर। कभी पानी लाने को कहते। कभी कभी तो टिफिन भी धोने को दे देते। जितना अपमान होता वह उतना ही दृढ़ निश्चयी पढ़ाई के प्रति होता जाता।जो देखो मुझे एक ही ताना मारकर अपमानित करता है कि पढ़कर कलेक्टर बनेगा क्या। घर में बापू भी यही कहता है

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अब मैं इन्हें कलेक्टर बन कर ही दिखाऊंगा ।वह जैसे जैसे बड़ा हो रहा था अपमान का दंश झेलना मुश्किल हो रहा था। किन्तु वह उतना ही पढ़ाई के प्रति समर्पित होता जा रहा था। अपमान सहते उसमें पढ़ाई के प्रति जुनून पैदा हो गया और वह दिन रात पढ़ने में जुट गया।राह इतनी आसान नहीं थी।

स्कूल के बाद कॉलेज में आ गया।अब मां से पैसे लेने में उसे शर्मिंदगी महसूस होती।बेचारी कितनी मेहनत करेगी सो उसने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। बहुत ही संघर्षों के बाद उसने ग्रेजुएशन किया।अब वह प्रतियोगि परीक्षाएं देना चाहता था किन्तु फीसके इतने पैसे भरना मुश्किल था। फिर एक दिन वह अपने उन अध्यापक से मिलने गया जो स्कूल समय में उसका बहुत पक्ष लेते थे और उसे बहुत प्यार करते थे।जब उसने, उनसे अपनी समस्या का हल चाहा तो वे प्यार से बोले क्यों चिंता करता है आकाश मैं हूं ना। मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू जीवन में जरूर सफल होगा।

सर मैं यू पी एस सी की परीक्षा देना चाह रहा हूं सो आप मेरी कुछ मदद करें।

उन्होंने सहर्ष उसे फीस के लिए पैसे दे दिए।

वह बोला सर नौकरी लगते ही आपकी अमानत लौटा दूंगा बस आप मुझे सफल होने का आशीर्वाद दें।

उसने फीस तो भर दी किन्तु घर पर ही पढ़ता। कोचिंग जाने का पैसा नहीं था उसके पास। उसके एक दो सहपाठी थे वे कोचिंग जाते थे और आकाश को अपने नोट्स देकर मदद करते।

घर में बापू ने हंगामा खड़ा कर रखा था। रोज मां को प्रताड़ित करते।पढ़ता ही रहेगा क्या जवान बेटा है उसे काम पर भेज।

मां कहती पढ रहा है तो पढ़ने दो।वह कुछ बनना चाहता है तो क्यों रोकूं । छोटे दोनों बच्चों की पढ़ाई भी जैसे तैसे चल रही थी। जहां काम करने जाती वो लोग भी कहतीं रीता क्या करेगी बच्चों को पढ़ाकर, बेटी बडी हो गई है उसे काम सिखा साथ ले आया कर ।

नहीं दीदी जी मैं नहीं चाहती वह भी मेरी तरह जिंदगी जिए।

सब उस पर हंसती यह तो अपने बच्चों को सरकारी  ऑफिसर  बनायेगी । देखते हैं हम भी।

वह अपमान का घूंट पीकर रह जाती।

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सबके द्वारा किया गया अपमान ही उसके बच्चों के लिए वरदान साबित हुआ। उसके बच्चे अपमान झेलते झेलते इतने पढ़ाई के प्रति समर्पित हुए की तीनों बच्चों ने सफलता पा ली।

आकाश प्रथम प्रयास में नहीं निकल सका किन्तु दूसरे प्रयास में सफलता प्राप्त कर कलेक्टर बन ही गया।छोटा बेटा बैंक में लग गया और बेटी सरकारी अध्यापिका बन गई।

तीनों बच्चों ने आज अपनी और अपनी मां की किस्मत बदल दी । आज तो बापू का भी सीना  गर्व से चौड़ा हो गया था। लोगों की जबान से निकले अपशब्द, मजाक ही उनके लिए आशीष, वरदान बन उनकी सफलता में सहायक हुआ़।

उनकी सफलता ने सबके मुंह पर ताला लगा दिया।

यह सफलता की राह आसान नहीं थी। अनेकों कठिनाइयों से संघर्ष करते करते कभी हताश होते , हिम्मत हारते , अपनी किस्मत पर आंसू बहाते और फिर कोई अपमान उन्हें खड़े होने की हिम्मत देता, फिर नये जोश से जुट जाते। उनकी इसी जिजीविषा ने उन्हें सफल बनाया।

शिव कुमारी शुक्ला 

10-12-25

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

अपमान बना वरदान****वाक्य प्रतियोगिता

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