रेखा चार बहनों मैं सबसे बड़ी थी मां की तबियत अक्सर खराब होने की वजह से घर की ओर बाकी तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी उसके ऊपर ही थी या फिर यूं कहे वो और बाकी सब भी इसे उसकी ही जिम्मेदारी समझते थे ।
रेखा घर के कामों से फुर्सत पाकर छोटी बहनों को पढ़ाने भी बैठती थी ,वो नही चाहती थी मां की तबियत और घर की जिम्मेदारियों की वजह से उसकी बहनों की पढ़ाई पर कोई असर पढ़े जैसे उसकी पढ़ाई और सपने अधूरे रह गए । बहनों को पढ़ाते हुए वो आसपास के बच्चों के ट्यूशन भी लेने लगी थी जिससे घर मैं कुछ मदद हो जाया करती थी ।
समय यूं ही बीत रहा था की समय से पहले ही रेखा के पिताजी की सड़क दुर्घटना मैं मृत्यु हो गई , अब तो पूरे परिवार की जिम्मेदारी रेखा के कंधों पर ही आ गई थी , बहने भी अब ट्यूशन लेने लगी थी जिससे रेखा को थोड़ी मदद हो जाती थी ।
समय का चक्र घूमता रहा और रेखा की बहने पढ़ाई पूरी करके कुछ न कुछ काम भी करने लगी थी ,एक अध्यापिका हो गई थी अपने ही कॉलेज मैं और दूसरी बहन नर्स हो गई थी और तीसरी बहन भी अपना कंप्यूटर सेंटर खोलने का सोच रही थी , पर रेखा की जिंदगी जस की तस चल रही थी ,वही मां की सेवा और घर के काम और बाकी सभी जिम्मेदारियां ।
बहने अब पढलिख कर आत्मनिर्भर हो चुकी थी और अपने फैसले स्वयं लेने लगी थी , जब भी कोई फैसला लेना होता तो तीनों बहने मिलजुल कर बात करती और फैसला घर मैं सुना दिया जाता ,रेखा को न ही पूछा जाता न ही शामिल किया जाता बस बता दिया जाता और एहसास कराया जाता की उन्हे क्या समझ है ना ही तो वो पढ़ी लिखी है ज्यादा और न ही स्मार्ट है वो जानती ही क्या है बाहर की दुनिया के बारे मैं ।
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रेखा भी कुछ नही कह पाती थी चुपचाप सुन कर रह जाती थी कभी मां बापू के सामने मुंह नही खोला था ,सारी जिम्मेदारियां मुंह बंद करके निभाई थी ,और कहती भी तो किससे कहती ,कोई उसे अपना माने तब तो कहे किसी से ,इन्ही बहनों को पालने के लिए उसने अपनी पढ़ाई छोड़ कर उनकी परवरिश की , अभी तक शादी भी नही की, मुकुल ने कितना इंतजार किया उसका ,सारी जिम्मेदारियां के साथ अपनाने को तैयार था मुकुल उसे पर उसे विश्वास नही था , उसकी बहनों को कभी कमी न हो इसके लिए उसने अपने जीवन को कभी पूरा नहीं होने दिया और अब उम्र के इस पड़ाव पर कौन साथ देगा उसका ।
एक दिन बाद रेखा की छोटी बहन ने जब फरमान सुनाया की वो शादी करने जा रही है अपने ही कॉलेज के एक प्रोफेसर से तो रेखा अपने कमरे मैं फूट फूट कर रोई थी , साथ ही वो लोग शादी करके इसी घर मैं रहेंगे क्योंकि इस घर पर चारों बहनों का बराबर का हक था और कोई भी अपना हक क्यों छोड़ेगा ।
शादी के बाद रेखा की छोटी बहन और उसका पति इसी घर मैं रहने लगे । और अब रेखा पर ही एक और सदस्य की जिम्मेदारी थी क्योंकि घर चलाने की जिम्मेदारी सिर्फ रेखा की थी । शादी के बाद भी अपनी खुद की जिम्मेदारियों का निर्वाह न करना रेखा की बहन और उसके पति ने अपना फर्ज न समझा था और रेखा के ऊपर ही सारे फर्ज लाड दिए गए थे , सिर्फ बात इतने पर ही नही रुकी थी , छोटी बहन का पति की नजर रेखा पर भी आ चुकी थी और जैसे सभी उसको सिर्फ इस्तेमाल करते थे अपने जिम्मेदारियों की पूर्ति के लिए ,वो भी अपनी जरूरतों के लिए रेखा का इस्तेमाल करना चाहता था और गाहे बगाहे वो रेखा को कमरे मैं बुलाने के बहाने ढूंढता , आसपास जब भी रेखा मिलती , टकराती , उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश करता ,और गंदे इशारे करता ।
रेखा ने एक दो बार ये सब बताने की कोशिश भी की पर उसकी कोई सुनता ही कब था ,उल्टा उस पर ही इल्जाम लगा दिया जाता ।
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रेखा अब इन सब से तंग आ चुकी थी ,बहुत अकेली हो गई थी वो , और इन्ही सब मैं वो बहुत डिप्रेशन मैं भी आ गई थी और खुदकुशी करने के ख्याल भी उसके मन मैं आने लगे थे ।
एक दिन सभी अपने अपने काम पर गए हुए थे , घर मैं रेखा अकेली थी और मां अपने कमरे मैं सोई हुई थी , रेखा भी सर दर्द की दवा ले कर कमरे मैं सोई हुई थी ,उसे पता ही नही चला कब उसकी बहन का पति घर आ गया और उसके कमरे मैं आकर उसको दबोच लिया , वो हाथ पैर पटकती रह गई और उस आदमी ने उसकी इज्जत के चीथड़े उड़ा दिए ,वो चीखती चिल्लाती रही पर उसकी आवाज कौन सुनने वाला था , मां जो बिस्तर से उठने मैं असमर्थ थी सबकुछ जान सुन कर भी असहाय थी और इसी गम मैं उसके उसी वक्त प्राण निकल गए ।
रेखा ये सदमा सहन करने की स्तिथि मैं बिल्कुल भी नही थी , अपनी अस्मिता के साथ साथ अपनी मां को भी वो खो चुकी थी
और बदहवास सी हालत मैं वो भी घर से निकल गई अपने प्राण लेने को ,वो अंधाधुंध घर के पास बनी रेलवे पटरियों की तरफ भागी जा रही थी तभी पीछे से एक हाथ उसको रोकता है वो मुड़ कर देखती है तो मुकुल को देख कर फूट फूट के रोने लगती है और मुकुल हालत समझ कर उसे गले से लगा लेता है ।