Post View 346 आज भी जब ऊँची-नीची सड़कों को नापती हूँ और दूर, ऊबड़-खाबड़ हो गये ठीकरों में बने पुराने बरैक्स देखती हूँ तो जिदंगी के कई पन्नें खुद-ब- खुद खुलते जाते है, अपना अतीत दोहराने। मुझे कभी ये दोहराव बुरा नहीं लगा। कभी कभी मन बेलौस सा मचल उठता , उसी किशोर वय में … Continue reading जीवन का एक सफहा – अंजू निगम
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