जानते हैं जी … छोड़ ना तू क्या बताएगी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

  जानते हैं जी….. जैसे ही शालिनी ने दीपेश से कुछ कहना चाहा…. हां हां छोड़ ना तू क्या बताएगी …..ये रहा फल , मिठाई, ब्लाउज पीस, और पूजा का सारा सामान उधर रख दिया हूं ….ये फल धोना है क्या….?  दीपेश ने शालिनी के काम में हाथ बटाने की कोशिश की…!

    कल की बात शालिनी सोच रही थी हम अकेले बेटे बहु बाहर रहते हैं बेटी दामाद भी दूर रहते हैं… हम पति-पत्नी ही तो साथ में रहते हैं ..पर हम दोनों अपने में ही व्यस्त और मस्त रहते हैं कभी उदासी मायूसी या परिस्थिति को जहां तक संभव हो अपने ऊपर हावी नहीं होने देते…।

   पर तीज में न जाने क्यों शालिनी को ज्यादा सजने संवरने की इच्छा नहीं होती थी ..अब तो अस्वस्थता के कारण निर्जला व्रत भी नहीं रख पाती थी ….फिर हर बार शालिनी सोचती चलो साधारण ढंग से ही पूजा कर लूंगी…।

     न जाने क्यों तीज के दिन शालिनी को कुछ पुरानी बातें याद आ ही जाती थी …..

      दीपेश से पहले आकाश से शादी हुई थी शालिनी की…. बड़े घर का बेटा आकाश …..शालिनी की पहली पहली तीज थी ….सज धज कर पूरे परिवार के साथ पूजा अर्चना की थी शालिनी ने ……आकाश दोस्तों के साथ …..,” जा रहा हूं जल्दी वापस आ जाऊंगा ” कह कर निकला था ….पर वो जल्दी …इतनी देर बन गई कि… कभी लौट ही नहीं सका आकाश…. सजी धजी दुल्हन बनी शालिनी बुत बनकर रह गई थी….!

ये कहानी भी पढ़ें :

रिश्ते भी बिकते हैं.. – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

     समझदार सास ससुर ने ही अच्छा लड़का देखकर दीपेश से शालिनी की शादी कर दी थी….. तब से शालिनी हर तीज में ज्यादा सजना संवरना नहीं चाहती थी…. एक तो उसे न जाने क्यों प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से डर समाया था कि कहीं फिर से पहली तीज के समान …..नहीं.. नहीं…

और दूसरा …लोग क्या कहेंगे…? दूसरी शादी है पहली तीज के दिन ही… फिर भी इतना बन संवर रही है……! शायद इन्हीं कारणों से शालिनी तीज में ज्यादा उत्साह नहीं रखती थी…।

   हर बार की तरह शाम को दीपेश दफ्तर से घर आते ही पूछे …अरे क्या बात है ..आज मेहंदी वेहंदी नहीं लग रहा है ….?

   हो गया जी… इस बार जाने दीजिए , ऐसे ही पूजा कर लूंगी…. शालिनी ने भी अनमने ढंग से जवाब दिया ..।

   इस पर दीपेश ने तुरंत कहा …अरे क्यों…?  लगवा लो मेहंदी …फोन करो …ब्यूटी पार्लर वालों को …

अरे जानते हैं दीपेश… पहले से बुकिंग नहीं है तो अब तो …पहले तो उनके पास टाइम ही नहीं होगा और यदि वो समय निकाल भी लें तो मनमाना कीमत वसूलेंगी…।

 अरे शालिनी तुम भी ना …चलो जल्दी से फोन करो …दीपेश के कहने पर शालिनी ने अपने परिचित पार्लर में फोन किया…. रात 8:00 बजे आने का समय निर्धारित हुआ ….मन मुताबिक पैसे लेकर शालिनी के दोनों हाथों में मेहंदी लग गई…।

      हालांकि शालिनी ने कई बार कहा …इतना महंगा मेहंदी लगाने का…?   दीपेश मैंने आपके कहने पर ही लगवाई …वरना इतना महंगा तो मैं जिंदगी में ना लगवाऊं …..अपने से ही गोल-गोल ना लगा लेती …!

ये कहानी भी पढ़ें :

माँ बोझ हो गई इसलिए छोड़ कर जाना चाहते हो? – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

    अरे हो गया शालिनी …तुम भी ना… अच्छा ये बताओ , खाने का क्या करना है ….देखो दीपेश रोटी तो आपको ही बनानी पड़ेगी …वो भी मेरे लिए भी ….कह कर आज शालिनी भी इतराने और नखरे दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी..।

     दीपेश ने जैसे तैसे रोटी बनाई.. थोड़ा बहुत काम किचन का और किया ….दूसरे दिन सख्त हिदायत के बाद कि दवाई समय पर ले लेना… ऑफिस चले गए…. इसी बीच शालिनी तैयार हो अपनी सखी सहेलियां के साथ मोहल्ले में पूजा पाठ भी की…. और खूब सारी फोटो खिंचवाई …जगह-जगह स्टेटस लगाया…. बहुत खुश थी शालिनी ….दीपेश को धन्यवाद देना चाहती थी …आपकी वजह से मैंने इतने उत्साह से त्यौहार मनाया…वरना… न जाने कौन सा वह अंजाना डर ….. सच में दीपेश आप बहुत अच्छे हैं ….ऑफिस से आते ही दीपेश से शालिनी ने कहा…..

जानते है जी…  छोड़ ना तू क्या बताएगी…!

 बस दीपेश का ये बोलना था कि शालिनी को गुस्सा आ गया …

आप मेरी बात सुनते क्यों नहीं है …मैं क्या बोलना चाहती हूं , क्या बताना चाहती हूं …..आपके इंतजार में अभी तक सजी-धजी बैठी हूं ….जाइए अब मैं आपको कुछ भी नहीं बताऊंगी ….।

    मैं तो बोलने वाली थी कि आप बहुत अच्छे हैं …पर अब बोलती हूं… आप बिल्कुल भी अच्छे नहीं है ….गुस्से में तमतमाती शालिनी दूसरे कमरे में चली गई ….धीरे से दीपेश शालिनी के पास आए और बोले …..मैं जानता हूं शालिनी तुम क्या बोलने वाली थी , शालिनी ने आश्चर्य से दीपेश की ओर देखा…

ये कहानी भी पढ़ें :

तुम दिन भर करती क्या हो – मनीषा भरतीया : Moral Stories in Hindi

   हां शालिनी , हर बार की तरह तुम मुझे धन्यवाद देना चाहती थी और तुम बड़ी सुंदर लग रही थी …ऐसा सब लोगों ने तुम्हें बोला ….तुम ये भी बताना चाहती थी… दीपेश ने शालिनी को छेड़ना चाहा…!

   वाकई ..तुम बड़ी सुंदर लग रही हो… मैंने पहले ही तुम्हारा स्टेटस देख लिया था शालिनी ….दीपेश के मुख से अपनी प्रशंसा सुन खुश हो रही थी… आखिर में दीपेश ने कहा

    मैं उतना भी अच्छा नहीं हूं , जितना तुम मुझे बना देती हो ….।

     वो क्या है ना दीपेश …..कोई भी इंसान संपूर्ण 100% नहीं होता ….कुछ खूबियां तो कुछ कमियां सभी में होती हैं …अब हमारे ऊपर है कि हम ज्यादा क्या देखते हैं और किसे तवज्जो ज्यादा देते हैं …खूबियों को या कमियों को…. जब खूबियों को तवज्जो ज्यादा देंगे तो निश्चित ही उसका पलडा भारी होगा ….फिर कमियां अपने आप बौनी लगेगीं…।

ये हुई ना बात …..चलो अब हम दोनों एक सेल्फी भी ले ही लेते हैं…।

( स्वरचित ससर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

संध्या त्रिपाठी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!