जब यादों के झरोखे ने दी दस्तक – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

 आज सुबह से बाहर तेज बारिश हो रही थी। बादल अपनी गर्जन से आकाश को दहला रहे थे…. ऐसा लगता जैसे भयंकर तूफान आने वाला है। परेशान सी रमा कभी खिड़की के बाहर देखती,कभी कमरे में चहलकदमी करती…बैचेन सी इधर उधर मंडरा रही थी। अचानक हुई रिमझिम से मौसम खुशगवार हो गया था..रमा ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली.. पेड़ पौधों पर झर झर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था। इस मदमाते मौसम में रमा का मन हुआ कि सब भूलकर इस रिमझिम में आज वह भी अपना तन मन भिगा ही ले…

आज वो स्वछंद पंछी की तरह उड़ जाना चाहती थी। उसने अपने बाल खोल,खुले लहराने के लिए छोड़ दिये…अपना मनपसंद फिल्मीं संगीत लगा उसकी मधुर धुन में थिरकने लगी…घर के सभी लोग एक विवाह में शामिल होने गये थे पूरे घर पर उसका ही राज कोई रोक टोक नहीं,अपनी मन की कर लेना चाहती थी कुछ घन्टों की ही सही खुली हवा में खुद के मुताबिक जीने का मौका गवाना उसे मंजूर नहीं था ।

   रमा खूबसूरत पढ़ी लिखी अच्छे खानदान की गुणी लड़की है। अच्छे परिवार में शादी हुई,पति मनन भी बहुत अच्छे हैं…मगर परिवार वालों ने यह कह कर नौकरी करने से मना कर दिया कि भला तुमको किस चीज की कमी है। नौकरी करोगी तो सारा समाज क्या कहेगा.. ? हमें यह सब पसंद नहीं हमारे खानदान में बहुएं नौकरी नहीं करती और तो और पति मनन ने भी माता पिता समस्त घरवालों का ही साथ दिया उन सबकी हाँ में हाँ मिलाई….रमा न चाहते हुए भी मन मसोस कर रह गई..आज उसे रह रहकर अपने यूनिवर्सिटी के दिन याद आने लगे।

 कितनी होशियार कितना टैलेंट था उसमें वाद विवाद प्रतियोगिता हो निबंध प्रतियोगिता हो या पाकशास्त्र सभी में तो वो आगे रहती थी चलो पाकशास्त्र तो घर गृहस्थी में उपयोग हो ही रहा है घर भर ही नहीं पूरी रिश्तेदारी में उसके खाने की चर्चा रहती है । उसने तो कैटरिंग का कोर्स भी किया है। कैटरिंग कोर्स से याद आया कैसे माँ शादी से पहले उसके पीछे पड़ी रहती थी…. । “ अरी रमा सारा दिन खी. खी करती फिरती है अरे कुछ कामकाज भी सीख ले ससुराल जायेगी तब सब यही कहेंगे…माँ ने कुछ नहीं सिखाया “!!! आखिर माँ ने कोर्स कराकर ही दम लिया।

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 रमा कहती माँ मुझे बहुत पढ़ना है…. मांँ कहती अरी..कितना पढेगी.. लड़का कहां से लायेंगे इतना पढ़ा लिखा और मिल भी गया तो दान दहेज भी उतना ही मांगेगा। माँ की ऐसी बाते सुनकर उसका आत्मविश्वास गिर जाता था। उनका ऐसा व्यवहार देखकर वो सोचती जन्म क्या केवल शादी करने के लिए ही हुआ है…?

अनेक बार ऐसा होता है समाज में लड़कियां माता पिता की बातें सुनते- सुनते ख्यालों में ऐसे सुनहरे महल बनाने लगती है मानों शादी ही उनकी आखिरी मंजिल हो…. शादी के लिए वो सब कुछ कर लेना चाहती है…. दुनिया भर के कोर्स, ट्रेनिंग, पढ़ाई-लिखाई….और जैसे ही शादी हुई शादी के बाद…उफ्फ…वही घिसी-पिटी ज़िन्दगी सुबह का नाश्ता,दोपहर क्या बनेगा , रात को दाल भाजी चावल या रोटी… ये जिंदगी बस वही तक सिमट कर रह जाती….!!!!

माँ की बात सुनकर रमा बड़ी हो गई, सुन्दर छरहरी शरीर की मल्लिका एम ए बी. एड मन, मनवाकर कर ही लिया था उसने और फिर शादी…. सोचती है आखिर सब क्यों नहीं समझते कोई काम केवल किसी चीज की कमी की पूर्ति के लिए ही नहीं किया जाता है…..रमा जैसे अपने सभी गुणता भूल ही चुकी थी ।अब तो उसे याद ही रह गया की कभी उसके अंदर कोई गुण भी था ।

रमा जिसने अपनी जिंदगी शादी के बाद अपने घर को ही समर्पित कर दी , अपने पति अपने परिवार, अपने बच्चों के लिए….उसको तो हमेशा यही सिखाया गया था उसने अपनी माँ बड़ी बहन, भाभी चाची ताई सभी को यही करते जो देखा था। कभी कभी इंसान कितना मजबूर महसूस करने लगता है…उसे समझ नहीं आता वो अपनी खुशी देखे या दूसरों की, उसके लिए तय कर पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है…..उसकी जिंदगी में आज ऐसा समय आया जब…उसकी आत्मा ने उसे उसके वजूद के लिए धिक्कारा और फिर “यादों के झरोखे ने दस्तक दे ही दी “। खुद को पहचानने की ‌

एक ढर्रे पर चलते चलते सोचने पर मजबूर हो ही जाती है…कि आखिर वो कहां खड़ी है…? वो क्यों जी रही है….? उसकी अपनी पहचान भी है या नहीं। अपने वजूद की पहचान बहुत जरूरी है। 

“ कुदरत ने हर किसी को कोई न कोई गुण दिया है बस जरूरत है उसे पहचानने की और उस दिशा में चलने की” !! माना महिलाओं के लिए रास्ते आसान नहीं होते अगर उनमें दृढ़ निश्चय की भावना हो तो सब सम्भव है।

आज घर गृहस्थी के बोझ से रमा को महसूस होने लगा…माना उसके काम से घर में सब खुश है…मगर यही उसकी जिंदगी का मकसद नहीं है….आज जरूरत है ऐसे काम की जो उसकी खुद की पहचान बना दे.. उसको खुद के नाम से लोग जाने … उसको ख्याल आया वो अच्छा लिख सकती है और घर वाले बाहर जाकर काम करना पसंद नहीं करते हैं तो वो बाहर जाकर नहीं घर पर ही रहकर अपनी पहचान बनायेगी उसने अपनी पति का लैपटॉप उठाया आॅन लाइन काम ढूंढ उसके आवेदन के लिए उसकी उंगलियां उस पर थिरकनें लगीं ।

                          लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

                                   5 , 1, 2025

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