जहां सुमति तहां संपत्ति नाना…! – लतिका श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  सोहन कल के उस क्लाइंट ने कितनी हरी हरी पत्तियां दीं हैं एक जरा झलक तो दिखा दे भाई… राजन ने सुबह दफ्तर आते ही उतावली से पूछा तो सोहन जम के हंस पड़ा।

कल का क्लाइंट बहुत टेढ़ा था फर्जी काम करवाना चाह रहा था और  राजन राजी नहीं हो रहा था …काफी बहस बाजी होते देख सोहन ने अवसर का लाभ उठाया और बीच बचाव करते हुए राजन को कूटनितिक तरीके से समझाते हुए गलत काम करवाने के एवज में काफी ज्यादा रकम लेने की चाल चल दी जो कामयाब रही ..राजन मान गया और क्लाइंट अपने स्वार्थ सिद्ध के लिए खुशी से सुबह आकर  मोटी रकम देने  का वादा कर चला गया था।

का हो भईया जी रात भर नींद नहीं आई का या फिर हरी पत्ती का सपनाते रहे… ऐ लो झलक का हम पूरा ही दिखाए देते हैं सोहन ने अलमारी खोल के एक बैग निकाला और उसकी जिप खोल कर राजन की आंखों के सामने उजाला कर दिया।

राजन जो अभी नया अनाडी खिलाड़ी  था और गलत काम करने के बोझ तले दबा दबा महसूस कर रहा था ….नोटों की हरियाली देख सांसों में नई ताजगी महसूस करने लगा था।

 

उसके कानों में छोटी बहन की बरसो से संजोई सोने के झुमको की फरमाइश और मां के हाथो की सोने की चूड़ी की फरमाइश गूंज उठी जो अब पूरी करने का समय आ गया था….!!कितना आसान होता है इस तरह से धन कमाना उसे लग रहा था..!

अरे बस बस बंद कर दो भाई जल्दी हमारी तो आंखें ही चौंधिया गईं और किसी की आंख में ना पड़ जाए…. जल्दी से आगे बढ़ कर राजन ने बैग बंद कर दियाऔर अलमारी में रखने लगा था।

ना ना भइया जी अलमारी में क्यों रख रहे हो अपने घर लेते जाना आज तो धनतेरस का त्योहार भी है लक्ष्मी मैया के साथ घर जाओ गृहलक्ष्मी के साथ पूरा घर प्रसन्न हो जायेगा….वहां किसी की आंख ना पड़ेगी ….सोहन ने कहा तो राजन को लगा जैसे उसके मन की मुराद पूरी हो गई बहुत ज्यादा उत्साह से बैग को संभाले वह तत्काल घर आ गया था

सुनो सरोज……ये बैग बहुत संभाल के वो बड़ी वाली अलमारी में सबसे ऊपर में रख दो अपनी गृहलक्ष्मी सरोज से उसने कहा।

का है इसमें जो इतना संभाल के रखे के लिए कह रहे हैं अपने हाथ में पकड़ कर उस बैग को टटोलते हुए सरोज बोल उठी।

ना इस तरह  हाथ ना लगाना अंदर का कीमती सामान  खराब हो जायेगा राजन ने जोर से कहा तो सरोज की उत्सुकता और बढ़ गई हाथों से टटोलने पर उसे नोट जैसा अनुभव हो रहा था।

इसमें रुपए हैं क्या चिंहुक कर उसने पूछा तो राजन ने जोर से डपट दिया

अरी बावरी पागल हो गई है क्या इत्ती जोर से चिल्ला रही है चुप तुझे भी कब अक्काल आएगी समझदारी तो जैसे भीख मांगती है तुझ से कौन सी बात बोलने की है कौन सी नहीं है सबर ही नहीं ..!

लेकिन ये तो बहुत ज्यादा रुपए लगते हैं कहां से मिले आपको किसने दिए आपको और क्यों दिए क्या किसी ने रखने को दिए हैं या आपने किसी काम से उधारी मांगा है आश्चर्य के मारे सरोज सच में बावली हो गई थी।

सुन इन सब बातों से तुझे क्या लेना देना अरे लक्ष्मी मैया खुद चलकर आएंगी तो भला  कौन इनकार करेगा ..अब तेरे हाथों में आईं हैं तो उन्हें संभाल पूजा कर सम्मान कर प्रसन्न हो .. ये क्या क्यों कैसे के फेर में काहे पड़ी है ।

जा चुपचाप अलमारी में संभाल के रख कर आ जैसा कह रहा हूं चुप से कर समझी… भड़क कर राजन ने कहा और दीपा को बुलाने लगा ..”अरे दीपा आ जा लक्ष्मी माता की कृपा हो ही गई आखिर मुझ पर …. तैयार हो जा बाजार चलना है आज इतने सालो बाद तेरा भैया तेरी सारी फरमाइश पूरी करेगा … तो दीपा खुशी से कूद ही पड़ी..” सच्ची भैया इतने सारे रुपए लेकर आए हो मैं अभी मां को बता कर आती हूं कहती मां के पास चली गई थी….!

पता नहीं हमेशा पति से दब कर रहने वाली संकोच और सम्मान करने वाली सरोज आज डरी नहीं बल्कि विरोध कर उठी …..

नहीं  यह लक्ष्मी  नही है मैं तो तब तक इस पर हाथ ना लगाऊंगी जब तक आप सच्ची सच्ची इन रुपयों के मिलने का कारण नहीं बताएंगे… जाने क्यों मुझे अंदर से कुछ ठीक नहीं महसूस हो रहा है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे… इतना रुपया…!!

तू बिलकुल मूरख ही है सुन मुझे ये सोहन ने दिए हैं राजन ने उसे टालते हुए कह दिया।

सोहन भैया ने क्यों दिए हैं उन्हें कहां से और क्यों मिले तो उन्हीं के घर भिजवा दीजिए आप सरोज तर्क कर बैठी।

रोहन को याद आ गया उसने सोहन से कहा था

सोहन तू अपने घर ले जा इसे कुछ दिन चुपचाप रखे रहना फिर मामला शांत हो जाने पर हम लोग खर्च करेंगे राजन के कहते ही सोहन खड़ा हो गया था ..”

नही भैया जी हम अपने घर तो बिलकुल ही नहीं ले जायेंगे।

क्यों भाई क्या दिक्कत है??

बहुत ज्यादा दिक्कत है हमारी पत्नी से… वह रुपए देखते ही खर्च करने को बावली हो जाती है बहुत खर्चा है भैया जी उसका

क्या ऐसा खर्चा है भाई.. राजन ने आश्चर्य से पूछा उसकी आंखो के सामने अपनी सीधी सादी पत्नी सरोज की शकल आ गई थी।

गहने जेवरात का नशा चढ़ा रहता है उसे हर वक्त शानदार कपड़े चाहिए उपहार लेन देन की तो बीमारी है उसे और आए दिन सहेलियों के साथ  उसकी खर्चीली पार्टियां मुझसे रुपए की डिमांड करती रहती हैं… नहीं देने पर इतना झगड़ा करती है जीना मुश्किल कर देती है ये चाहिए वो चाहिए बस…. !!

इसीलिए मुझे इस तरह क्लाइंट्स के लिए गलत काम करके गलत तरीके से रुपए लेने को बाध्य होना पड़ता है…!

आप ही रखिए अपने घर में वहां सुरक्षित रहेंगे सोहन ने बैग राजन को जबरदस्ती थमाते हुए कहा था।

घर के सारे खर्च की जवाब दारी मेरी है .. सरोज कहती जा रही थी…..आप अपनी सारी कमाई लाकर मेरे हाथ में इसी विश्वास से सौपते हैं कि मैं आपकी इस मेहनत की कमाई की पाई पाई का सही उपयोग घर के सभी सदस्यों कीअनिवार्य जरूरतों को पूरा करने में लगाऊं… तभी आपके द्वारा लाए धन में बरक्कत होगी…!

आपकी कमाई केवल रूपयो की हरियाली नहीं है बल्कि कर्मठता से ईमानदारी से नैतिकता से सच्ची भावना से घर चलाने को घर के प्रत्येक सदस्य की इच्छा को पूरा करने प्रेम पूर्ण अभिलाषा से कमाया हुआ धन है साक्षात लक्ष्मी है.. यही हमारे घर की नैतिकता  और संस्कार की जड़े मजबूत करता है और जीवन में संतोष और आनंद की प्राप्ति करवाता है।

 

राजन हैरान था अपनी कमाई की ऐसी व्याख्या सुन कर ….!एक वह सोहन की पत्नी है जो सोहन को धन कमाने के लिए गलत काम करने को प्रेरित करती रहती है लड़ती है और एक यह मेरी सरोज है जो मुझे ऐसे धन को घर लाने के लिए लानत दे रही है वापिस करने के लिए लड़ाई कर रही हैं..!!

राजन का मन आंदोलित हो उठा था….!

क्या हमारे द्वारा अर्जित धन भौतिक सुखों के साथ आत्मिक सुखों का कारक भी बन सकता है..!! क्या गलत तरीके से कमाया धन किसी की गर्दन पकड़ कर वसूला धन बद्दुआएं लेकर आता है संस्कारों की जड़े खोखली करता है..घर में अशांति पैदा करता है..!

जब से उसने ये नोटों की थैली वसूली है खुशी से ज्यादा तनाव और कुछ गलत करने के भाव से त्रस्त तो है उसका भी मन… लेकिन आजकल ये सब कौन सोचता है इतना पागल कोई नही है सबको बस धन चाहिए चाहे जैसे भी हो…!

पर सरोज किस मिट्टी की बनी हुई है आई हुई लक्ष्मी को ठुकरा रही है…! उसे वापिस करने के लिए मुझसे लड़ाई कर रही है..!! लेकिन वह गलत तो नहीं बोल रही है .. उसकी सच्चाई ही तो उसकी ताकत है .. घर में और किसी ने भी ऐसी बात सोची तक नहीं सब अपनी फरमाइश पूरी करने के मंसूबे बनाने में जुट गए हैं औरसरोज को अव्यवहारिक ढोंगी होने का ताना देने में लगे हैं फिर भी वह अपनी बात पर अडिग है और एक भी पैसा घर में रखने को तैयार नहीं है।

अचानक राजन को अपना पुराना कॉलेज के दिनों का रूप याद आने लगा जब वह सच्चाई ईमानदारी और नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते किया करता था ….घूसखोरी भ्रष्टाचार की जड़ काटने की…. विरोध करने की बात करता था रिश्वत खोरी के पुतले दहन करता था….और आज… जैसे ही मौका मिला खुद भी रिश्वत खाने में लिप्त हो गया…!

सच है मौका मिलने पर इंसान क्या करता है ..! यही मूल बात है।

सरोज सही तो कहती है हर धन …लक्ष्मी नहीं होता धन भी लक्ष्मी तभी कहलाता है जब उसका अर्जन  पवित्र और उचित साधनों से किया गया हो जब उसके अर्जन में हमारी सद  नीयत ईमानदारी की महक और कर्मठता की गमक शामिल होती है।

भैया चलो ना जल्दी मैं इस बार दिवाली पर तुम्हारी तरफ से गोल्डन झुमके लूंगी और मां के लिए गोल्डन चूड़ियां… दीपा सजी धजी खड़ी उसे बाजार चलने को कह रही थी।

एक झटके से राजन खड़ा हो गया था…!

नहीं बहन इस बार और इंतजार कर ले अगली दीवाली में तेरी  फरमाइश जरूर पूरी कर दूंगा दृढ़ स्वर में राजन बोल उठा।

 

लेकिन भैया रुपए तो इस दिवाली पर मिले हैं ना फिर अगली दिवाली क्यों??दीपा चकित थी।

क्योंकि ये रुपए मेरे नही है मेरी प्यारी बहन इसमें किसी की ईमानदारी की महक नहीं है दुआओं की चमक नहीं है … जिससे तेरे झुमके चमक नहीं पाएंगे यह लक्ष्मी माता का आशीर्वाद नही है …. सामने रखा सरोज का अनछुआ बैग उठाते हुए राजन ने अपने घर को संवारने वाली संस्कारों की नीव रखने वाली अपनी गृहलक्ष्मी सरोज की तरफ देखते हुए कहा और गलत  को सही करने की दिशा में अग्रसर हो गया था।

सुनिए जी ….अब आप सबकी फरमाइश कैसे पूरी कर पाएंगे ….आपको मेरी बात बुरी तो नही लगी पीछे से आती सरोज ने धीरे से चिंतित स्वर में  पूछा तो राजन रुक गया

सरोज तुम्हारे जैसी गृहलक्ष्मी जहां हो उस घर  में लक्ष्मीमैया अवश्य आती हैं ये मेरा विश्वास है … सरोज के कंधे पर आश्वस्ति भरा हाथ रखता और अनोखा दिली सुकून महसूस करता हुआ राजन मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ चला था।

लतिका श्रीवास्तव

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