जब आंख खुली,तभी सवेरा – बिमला महाजन : Moral Stories in Hindi

घर में प्रवेश करते ही उसका सासू मां से सामना हो गया।

“इस समय कहां से ? “उन्होंने जानना चाहा 

” बस, स्टेशनरी की दुकान तक गई थी , कुछ सामान लाना था ।कल ललित की परीक्षा है न? “उसने उत्तर दिया ।

” इन कपड़ों में ?  तुम अब इस घर की बहू हो ,सही से ड्रेस -अप होकर  घर से निकलना चाहिए  । ” सासू मां ने एक उचटती सी दृष्टि उसके कपड़ों पर डालते हुए कहा ।

  “मुझे कौन सा बाजार घूमना था ? “उसने तकरार करते हुए उत्तर दिया ।

 “बाजार भले ही न घूमना हो , गाड़ी से उतर कर दुकान तक तो गई होगी ।भले घर की बहू -बेटियां क्या इस तरह से घर से निकलती हैं ? “सासू मां ने उत्तर दिया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी ।

“भला,इन कपड़ों में क्या खराबी है ?” उसने तल्ख लहजे में उतर दिया । पर उसके कानों में दुकान पर सुने शब्द अभी भी गूंज रहे थे । वह सामान लेकर मुड़ी ही थी कि दुकान पर खड़े दो चार ग्राहक उसके कपड़ों को लेकर छींटाकशी करने लगे । सुनकर मन कसैला हो गया  । ‘क्यों नहीं निकलने से पहले चेंज कर लिया ‘ वह मन ही मन पछता रही थी । उस पर आते ही सासू मां के कटाक्ष ! माथा भन्ना उठा ।

इन लोगों को तो बस नुक्ताचीनी के लिए बहाना चाहिए । यादों का पिटारा खुल चुका था । वह तंग आ चुकी है इन पाबंदियों से । वैसे तो मम्मी -पापा  हमेशा हर जगह हमारे साथ ही जाते हैं , जिससे कई बार बड़ी कोफ्त होती है  ।

यह भी कोई जीवन है ?हर समय बंधे -बंधे रहो । पर उस दिन पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि वह और राजुल शापिंग के लिए अकेले ही निकले, उसका  कितना मन था , बाहर खाना खाने का , पर राजुल कहां मानने वाले थे ? ” घर में मम्मी -पापा भी हैं , अच्छा नहीं लगता , अकेले -अकेले  खाना । किसी और रोज़ सब इकट्ठे आएंगे ।”कहकर साफ इंकार कर दिया । सिर्फ उसका मन रखने के लिए उसकी मन पसंद आइसक्रीम खिला दी बस ।

        कोई एक बात हो तो याद करे । वह अक्सर आफिस से कुछ समय पहले ही निकल कर शापिंग पर चली जाती है , घर में किसी को पता ही नहीं चलता। पर उस दिन पायल के साथ वक्त का पता ही नहीं चला । राहुल घर आ चुके थे।उसे देखते ही बोले

  -“तुम अगर लेट हो गई थी, तो एक फोन ही कर देती,ममा कितनी परेशान हो रहीं थीं  बच्चे अलग तंग कर रहे थे! ” वह मन ही मन भुनभुना कर रह गई , इतनी बन्दिशें ? सब कुछ बताना क्या आवश्यक है ?

    यह पहनो ,यह न पहनो , यहां जाओ, वहां न जाओ ,जोर से न हंसो धीमी आवाज में बात करो ।यह भी कोई बात हुई। अपनी स्वतंत्रता सबको प्यारी है , पर यहां स्वतंत्रता है कहां ?एक दिन तो हद हो गई सासू मां नसीहत देते हुए बोली  -” स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है , पर वही स्वतंत्रता जब स्वच्छंदता बन जाती है , तो परिवार बिखर जाते हैं ।” वह मन मारकर रह गई । 

  कोई एक बात हो तो सोचे । एक दिन सिर भारी था । इस लिए थोड़ा जल्दी सो गई  । पूछताछ शुरू  ” क्या हुआ ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ? ” सासू मां ने सुबह उठते ही पूछा 

”  हां  ! मेरी तबीयत को क्या हुआ है ? “उसने हैरान हो कर कहा 

“रात जल्दी सोने चली गई थी न! इस लिए पूछ रही हूं । रात भी मैं आई थी ,पर तुम्हारे कमरे का दरवाजा बंद था ।” 

इसी तरह एक दिन सबेरे सबेरे पूछ बैठी ,”सब ठीक है न! राजुल अभी तक कमरे से बाहर नहीं आया है , इसीलिए पूछ रही हूं ।” अब कोई इन लोगों से पूछे  ‘ जल्दी  सोना या देर से जागना कोई गुनाह है ।’ इतनी दखल अंदाजी —–?

     ” क्या खाया ? क्या नहीं खाया ?”इतनी निगरानी, हमारा अपना कोई व्यक्तिगत जीवन ही नहीं , कोई आजादी नहीं ,तोबा -तोबा —–यहां तक कि हम अपने बच्चों की परवरिश भी अपने अनुसार नहीं कर सकते हैं । एक दिन गुड़िया किसी बात पर जिद्द कर रही थी ,

उसने गुस्से में एक थप्पड़ जड़ दिया । बस फिर क्या था ? सासू मां आपे से बाहर हो गई ।”बच्चों को क्या इस तरह पीटा जाता है ?देखो पांचों उंगलियां बच्ची के मुंह पर छप गई हैं ‌।”थप्पड़ वाकई जोर से लगा था। कहते हैं न? गुस्सा चांडाल होता है ,

गुस्से में कुछ पता ही नहीं चला । पर फिर भी  —-शायद इसीलिए लोग कहते हैं ‘ये दादा-दादी ‘बच्चों को बिगाड़ देते हैं । यह बात अलग है कि इन लोगों की बदौलत ही वह नौकरी कर पा रही है ।देर-सबेर कभी भी आ जा सकती है , वरना इन नौकरों या बाईंयों से तो राम ही बचाए । पर फिर भी —–।

       याद आया । राजुल और उसके मध्य काफी दिनों से’कोल्ड -वार ‘चल रही थी दोनों एक दूसरे को नेगलेक्ट और इग्नोर कर रहे थे। मम्मी-पापा चुपचाप सब देख समझ रहे थे ।तभी एक दिन खाने की मेज पर ही दोनों में कहासुनी हो गई । बात कुछ भी नहीं थी । पर कई बार जीवन की छोटी छोटी बातें ही बड़े विवाद का रूप ले लेती है ।

             वह आफिस से थकी -मांदी आई थीं  , उस पर तनाव का माहौल । गुड़िया सोने की जिद्द कर रही थी , पर वह अपने काम में  लगी रही । गुड़िया जोर -जोर से चीखने लगी। ‘ पहले इसे सुला क्यों नहीं देती ? ‘ राजुल गुस्से से बोले ।पर वह फिर भी सुने को अनसुना कर काम में व्यस्त रही  ।

बस फिर क्या था ? स्त्री- पुरुष  की समानता का दंभ भरने वाले राजुल एक टिपिकल इंडियन पति की तरह चिल्ला कर बोले। -“तुम किसी की सुनती क्यों नहीं ?” चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था । उनका यह रौद्र रूप देखकर वह इतना डर गई  कि गुड़िया को लेकर अपने बैड रुम में चली गई ।

       बैड रुम की खिड़की में से उसने देखा , दोनों मां -बेटा  बाहर घूम रहे हैं । इतना हस्तक्षेप —-पता नहीं मां बेटे को क्या पट्टी पढ़ाएगी ? एक तो करेला , उस पर नीम चढ़ा ।पर  यह क्या ? दस मिनट भी नहीं बीते थे कि राजुल कमरे मे थे ।

 “तुम रसोई सम्भाल लो  , मैं गुड़िया को सुला देता हूं ” राजुल बड़े मुलायम स्वर में बोले  ।

      ‘अरे वाह ! यह उल्टी गंगा कैसे बहने लगी ‘वह सोच रही थी । राजुल को वह अच्छी तरह जानती है। कितना जहरीला और अड़ियल है वह ।कभी किसी बात पर टस से मस नहीं होता ।उसे मनाना इतना आसान नहीं है ।’फिर यह क्या चमत्कार हो गया ? ‘ उसने हैरानी से सिर उठा कर देखा ।

  राजुल उसकी आंखों में आंखें डालकर बोला  ” मां  कह रही थीं , मुझे सब के सामने तुम से ऊंची आवाज में नहीं बोलना चाहिए था ।” 

उसका सारा क्रोध न जाने कहां गायब हो गया ।वह चुपचाप रसोई की ओर बढ़ गई , पर रसोई सिमटी पड़ी थी और खाने का मेज बिल्कुल साफ था ।

   वह सोचने लगी , वह भी कितनी बेवकूफ है । पता नहीं क्या- क्या  सोचने लगी , अपनी अकल के घोड़े कहां -कहां  त दौड़ने लगी । वह मूर्ख सब की परवाह को दखल अंदाजी ही समझती रही ।

 अपनी नासमझी पर वह खुद ही मुस्कुरा उठी ।

      सच ही है जब आंख खुली , तभी सवेरा ‘

बिमला महाजन C/O

#कड़वाहट

3 thoughts on “जब आंख खुली,तभी सवेरा – बिमला महाजन : Moral Stories in Hindi”

  1. लोगों को यह दखलअंदाजी लगता है पर यही तो बड़ों का प्यार है वह हमें सीखना चाहते हैं पर हम अपनी जिद के आगे कुछ नहीं समझते

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