माधवी होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी। कंप्यूटर साइंस के मास्टर डिग्री का फाइनल इयर चल रहा था।बेटी बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी,तो रमा जी(मां)और शंकर जी(पिता )ने उसे बाहर रहकर पढ़ने की आजादी दी थी।वैसे इससे पहले उनके खानदान की कोई भी बेटी घर से बाहर पढ़ने नहीं गई थी,पर रमा जी ने कहा था अपने पति से”यहां बच्ची की पढ़ाई नहीं हो पाएगी।सारा दिन घर में कचर-कचर चलता रहता है।इतने लोग,बच्चे ,इनमें कहां हो पाएगी पढ़ाई?”शंकर जी भी अपनी लाड़ली की क्षमता पर पूरा भरोसा करते थे।बेटी को भेज तो दिया,पर संयुक्त परिवार में ढेरों ख़र्च होते हैं,सो ज्यादा पैसा अलग से भेज नहीं पाते थे बेटी को।
एक दिन शंकर जी के बड़े भाई (रमाकांत जी)ने पूछा “गुड्डू,अपनी बिटिया इतने कम पैसों में कैसे चलाती होगी अपना खर्चा?तू ऐसा कर सब्जी और दूध में थोड़ा कटौती कर।खरीदने तो तू ही जाता है।कटौती करने से जो बचे,बिटिया को भेज दिया कर।”शंकर जी भावुक हो गए।मन ही मन सोचने लगे कि क्यों लोग संयुक्त परिवार को अभिशाप समझते हैं।मेरे बड़े भैया ने मालती को कभी अपनी बेटी से कम नहीं माना।सबके मना करने पर भी मेरा साथ दिया,मालती को भेजने के लिए।और आज घर के रोजमर्रा की चीजों में कटौती करने की सलाह देकर,अपने प्रेम का नया परिचय दिया दाऊ सा ने।
एक बड़ी किराने की दुकान थी शंकर जी के पिता की,जिसे अब तीनों भाई मिलकर चलाते थे।आमदनी में से खर्चे काटकर तीन हिस्से होते थे कमाई का।बहुओं के बीच में कभी-कभी थोड़ा मनमुटाव हो जाता था,पर भाईयों के बीच प्रेम अगाध था।इस बार रमा जी ने बहुत सारा नाश्ता,ड्राई फ्रूट्स रख दिए थें बिटिया के लिए।साथ में उन्होंने छोटी -मोटी दवाईयां भी मेज दीं।शंकर जी ने इस बार मालती को आने की खबर नहीं की थी। सरप्राइज देना चाहते थे मालती को।
होस्टल पहुंच कर मालती के कमरे की चाबी मांगी गार्ड से। गार्ड ने जो बताया,सुनकर तो शंकर जी के होश उड़ गए।मालती होस्टल छोड़कर पी जी में रहने लगी थी।घर में किसी को बताया नहीं।कॉलेज के बाहर ही इंतज़ार करते रहे।जैसे ही मालती निकली,पापा को देखकर मानो सांप सूंघ गया उसे।शंकर जी गुस्से से आग-बबूला हो रखे थे।पूछा उन्होंने “मल्लू ,तूने होस्टल क्यों छोड़ दिया?यहां कम पैसे लगते थे।पी जी का किराया तो बहुत होगा।तू कैसे चुकाएगी?मालती ने पापा का हांथ पकड़ कर कहा
“पापा,यहां बहुत सारी परेशानियां होने लगीं थीं।खाना अच्छा नहीं मिलता,साथ की लड़कियां पढ़ने नहीं देतीं थीं। इसलिए मैंने पी जी ले लिया। खर्च की चिंता मत करिए आप।मैंने एक पार्ट टाइम जॉब ले लिया है।किराया निकल जाएगा।आप बताइये बिना बताए कैसे आ गए अचानक?कुछ बात हो गई है क्या?”गुस्से से भरे शंकर जी ,बिटिया की समझदारी देखकर शांत हो चुके थे।बिटिया से बोले”तू कब इतनी बड़ी हो गई रे?ख़ुद काम करके पढ़ाई करेगी।तेरे पापा , चाचा,ताऊ हैं अभी।तू रह पी जी में।हम पैसों का बंदोबस्त कर देंगे।तुझे काम करने की जरूरत नहीं।चल मैं भी देख लूं कहां रहती है तू?”
अब मालती डर गई।पापा को यदि साथ में लेकर गई ,तो सच पता चल जाएगा।तुरंत बोली”आप इतनी दूर से आए हैं,तब से खड़े हैं बाहर यहां।चलिए पहले कुछ खा लीजिए,फिर चलेंगे पी जी देखने।”खाना खाकर एक बड़ी सी बिल्डिंग में लेकर गई पापा को।शंकर जी तो सपने में भी सोच नहीं सकते थे कि इतनी बड़ी जगह में उनकी बेटी रहेगी। बहुत खुश हुए,और कहा”वाह मल्लू ,तूने मेरा सीना चौड़ा कर दिया।अकेले इतना अच्छा पी जी ढूंढ़कर रहना मामूली बात नहीं।चल अब
अपना कमरा दिखा दे मुझे।चार बजे की बस है।ज्यादा समय नहीं अब।घर जाना भी जरूरी है।तेरे ताऊ सा के एक परिचित आने वाले हैं कल।तेरी शादी की बात करने।मैं यह फोटो लाया हूं तुझे दिखाने।अगर तुझे अच्छा लगे,तब बात पक्की होगी,वरना मना कर देंगें।”मालती ने झट से कहा”अभी पी जी की मालकिन बाहर हैं।पांच बजे से पहले वो आएंगी नहीं।बिना उनकी परमिशन के किसी को भी रूम में नहीं ले जाया सकता यहां।”
शंकर जी गद्गगद् हो गए और बोले” मैं नाहक ही इतनी चिंता कर रहा था।बाप हूं ना।पर यहां तो सिक्योरिटी बड़ी चाक चौबंद है।किसी भी ऐरै गैरे को क्यों घुसने देंगे।जा -जा ये तेरी मम्मी और ताई जी ने क्या क्या भेजा है ,तेरे लिए लेकर कमरे में रख दें।अब मैं जाकर देख तो नहीं पाऊंगा कमरा। बाद में तेरी मम्मी को लाकर भी दिखा जाऊंगा।चल अब मैं चलता हूं। छुट्टियों में जब आएगी न,शादी की बात पक्की करेंगे ताऊ जी।अभी फोटो और नंबर दिया है ना,उस लड़के से बात कर लेना बेटा। बहुत सभ्य लोग हैं।वे तो तेरी फोटो देखकर तुझे पसंद कर लिए हैं।बस आकर जो रस्म निभानी है निभा देंगे।”
शंकर जी ने घर आकर मालती के बहादुरी के किस्से बताए।कैसे अकेली लड़की ने इतना काम कर लिया ।नौकरी भी करती है,ताकि हमारे ऊपर ज्यादा भार ना आए।शंकर जी के बड़े भाई के दोस्त का परिवार बेटे सहित आए।लड़की की फोटो तो पसंद थी उन्हें पहले से ही।लड़का भी आया था।लड़का वहीं नौकरी करता था जिस शहर में मालती पढ़ रही थी।मालती की फोटो देखकर वह एकटक देखता रहा।अपने पिता और शंकर जी से उसने कुछ कहा।दोनों तैयार हो गए।शंकर जी ,रमा(जो बेटी का पक्ष लेती थी और बाकी लड़का उसके माता पिता आए मालती के शहर।शंकर बाबू ने तो वो अपार्टमेंट देखकर ही अंदर घुस गए।अंदर का दृश्य देखकर शंकर जी और उनकी पत्नी दंग रह गए।
मालती के साथ एक परपुरुष सोया था।मालती की मांग में पतली सी(नाममात्र) सिंदूर की रेखा थी,जो बालों से बाकायदा छिपाकर लगाए हुए थी।शंकर बाबू दहाड़े”मालती ओ मालती,यह सब क्या है?”मालती हड़बड़ा कर उठ गई।तब मां के पास जाकर कहा”मम्मी,मैंने वासु के साथ कोर्ट में शादी कर ली है।नियम कानून के कारण साथ रहने का सिद्धांत ले लिया हमने।हमें माफ कर दीजिएगा बाबू।हमने डर के मारे नहींबताया।वासु बहुत अच्छा लड़का है।मेरा बहुत ख्याल रखता है।यह शादी दोनों ने अपनी मर्जी से की है।
शंकर जी का मुख लज्जा से मलिन हो चुका था।रमा जी भी अब कातर स्वर में रोने लगी।
बड़े भैया के दोस्त और उनकी पत्नी -बेटे के सामने कितनी बेइज्जती हुई शंकर जी की ।एक विवाहिता से इस नवयुवक की शादी करवा रहे थे।बेहया लड़की ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रखा।रमा जी बेहोश होकर गिर पड़ीं।उन्हें आज दिन में तारे दिखाई दे दिए।रोती हुई उस समय को कोस रही थी ,जब मालती को पढ़ने बाहर भेजा था।
माता -पिता तो भरोसा करके बच्चों को बाहर पढ़ने ,या नौकरी करने भेजते हैं।अपना खर्च कम कर कर के,बच्चों को सभी सुविधाएं दिलवातें हैं।कुछ बच्चे पढ़ भी लेते हैं।नौकरी भी करते हैं सम्मान सहित।मेरी औलाद ने तो पूरे परिवार का सम्मान धूल में मिला दिया
यह विश्वास घात है, माता-पिता से अब कैसे नजरें मिलाएंगी
शुभ्रा बैनर्जी
दिन में तारे दिखाई देना