श्याम शंकर जी की बेटी की शादी तय हो गई थी।सब इतना जल्दी तय हो गया कि रिश्तेदारों को खबर नहीं कर पाए।सबसे ज्यादा चिंता उन्हें अपने बड़े बहनोई की थी।सारा घर सर पर उठा लेंगें,जैसे ही पता चलेगा कि उनकी अनुपस्थिति में ही शादी पक्की हो गई है।
श्याम शंकर जी की पत्नी रमा भी अपने बड़े ननदोई की आदत से वाकिफ थी।शादी की खुशी मनाने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था,जब तक उनको ना बता दिया जाए।श्याम शंकर बाबू ने तो अपने हांथ खड़े कर लिए थे।अब रमा को ही मोर्चा संभालना था।एक बार गुस्साए जो ननदोई तो पूरी शादी में गाल फुलाकर ही रहेंगे।रमा ने डरते-डरते ननदोई को फोन लगाया”जीजा जी,शिल्पी के रिश्ते की बात चल रही है।लड़के वाले देखने आना चाहते हैं।हमने कह दिया है कि बड़े जीजाजी के घर ही दिखाएंगे हम अपनी शिल्पी को।आपसे अच्छा और कौन खातिरदारी कर सकता है मेहमानों की।”
जीजाजी का लहजा कुछ अलग हो गया”अरे,यहां दिखाने की क्या जरूरत है? श्याम से कहो वहीं बंदोबस्त करें,या तो लड़के वालों के यहां चलते हैं।”
रमा ने झट कहा”जीजाजी,लड़के के एक फूफाजी हैं।बहुत गुस्सैल हैं।इतनी मीन मेख निकालते हैं।लड़के वाले उनसे डरे रहते हैं।कह रहें हैं कि जल्दी लड़की देखो और शादी पक्की करो।आपको पता है,मैंने तो लड़के की अम्मा से कह दिया आपके बारे में।”
“क्या कह दिया ,रमा बहू?क्या मैं भी उनके जैसा हूं?”जीजाजी बौखला गए ।
“नहीं-नहीं,जीजाजी,मैंने तो कह दिया कि एक हमारे घर में हैं देवता समान ननदोई।जो हर बात में खुश रहतें हैं।बच्चों की खुशी में अपनी खुशी समझते हैं।अरे वो तो अपने घर सब इंतजाम करना चाहतें हैं।कभी हम पर रौब नहीं झाड़ते, बिल्कुल हमारे सगे भाई जैसा बर्ताव करते हैं।”
रमा ने भावुक होकर कहा तो जीजाजी का स्वर भी पसीज गया।दोगुने उत्साह से बोले”श्याम को बोल दो,अगर यहां आकर दिखाना चाहते हैं तो ठीक है,नहीं तो वहीं अगर दिखाने की रस्म तुम लोग कर लो,तो हम दो चार दिन बाद ही आ पाएंगे।”
रमा के मन से बड़ा बोझ उतरा अब।शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं।एक हफ्ते पहले बड़ी ननद और ननदोई आ गए थे।इस बार उनकी सक्रियता देखने लायक थी।शिल्पी को अपनी बेटी मानते थे।शामियाना,खानसामा, बैंड-बाजा, फोटोग्राफर सब की जिम्मेदारी उन्होंने ले ली थी।रमा ने गलत नहीं कहा था ,वे सचमुच भाई की तरह हर चीज का ख्याल रख रहे थे।
बारात आई, तो इत्तेफाक से जिस कल्पनीय रिश्तेदार के बारे में रमा ने जीजाजी को बताया था,वैसे ही एक महाशय पहुंचे।आते ही मीन मेख निकालने लगे।
रमा ने उन महानुभाव को जीजाजी के जिम्मे कर दिया। जीजाजी ख़ुद की व्यवस्था भूल उनकी आवभगत में जुट गए थे।आखिर बिटिया के ससुराल के हैं।बारात विदा के समय वही सज्जन जोर -जोर से चिल्लाने लगे”अरे!पता नहीं क्या खिला दिया आप लोगों ने,पेट फटा जा रहा दर्द से।जीजाजी ने बारात को सही समय पर विदा करवा दिया,और खुद उनको लेकर डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाने की बात कही ,तो जीजाजी ने दो उंगली उठाकर कहा”डॉक्टर साहब,बहुत दूर जाना है इन्हें,दो लगा दीजिए।अभी बारात वाली गाड़ी में बिठा आऊंगा।
दो इंजेक्शन की बात सुनकर गाल फुलाए महाशय तीव्रता से उठ खड़े हुए यह कहकर कि अब तो दर्द ही नहीं है।
शादी शांतिपूर्ण संपन्न हो गई।विदाई भी हो गई।बड़ी दीदी ,लड़के वालों के नेंग देखकर मुंह बनाकर एक तरफ बैठी थी।जीजाजी उनसे बोले”अरे पार्वती,तुम क्यों गाल फुलाए गुस्साई हो।शिल्पी की शादी विधिवत हो गई,और क्या चाहिए।सामान तो एक ना एक दिन खराब हो जाएगा,पर रिश्ते खराब नहीं होने चाहिए।”उनके प्रति आज तक जो भ्रम था,आज टूट गया।श्याम शंकर और रमा ने पैर पकड़कर उनका धन्यवाद दिया।गाल फुलाए रहने वाले जीजाजी ने आज सीना फुला दिया था सबका।
शुभ्रा बैनर्जी
बहुत अच्छी कहानी है आपकी
इस कहानी का और कुछ नाम हो सकता हैं 🙏