जब ये घर तुम्हारा है तो मेहमानवाजी की उम्मीद क्यों ?? – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

नीरा फटाफट नाश्ते का काम निपटकर आफिस के लिए तैयार हो रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी… नीरा ने फटाक से भागकर दरवाजा खोला

“अरे दीदी!! आप अचानक से!!! दरवाजे पर खड़ी अपनी ननद को बिना किसी खबर के अचानक से आया देख नीरा थोड़ा हैरान थी ।

” क्यों भाभी , क्या अब अपने घर में आने के लिए भी मुझे पूछना या बताना पड़ेगा ?, थोड़ा अकड़ते हुए प्राची बोली…

ननद के इस तरह से बोलने पर नीरा का चेहरा उतर गया फिर भी उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, ” नहीं नहीं दीदी…. आप आइये ना…”

नीरा एक तरफ हटते हुए बोली और प्राची के अंदर आते ही अपने कमरे में चली गई अपना पर्स लेने के लिए …

नीरा की सास ललिता जी वहीं हाॅल में बैठी थीं… बेटी को देखकर मुस्कुराते हुए बोलीं, ” अरे बेटा, दो दिन पहले हीं तो बात हुई थी हमारी… तब तो तुमने नहीं बताया कि तुम आओगी!!! वैसे अच्छा किया जो आ गई… मेरा भी मन कर रहा था मिलने का….”

 दोनों माँ बेटी बात कर रही थीं कि नीरा आकर ललिता जी से बोली, ” मांजी, दीदी के लिए चाय बना दूं…. फिर आफिस का टाइम हो जाएगा.”

” बहू, तू चली जा…. चाय मैं बना लूंगी …,, ललिता जी नीरा को आश्वस्त करते हुए बोलीं तो प्राची तपाक से बोल पड़ी, ” क्यों मां?? , क्या भाभी के पास इतना भी वक्त नहीं की ननद के लिए चाय पानी तो बना दे?? मैं कौन सा रोज रोज आती हूँ जो इसका आफिस जाना इतना जरूरी है….. ?? “

ननद की बात सुनकर नीरा वापस रसोई में चली गई और चाय चढ़ा दी… बार बार फोन की तरफ देख रही थी और सोच रही थी कि आज आफिस में छुट्टी के लिए बोल दे…. फोन करने के लिए मोबाइल हाथ में उठाया हीं था कि ललिता जी रसोई में आ गई , ” बहू, तुमसे कहा था ना कि चाय मैं बना लूंगी… तुझे आफिस जाने में लेट हो जाएगी तूं चली जा”

” लेकिन माँ जी, वो… दीदी बुरा मान जाएंगी… बोलेंगी की इतना बोलने पर भी भाभी रूकी नहीं…” असमंजस भरे स्वर में नीरा बोली

” बहू , वो मेरी बेटी है.. मैं जानती हूँ कि यदि तुम नहीं गई तो भी वो ऐसे ही बोलेगी कि माँ बेटी को एक दिन अकेला नहीं छोड़ा गया.. हमारी बातें सुनने के लिए छुट्टी मार ली .. इसलिए तूं चली हीं जा कम से कम तेरे काम का नुकसान तो नहीं होगा.. मैं संभाल लूंगी ,, ललिता जी ने नीरा के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा

 अपनी सास के मुंह से ऐसा सुनकर नीरा निशब्द हो गई… उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक माँ अपनी बेटी को छोड़कर कभी बहू का भी पक्ष ले सकती है … उसका मन सास के प्रति श्रद्धा से भर गया और वो प्राची से जल्दी आने की बोलकर आफिस के लिए निकल गई….

नीरा के घर से निकलते ही प्राची का स्वर बदल गया, ” देखा माँ अब इस घर में मेरी कोई इज्जत नहीं रह गई है…. मेरे कहने के बाद भी महारानी सज धजकर निकल गई …. जब मेरी ननद मेरे घर आती है तो मैं तो सारा दिन उसके आगे पीछे घूमती रहती हूँ.., और भाभी को देखो….. ना कोई आवभगत ना कुछ पूछना. …. ,,

अब ललिता जी से भी रहा नहीं गया, ” बेटा, अभी अभी तो तूं बोल रही थी कि ये तेरा अपना घर है..जहाँ आने के लिए तुझे किसी से पूछने या बताने की जरूरत नहीं है…. लेकिन दूसरे हीं पल तूं खुद को मेहमान समझ रही है… बेटा, तेरी भाभी नौकरी करती है इसलिए तुझसे पूछ रही थी

कि आपने आने की कोई खबर नहीं दी…. अगर उसे पहले पता होता कि तूं आने वाली है तो वो छुट्टी के लिए एप्लिकेशन दे देती…. वैसे तूं सच सच बता… क्या वाकई तुझे नीरा का जाना बुरा लगा है या फिर तूं सिर्फ उसके प्रति अपनी भड़ास निकाल रही है?? क्या कभी तूं अपनी भाभी के पास बैठकर उसके सुख दुःख की बतलाती है….

वो बस काम करती रहती है और तूं मेरे पास बैठी रहती है….. वो दो घड़ी पास बैठ भी जाए तो तूं बोलना बंद कर देती है इसके सामने क्या बात करना.. कहीं घर की बात बाहर ना चली जाए… ,,

 ” माँ… आप माँ तो मेरी हो लेकिन तरफदारी हमेशा बहू की करती रहती हैं… मुझे तो आपने सचमुच पराया हीं कर दिया ,, मुंह फुलाते हुए प्राची बोली

” बेटा, तेरी माँ हूँ तभी ये चाहती हूँ कि बेटी का मान सम्मान अपने मायके में हमेशा बना रहे… खुद को सिर्फ ननद के ओहदे पर बैठाकर रखोगी तो कभी भाई भाभी के दिल में जगह नहीं बना पाओगी….. बेटा, अब समय काफी बदल गया है….. जहाँ बेटा बेटी को समान माना जाने लगा है तो बेटी और बहू को भी समान दर्जा देना पड़ता है….

फिर तुम हीं बताओ कि ननद भाभी का रिश्ता इस बदलाव से अछूता कैसे रहेगा.. ?? हो सके तो ननद से पहले खुद को एक सहेली के रूप में स्वीकार कर के देखो….. फिर देखना तुम्हें अपनी भाभी की ये छोटी छोटी बातें चुभनी बंद हो जाएंगी…. तुम दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझ पाओगी और ये रिश्ता ज्यादा मजबूत बन जाएगा….. ,,

माँ की बात सुनकर प्राची को महसूस हो रहा था कि वो बेवजह हीं छोटी छोटी बातों को तूल दे रही थी… नीरा तो बस अपना काम हीं कर रही थी फिर उसमें चिढ़ने वाली कौन सी बात है… हाँ बुरा तो तब लगता यदि वो मुझे देखकर मुंह बनाती या जान बूझकर घर से बाहर चली जाती….. वैसे भी मां सच ही कह रही थी कि भाभी के आगे कभी वो खुलकर अपने मन की बातें नहीं करती है…. उसे हमेशा यही लगता है कि वो तो पराई है…… ,,

 शाम को नीरा जल्दी घर आ गई …. साथ ही कुछ सामान भी ले आई थी…. आते ही वो रसोई में जाकर खाने की तैयारी करने लगी तो प्राची बोली, ” भाभी, खाना हम मिलकर बना लेंगे… आओ कुछ देर हमारे पास भी बैठ जाओ

 मुझे आपसे वो केक बनाने की रेसिपी सीखनी है… आपका भांजा रोज जिद्द करता रहता है कि मामी जैसा केक बनाओ…. ,,

नीरा ये सुनकर बहुत खुशी खुशी बोली, ” अच्छा दीदी, क्यों नहीं!! एक काम करती हूँ मैं आज आपके सामने ही केक बना देती हूँ आप देख भी लेना और चिंटू के लिए केक ले भी जाना”

 दोनों ननद भाभी आज रसोई में साथ खड़ी हंसते खिलखिलाते काम कर रही थीं और ललिता जी उन्हें देख रही थीं.. उन्हें अब उम्मीद थी कि उनकी बेटी का मायका उनके बाद भी बना रहेगा….

सविता गोयल

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