नंदिता सूनी आंखों से अपने पति की हार चढ़ी तस्वीर को अपलक निहार रही थी। मद्यपान के व्यसन ने आखिर उसके पति की जान ले ही ली। कमरे के बाहर सासू मां का उसे बदस्तूर कोसना जारी था..” मेरे तो कर्म ही फूट गए थे जो इस अभागिन को बहू बनाकर ले आई।पैदा होते ही अपने बाप को खा गई और अब इस राक्षसी ने मेरे बेटे को भी निगल लिया। हे प्रभु तुम्हें मेरे ही मत्थे मरना था इस कलमुंही को….”
नंदिता की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बहने लगी। नन्हा बल्लू गोद में सो चुका था। कैसा भाग्य लेकर नंदिता का जन्म हुआ। अतीत के पन्ने उसकी आंखों के सामने खुलते चले गए।
उसके पिता दो भाई थे।उसके पिता बड़े थे। चाचा चाची भी उनका बड़ा सम्मान करते थे। उसका जन्म हुआ तो पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई। पूरे गांव को दावत दी गई थी, आखिर उसके पिता गांव के सबसे बड़े गृहस्थ थे। पर पता नहीं उनके परिवार को किसकी नजर लग गई। दावत के दूसरे दिन उसके पिता कुएं पर नहा रहे थे कि अचानक उनका पैर फिसला और वह कुएं में जा गिरे। चाचा किसी काम से बाहर गए हुए थे और मां और चाची चौके में थी। किसी को कुछ पता नहीं चल पाया। पता तो तब चला जब चाची पानी लेने कुएं पर पहुंची। उसकी चीख सुनकर सब लोग वहां एकत्रित हो गए। उसके पिता को जैसे तैसे कुएं से बाहर निकाला गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके पिता के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
पिता के क्रिया कर्म के बाद धीरे-धीरे चाचा और चाची की भी दृष्टि बदल गई।वे उससे और मां से अनचाहे आश्रितों की तरह व्यवहार करने लगे। सारी जमीन जायदाद भी धोखे से हथिया ली। संपत्ति के नाम पर उसकी मां के पास एक कमरा और जो नाम मात्र के गहने अपने शरीर पर पहन रखे थे, वही बचा था। चाचा ने तो उसकी पढ़ाई भी छुड़वा दी होती,मगर मां ने पड़ोस में रहने वाले आलोक की सहायता से उसे जैसे तैसे दसवीं की परीक्षा दिलाई। आलोक और उसके परिवार वाले बहुत ही सहृदय थे। वे हमेशा चोरी-छिपे उसकी और उसकी मां की सहायता किया करते थे।
विवाह योग्य हुई तो चाचा ने पैसे लेकर एक बेरोजगार और पियक्कड़ लड़के से उसका विवाह कर दिया। ससुर की पेंशन से घर चलता था। रोज-रोज की मारपीट, गाली गलौज और तानों के बीच उसके जीवन की गाड़ी चल रही थी। इसी बीच गोद में नन्हा बल्लू भी आ गया। बल्लू एक वर्ष का था जब अत्यधिक पीने की वजह से उसके पति की मृत्यु हो गई और दुखों का पहाड़ मानो उसके ऊपर टूट पड़ा।
तभी सास की पुकार से उसकी तंद्रा टूटी…”- अरे कुछ पकाएगी भी या यूं ही मेरी छाती पर मूंग दलती रहेगी।”
नंदिता एक झटके से उठी, चंद कपड़े समेटे, बल्लू को गोद में उठाया और सीधे सास के पास जाकर कहा, “-आपको और परेशान होने की आवश्यकता नहीं है माँजी। मैं इस घर से जा रही हूं…” सास कुछ बोलती इसके पहले ही वह तीर की तरह घर से निकल चुकी थी।
द्वार पर उसे खड़े देखते ही चाची की भृकुटी तन गई। उन्होंने हाथ नचाते हुए कहा,”- ऐ हे! हमारी परेशानियां पहले से ही कुछ कम नहीं थी, जो तू भी आ गई उन्हें और बढ़ाने। अब इस उम्र में हमसे और ना सम्भलेगा तेरा बोझ…”
माँ गिड़गिड़ा उठी “-रहने दे छोटी, वह मेरे कमरे में रह जाएगी, कोई परेशानी ना होगी तुम लोगों को..”
माँ ने अपने गले की इकलौती बची चेन बेचकर उससे एक सिलाई मशीन खरीद दी, ताकि वह अपना जीवन यापन कर सके। आलोक की सहायता से उसे कुछ ग्राहक मिल गये और जीवन की गाड़ी पुनः चल निकली। आलोक हर कदम पर उसकी सहायता करता रहा और उसने कठिनता से ही सही पर स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली और फिर बी एड भी कर लिया।
आलोक खुशी से फूला नहीं समा रहा था। नंदिता का शिक्षिका के पद पर नियुक्ति पत्र उसके हाथ में था। नंदिता की आंखों से आंसू बहने लगे, “- तुम ना होते आलोक, तो मैं यह सब कभी नहीं कर पाती। तुमने भी मेरे लिए कितने कष्ट सहे…” इस पर आलोक ने मुस्कुराते हुए कहा “-अरे तुम्हारी मदद करने में मेरा अपना भी तो स्वार्थ छिपा था नंदिता…” नंदिता ने अचकचा कर कहा, “- तुम्हारा कौन सा स्वार्थ?” “-तुम्हारे चेहरे पर आत्मसम्मान और संतुष्टि की एक झलक देखने के लिए मैं तुम्हारी सहायता करता रहा क्योंकि तुम्हारे सुख में ही मेरा भी सुख छुपा है नंदिता! इससे अधिक मैं और क्या कहूं….” आलोक ने भावुक स्वर में कहा। बल्लू पास ही खड़ा बहुत देर से उनकी बातें सुन रहा था, उसने मासूमियत से कहा, “-आपको मेरी मां की खुशियां इतनी प्यारी हैं तो मेरे पापा क्यों नहीं बन जाते आप? इससे आप मां का और मेरा हमेशा ख्याल रख सकते हैं और आपको आपकी खुशी मिल सकती है। मुझे बहुत अच्छे लगते हैं आप…”
स्तब्ध रह गए आलोक और नंदिता। फिर नंदिता ने अपने आप को संभालते हुए कहा “-क्या अनाप-शनाप बोल रहा है बल्लू! जा अपनी पढ़ाई कर…” सहमकर बल्लू कमरे से बाहर निकल गया।
आलोक ने नंदिता की आंखों में आंखें डालते हुए कहा “- क्यों उसे डांट रही हो ?गलत क्या बोल रहा है बल्लू? सच कहूं तो मैं भी तुमसे यही बात कब से कहना चाह रहा हूं, पर कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई। पर आज बल्लू ने मेरी मुश्किल आसान कर दी। मैं तो कब से तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा हूं…. मेरे जीवन में नए रंग भरने के लिए आओगी ना नंदिता??”
“पर मैं तो…” नंदिता के मुंह से टूटे-फूटे शब्द निकले।
“मुझे किसी की परवाह नहीं है, ना मैं किसी से डरता हूं। मैं अपनी जीवनसंगिनी उसे ही बनाऊंगा जिसे मैं चाहता हूं। बोलो तुम मेरा साथ दोगी ना नंदिता?” आलोक ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
नंदिता कुछ और बोल नहीं पाई। कपोल रक्तिम हो गए, आंखें झुक गईं। आलोक ने मुस्कुराते हुए उसकी ठोढ़ी उठाकर कहा, “-तुम्हारे मौन ने मुझे तुम्हारी सहमति दे दी है नंदिता। चलो अब मैं चलता हूं बहुत सारी तैयारियां करनी है विवाह की.”
#स्वार्थ
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी, धनबाद, झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना